डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सारण जिले के जीरादेई नामक गाँव के थे। यह गांव उत्तर प्रदेश के देवरिया, के पड़ोस में हैं। मैं देवरिया जिले में 1992 से 95 तक एडिशनल एसपी रहा हूँ। मुझे वहां के लोग, और वह जिला बेहद पसंद है। मैं जब वहां था तो देवरिया बंटा नहीं था। पडरौना जो अब कुशीनगर के नाम से एक नया जिला बन गया है, वह उसी का अंग था। मेरी ही सामने 1994 में कुशीनगर जिला बना। पर यह प्रसंग जो आज मैं आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ वह जीरादेई का है। डॉ राजेन्द बाबू का भी एक प्रसंग उज़मे है जो मुझे जीरादेई के ही एक बुजुर्ग सज्जन ने सुनाया था। वह प्रसंग पुलिस से भी जुड़ा है और रोचक भी है।
जीरादेई एक थाना भी है और अब वह एक कस्बा के रूप में विकसित हो गया है। देवरिया और जीरादेई के बीच मे मैरवां एक जगह है जो उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा बनाता है। देवरिया के एक बैंक मैनेजर के 8 वर्षीय पुत्र का अपहरण हो गया था। देवरिया राजनीतिक रूप से बहुत ही जागरूक जिला है और लोग जल्दी उत्तेजित होकर कानून व्यवस्था की स्थिति भी उत्पन्न कर देते थे। यह अपहरण उंस बालक के स्कूल से घर आते हो गया था। एक दिन घर के लोग बालक को ढूंढने में लगे रहे पर शाम तक जब कुछ पता नहीं लगा तो, लोग थाने आये।
रात 8 बजे तक मुझे पता लग गया कि अपहरण हो गया है और रात में ही दस बजे मैं सीओ और इंस्पेक्टर कोतवाली उन बैंक मैनेजर के घर पहुंचे। वहां आस पड़ोस के लोग भी थे। कुछ रिश्तेदार भी आ गए थे। भीड़ में बहुत गम्भीरता से न तो पूछताछ हो सकती है और न ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। रिश्तेदारों और घर वालों को थोड़ा अलग कर के बात चीत की गई। रात भर बात होती रही जहां जहां सन्देह होता रहा वहां भी पुलिस भेजी जाती रही पर दूसरे दिन शाम तक कोई सफलता नहीं मिली।
दूसरे दिन तो लोग थोड़ा संयमित रहे पर तीसरे दिन लोग उत्तेजित हुये और राजनीतिक दल भी इस मामले में जुट गए। जुलूस निकाला, बाजार बंद हुआ और वक़ीलों ने भी एक दिन काम बंद रखा। मेरे एसपी थे रजनीकांत मिश्र जो बहुत ही सुलझे और स्पष्टवादी अधिकारी थे। अभी वे पिछले साल बीएसएफ के डीजी पद से रिटायर हुए हैं। उन्होंने कहा कुछ टीम बनाइये और बिना घबराए और तनाव में आये इस केस में लगा जाए। बालक का बरामद होना बहुत ज़रूरी है।
अमूमन अपहरण के कई कारण होते हैं जिसमे रंजिश या दुश्मनी और फिरौती के लिये प्रमुख होते हैं। हमलोगों ने दुश्मनी के कारणों पर ध्यान दिया क्योंकि फिरौती के लिये किये गए अपहरणों में धन की मांग पत्र भेज कर या फोन से आती है। तब केवल लैंडलाइन फोन था, मोबाईल फोन नहीं आया था। लेकिन तीसरे दिन तक न तो फिरौती के लिये कोई खबर आयी और न ही किसी रंजिश या दुश्मनी का पता चला। हमलोग मेहनत से लगे थे, आसपास के जिलों, गोरखपुर, आजमगढ़, मऊ बलिया आदि के पुलिस अफसरों से भी सम्पर्क किया जा रहा था।
