गणतंत्र दिवस 2020 की आप सबको बधाई और अनंत शुभकामनाएं। आज 26 जनवरी को राजपथ पर सेना और पुलिस के जवान एक भव्य परेड करेंगे, राज्य अपनी अपनी संस्कृति की झांकिया प्रस्तुत करेंगे और देश मे एक उत्सव का माहौल रहेगा। 26 जनवरी की परेड देश के लिये एक बेहद अहम परेड होती है। जिसमे देश के आमंत्रण पर एक विदेशी राष्ट्राध्यक्ष भी मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेते हैं। यह परंपरा बहुत दिनों से चली आ रही है। इस बार ब्राजील के राष्ट्रपति इस लोकतंत्र के महापर्व के मुख्य अतिथि हैं।
गणतंत्र दिवस समारोह के लिए मुख्य अतिथि कौन होगा इसका फैसला लंबे विचार-विमर्श के बाद किया जाता है। मुख्य अतिथि को लेकर फैसला भारत के राजनयिक हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है। विदेश मंत्रालय भारत और उसके करीबी देश के बीच संबंधों को ध्यान में रखकई कई मुद्दों पर विचार करता है। जिसके बाद मुख्य अतिथि को निमंत्रण दिया जाता है। कई मुद्दों पर चर्चा की जाती है इनमें राजनीतिक, आर्थिक, और वाणिज्यिक संबंध, सैन्य सहयोग आदि शामिल हैं।विदेश मंत्रालय विचार-विमर्श के बाद अतिथि को निमंत्रण देने के लिए प्रधानमंत्री की मंजूरी लेता है। जिसके बाद राष्ट्रपति भवन की मंजूरी ली जाती है. मंजूरी मिलने के बाद जिस देश के व्यक्ति को मुख्य अतिथि के रूप में चुना जाता है. उस देश में भारत के राजदूत अतिथि की उपलब्धता का पता लगाने की कोशिश करते हैं। इसके बाद विदेश मंत्रालय की तरफ से बातचीत शुरु होती है और अतिथि के लिए निमंत्रण भेजा जाता है। गणतंत्र दिवस के लिए मुख्य अतिथि अन्य देशों की रुचि और अतिथि की उपलब्धता के आधार पर किया जाता है.
ब्राजील के राष्ट्रपति जाएर बोलसोनारो के बारे में कुछ लिखा जाय उसके पहले उनका एक प्रसिद्ध उद्धरण पढ़ लें।
“I wouldn’t rape you because you are ugly and you don’t deserve it....
( "मैं तुम्हारा बलात्कार नहीं करूंगा क्यूंकि तुम इस लायक भी नहीं हो." )
यह बयान वर्ष 2014 के सितम्बर महीने में भरी संसद में जब बोल्सोनारो संबोधित कर रहे तो उन्होंने लेफ़्टिस्ट वर्कर्स पार्टी की सांसद मारिया डो रोज़ारियो से कहा था । ऐसा कहने के बाद जाइर ने धक्का देने के मकसद से मारिया के सीने में एक छोटा-मोटा मुक्का भी धर दिया। बाद में एक अख़बार ने जब उनसे इस बारे में सफ़ाई मांगी तो उन्होंने कहा कि वो रेपिस्ट तो नहीं हैं लेकिन अगर होते तो मारिया का रेप नहीं करते क्यूंकि मारिया बदसूरत हैं और उनके टाइप की नहीं हैं. ये जाइर बोल्सोनारो इस महान देश के 71वें गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि हैं। जाएर बोलसोनारो एक घोर दक्षिणपंथी माने जाते हैं और राष्ट्रपति बनने के बाद ब्राज़ील की समाजवाद से आज़ादी की घोषणा कर दी थी। बीस सालों से सैनिक तानाशाही देख चुकने वाली ब्राज़ील की जनता के बारे में उनका कहना है कि तानाशाही अभी उसने देखी ही कहाँ है। यानी वे अभी और दिखाएंगे।
जाएर बोल्सोनारो के कुछ और बयान नीचे हैं, ज़रा इनपर भी दृष्टिपात कर लें।
● अगर मेरा बेटा समलैंगिक होगा तो मैं उसे प्यार नहीं करूंगा. बजाय इसके कि मेरा बेटा किसी दिन एक पुरुष के साथ अपने घर में दिखाई दे, मैं चाहूंगा कि वो किसी एक्सीडेंट में मर जाए.
● मैं समलैंगिकता के ख़िलाफ़ लड़ूंगा नहीं और न ही किसी भी तरह का भेदभाव करूंगा लेकिन अगर मुझे दो पुरुष एक दूसरे को चूमते दिख गए तो मैं उन्हें पीट के रख दूंगा.
