Friday, 2 July 2021

किताब - कार्ल मार्क्स - रामवृक्ष बेनीपुरी


जिस तरह से डार्विन ने प्राणियों के विकास के नियम का पता लगाया, न्युटन और फेरल ने गति के नियमों तथा गुरुत्वाकर्षण बल  की तलाश की, आइंस्टीन ने सापेक्षता के सिद्धांत की खोज की, , मैडम क्युरी और दूसरे वैज्ञानिकों ने प्रकृति विज्ञान, शरीर विज्ञान,अंतरिक्ष के विभिन्न अवयवों  को ढूंढ लाया, उसी तरह  कार्ल मार्क्स ने मानव इतिहास के नियमों हमारे सामने रख दिया।उन्होंने उस सीधे साधे तथ्यों को ढूंढ निकाला जो तब तक आदर्शवादी या अध्यात्मवादी सिद्धांतों की यूटोपिया के घटाटोप में छिपा हुआ था। वह तथ्य यह है कि वास्तविक मानव या मानव समाज राजनीति, विज्ञान, कला,धर्म आदि की ओर प्रवृत्त होने के पहले  क्रमशः भोजन, वस्त्र और आवास चाहता है और इसके लिए जीवनोपयोगी वस्तुओं अर्थात भौतिक साधनों का उत्पादन करता है। तदनन्तर,या नतीज़तन   किसी जातिविशेष के किसी युगविशेष में जैसा या जितना आर्थिक विकास होता है उसी के अनुरूप या उसी की बुनियाद पर राजनीतिक संस्थाएं,उनके नियम, और क़ानून,धर्म, कला आदि का उपरी ढांचा तैयार होता है। इसलिए इन चीज़ों (राजनीति, धर्म,क़ानून, कला, दर्शन आदि) उस बुनियादी विंदु या मूल आधार(अर्थात आर्थिक क्रियाकलाप) को दृष्टि में रखकर करनी चाहिए न कि ठीक इसके विपरीत, उल्टी दिशा में बह जाना चाहिए यानि राजनीति, धर्म क़ानून कला की व्याख्या से चीज़ो को शुरू करना चाहिए जैसा कि अब तक यही प्रचलित रहा है। व्याख्या के इसी प्रचलन के कारण या परिणाम में मानव समाज भटक तार्किक निष्कर्ष पर पहुँचने के बज़ाय उल्टे निष्कर्ष पर पहुँचता रहा है जिसके चलते आदर्शवाद,अध्यात्मवाद, वितंडावाद, रूमानियत, रूहानी कल्पनावाद ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्यावाद  आदि का बोलबाला क़ायम रहा है जो अबतक की राज्यसत्ता और उसके वर्गों दासस्वामी, सामंती और सबसे हाल में पूंजीपति वर्ग के शोषण और उत्पादक वर्ग के पार्थक्य ( Alienation)  का सबसे कारगर और अज़माया हुआ हथियार रहा है।.....

ऐसे थे ये महान समाज वैज्ञानिक चिंतक, दार्शनिक और राजनीतिक अर्थशास्त्री  ! किंतु, कार्ल मार्क्स सिर्फ़ यही सब नहीं थे ।....मार्क्स ने गति के उन सामाजिक ऐतिहासिक नियमों का भी पता लगाया जो उत्पादन की मौज़ूदा पूंजीवादी पद्धति  और साथ ही इस पद्धति को पैदा करने वाले पूंजीवादी समाजव्यवस्था को शासित करती है।.इसी क्रम में जब वे अब तक के तमाम पूर्ववर्ती खोजों चाहे वह पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों के अनुसंधान हो या उनकी समाजवादी आलोचनाएं हों  के समाधान का प्रयास कर रहे थे कि अचानक सरप्लस वैल्यू (अतिरिक्त मूल्य)  की  खोज ने उन समस्याओं के समाधान  पर रोशनी डाली जिन्हें  वे पूंजीवादी अर्थशास्त्री और उनके समाजवादी आलोचक अबतक अंधेरे में टटोलते हुए पाए जा रहे थे।.

अतिरिक्त मूल्य वह है  जो उत्पादन प्रक्रिया में पैदा होता है  और जिसे पूंजीपतियों द्वारा श्रम या श्रमिकों द्वारा जिंसों के  उत्पादन के क्रम में पैदा हुए मूल्यों के अतिरिक्त हिस्से को हड़प लेता है (भ्रष्टाचार, शोषण, और मुनाफ़े की गंगोत्री यहीं से शुरू होती है) और इस तरह वह श्रमिकों को उसके वाज़िब हिस्से या हक़ से वंचित कर देता है। 

मार्क्स ने इसी अनुसंधान को आगे बढ़ाते हुए कहा था कि मुनाफ़ा पूंजीवाद के अस्तित्वमान का सबसे बड़ा कारक होता है। मार्क्स बड़े ही काव्यात्मक लहज़े में इसकी व्याख्या शुरू करते हैं। वे कहते हैं कि पूंजी मृत श्रम होता है जो पिशाच की तरह जीवित श्रम (यानि मज़दूर वर्ग)  का रक्त चूसकर ज़िंदा रहता है। पूंजी उस रक्त और उसकी गंदगी के साथ समाज रूपी  या मिलने रूपी शरीर के एक एक छिद्रों में प्रवाहित होते हुए सर से पाँव तक पहुँचती है। 

