Monday, 9 September 2019

पाश की एक कविता - सौगंध बापू / विजय शंकर सिंह

9 सितंबर को अवतार सिंह पाश का जन्मदिन पड़ता है। उन्हें याद करते हुये, उनकी एक कविता.

सौगन्ध बापू

तुम्हारे रुक-रुक कर जाते पाँवों की सौगन्ध बापू
तुम्हें खाने को आते रातों के जाड़ों का हिसाब
मैं लेकर दूँगा
तुम मेरी फ़ीस की चिंता न करना
मैं अब कौटिल्य से शास्त्र लिखने के लिए
विद्यालय नहीं जाया करूँगा
मैं अब मार्शल और स्मिथ से
बहिन बिंदरों की शादी की चिंता की तरह
बढ़ती क़ीमतों का हिसाब पूछने नहीं जाऊँगा
बापू तुम यों ही हड्डियों में चिंता न जमाओं
मैं आज पटवारी के पैमाने से नहीं
पूरी उम्र भत्ता ले जा रही माँ के पैरों की बिवाईयों से
अपने खेत मापूँगा
मैं आज सन्दूक के ख़ाली ही रहे ख़ाने की
भायँ - भायँ से तुम्हारा आज तक का दिया लगान गिनूँगा
तुम्हारे रुक-रुक कर जाते पाँवों की सौगन्ध बापू
मैं आज शमशान-भूमि में जा कर
अपने दादा और दादा के दादा के साथ गुप्त बैठक करूँगा
मैं अपने पुरखों से गुफ़्तगू कर जान लूँगा
यह सब कुछ किस तरह हुआ
कि जब दुकानों जमा दुकानों का जोड़ मंडी बन गया
यह सब कुछ किस तरह हुआ
कि मंडी जमा तहसील का जोड़ शहर बन गया
मैं रहस्य जानूँगा
मंडी और तहसील बाँझ मैदानों में
कैसे उग आया था थाने का पेड़
बापू तुम मेरी फ़ीस की चिंता न करना
मैं कॉलेज के क्लर्कों के सामने
अब रीं-रीं नहीं करूँगा
मैं लेक्चर कम होने की सफ़ाई देने के लिए
अब कभी बेबे या बिंदरों को
झूठा बुखार न चढ़ाया करूँगा
मैं झूठमूठ तुम्हें वृक्ष काटने को गिराकर
तुम्हारी टाँग टूटने जैसा कोई बदशगुन-सा बहाना न करूँगा
मैं अब अंबेडकर के फ़ण्डामेंटल राइट्स
सचमुच के न समझूँगा
मैं तुम्हारे पीले चहरे पर
किसी बेजमीर टाउट की मुस्कराहट जैसे सफ़ेद केशों की
शोकमयी नज़रों को न देख सकूँगा
कभी भी उस संजय गांधी को पकड़ कर
मैं तुम्हारे क़दमो में पटक दूँगा
मैं उसकी ऊटपटाँग बड़को को
तुम्हारें ईश्वर को निकाली ग़ाली के सामने पटक दूँगा
बापू तुम ग़म न करना
मैं उस नौजवान हिप्पी से तुम्हारें सामने पूछूँगा
मेरे बचपन की अगली उम्र का क्रम
द्वापर युग की तरह आगे पीछे किस बदमाश ने किया है
मैं उन्हें बताऊँगा
निःसत्व फ़तवों से चीज़ों को पुराना करते जाना
बेगाने बेटों की माँओं के उलटे सीधे नाम रखने
सिर्फ़ लोरी के संगीत में ही सुरक्षित होता हैं
मैं उससे कहूँगा
ममता की लोरी से ज़रा बाहर तो निकलो
तुम्हें पता चले
बाक़ी का पूरा देश बूढ़ा नहीं है...

© विजय शंकर सिंह

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