जब सारे ज्ञान व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के एंटायर इतिहास वाले विद्वानों से मिलने लगे और जब विकृत इतिहास परोसा जाने लगें तो जो ऐतिहासिक घटनाएं हाल के ही इतिहास में घटी हैं उनका पुनर्पाठ और पुनर्मूल्यांकन आवश्यक हो जाता है। जब झूठ और अज्ञानता के सहारे नये नायक गढ़े जाने लगे और स्थापित नायकों को येनकेनप्रकारेण खलनायक साबित करने का प्रयास किया जाने लगे तो इतिहास के उन काल खंडों का पुनः अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
चाहे सावरकर हों या श्याम प्रसाद मुखर्जी जी, इनकी भूमिका भारतीय इतिहास के काल खंड में क्या रही है इसे जानना बहुत ज़रूरी है। इतिहास का यह कालखंड इतिहास के स्रोतों से भरा पड़ा है। तमाम पत्राचार, अखबार, पत्रिकाएं और संस्मरण उपलब्ध हैं, जिससे किसी भी महापुरुष का मूल्यांकन किया जा सकता है।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में यह ऐतिहासिक तथ्य मैं सौरभ कृष्ण सिंह जी की टाइमलाइन से ले रहा हूँ।
" 23 मार्च 1940 लाहौर में पहली बार मुस्लिम लीग ने एक अलग 'मुस्लिम राष्ट्र' का प्रस्ताव पारित किया.
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी,अंग्रेज सरकार द्वारा 1934 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए...इस पद पर वो 1938 तक रहे.
1941 में उन्होंने हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग की बंगाल प्रांत की सयुंक्त सरकार में मौलाना फजलुल हक जो उस सरकार के #प्रधानमन्त्री थे,वित्तमंत्री का पद सम्हाला,उस मुस्लिम लीग के साथ जो 'पाकिस्तान' का प्रस्ताव पारित कर चुकी थी! वो 1942 में उस सरकार के प्रतिनिधि की हैसियत से ब्रिटिश सरकार को पत्र लिख कर बताते हैं की 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन जिस आजादी की बात करता है वो तो हमें हासिल है! वो इस आंदोलन से निपटने के तरीके भी ब्रिटिश सरकार को बताते हैं.
मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ,क्योंकि नेहरू, गांधी, सुभाष,पटेल सब देश की आँखों में धूल झोंक रहे थे....असली राष्ट्रभक्त तो मुखर्जी ही थे.
उनकी राष्ट्रवादिता और प्रखर होकर तब सामने आई जब बंटवारें के माहौल में उन्होंने कोई भी परहेज करे बगैर पण्डित नेहरू की सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद सम्हाला.
वो और तब चरम ऊंचाई छू लेतें हैं,जब 1950 में नेहरू लियाकत समझौता होता है,जिसमें दोनों देश एक दूसरे के अल्पसंख्यकों की जान माल को बचाने का समझौता करते हैं,दोनों प्रण करते हैं की युद्ध से दूर रहेंग,एक दूसरे के खिलाफ प्रोपोगंडा नहीं करेंगे...और ये बात डॉक्टर मुखर्जी को अखरती है,ऐसा कैसे हो सकता है ???...
और वो कैबिनेट से इस्तीफा दे देते हैं,ऐसे प्रखर राष्ट्रवादी को बारम्बार प्रणाम है !! "
© विजय शंकर सिंह
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