● मेरे 5 बच्चे हैं. लेकिन पांचवें मौके पर मैं कुछ कमज़ोर पड़ गया और मुझे बेटी हो गई.
● मैं एक अफ़्रीकी कॉलोनी में गया और वहां सबसे हल्की महिला भी 230 पाउंड की थी. वो (वहां की महिलाएं) कुछ नहीं करतीं. उनका इस्तेमाल बच्चे पैदा करने तक के लिए नहीं किया जा सकता.
● (इमिग्रेशन के बारे में बात करते हुए) सारी दुनिया की गंदगी ब्राज़ील में आ रही है. जैसे हमारे निपटने के लिए हमारे पास पहले कम समस्याएं थीं।
उपरोक्त बयान में कुछ उनके निजी विचार हो सकते हैं, दक्षिणपंथ की तरफ भी उनका वैचारिक झुकाव हो सकता है पर उसके विचारों से ही किसी भी व्यक्ति की मानसिकता का अनुमान लगाया जा सकता हैं। 1999 में जब वह 44 साल के थे अपने एक टेलीविज़न इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि,
" चुनावों से कोई बदलाव आने वाला नही है इस देश मे. बदलाव उस दिन आएगा जब देश मे गृह युद्ध होगा और तब वो काम होगा जो मिलिट्री रूल नही कर पाया यानि 30000 लोगों का मारा जाना. यदि इसमे बेगुनाह मरते हैं तो कोई बात नही, हर युद्ध मे बेगुनाह मरते ही हैं ।"
उन्होंने यूएसए टुडे को 2016 मे दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि दो दशकों की
"सैनिक तानाशाही की सबसे बड़ी ग़लती यही रही कि उसने लोगों को यातना दिया, मारा नही।"
अमेरिकी पत्रिका प्ले बॉय को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि
" अपने बेटे की दुर्घटना में मृत्यु पसन्द करूँगा बजाय उसे किसी आदमी के साथ देखूँ, समलैंगिक बेटे को प्यार नही कर सकता । "
उपरोक्त विचारों के बाद रंगभेद पर इनके विचार भी जान लेना जरूरी है। नस्लीय घृणावाद इनके अंदर इतना भरा हुआ है कि,
काले लोगों के बारे में इनका कहना है कि
" वो महज चिड़ियाघर में भेजे जाने लायक़ हैं, वो कुछ नही करते, बच्चा पैदा करने लायक तक नही हैं। "
बीबीसी के अनुसार, इनका स्त्रीद्वेष इस हद विद्रूप और घृणा से भरा पड़ा है कि अपनी साथी कानूनविद जो महिला हैं के बारे में उनका कहना है कि
" वो इतनी बदसूरत हैं कि उनके साथ बलात्कार करना तक पसन्द नही करेंगे। " इस व्यक्ति के लिये सौंदर्य बलात्कार के जुगुप्सा भरे अपराध का प्रेरक तत्व है।
यही नही वर्ष 2016 में दिए अपने एक टीवी इंटरव्यू में 4 लड़कों के बाद एक लड़की के पैदा होने को उन्होंने कमज़ोरी का एक लम्हा बताया। यह एक निहायत ही स्त्रीद्वेषी मानसिकता है। उनके अनुसार बहुत सी स्त्रियाँ योग्य हैं मगर स्त्रियों को पुरुषों बराबर वेतन नही मिलना चाहिये क्योंकि वो मेटरनिटी लीव लेती हैं।
हाल ही में ब्राजील के अमेजन के जंगलों में भारी आग लग गयी थीं। पर्यावरण के विद्वान अमेजन के जंगलों को धरती का फेफड़ा कहते हैं। कहा जाता है कि, ये जंगल धरती को 20 % ऑक्सिजन आपूर्ति करते हैं। उन्ही अमेज़न के जंगलों को आग लगने पर कुछ भी न करने और उसे भड़काने का दोष भी कुछ पर्यावरण एक्टविस्ट इन्हें ही देते हैं। यूएनओ की जनरल असेंबली में दिए गए अपने एक भाषण में इन्होंने अमेजन की आग के बारे में कहा कि,
" यह भ्रामक धारणा है कि, अमेज़न के जंगल धरती का फेफड़ा हैं, कि वो पूरी मनुष्यता की थाती हैं, वो सिर्फ़ ब्राज़ील के हैं।"
एक महिला पत्रकार को धमकाते हुये इसने उसे वैश्या कहते हुये मैसेज किया और उसका जीवन इस तरह बर्बाद करने की धमकी दी कि वो अपने पैदा होने पर पछ्तायेगी! इस सनकी व्यक्ति के ऊपर सेना में रहते हुये अपने ही एक आर्मी सेक्शन में बम लगाने का आरोप लग चुका है और इनपर मानसिक रूप से अस्थिर होने का भी आरोप लग चुका है!
