साम्यवाद की स्थापना एक दिमागी खेल थी। अक्सर इसे हिंसक आंदोलन से जोड़ दिया जाता है, लेकिन लेनिन की शुरुआत किसी गुरिल्ला दस्ते से नहीं हुई।
मैं अपनी ही पुस्तक ‘केनेडी’ से पंक्तियाँ उद्धृत करता हूँ,
“(साम्यवाद) एक सोच थी, जो महज कुछ विचारों से, पतली किताबों से, काग़ज़ के टुकड़ों से पसर सकती थी। जबकि पूँजीवाद के विस्तार के लिए एक ही चीज जरूरी थी— पैसा। और बहुत सारा पैसा। सोच अनंत है, जबकि धन सीमित है।”
लेनिन ने इस सोच को अपने भाषणों, ‘प्रावदा’ अखबार और लेखों से प्रसारित किया। वह कहते- ‘इन खानदानी लुटेरों को लूटो!’
गाँव के किसानों ने ज़मींदारों की जमीन हथिया ली, और जब सामंत शहर से बटाई वसूलने आए तो ठेंगा दिखा दिया। उनकी हवेलियाँ छीन ली गयी। ख़ास कर यूराल पहाड़ियों का क्षेत्र बोल्शेविक गढ़ था, जहाँ सामंतों को बेइज्जत कर निकाल फेंका गया। अधिकांश स्थानों पर किसी खून-ख़राबे की ज़रूरत नहीं पड़ी। किसान तो सदा से एक समूह रूप में अधिक शक्तिशाली थे। लेनिन ने सिर्फ़ यह अहसास कराया।
यहाँ अन्य समाजवादी क्रांतिकारियों का अधिक महत्व है, जो किसानों के लिए ज़ारशाही समय से लड़ रहे थे। अप्रेल-मई तक तो उनका और मेन्शेविक का ही दबदबा था, सोवियत में बोल्शेविक का प्रतिनिधित्व तिहाई से भी कम था। एक संसदीय मीटिंग में जब कहा गया कि हम में से किसी में अभी बहुमत से शासन करने की कुव्वत नहीं है तो लेनिन ने कहा, “हमारी पार्टी तैयार है”
सभी जोर-जोर से हँसने लगे कि आप इन चंद बोल्शेविकों से सरकार बनाएँगे? लेनिन ने कहा, “हँसना है, हँस लो। सरकार तो हमारी ही बनेगी”
लेनिन यूँ ही नहीं कह रहे थे। उनको जर्मनों से अच्छा-ख़ासा धन मिल रहा था, और उनका प्रोपोगैंडा तंत्र बहुत मजबूत था। ब्रिटेन लेनिन को गंभीरता से ले रहा था, और विलियम सोमरसेट मॉम नामक व्यक्ति को उनकी जासूसी करने भेजा गया। बाद में मॉम लेखक रूप में प्रसिद्ध हुए।
ब्रिटेन के इशारे पर केरेंस्की ने राजकुमार ल्योव को हटा कर स्वयं प्रधानमंत्री बनने का निर्णय लिया, और जर्मनी पर आक्रमण की ठान ली। उन्हें लगा कि युद्ध राष्ट्रवाद के बहाने जनता उनके साथ हो जाएगी। लेकिन, बोल्शेविक अब सेना में भी घुस गए थे, और उनका मनोबल गिरा रहे थे। नतीजतन रूस की पुन: हार हुई।
केंरेस्की को लगने लगा कि उनके पैरों तले जमीन खिसक रही है। वह लोकतांत्रिक व्यक्ति थे। यही कारण था कि उन्होंने ज़ार को सुरक्षित रखा था, और लेनिन को भी रूस आने की इजाज़त दी थी। वह चाहते थे कि जनता चुनाव से फैसला करे कि किसे गद्दी पर बिठाना चाहती है।
वह ज़ार निकोलस के पास गए और कहा, “मुझे आपकी ज़ारशाही से शिकायत थी। लेकिन, मुझे आपके परिवार से कोई जाती दुश्मनी नहीं। अब माहौल बदल रहा है, और मैं यहाँ आपकी रक्षा करने में असमर्थ हूँ। आपको हम साइबेरिया में एक गुप्त स्थान पर भेज रहे हैं। वहाँ आप सुरक्षित रहेंगे।”
