Saturday, 4 January 2020

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक नज़्म - फिलिस्तीनी बच्चों के लिये लोरी / विजय शंकर सिंह

1977 में फैज को रेडियो और टीवी पर प्रतिबंधित कर दिया गया था। वह निर्वासन में चले गए थे और अपनी पत्नी के साथ 1978 से 1982 तक पाक से दूर रहे। इस अवधि के दौरान, उन्होंने बेरुत में कुछ समय बिताया जब फिलिस्तीनी संघर्ष अपने चरम पर था। यह कविता तभी लिखी गयी थी। 
फिलिस्तीनी बच्चों के लिए लोरी

मेरे बच्चे मत रोओ
आपकी माँ अभी बहुत देर 
रोने के बाद सो गई हैं
मेरे बच्चे मत रोओ
कुछ समय पहले ही 
आपके पिता विदा हुए हैं
अपने सारे दुखों से 
छुटकारा पाओ
मेरे बच्चे मत रोओ,

तुम्हारा भाई विदेश में है
जो इस भूमि से दूर है
और तुम्हारी बहन भी 
उसी तरह चली गई है,
मेरे बच्चे मत रोओ,
उन्होंने सिर्फ मृत सूर्य 
का स्नान किया है 
और चंद्रमा को अपने 
आंगन में गाड़ दिया है,
मेरे बच्चे मत रोओ,

उनके लिए, यदि तुम रोते हो
तो आपकी माँ, पिता, भाई और बहन
सूर्य और चंद्रमा के साथ-साथ 
तुम सभी को रुला दोगे
और अगर तुम मुस्कुराते हो
तो ये वाकई हो सकता है की
वो सभी किसी दूसरे भेस में
आकर तुम्हारे साथ खेलें।

- फैज अहमद फैज  
( अपूर्व भारद्वाज द्वारा अनुवादित )
■ 
( विजय शंकर सिंह )

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