एफ्रो-ब्राजीलियन समुदाय को मिलने वाले आरक्षण (कोटा) का विरोध करते हुये इसने कहा अगर राष्ट्रपति बना तो कोटा ख़त्म नहीं कर सका लेकिन कम ज़रूर कर दूंगा। एफ्रो ब्राजीलियन समुदाय वह समुदाय है जो यूरोपियन देशों विशेषकर स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस द्वारा अफ्रीका के निवासियों को गुलाम बनाकर आज से दो सौ साल पहले दक्षिण अमेरिका के देशों में ले जाया गया था। उन्ही की संतानें जब ब्राज़ील के मूल निवासियों से मिलीं तो एफ्रो ब्राजीलियन नस्ल बनी। यह सभी गुलाम थे और उन्हें बेहतर जीवन के लिये आरक्षण की सुविधा दी गयी थी। उसी आरक्षण कोटे के विरोध में इन्होंने कहा था कि,
" उनकी दासता का कारण पोर्तुगीज नहीं बल्कि वो ख़ुद हैं इसलिए अब उनको आरक्षण देने की ज़िम्मेदारी हमारी नहीं है।"
पुर्तगाल ने ही अधिकार उपनिवेश खोजे थे जो बाद में ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, हॉलैंड आदि के उपनिवेश बने।
ऐसा स्त्रीद्वेषी, नस्लीय घृणावाद से भरा रेसिस्ट,, पर्यावरण विरोधी और हत्यारी मानसिकता का राष्ट्रपति हमारे गणतंत्र दिवस का अतिथि है। यदि ब्राज़ील से द्विपक्षीय समझौते भी करने हो तब भी क्या गणतंत्र दिवस इसके लिये अनुकूल है? यह ऐसे राजनेता हैं जो एक नहीं, कई मायनों में एक सनकी तानाशाह है! ये भयंकर स्त्रीद्वेशी, होमोफोबिक, और आदिवासी-किसान विरोधी है! इनके उपर यौन शोषण के कई आरोप अब भी हैं। बल्कि एक पीड़िता,जो कि ब्राज़ील की सांसद भी रह चुकी थीं।
यह हमारे आज के अतिधि हैं। अतिथि बड़ा गूढ़ शब्द है। अतिथि यानी बिना तिथि के कोई आगंतुक आ जाय। जो भी बिना तिथि के आ जाय, जिसे हम जानते भी न हों तो भी उसका स्वागत है। यह एक महान परंपरा थी अनजान व्यक्ति के स्वागत की ऐसी उदार परंपरा हो सकता है कहीं और भी हो पर उसे देवता सरीखा सम्मान की बात तो शायद ही कहीं कही गयी हो। पर इन महोदय को तो एक अतिथि के रूप में तो, हमने चुना है और एक ऐसे अवसर के लिये चुना है जो हमारी थाती, विरासत, संस्कृति और महापर्व है। ब्राजील के राष्ट्रपति के स्त्री, वंचित और दलित समाज, पर्यावरण, विधि, आदि के लिये जिस प्रकार के विचार हैं वे हमारी परंपरा से बिल्कुल उलट है। हमारी विचार परंपरा, ऐसा भी नहीं है कि इन्ही 70 सालों के विकास का परिणाम हो, बल्कि यह सनातन काल से चली आ रही है। ऐसा भी नहीं कि हमारे यहां ऐसे विपरीत विचार के लोग जैसा कि ब्राजील के राष्ट्रपति के हैं, बिलकुल नहीं रहे हैं या हैं । ऐसे लोग थे और अब भी हैं, पर हमारे समाज ने उनको अपने विचारों पर हावी नहीं होने दिया।
ब्राजील का राष्ट्रपति न तो हमने चुना है और न यह हमारी समस्या है। लेकिन एक अतिथि के रूप में और वह भी एक ऐसे देश के लोकशाही के महापर्व पर जो अपनी बहुलतावादी और विराट संस्कृति के लिये विश्व विश्रुत है, उनका आमंत्रण विरोधाभासी है। वे एक राष्ट्राध्यक्ष के रूप में जब आएं उनका स्वागत किया जाना चाहिये पर इस पर्व पर उनका हमारे गणतंत्र दिवस के अवसर पर आना, आज आलोचना के केंद में है।
© विजय शंकर सिंह
No comments:
Post a Comment