चौथे दिन अचानक लार थाने के थानाध्यक्ष को यह सूचना मिली कि जीरादेई के पास किसी गांव में कोई 8, 9 साल का लड़का कहीं से उठा कर लाया गया है। यह खबर जीरादेई थाने के ही एक सिपाही ने मैरवां चौकी के एक सिपाही को बताई और फिर वह खबर चौथे दिन शाम तक मुझे और एसपी साहब को मिली। हमलोग बैंक मैनेजर के घर न जाकर उनको मैंने अपने आवास पर ही बुलाया और इंस्पेक्टर सहित कुछ हम कुछ अधिकारियों ने देर तक उनसे यह जानने की कोशिश की, जीरादेई के आसपास कोई रिधतेदारी तो नहीं है। पर जीरादेई के बारे में वह कोई सूचना नहीं दे सके।
पांचवे दिन मैं जीरादेई गया। वहाँ के थानाध्यक्ष से मिला और उनको यह सब बताया पर उनको भी कुछ भनक लग गयी थी। पर कोई बहुत सफलता नहीं मिली। उंस समय जीरादेई या सीवान जिले में सीपीआई माले का बड़ा प्रभाव था। रात बिरात कोई निकलता भी नहीं था। दिन भर हमलोग आसपास के अपहरण के अपराधियों के बारे में काफी कुछ पता करते रहे। पर कोई सफलता नहीं मिली। रात मैं जीरादेई नही रुकता था। लार आ जाता था और सलेमपुर जाकर रुक जाता है।
यही क्रम सातवें दिन भी चला। जीरादेई और राजेंद्र बाबू का नाम अनजाना नहीं था। उसी में वक़्त निकाल कर उनके घर भी गया जहाँ उनकी मूर्ति लगी है। वहीं पर कुछ ऎसे लोगों से भी मुलाकात हुयी जो राजेंद्र बाबू के असंख्य संस्मरणों से समृद्धि थे। राजेन्द्र प्रसाद जी के लिये अपार श्रद्धा थी वहां के लोगो मे और गर्व भी था। वही एक सज्जन के दरवाजे हम लोग बैठे थे और सामान्य बातचीत चल रही थी। एक सज्जन ने कहा कि पुलिस में बड़ी ताकत होतो है, वह चाहे तो कोई भी केस खोल लेती है और न चाहे तो दुनिया सिर पटक के रह जाय, कुछ नहीं करेगी। उन्होंने डॉ राजेन्द्र प्रसाद से जुड़ा पुलिस के संबंध में एक किस्सा भी सुनाया जो बहुत रोचक है जिसे मैं अंत मे लिखूंगा, पहले इस अपहरण की बात पढ़ लें।
आठवें दिन मैं सलेमपुर में सो के उठा ही था कि थाने से एसओ साहब आये और कहा कि तुरन्त आप देवरिया जाइये वहां कप्तान साहब याद कर रहे हैं। मैं सलेमपुर से देवरिया आया और सीधे एसपी साहब के आवास पर पहुंचा जहां एसपी साहब ने सीधे अपने आवास में बुलाया और मुस्कुराते हुए पूछा,
" कुछ पता लगा ? "
मैंने इनकार में सिर हिलाया और फिर कहा " अभी तो कोई खाद खबर नहीं है।"
उन्होंने कहा, " चाय पीजिए, मेरे पास एक आदमी आया है, उसके पास खबर है। "
चाय पीकर हम दोनों एसपी साहब के कैम्प ऑफिस में आ गए। फिर बाहर से जो व्यक्ति आया था, उसे बुलाया गया।