उसी दौरान क्रांतिकारी तेवर के त्रोत्सकी, जो अब तक मेन्शेविक में थे, वह लेनिन की बोल्शेविक से जुड़ गए। यह लेनिन के लिए जैकपॉट था। मैंने ‘एनिमल फार्म’ की चर्चा की है। उसके ‘स्नोबॉल’ नामक सफ़ेद सूअर किरदार को उनसे जोड़ा जाता है, जो क्रांति का आग़ाज करते हैं। एक बोल्शेविक कहते थे, “लेनिन को ऑफिस में बिठा दो, और त्रोत्स्की को मंच पर चढ़ा दो, फिर हमें कोई हरा नहीं सकता”
इस घटना के बाद तो केरेंस्की भी लोकतंत्र का पाठ भूल गए और क्रांतिकारियों के दमन के आदेश देने लगे। इसके लिए उन्होंने ज़ार निकोलस के वफ़ादार रहे कोसैक मूल के जनरल कॉर्निलोव को सेनाध्यक्ष बना दिया। उन्होंने रूस के कोसैक और मुसलमानों की फौज बना ली। त्रोत्स्की को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया। लेनिन स्वयं फ़िनलैंड भाग गए।
जनरल कॉर्निलोव अपने इस दमन से महत्वाकांक्षी हो गए, और खुद ही तख्ता-पलट की सोचने लगे। यह भी मुमकिन है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज़ार के वफ़ादार होने के नाते वह पुन: ज़ारशाही स्थापित करना चाहते हों।
कौसैक और मुसलमानों से बनी सेना जब पेत्रोग्राद की ओर बढ़ने लगी, तो केरेंस्की को पुन: अपने समाजवादी भाईयों से मदद की गुहार करनी पड़ी। सोवियत के मजदूर फौजियों के भय से जनरल कॉर्निलोव की सेना ने सितंबर के महीने में ही अपना इरादा त्याग दिया।
लेनिन आखिर अक्तूबर में एक पादरी के छद्म-भेष में रूस लौटे। उन्होंने त्रोत्स्की और अन्य साथियों को बुला कर कहा, “जो करना है, अभी के अभी करना होगा।”
वहाँ तख्ता-पलट पर सहमति नहीं बन रही थी। लेनिन आठ घंटे तक एक-एक कर सबको समझाते रहे। दस में से आठ लोगों को उन्होंने तैयार कर लिया, और इसे अंकित करने के लिए काग़ज़ ढूँढने लगे। वह मीटिंग एक घर में हो रही थी, तो एक बच्चे की नोट-बुक पर रूस का भविष्य लिख दिया गया- “हमने बहुमत से रूस के तख्ता-पलट का निर्णय लिया है। सभी समाजवादी दलों को इस निर्णय को मानना चाहिए।”
7 नवंबर (रूसी तारीख़ 25 अक्तूबर) को लाल झंडा लहराते बोल्शेविक ‘विंटर पैलेस’ में दाखिल हुए। प्रधानमंत्री केरेंस्की को अमरीकी दूतावास की मदद से एक महिला की भेष में भागना पड़ा। मेन्शेविक ने इस तख्ता-पलट का विरोध किया और ‘वाक आउट’ कर गए।
त्रोत्सकी ने कहा, “जाओ! इतिहास में तुम लोग कचरे के ढेर कहलाओगे!”
बिना किसी रक्तपात के, किसी कुशल प्रोजेक्ट मैनेजर की तरह लेनिन ने अपनी डेडलाइन के अनुसार छह महीने में सत्ता पर कब्जा कर लिया। अब एक निजी मामला भी निपटाना था। अपने भाई की फांसी का बदला लेना था।
लेनिन के आते ही साइबेरिया में ज़ार परिवार के घर में नए बोल्शेविक गार्ड आए।
(क्रमश:)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास - तीन (15)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/11/15.html
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