लोकतंत्र में सरकार चाहे खुद को कितनी भी शक्तिशाली समझे वह अपने आलोचकों और विरोधियों के आगे ही झुकती है और अंदर ही अंदर डरती रहती है। इसीलिए लोकतांत्रिक व्यवस्था से तानाशाही का आवरण ओढ़ने वाली सरकार या नेता या दल, सरकार की आलोचना को तुरन्त देश की आलोचना से जोड़ कर देखने लगते हैं और हर आलोचना करने वाले को वे, देशद्रोही कह कर प्रचारित करने लगते हैं।
किसी को भी देशद्रोही कहते ही, जिसे कहा जा रहा है, उस पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव, यह पड़ता है कि, वह तुरंत ही आलोचना और सवाल उठाने के बजाय इसी पशोपेश में पड़ जाता है कि, पहले वह खुद को यह साबित करे कि वह देशद्रोही नहीं है। उसकी आक्रामकता, रक्षात्मकता में बदल जाती है। सत्ता सनर्थको का यह एक मनोवैज्ञानिक दांव होता है।
लेकिन, जब तमाम ऐसे ही अप्रासंगिक मिथ्या आरोपों के बावजूद, सवाल पूछने, और आलोचना करने वालों की आक्रमकता बनी रहती है तो, सरकार तुरन्त घुटनो पर आ जाती है। क्योंकि उसे अपनी गलतियों का पता रहता है और उसके समर्थक भी जो जनता के ही लोग होते हैं उन्हें भी अपने सरकार की कमियां ज्ञात होती हैं पर वे, चूंकि 'हस्तिनापुर' से जूड़े खुद को मान बैठे होते हैं तो वे, कुछ कह नहीं पाते है। यह उनकी बेबसी है। कुछ की यही बेबसी उन्हें ट्रोल में बदल देती है।
सरकार ने मत डरिये। कानून का पालन कीजिये। सरकार की हर जनविरोधी नीति के खिलाफ खड़े होकर अपनी बात कहिये। सरकार से सवाल पूछिये। असहज होती है सरकार, तो होने दीजिए। ट्रोल्स से न उलझिये और न ही उनके अनावश्यक कमेंट्स पर कुछ लिख कर उन्हें ट्रोल करने के और अवसर उपलब्ध कराइये। सत्ता जितनी ताकतवर होती है, अंदर से उतनी ही डरपोक होती है। बस विधिनुकूलता एकजुट होकर, तार्किक रूप से सवाल उठाने, धैर्य से सरकार की कमजोरियों को पहचानने और अपने लक्ष्य पर अडिग बने रहने का हुनर चाहिए।
दो दिन से, जब पूरे देश मे सोशल मीडिया पर, यह हंगामा मचा कि कर्नाटक सरकार ने प्रवासी मज़दूरों को बंधुआ बना रखा है और वे मज़दूर पैदल ही बिहार, यूपी झारखंड के लिये निकल पड़े हैं तो आज सरकार ने खुद का ही यह जनविरोधी फैसला बदल दिया और प्रवासी मज़दूरों के लिये स्पेशल ट्रेनें चलाने का फैसला जिसे वह दो दिन पहले बिल्डर लॉबी के दबाव में रद्द कर चुकी थी आज उसे फिर से लागू कर दिया।
सरकार के असली बंधुआ वे हैं जो सरकार चुनने के बाद सरकार के हर उस कार्य मे वाह वाह कहते हैं जो प्रत्यक्षतः जनविरोधी दिखता है और होता भी है । सरकार चुने जाने के बाद जनता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वह सरकार को बेलगाम न होने दे। सत्ता एक मदांध गजराज की तरह होती है जो अंकुश की ही भाषा समझता है। पर यह अंकुश गजराज को कहां चुभोना है यह एक कुशल महावत ही जान सकता है। यह अंकुश, हमारे सवाल हैं, जो पंक्चुएशन में अंकुश की तरह दिखते हैं और कुशल महावत जनता है जो गजराज को बहकने से रोकते है, और सत्ता, मद है जो किसी को भी मदांध कर सकती है।
( विजय शंकर सिंह )
No comments:
Post a Comment