एक व्यक्ति लग्भग पचास साल की उम्र का का कमरे में आया और सामने बैठ गया। अब एसपी साहब ने कहा कि
" वह लड़का इनके घर मे हैं। सुरक्षित है। इनका कहना है कि इनका गांव जीरादेई से छह सात किलोमीटर पूर्व की ओर है। शाम को जाकर उंस बालक को ले आना है। लेकिन यह खबर जीरादेई थाने को नहीं दी जाय। "
मैंने घड़ी देखी, 10 बज रहा था। मैंने कहा,
" सर अभी निकलते हैं। एक घँटे में फोर्स तैयार हो जाएगी। 11 बजे निकलेंगे तो फिर, 2 से 3 के बीच मे पहुंच जाएंगे। "
तब उस आदमी ने कहा कि,
" हम रउआ सबके साथे ना जाइब। हमरा लागे मोटर साइकिल बा, ओहि से गावें दु तीन घन्टा में पहुंच जाब। तब सांझी के रउआ सभें आईं। पूरा गांव बटुरी । आउर पानी ऊनी पी के आ उ लइकवा के लेके वापस आप सब चल अइहन।
फिर मैंने कहा, कि
" आप हमारे साथ चलिए। आप के गांव चलते हैं। 3 नहीं तो 4 बजे तक पहुँच जाएंगे। आप के यहां रुक कर कुछ खा पी कर उंस बच्चे को लेकर वापस आ जाएंगे।
यह बात भोजपुरी में ही हो रही थी। मेरे यहाँ बनारस की भोजपुरी और जीरादेई सीवान की भोजपुरी में थोड़ा अंतर है।
फिर उसने कहा कि,
" हमे जाने दे। आप सब चार पांच बजे तक आइए। आप निश्चिंत रहिये, बच्चा कुशल से है। मेरे ही घर पर है। "
एक सन्देह उठा कि इसी के घर बच्चा है। फिर मैंने पूछा कि आप के घर कौन ले गया है। उन्हें भी तो पकड़ना होगा।
तब उसने कहा कि,
" वे मेरे परिवार के ही लड़के हैं जिन्होंने यह नीच काम किया है। वे अब गाँव मे नहीं हैं। बच्चा हमारे पास है। आप बच्चे को ले लीजिए फिर मैं सारी बात वहीं बताऊंगा। "
इतना कह कर वह उठा और जाने की बात करने लगा। तब एसपी साहब ने कहा कि तैयारी कीजिए, मैं भी चलूंगा। मेरे यह कहने पर कि गांव का रास्ता जीरादेई से कौन बताएगा तो उस व्यक्ति ने कहा कि कस्बे में एक जगह कोई मिलेगा जो हमे गांव में उसके घर ले जाएगा।
वह आदनी निकल गया। तब एसपी साहब ने कहा कि
" बालक का सकुशल वापस लौटना बहुत ज़रूरी है। इसी वादे पर यह राजी हुआ है कि अभी मुल्जिमों के बारे में कोई अधिक पूछताछ नहीं की जाय और पहले बच्चे को छुड़ा लिया जाय।"
दोपहर बाद ही हमलोग पर्याप्त पुलिस बल लेकर लग्भग सात आठ गाड़िया और पीएसी लेकर जीरादेई गये। मेरे साथ अपहृत बालक के पिता और चाचा भी थे। दोनों उदास और सशंकित और अविश्वास से हमे देख रहे थे। मैंने उन्हें कुछ नही बताया कि कैसे और कहा चलना है। बस यह कहा कि एक सूचना है। उम्मीद है हम सफल होंगे। अधिक पुलिस देख कर वे थोड़ा घबराए भी थे कि कही बदमाशो के साथ कोई मुठभेड़ न हो जाय और उनके बच्चे को कुछ हो न जाय। मैं उन्हें सांत्वना देता रहा। शाम तक हम जीरादेई पहुंच गए ।
