Thursday 12 December 2019

महात्मा गांधी - सत्याग्रह बनाम पैसिव रेसिस्टेंस / विजय शंकर सिंह

गांधी के सत्याग्रह की अवधारणा ईसाइयों के पैसिव रेजिस्टेंस से निकली है। पैसिव रेजिस्टेंस का अर्थ है सविनय अवज्ञा। यानी अगर कोई आदेश अमान्य है तो उसे शांतिपूर्वक न माना जाय। महात्मा गांधी इस लेख में यह बता रहे है कि कैसे, उनका सत्याग्रह, पैसिव रेजिस्टेंस से अलग है। 
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 सत्‍याग्रह बनाम 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' 

हिंदुस्‍तानी कौम का आंदोलन जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया वैसे-वैसे अँग्रेज भी उसमें दिलचस्‍पी लेने लगे। मुझे इतना कह देना चाहिए कि यद्यपि ट्रान्‍सवाल के अँग्रेजी अखबार अधिकतर खूनी कानून के पक्ष में ही लिखते थे और गोरों द्वारा किए जाने वाले हिंदुस्‍तानियों के विरोध का समर्थन करते थे, फिर भी कोई प्रसिद्ध हिंदुस्‍तानी उन अखबारों के लिए कुछ लिखता तो वे खुशी से छापते थे। हिंदुस्‍तानियों द्वारा सरकार के पास भेजी जानेवाली अरजियाँ भी वे पूरी छापते थे अथवा कम से कम उनका सार अवश्‍य देते थे। हिंदुस्‍तानियों की बड़ी सभाओं में कभी कभी वे अपने रिपोर्टरों को भेजते थे और वैसा न करते तब हमारी भेजी हुई संक्षिप्‍त रिपोर्ट छापते थे।

अखबारों का इस प्रकार का सौजन्‍यपूर्ण व्‍यवहार कौम के लिए बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ और हमारा आंदोलन आगे बढ़ने पर कुछ गोरे भी उसमें रस लेने लगे। ऐसे अग्रगण्‍य गोरे नेताओं में जोहानिसबर्ग के एक लखपति श्री हॉस्किन भी थे। उनके मन में रंगद्वेष तो पहले से ही नहीं था। लेकिन कौम का आंदोलन शुरू हुआ उसके बाद वे हिंदुस्‍तानियों के प्रश्‍न में अधिक रस लेने लगे। जर्मिस्‍टन जोहानिसबर्ग के उपनगर जैसा एक शहर है। वहाँ के गोरों ने मेरा भाषण सुनने की इच्‍छा बताई। एक सभा की गई। श्री हॉस्किन उसके सभापति बने और मैंने भाषण किया। सभा में श्री हॉस्किन ने हिंदुस्‍तानियों के आंदोलन का और मेरा परिचय करते हुए कहा : "ट्रान्‍सवाल के हिंदुस्‍तानियों ने न्‍याय प्राप्ति के अन्‍य उपाय असफल सिद्ध होने पर 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' का आश्रय लिया। उन्‍हें मतदान का अधिकार नहीं है। उनकी संख्‍या थोड़ी है। उनके पास हथियार नहीं है। इसलिए उन्‍होंने 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स', जो कमजोरों का हथियार है, ग्रहण किया है।" उनकी यह बात सुनकर मैं चौंक उठा और जो भाषण करने मैं सभा में गया था उसने दूसरा ही रूप पकड़ लिया। वहाँ मैंने श्री हॉस्किन की दलील का विरोध करके 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' को 'सोल-फोर्स' अर्थात आत्‍मबल का नाम दिया। उस सभा में मैंने यह समझ लिया कि 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' शब्‍द के उपयोग से भयंकर गलतफहमी खड़ी हो सकती है। उस सभा में मैंने जो दलीलें की थीं उन्‍हें अधिक विस्‍तार से प्रस्‍तुत करके मैं 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' तथा आत्‍मबल के बीच का भेद अधिक स्‍पष्‍ट रूप में समझाने का प्रयत्‍न करूँगा।

