Wednesday, 31 July 2019

भारत की अवधारणा - शाबाश जोमैटो / विजय शंकर सिंह

यह शब्द, भारत की अवधारणा, भी 2014 के बाद से प्रासंगिक हो कर चलन में आ गया है। पाकिस्तान की अवधारणा, यानी Idea Of Pakistan तो देश मे साम्प्रदायिकता के विकास  के साथ साथ बनता और पुष्ट होता गया, पर भारत की अवधारणा तो सनातन से है, अनादि है। आईडिया ऑफ पाकिस्तान, स्टीफेन कोहेन की एक प्रसिद्ध पुस्तक भी है जो पाकिस्तान के विचार और उस अवधारणा के ज़मीन पर उतरने की कहानी कहती है। यह भारत विभाजन पर एक आधिकारिक विवरण देती है। कोहेन का कहना है कि यह उनके पच्चीस साल के अध्ययन और लेखन का परिणाम है। वह एक खतरनाक विचार था, जिसका परिणाम बहुत घातक हुआ।

आज भारत की अवधारणा का उल्लेख और चर्चा इसलिए भी प्रासंगिक हो गयी है कि एक  अमित शुक्ल नाम के व्यक्ति ने बना बनाया खाना सप्लाय करने वाली, जोमैटो कंपनी से अपने लिये खाना मंगवाया और जब उसकी डिलीवरी लेकर कम्पनी का कर्मचारी गया तो उसने उस कर्मचारी से खाना लेने से मना कर दिया, और कहा कि वह किसी मुस्लिम डिलीवरी बॉय से खाना नहीं लेगा। जोमैटो कम्पनी के मालिक ने अमित शुक्ल से कहा कि, खाने का कोई धर्म नहीं होता है और हम आप को खाना देंगे ही नहीं।

धर्म के आधार पर यह भेद चालीस के दशक में साम्प्रदायिकता से पीड़ित भारत के रेलवे स्टेशन पर हिंदू पानी और मुस्लिम पानी के अलग अलग घड़ों की उस मानसिकता को याद दिलाता है जब पाकिस्तान की अवधारणा की विष बेल पनपने लगी थी। यह उंस घृणा का परिणाम है जो 2014 के बाद से समाज मे कुछ लोगो द्वारा जानबूझकर फैलाई जा रही है । यह दरअसल पाकिस्तान के अवधारणा की ही सहोदरी है। पाकिस्तान धर्म आधारित राज्य का एक प्रतीक है। दुनिया मे बहुत से इस्लामी और धर्म आधारित राज्य है। पर राज्य का अस्तित्व धर्म के आने के पहले से था। राज्य, भौगोलिक औऱ ऐतिहासिक कारणों से बनते बिगड़ते रहते है । महान साम्राज्यों के पहले छोटे छोटे राज्य थे, फिर महान साम्राज्य बने, वे फिर टूटे और अलग अलग हो गए। अब कल क्या होगा, क्या पता।

पर पाकिस्तान तो भारत का ही एक अंग था। राज्य ही नहीं वह प्राचीन भारतीय सभ्यता संस्कृति का केंद्र विंदु था। पर वह मुस्लिम बाहुल्य आइडिया ऑफ पाकिस्तान के नाम पर एक अलग इस्लामी मुल्क बना। पर धर्म के उन्माद का यह आधार भी उसे सुरक्षित नहीं रह पाया। यह उन्माद भी लंबा नहीं चलता है। बस पचीस साल में ही धर्म के  उन्माद पर, भाषा और संस्कृति का साहचर्य भारी पड़ गया और पाकिस्तान टूट गया।

यह भी एक विडंबना है कि आज भारत की अवधारणा के लिये हमें जाग्रत होना पड़ रहा है। अमित शुक्ल जैसे लोग संख्या में बहुत कम होंगे। पर ज़हर कम भी हो तो मारक होता है। आज सोशल मीडिया पर एक स्वर से उसकी निंदा और जोमैटो के मालिकों, पंकज चड्ढा और दीपेंदर गोयल की सराहना की जा रही है। नीचे अमित शुक्ल का एक ट्वीट है जो उसने बांग्ला की सुप्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन के एक फोटो पर किया है। उसका यह ट्वीट ही उसके मानसिक अपंगता को बताता है। अस्पृश्यता, श्रेष्ठतावाद, खुद को अलग और पवित्र दिखाने की सनक एक मानसिक रुग्णता है ।

© विजय शंकर सिंह

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