वहां के थाने को पता न चलने की बात उस व्यक्ति ने कही थी। पर दूसरा राज्य, दूसरा जिला होने के कारण प्रशासनिक रूप से यह उचित था कि हम सीवान के एसपी को यह बात बता देते। हमारे एसपी साहब ने सीवान के एसपी को बस यह बताया था कि एक मुल्ज़िम की गिरफ्तारी के लिये जीरादेई देवरिया की पुलिस फोर्स जाएगी, जब ज़रूरत होगी तो थाना जीरादेई की मदद ली जाएगी। थाने को तो यह पता था कि देवरिया की पुलिस आयी है पर यह नहीं पता था कि एसपी देवरिया और हम भी हैं।
थोड़ी देर में ही उक्त व्यक्ति के गांव ले जाने वाला आदमी मोटरसाइकिल से मिल गया। उसने पीछे आने का इशारा किया। हम लोग पीछे चल पड़े। सबसे आगे मैं जिप्सी से था और सबसे पीछै एसपी साहब थे। बीच मे कुछ थानाध्यक्ष और पीएसी थी। सबके वायरलेस एक दूसरे से जुड़े थे। रास्ता कच्चा था। बीच बीच मे कच्चे मकान पड़ते थे। उन पर सीपीआई एमएल के नारे लिखे हुए थे। वह इलाका नक्सल प्रभावित था। हमलोग भी उसी के अनुसार तैयार थे। गांव तक पहुंचने में पांच बज गया था। गांव में हम पहले ही रुक गए। वहीं वह व्यक्ति भी मिल गया जो हमें देवरिया बुलाने गया था। गांव में घुसते ही उसका घर था।
उसके घर के सामने अच्छी खासी जगह थी। वहीं तखत और चारपाई भी थी। लकड़ी की अनगढ़ सी दो कुर्सियां थी। उन्हीं में एक पर मैं और एसपी साहब बैठ गए। बगल में ही तखत पर बालक के पिता और चाचा तथा सीओ सलेमपु भी बैठ गए। गांव के भी बहुत से लोग आकर बैठ गए थे। लग रहा था कि हम न अपहृत को बरामद करने आये हैं न मुल्ज़िम पकड़ने। उस व्यक्ति ने पानी और कुछ मीठा मंगाया। गर्मी का दिन था तो उसने शर्बत बनाने के लिये किसी को कहा। इंतज़ाम पहले से था। पर न किसी का मन पानी पीने में लग रहा था, न शर्बत में। हम जल्दी से जल्दी उस बालक को देखना चाहते थे और उसे सुरक्षित लेकर निकल जाना चाहते थे।
मैंने उस व्यक्ति से भोजपुरी में कहा कि,
" जाईं लइकवा के लें आईं। "
" 'अब्बे। केहू के भेजले बानी।"
तब तक एक अन्य व्यक्ति सात आठ साल के एक प्यारे से बच्चे को जो सहमा हुआ था, लेकर आ गया। बच्चे को देखते ही उसके पिता ने उसे गोद मे ले लिया। पिता और बच्चा दोनों ही रोने लगे। तुरन्त उन सबको एक गाड़ी में बिठाकर और पुलिस बल के साथ वहां से रवाना कर दिया गया और फिर एसपी साहब ने कहा कि आप सबका बड़ा आभार। धन्यवाद। चलते समय मैं और एसपी साहब एक गाड़ी में हो गए। गांव वालों ने बड़े ही सम्मान से विदा किया। हम थोड़ी देर में जीरादेई के नज़दीक पहुंच गए। जब हम कस्बे के पास पहुंच रहे थे तो जीरादेई के थानाध्यक्ष कुछ बीएमपी, बिहार मिलिट्री पुलिस जो बिहार का सशस्त्र पुलिस बल होता है के साथ मिले। उन्होंने हमें देखा तो रुक गए। उन्होंने देर से पहुंचने के लिये एसपी साहब से माफी मांगी और फिर एसपी साहब ने कहा कोई बात नहीं। अब आप वापस अपने थाने जाइये, हम सब देवरिया जा रहे हैं।
