बात सुन लें। अगर आप चाहते हैं कि हम सबका धन बैंकों में सुरक्षित रहे, आर्थिक स्थिति थोड़ी सुधरे, लोगों की नौकरियां बचे, तो सरकार को सावरकर को भारत रत्न दे देने दीजिए। उन्हें एक नया इतिहास लिख भी देने दीजिये। नहीं तो यह अक्षम नेतृत्व बिना मुद्दे का मुद्दा बनाएगा और हम सब उसी के इंद्रजाल में उलझे रहेंगे। यह सारे पद्म पुरस्कार, कई बार विवादित हो चुके हैं। एक बार तो सुप्रीम कोर्ट ने इन पर रोक भी लगा दी थी। राजनीतिक व्यक्ति जब ईश्वर को भी राजनीतिक गुणा भाग के चश्मे से देखता है तो, भारत रत्न कोई बहुत बड़ी चीज नही है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जिन महान देशभक्तों को भारत रत्न नहीं मिला है वे किसी भारत रत्न प्राप्तकर्ता से कमतर हैं या उनका योगदान कम है। सावरकर को भारत रत्न दीजिये या न दीजिए, सावरकर की जो ऐतिहासिक स्थिति समाज मे है वह भारत रत्न पाने के बाद भी बनी रहेगी।
सरकार की एक बाद काबिले तारीफ है। यह जिस जिस को भी प्रासंगिक बनाते हैं, उनके बारे में नए नए तथ्य सामने आते रहते हैं। पहले गांधी थे, नेहरू तो अब भी इनके पसंदीदा आइकन हैं, फिर पटेल आये, अब सावरकर आये हैं। सावरकर को भारत रत्न देने के पीछे का आधार यह बताया जा रहा है कि उन्होंने 1857 के विप्लव को देश का प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा और इस पर, मराठी में एक किताब भी लिखी। यह बात सच है कि वे एक जुझारू क्रांतिकारी थे और अंग्रेजों ने उन्हें यातनापूर्ण जेल अंडमान के सेलुलर जेल में रखा था ।
लेकिन अंडमान के बाद जब वे ब्रिटिश राज से माफी मांग कर बाहर आये तो, वे राजभक्त बन चुके थे। वे आज़ादी के आंदोलन से अलग हो चुके थे। यही नहीं 1942 के सबसे प्रखर जनांदोलन भारत छोड़ो आंदोलन के समय अंग्रेजों के साथ और एमए जिन्ना के सहयोगी बन कर उनकी मुस्लिम लीग के साथ सरकार चला रहे थे। यह सब दस्तावेजों में है। और इन पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, आगे भी लिखा जाता रहेगा। अगर, 1857 के विप्लव को देश का प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहना ही भारत रत्न पाने का मापदंड है तो, उसी स्वाधीनता संग्राम के महान नेतृत्वकर्ता, मंगल पांडेय, नाना राव पेशवा, बेगम हजरत महल, बेगम ज़ीनत महल, अजीमुल्ला खान, बाबू कुंवर सिंह, राजा राव बक्श सिंह, बहादुरशाह जफर, रानी झांसी, आदि अनेक नाम हैं जिन्होंने उस संग्राम का नेतृत्व किया था, उन्हें क्यों भुलाया जा रहा है ? सावरकर को भारत रत्न दे दीजिए पर सबसे अधिक खुश वे अंग्रेज होंगे जिन्होंने सावरकर को कृपा करके माफी दी थी और राजभक्ति की पेंशन भी।
और अंत मे यह, प्रसंग पढ़ लीजिए। यह प्रसंग, प्रसिद्ध आर्थिक पत्रकार और किसानो की व्यथा पर नियमित काम करने वाले, पी साईनाथ द्वारा ने सुनाया गया एक सन्दर्भ है।
" 1926 में एक लेखक चित्रगुप्त ने एक किताब लिखी लाइफ ऑफ बैरिस्टर सावरकर ... इस किताब ने लेखक ने सावरकर की शान में सिर्फ कसीदे पढ़े... 1987 में जब इसको रीप्रिंट किया गया तो एक बात किताब के जरिए सामने अाई कि, चित्रगुप्त खुद सावरकर थे जो चित्रगुप्त के नाम किताब लिख डाले और वो भी अपनी तारीफ के लिए। भारत रत्न बनता है। "
© विजय शंकर सिंह
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