Friday, 26 July 2019

कारगिल के शहीदों को याद करते हुये / विजय शंकर सिंह

कारगिल युद्ध, भारतीय सेना के धैर्य, शौर्य, रणकौशल का एक उत्कृष्ट उदाहरण तो है ही, पर यह तत्कालीन राजनैतिक नैतृत्व की शर्मनाक विफलता भी है। पूर्व RAW ( रिसर्च एंड एनालिसिस  प्रमुख एएस दुलत ने अपनी किताब में कारगिल का जिक्र किया है और इस बात का खंडन किया है कि यह इंटेलिजेंस विफलता थी। कारगिल घोषित युद्ध नहीं था। यह घुसपैठियो को वापस खदेड़ने की एक मुहिम थी। सेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार नहीं किया था बल्कि अपनी ही तरफ से ऊंची चोटी को घुसपैठियों से जो पाकिस्तान की सेना ही थी से उसे खाली कराया था। इसीलिए जनहानि बहुत हुयी थी।

दुलत के अनुसार, खुफिया तँत्र ने घुसपैठ की सूचना सरकार को और विषेधकर गृह मंत्री को दे दी थी। अब इस पर कार्यवाही सरकार के निर्देश पर फौज को करनी थी। पर सरकार ने चिंतन, बैठक और भोजन में विलंब कर दिया जिसके कारण यह घुसपैठ बढ़ती गयी और यह छोटी घुसपैठ एक बड़े आक्रमण में बदल गयी। जब तक सरकार चेती तब तक श्रीनगर लेह राजमार्ग जो लद्दाख को मुख्य भूमि से जोड़ता है खतरे की जद में आ गया था। उस की संवेदनशीलता को देखते हुए, ही मनाली से रोहतांग होते हुए लेह तक एक वैकल्पिक राजमार्ग विकसित किया जा रहा है।

पूर्व डीजी बीएसएफ, प्रकाश सिंह सर ने युद्ध पर एक सूचना परक लेख लिखा है । उनके अनुसार,  कारगिल क्षेत्र में जिन ऊंचाइयों पर बीएसएफ थी, वहां से घुसपैठ नहीं हो पायी और जिन ऊंचाइयों पर सेना की पोस्ट थी वे पोस्ट सेना ने रूटीन ड्यूटी की तरह छोड़ कर नीचे आ गयी, वहीं से घुसपैठ हो गई। बीएसएफ मूलतः सेना के आगे सीमा पर रहती है। पर कारगिल क्षेत्र में कुछ जगहों पर सेना ही आगे रहती है। यह घुसपैठ पाक सेना या यूं कहें जनरल मुशर्रफ के शातिर दिमाग की योजना थी। एएस दुलत और प्रकाश सिंह सर दोनों ही पुलिस के शीर्ष पदों पर रह चुके हैं और बेहद काबिल पुलिस अधिकारी रहे हैं।

कभी कभी राजनैतिक नेतृत्व संकट का पूर्वानुमान नहीं लगा पाते और जब दुश्मन धूर्त और शातिर ख्याल हो तो, तो बदहवास से हो जाते हैं, और ऐसे निर्णय ले लिए जाते हैं कि सेना को बहुत मेहनत करनी पड़ती है और उसकी जनहानि भी बहुत हो जाती है। कारगिल विफल कूटनीति तथा भ्रमित राजनैतिक नेतृत्व का भी एक उदाहरण है। ऐसा ही एक मूर्खता पूर्ण फैसला पठानकोट एयर बेस पर आतंकी हमले के बाद आईएसआई को जांच के लिये न्योता देना था। जो षडयंत्र रच रहा है उसी जो जांच देने का यह आपराधिक विवेचना के इतिहास में शायद पहला मामला होगा।

अपना पहला वोट पुलवामा के शहीदों के नाम मांगने के बाद आज तक पुलवामा विस्फोट की गुत्थी सुलझ नहीं सकी। पुलवामा हुआ, बालाकोट हुआ, अभिनंदन सुरक्षित वापस आये, पर आज तक उन 40 सीआरपीएफ जवानों के हत्यारों का क्या हुआ यह पता नहीं है। जिसके नाम पर सरकार बनी उसे ही भुला दिया गया, यह दुखद है। यह भी हो सकता है सरकार पुलवामा मामले में कुछ कर रही हो, और बता नही  पा रही हो। पर इस रहस्य से पर्दा उठना चाहिये।

युद्ध एक बर्बर प्रवित्ति है। यह समाज के सबसे विद्रूप चेहरे को दिखाती है। पर सारा मानव इतिहास ही युद्धों से भरा पड़ा है। युद्ध में विजय राजा को महिमामण्डित करती है पर युद्ध मे मरने वाले शहीद अक्सर भुला दिए जाते हैं। सेना के प्रति अनुराग तब अक्सर बढ़ जाता है जब युद्ध आसन्न दिखने लगता है। पर जैसे ही शांति पसरने लगती है, सब कुछ  भूलने लगता है। यह मानवीय स्वभाव है। युद्ध हो ही न, यह असंभव है। लेकिन जितना हो सके इस रक्तपात से बचा जाना चाहिये।

कारगिल युद्ध के बीस साल पूरे हो रहे हैं। कारगिल के शहीदों को नमन और उनको वीरोचित श्रद्धांजलि !!

© विजय शंकर सिंह

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