मार्क्स  अपने इस मंतव्य के समर्थन में एक ट्रेड युनियन नेता टी जे डनिंग के कथन को उद्धृत करते हैं :
"यथेष्ट मुनाफ़े के साथ पूंजी ( पूंजीपति वर्ग भी पढ़ सकते हैं) पूरी निडर बनी रहती है । एक सुनिश्चित 10% मुनाफ़ा इसको कहीं भी ले जा सकती है ( दूरस्थ देहातों में भी राजस्थान के मारवाड़ी व्यापारियों को आप देखते होंगे। या सात समंदर पार  ईस्ट इंडिया कंपनियों की यादें ताजा कर लीजिए)!  20% मुनाफ़ा पूंजी (व इसके मालिकों ) की उत्कंठा बढ़ा देती है (महंगाई का दौरा), 50% मुनाफ़ा इसे कोई भी जोख़िम लेने के लिए तैयार कर देती है ( प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को याद करें जो बस्तर से लेकर कोरापुट-कालाहांडी तक पसरने को उद्यत है।साथ ही क़ानून की आँखों में धूल झोंकरकर  जमाखोरी और कालाबाजारी का उत्प्रेरक यही है), 100% मुनाफ़ा इसे मनुष्य द्वारा बनाये गए किसी भी क़ानून को रौंद डालने के तत्पर कर देती है ( एकबार धीरूभाई अंबानी से एक पत्रकार ने कहा था कि आप पर धन अर्जन के लिए ग़ैरकानूनी तरीक़े तक अपनाने का आरोप है। इसके ज़वाब में उसने कहा था, " I can never break the law for I created laws. "  अभी ताजा मिसाल है कि 1991 के बाद भारत समेत पूरी दुनिया में श्रम क़ानून को बदलने की मुहिम ज़ारी रही है। हड़ताल  और आंदोलन के संवैधानिक अधिकार ख़त्म किये जाते रहे हैं। आठ घंटे के काम के दो शताब्दी पहले के मान्यताप्राप्त नैसर्गिक अधिकार को ख़त्म कर बारह चौदह घंटे काम का क़ानून बनाया जा रहा है इत्यादि) (और अगर) मुनाफ़ा 300% सुनिश्चित हो तो पूंजी दुनिया का कोई भी अपराध नहीं जिसे करने में हिचक दिखाए। यहाँ तक कि यह अपने मालिकों को भी सूली पर चढ़ाने का मौक़ा हाथ से जाने न दे! "( पूंजी के मुनाफ़े की ललक का यही दौर होता है जो दो दो महायुद्धों को जन्म देता है जिसमें कुल मिलाकर लगभग आठ करोड़ लोग मारे जाते हैं। उसके पहले नस्लकुशी का दौर चलता है जिसमें लातिनी अमेरिका अस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि की मूल आबादी का समूल नाश कर दिया जाता है, अफ़्रीका के जंगलात और खा़ने की लूट में काले हब्शियों का जनसंहार कर उनकी आबादी को कम कर दिया जाता है, फिर ऑस्विट्ज की नरसंहारी कवायदों की तरह ही  नागासाकी, हिरोशिमा, अर्मीनीयां, वियतनाम, इंडोनेशिया, भारतीय उपमहाद्वीप, चिली, केन्या, सीरीया, अल्जीरिया, दक्षिण अफ्रीका, आदि देशों में नरसंहारों, दंगों और ख़ानाजंगी का सिलसिला थमता नहीं जो बीसवीं सदी होते हुए अपने वीभत्स रेकॉर्ड के साथ 9/11, इराक़ लीबिया सोमालिया, बुरुंडी रवांडा, शाम, अफ़ग़ानिस्तान , फ़िलिस्तीन और अब यमन के रास्ते बीसवीं सदी से इक्कीसवीं सदी में दाख़िल होकर मानवता के विरुद्ध जघन्य से जघन्य अपराध का करतब दिखा रहा है। ) 

मार्क्स सिर्फ़ पूंजी या पूंजीवादी समाजव्यवस्था की व्याख्या करके ही नहीं रह गए थे। जैसा कि अब तक के दार्शनिकों अरस्तू अफ़लातून से लेकर हीगेल फ़ायरबाख़ तक ने किया था क्योंकि इनमें से अधिकांश यथास्थितिवाद के पक्षकार थे। 
फ़ायरबाख़ के निबंध की आलोचना में लिखे अपने 11 वीं विंदु में स्पष्ट कर दिया था मार्क्स ने कि उनका मकसद विश्व की केवल वव्याख्या तक ही सीमित नहीं है जैसा कि अब तक के दार्शनिकों ने विभिन्न विधियों से की है। उनका असल मक़सद है विश्व को बदलने का। 

हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने कार्ल मार्क्स की जीवनी में यही निष्कर्ष दिया है कि "मार्क्स सिर्फ वैज्ञानिक ही तो नहीं थे। विज्ञान तो उनके लिए एक प्रेरणापूर्ण क्रांतिकारी शक्ति था। सबसे पहले मार्क्स एक क्रांतिकारी थे"

भगवान प्रसाद सिन्हा 
© Bhagwan prasad sinha
#vss

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