मुझे इस बात का तो खयाल नहीं है कि सर्वप्रथम अँग्रेजी भाषा में 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' इन दो शब्दों का प्रयोग कब हुआ और किसने किया। परंतु अँग्रेज प्रजा में जब कभी कोई कानून प्रजा के अल्‍पमत को पसंद नहीं आया तब उस कानून के खिलाफ विद्रोह करने के बजाय अल्‍पमत ने कानून के सामने सिर न झुकाने का 'पैसिव' अर्थात् नरम कदम उठाया है और उसके फलस्‍वरूप होनेवाली सजा को भुगत लेना पसंद किया है। कुछ वर्ष पूर्व ब्रिटिश पार्लियामेंट में शिक्षा-संबंधी कानून (एज्‍युकेशन एक्‍ट) पास किया था। उस समय इंग्‍लैंड के नॉन-कान्‍फॉर्मिस्‍ट नामक ईसाई सम्‍प्रदाय ने डॉक्‍टर क्लिफर्ड के नेतृत्‍व में 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' का आश्रय लिया था। इंग्‍लैड की स्त्रियों ने मताधिकार के लिए जो महान आंदोलन किया, वह भी 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' के नाम से पहचाना जाता था। इन दोनों आंदोलनों को ध्‍यान में रखकर ही श्री हॉस्किनने गोरों की सभा में यह कहा था कि 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' कमजोरों का या ऐसे लोगों का हथियार है जिन्‍हें मतदान का अधिकार नहीं है। डॉक्‍टर क्लिफर्ड का पक्ष मताधिकारियों का था। परंतु ब्रिटिश लोकसभा में उनकी संख्‍या कम थी, इसलिए उनके मतों की शक्ति शिक्षा-कानून को पास होने से रोक नहीं सकी। अर्थात वह पक्ष संख्‍याबल में कमजोर सिद्ध हुआ। नॉन-क्रन्‍फॉर्मिस्‍ट पक्ष अपना ध्‍येय सिद्ध करने के लिए हथियारों का उपयोग करने के विरुद्ध नहीं था। परंतु ऐसे कार्य में हथियारों का उपयोग करके सफलता प्राप्‍त करने की उसे आशा नहीं थी। इसके सिवा, हर समय एकाएक विद्रोह करके अधिकार प्राप्‍त करने की पद्धति किसी सुव्‍यवस्थित राज्‍यतंत्र में चल ही नहीं सकती। फिर यह बात भी थी कि डॉ. क्लिफर्ड के पक्ष के कुछ ईसाई सामान्‍यतः हथियारों का उपयोग संभव होने पर भी उनके उपयोग का विरोध करते। इंग्‍लैड की स्त्रियों के आंदोलन में उन्‍हें मतदान का अधिकार नहीं था। संख्‍या में और शरीर-बल में भी वे कमजोर थीं। इसलिए यह दूसरा उदाहरण भी श्री हॉस्किन की दलीलों का समर्थन करता था। स्त्रियों के मताधिकार संबंधी आंदोलन में हथियारों के उपयोग का त्‍याग नहीं किया गया था। स्त्रियों के एक दल ने मकान भी जलाए थे और पुरुषों पर आक्रमण भी किए थे। मैं नहीं मानता कि उन्‍होंने किसी दिन किसी आद‍मी का खून करने का इरादा किया हो। परंतु मौका आने पर लोगों को मारने-पीटने और इस तरह लोगों को थोड़ा-बहुत परेशान करने का इरादा तो उनका था ही।

लेकिन दक्षिण अफ्रीका के हिंदुस्‍तानी आंदोलन में हथियारों का किसी भी जगह और कैसी भी स्थिति में कोई स्‍थान नहीं था; और जैसे जैसे हम आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे पाठक देखेंगे कि भयंकर दुख पड़ने पर भी सत्‍याग्रहियों ने कभी शरीर-बल का उपयोग नहीं किया। और वह भी ऐसे समय जब वे उस बल का सफलतापूर्वक उपयोग करने की स्थिति में थे। इसके सिवा, हिंदुस्‍तानियों को मताधिकार नहीं था और वे कमजोर थे, ये दोनों बातें सच हैं। परंतु सत्‍याग्रह आंदोलन के संगठन के साथ इन बातों का कोई संबंध नहीं था। इससे मैं यह नहीं कहना चाहता कि हिंदुस्‍तानी कौम के हाथ में मताधिकार बल होता अथवा हथियारों का बल होता, तो भी वह सत्‍याग्रह ही करती। मताधिकार का बल उसके पास होता तो शायद सत्‍याग्रह के लिए कोई अवकाश ही न रह जाता। अगर उसके पास हथियारों का बल होता, तो विरोधी पक्ष अवश्‍य ही सावधान रह कर अपना काम करता। इसलिए हथियारों का बल रखने वाले पक्ष के सामने सत्‍याग्रह करने के अवसर बहुत कम आ सकते हैं, यह भी समझ में आने जैसी बात है। मेरे कहने का मतलब इतना ही है कि हिंदुस्‍तानी कौम के आंदोलन की योजना बनाते समय मेरे मन में तो हथियारों के उपयोग की संभावना या असंभावना का प्रश्‍न ही खड़ा नहीं हुआ, ऐसा मैं निश्‍चयपूर्वक कह सकता हूँ। सत्‍याग्रह केवल आत्‍मा का बल है; और जहाँ जितने अंश में हथियारों का अर्थात शरीर-बल का या पशुबल का उपयोग होता है अथवा उसकी कल्‍पना रहती है वहाँ उतने ही अंश में आत्‍मबल का कम प्रयोग होता है। मेरी मान्‍यता के अनुसार ये दोनों शक्तियाँ शुद्ध विरोधी शक्तियाँ हैं; और ये विचार सत्‍याग्रह आंदोलन के जन्‍म के समय भी मेरे हृदय में तो पूरी तरह उतर गए थे।

