Saturday, 7 September 2019

क्या एमवी एक्ट 2019 की धारा 210 B विधिविरुद्ध नहीं है ? / विजय शंकर सिंह

मोटर वेहिकिल एक्ट 2019 में एक अजीब धारा जोड़ी गयी है। यह धारा 210 B है। इस धारा के अनुसार,

210 B. Any authorty that is empowered to enforce the provision of this act shall, if such authority commits an offence under this act, shall be liable for twice the penalty, corresponding to that offence under this act.

अर्थात,
कोई अधिकारी, जो इस अधिनियम के प्राविधानों को प्रवर्तन ( लागू ) करने हेतु अधिकृत है, यदि उसके द्वारा इस अधिनियम के अधीन, अपराध किया जाता है तो, वह इस अधिनियम में, उस अपराध के लिये निर्धारित दंड से दुगुना दंड के लिये दंडनीय होगा।

यह आदेश और यह प्रविधान समान अपराध के लिये समान दंड के सिद्धांत के विरुद्ध है। एक ही प्रकार के दंड के लिये अलग अलग सज़ा के प्राविधान नहीं रखे जा सकते हैं।

अब यह कहा जा सकता है कि एक पुलिस अफसर और ट्रांसपोर्ट अफसर जो प्रवर्तन में है का यह गुरुतर दायित्व है कि वह इन कानूनों को लागू कराने के लिये पहले खुद भी इन कानूनों का पालन करें। कानून का यह इरादा गलत नहीं है। यह विधि का एक आदर्श विधान है कि विधि को लागू करने वाला अनिवार्यतः विधिपालक हो। पर अगर वह कोई कानून तोड़ता है तो उसके लिये उसी अपराध के लिये अलग से, कम या बड़ी सज़ा का प्राविधान नहीं रखा जा सकता है।

लेकिन, पुलिस और विधि प्रवर्तन में लगे अधिकारियों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे कानून का पालन करें। ऐसा न करने पर संबंधित कानून के उल्लंघन की निर्धारित सज़ा के अतिरिक्त उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की जा सकती है। यह विभागीय कार्यवाही कानून के पालन न करने की मानसिकता के आधार पर होगी, न कि उक्त कानून के उल्लंघन पर। कानून के उल्लंघन पर तो वही सज़ा उसे मिलेगी जो एक सामान्य नागरिक को मिलती है।

एमवी एक्ट के अतिरिक्त और भी अधिनियम हैं जिनमे प्रवर्तन का काम सरकारी विभाग करते हैं। उदाहरण के लिये आयकर और जीएसटी लें। क्या आयकर विभाग का कोई कर्मचारी आयकर कानूनों औऱ नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे भी, एमवी एक्ट की धारा 210 B के प्राविधानों की तरह दुगुनी सज़ा मिलेगी ? उत्तर होगा बिलकुल नहीं, क्योंकि उस एक्ट में ऐसा कोई प्राविधान ही नहीं है। ऐसे ही तर्क, नगर निगम, रेलवे, तथा उन सभी विभागों के लिये दिए जा सकते हैं जहाँ वे विभाग प्रवर्तन का दायित्व देखते हैं और उनके कर्मचारियों से भी उन्ही नियमों और कानून का उल्लंघन हो सकता है, जिनको वे लागू करने के लिये नियुक्त हैं।

फिर इस तरह का अनैतिक, अतार्किक, असंवैधानिक और तानाशाही फरमान पुलिस विभाग के कर्मचारियों के लिये ही क्यों है। क्या केवल इसलिए कि पुलिस एक अनुशासित विभाग है और और वहां इसके विरोध की संभावना कम है।

© विजय शंकर सिंह

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