बैंक मैनेजर और उस बालक के साथ जो अधिकारी थे उनकी लोकेशन हम वायरलेस से लेते जा रहे थे, वे हमसे आगे थे। उनको कहा गया था कि सलेमपुर पहुंच कर रूके वहीं हम सब मिलेंगे। रास्ते मे एसपी साहब ने उस व्यक्ति का रहस्य खोला। वह व्यक्ति गाँव का मुखिया था। उसी के दो भतीजों ने इस अपहरण की योजना बनाई थी। उद्देश्य पैसा मांगना था। उनमे से एक भतीजे का सम्बंध देवरिया के किसी अपराधी युवक से था। उसी ने यह सुझाव दिया था कि यह इकलौता बेटा है, आसानी से फिरौती मिल जाएगी। स्कूल से ही उंस बच्चे को अगवा कर के सीधे पहले जीरादेई लाया गया और फिर उस गांव में वे दोनों लड़के अपने ही घर ले गए। वहीं वह बच्चा रहा। वहां उन अपहरण कर्ताओं ने यह बहाना बताया कि यह बच्चा उनके किसी दोस्त का भाई है, वह दो तीन दिन यहीं रहेगा फिर उनका दोस्त आएगा और उसे वहां से पटना ले जाएगा। वह बालक भी डरा तो था पर जब उसे घर का माहौल मिला तो थोड़ा सामान्य हो गया। दूसरे दिन उस व्यक्ति मुखिया की पत्नी को कुछ शक हुआ तो उसने उस बालक से पूछा कि पटना किसके यहां जाना है । बच्चे के रोने पर उसे और शक हुआ और उसने पूरी बात पूछ कर पता कर ली।
फिर तो घर मे जब यह भेद खुल गया तो वे दोनों भतीजे वहां से गायब हो गए। उंस मुखिया से जीरादेई थाने से कुछ नाराज़गी थी तो उसने वहां कुछ न बता कर सीधे देवरिया आया और सुबह उसकी भेंट जब एसपी से हुई तो उसने यह बताया। मुखिया ने एसपी साहब को बताया कि
" यह हमारे घर, परिवार गांव के लिये बहुत अपमानजनक है कि हम किसी के बच्चे को अगवा कर के फिरौती वसूले। मेरी (मुखिया की ) पत्नी सहित घर की सभी औरतें अपने घर के दो लड़कों के इस हरकत से बहुत दुःखी और नाराज हैं। बच्चा सुरक्षित है। हम बच्चे को लेकर नहीं आना चाहते थे, तो आप को खबर देने आए हैं। "
यही सब बातें करते करते हम सलेमपुर तक पहुंचे और वहां फिर कुछ समय रुक कर देवरिया के लिये निकल लिये।
हमलोग भी इस सफलता से जो बड़े ही नाटकीय तरह से कुशलता पूर्वक हल हो गयी तनावमुक्त थे। एसपी साहब ने गोरखपुर के डीआईजी और आईजी को यह सूचना दे दी। रात में लगभग 9 बजे हम देवरिया सीधे बैंक मैनेजर के घर पहुंचे। वहां खबर पहुंच चुकी थी। लोगो की भीड़ इकट्ठा हो गयी थी। हंसी खुशी का माहौल था। हमलोग पहुंचे तो भीड़ ने जो चार दिन पहले मुर्दाबाद कर रही थी तब खुलकर ज़िंदाबाद करने लगी। ज़िंदाबाद कब मुर्दाबाद में और मुर्दाबाद कब ज़िंदाबाद में बदल जाये, यह पुलिस सेवा में तो कहा नहीं जा सकता है।
( क्रमशः )
अगले भाग में राजेंद्र बाबू से जुड़े दो प्रसंग जो वहां के लोगो ने मुझे बताये को आप सबसे साझा करूँगा।
© विजय शंकर सिंह
No comments:
Post a Comment