परंतु यहाँ हमें इस बात का निर्णय नहीं करना है कि ये विचार सही हैं या गलत। हमें तो केवल 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' और सत्‍याग्रह के बीच का भेद समझ लेना है। और हमने देख लिया कि इन दो शक्तियों में बहुत बड़ा और बुनियादी भेद है। अतः इस भेद की समझे बिना यदि अपने को 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' अथवा सत्‍याग्रही माननेवाले लोग परस्‍पर यह समझें कि हम दोनों एक ही हैं, तो दोनों के साथ अन्‍याय होगा और इसके हानिकारक परिणाम भी आएँगे। हम खुद ही दक्षिण अफ्रीका में 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' शब्‍द का उपयोग करते थे। इसलिए मताधिकार के खातिर लड़नेवाली ब्रिटिश स्त्रियों की बहादुरी और आत्‍मत्‍याग का हम पर आरोपण करके हमारी प्रशंसा करनेवाले लोग बहुत थोड़े थे, परंतु अधिकतर लोगों ने हमें उन स्त्रियों की तरह जान-माल का नुकसान पहुँचाने वाले लोग ही मान लिया था। और श्री हॉस्किन के समान उदार और शुद्ध मनवाले मित्र ने भी हमें कमजोर मान लिया। विचार में इतना बल है कि मनुष्‍य जैसा अपने को मानता है वैसा ही अंत में वह बन जाता है। यदि हम ऐसा मानते ही रहें और दूसरों को भी मानने दें कि कमजोर हैं इसलिए लाचारी से 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' का उपयोग करते हैं, 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' करते हुए हम कभी भी बलवान नहीं बनेंगे और मौका मिलते ही कमजोरों का वह हथियार हम छोड़ देंगे। इसके विपरीत; यदि हम सत्‍याग्रही हों और अपने को बलवान मानकर सत्‍याग्रह की शक्ति का उपयोग करें, तो उसके दो परिणाम निश्चित रूप से आते हैं। बल के ही विचार का पोषण करते करते हम दिनोंदिन अधिक बलवान बनते हैं; और जैसे जैसे हमारा बल बढ़ता जाता है वैसे वैसे सत्‍याग्रह का तेज भी बढ़ता जाता है और उस शक्ति को छोड़ने का मौका तो हम कभी खोजते ही नहीं। इसके सिवा, 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' में प्रेम की भावना के लिए कोई अवकाश नहीं रहता, जब कि सत्‍याग्रह में वैर की भावना के लिए कोई अवकाश नहीं रहता; इतना ही नहीं, सत्‍याग्रह में वैर की भावना अधर्म मानी जाती है। 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' में मौका आने पर हथियार-बल का उपयोग किया जा सकता है; सत्‍याग्रह में हथियारों के उपयोग के लिए उत्तम से उत्तम परिस्थितियाँ पैदा होने पर भी वे सर्वथा त्‍याज्‍य रहते हैं। 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' को अकसर हथियार-बल की तैयारी माना जाता है, जब कि सत्‍याग्रह का उपयोग इस तरह कभी किया ही नहीं जा सकता। 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' हथियार-बल के साथ साथ चल सकता है, सत्‍याग्रह हथियार बल का संपूर्ण रूप से विरोधी है; इसलिए दोनों का कोई मेल हो ही नहीं सकता। अर्थात् सत्‍याग्रह और हथियार-बल एक साथ कभी निभ ही नहीं सकते। सत्‍याग्रह का उपयोग अपने प्रियजनों के प्रति भी हो सकता है, और होता है। 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' का उपयोग प्रियजनों के प्रति वस्‍तुतः हो ही नहीं सकता - अर्थात् प्रियजनों को हम अपने शत्रु मानें तो ही उनके प्रति 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' का उपयोग किया जा सकता है। 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' में विरोधी पक्ष को दुख देने की और उसे परेशान करने की कल्‍पना हमेशा रहती है और उसे दुख देते हुए स्‍वयं को जो दुख सहना पड़े उसे सहन करने की तैयारी होती है; जब कि सत्‍याग्रह में विरोधी को दुख देने का विचार भी नहीं रहता। उसमें तो स्‍वयं दुख मोल लेकर - स्‍वयं दुख सहकर विरोधी को जीतने का विचार ही होता है।

इन दो शक्तियों के बीच मुख्‍य भेद ये हैं। मेरे कहने का यह आशय नहीं है कि 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' के जो गुण - अथवा दोष कह लीजिए - मैंने ऊपर गिनाए हैं, उन सबका प्रत्‍येक 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' में अनुभव होता ही है। लेकिन यह बताया जा सकता है कि 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' के अनेक उदाहरणों में ये दोष देखे गए हैं। मुझे पाठकों को यह भी बता देना चाहिए कि अनेक ईसाई ईसा मसीह को 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' के आदि नेता कहते हैं। परंतु ईसा मसीह के उदाहरण में तो 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' का अर्थ केवल सत्‍याग्रह ही माना जाना चाहिए। इस अर्थ में 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' के उदाहरण इतिहास में बहुत नहीं मिलेंगे। टॉल्‍स्‍टॉय ने रूस के दुखोबोर लोगों का जो उदाहरण उद्धृत किया है, वह ऐसे ही 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' का अर्थात् सत्‍याग्रह का उदाहरण है। ईसा मसीह के बाद जो अत्‍याचार हजारों ईसाइयों ने सहन किए, उनके लिए उस जमाने में 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' शब्‍द का उपयोग होता ही नहीं था। इसलिए उन लोगों के जितने भी निर्मल उदाहरण मिलते हैं, उन्‍हें मैं तो सत्‍याग्रह का ही नाम दूँगा। और यदि हम उन्‍हें 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' के उदाहरण मानें तब तो 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' और सत्‍याग्रह में कोई भेद ही नहीं रहता। इस प्रकरण का उद्देश्‍य तो यह दिखाना है कि अँग्रेजी भाषा में 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' शब्‍द का जिस अर्थ में उपयोग किया जाता है, उससे सत्‍याग्रह की कल्‍पना सर्वथा भिन्‍न है।

'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' के लक्षण गिनाते हुए मुझे ऊपर की चेतावनी इस खयाल से देनी पड़ी है कि उस शक्ति का उपयोग करनेवालों के साथ कोई अन्‍याय न हो जाए। उसी तरह सत्‍याग्रह के लक्षण गिनाते हुए यह बताना भी आवश्‍यक है कि जो लोग अपने को सत्‍याग्रही कहते हैं, उनके लिए मैं यह दावा नहीं करता कि उनमें सत्‍याग्रह के मेरे बताए सारे लक्षण विद्यमान है। यह बात मेरी जानकारी से बाहर नहीं है कि अनेक सत्‍याग्रही सत्‍याग्रह के उन गुणों से सर्वथा अपरिचित हैं, जिन्‍हें मैं ऊपर गिना चुका हूँ। अनेक लोग ऐसा मानते हैं कि सत्‍याग्रह कमजोरों का शस्‍त्र है। अनेक लोगों को मैंने यह कहते सुना है कि सत्‍याग्रह हथियार-बल से किए जानेवाले विरोध की तैयारी है। परंतु मुझे एक बार फिर यह कहना चाहिए कि मैंने यह नहीं बताया है कि सत्‍याग्रही कैसे गुणोंवाले देखे गए हैं, बल्कि यह बताने का प्रयत्‍न किया है कि सत्‍याग्रह की कल्‍पना में क्‍या गूढ़ अर्थ भरे हैं और उसके अनुसार सत्‍याग्रही कैसे होने चाहिए। थोड़े में, इस प्रकरण का उद्देश्‍य यह दिखाना है कि जिस शक्ति का उपयोग ट्रान्‍सवाल के हिंदुस्‍तानियों ने आरंभ किया उस शक्ति को स्‍पष्‍ट रूप से लोगों को समझाने के लिए और उस शक्ति को 'पैसिव रेजिस्‍टेन्‍स' कही जानेवाली शक्त्‍िा के साथ भ्रम से मिला न दिया जाए इसकी सावधानी रखने के लिए हमें उस शक्ति का अर्थ प्रकट करनेवाला शब्‍द खोजना पड़ा; साथ ही प्रस्‍तुत प्रकरण का उद्देश्‍य यह दिखाना भी है कि सत्‍याग्रह में उस समय कौन-कौन से सिद्धांतों का समावेश किया गया था।

( दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास
प्रथम खंड, मोहनदास करमचंद गांधी )
( विजय शंकर सिंह )

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