इस लॉक डाउन में घरों में बैठे बैठे अगर बोर हो रहे हों तो मैं आप को स्वर्णयुग के स्वप्न का दस्तावेज जिसे भाजपा के मित्र संकल्पपत्र कहते हैं और शेष लोग, चुनावी घोषणापत्र, को आप सबसे साझा कर रहा हूँ। देखिये, पढिये और गुनिये कि उन संकल्पों में कितने पूरे हुए और अब कितने शेष हैं। जो पूरे हो गए हों उनके लिये सरकार का आभार व्यक्त कीजिये और जो अब तक छुए न जा सके हों, उसके लिए सरकार को याद दिलाइये। अब मुख्य मुख्य संकल्प पढ़ लें।
1. मूल्य वृद्धि रोकने का प्रयास :
● कालाबाज़ारी और जमाखोरी के मामलों के लिए विशेष अदालतें बनाई जाऐंगी, जिसके माध्यम से मूल्य वृद्धि को कम करने का प्रयास किया जाएगा।
● राष्ट्रीय स्तर का कृषि बाज़ार निर्मित किया जाएगा। मूल्यवृद्धि को रोकने के लिए विशेष फंड्स के माध्यम से लोकसहायतार्थ कार्य किए जाऐंगे।
2. केंद्र और राज्य सरकारों के मध्य संबंधों का विकास :
सरकार की योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों में उचित समन्व्यय स्थापित करने का प्रयास।
3. शासकीय तंत्र का विकेंद्रीकरण :
शासकीय क्षेत्रों में पीपीपीपी यानि पीपुल पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के आधार पर सार्वजनिक क्षेत्रों में आम जनता का क्षेत्राधिकार निश्चित करना।
4. ई-गर्वनेंस :
● देश के दूरस्थ क्षेत्रों तक ब्रॉडबैंड कनेक्शन की पहुँच और आईटी क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करना।
● ''ई-ग्राम, विश्व ग्राम'' योजना के माध्यम से समस्त शासकीय कार्यालयों को इंटरनेट से जोड़ना।
5. न्याय-व्यवस्था का सशक्तीकरण :
● न्याय-व्यवस्था के सभी स्तरों में फास्ट ट्रेक कोर्ट स्थापित करना।
● न्यायालयों में नए न्यायाधीशों की बहाली कर न्याय-व्यवस्था की गति को तीव्र करना।
● वैकल्पिक न्याय व्यवस्था जैसे समझौता केंद्र, लोक अदालत आदि को सुव्यवस्थित करना।
6. अमीर-गरीब के मध्य अंतर को कम करना :
● देश में 100 सर्वाधिक गरीब जिलों की पहचान कर वहाँ के लोगों के एकीकृत विकास के लिए कार्य करना।
● निर्धन क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों की पहचान कर स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया कराना।
7. शिक्षा के स्तर का विकास :
●''सर्व शिक्षा अभियान'' को सशक्त करना।
● ई-लाइब्रेरियों की स्थापना करना।
● युवाओं के लिए 'अर्न व्हाइल लर्न' पर आधारित कार्यक्रमों को जमीनी स्तर पर कार्यन्वियत करना।
8. कौशल विकास :
देश के लोगों के कौशल की पहचान कर उन्हें कौशल के विकास का कार्य करना और ''नेशनल मल्टी स्किल मिशन'' के तहत रोजगार के अवसरों को बढ़ाना।
9. कर नीति :
● हितकर और उपयुक्त कर नीति स्थापित करना।
● करों के संचित शासकीय धनराशि का उपयोग सूचना तकनीकी हेतु सर्वाधिक करना।
10. जल संसाधनों का संवर्धन :
● आगामी समय में जल के संसाधनों का अधिकाधिक संवर्धन और सरंक्षण।
● ''प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना'' के माध्यम से सभी खेतों को पानी पहुँचाने की व्यवस्था करना।
● पीने के जल को हर घर तक पहुँचाने की व्यवस्था करना।
11. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना :
● प्रत्येक नागरिक के लिए उचित स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना।
● हर सूबे में 'एम्स' स्थापित करना।
● आयुर्वेदिक चिकित्सा का विकास करना।
12. सांस्कृतिक विरासत :
बीजेपी राम मंदिर निर्माण और राम सेतु के सरंक्षण के साथ गंगा की सफाई, ऐतिहासिक इमारतों व प्राचीन भाषाओं के संरक्षण के लिए भी कार्य करेगी।
13. कालाधन और भ्रष्टाचार :
● भाजपा की सरकार आने पर भ्रष्टाचार की गुंजाइश न्यूनतम करके ऐसी स्थिति पैदा की जाएगी कि कालाधन पैदा ही न होने पाए।
● आने वाली भाजपा सरकार विदेशी बैंकों और समुद्र पार के खातों में जमा कालेधन का पता लगाने और उसे वापस लाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी।
● कालेधन को वापस भारत लाने के कार्य को प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा।
जब यह वादे टेन कमांडमेंट्स या दस समादेशो की तरह 2014 के स्वप्निल माहौल में, उम्मीद की न जाने कितनी सतरें जगा रहे थे और टीवी की स्क्रीन 'अच्छे दिन आने वाले हैं' के मनमोहक और कर्णप्रिय विज्ञापनों से गुलज़ार हो रही थी तो, लग रहा था कि, कोई सरकार नहीं बनने जा रही है, बल्कि एक अवतार का आगमन हो रहा है, जो अब सबकुछ बदल कर रख देगा। तब देश का माहौल ही कुछ अजब गजब हो चला था।
तब के संकल्पपत्र 2014 को, फिर से पढिये। वक़्त के उसी दौर में खुद को ले जाकर आत्ममंथन कीजिए कि इतने सुनहरे और खूबसूरत वादों पर सवार होकर आने वाली सरकार ने, आज देश को किस स्थिति में पहुंचा दिया है। 100 स्मार्ट सिटी, 2 करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष रोजगार, उद्योगों का संजाल, और भी न जाने क्या क्या यह सब कहाँ खो गए। अब तो इनकी चर्चा भी कोई नहीं करता है । वे भी नहीं जो इन वादों को मास्टरस्ट्रोक और गेम चेंजर मान रहे थे। इन वादों को तो, सरकार अपने कार्यकाल के पहले ही साल भूल गयी और इन वादों को फिर कोई याद न दिलाये, तो कह दिया गया कि चुनावों के दौरान ऐसी वैसी बातें कह दी जातीं ही हैं। यह सब जुमले होते हैं। मतलब छोड़िये इन्हें। इन पर खाक डालिये !
यह बयान भी गैर जिम्मेदारी भरा है कि, छोड़ो यार, चुनाव में तो यह सब, नेता लोग अलाय बलाय बोल ही देते हैं। बिल्कुल उन्माद के अतिरेक में किये गए वादों की तरह। ज़रा सोचिएगा, कितने बड़े और स्थापित टीवी चैनल हैं, जिन्होंने संकल्पपत्र के इन वादों पर अपना कार्यक्रम कभी चलाया है या जो, अब भी कोई डिबेट चलाने का साहस कर सकते हैं और सरकार के प्रवक्ता से यह जवाबतलबी कर सकते हैं कि आखिर इन वादों के बारे में सरकार ने अब तक किया क्या है ? क्या एक बार भी इन वादों पर कोई कार्यक्रम किसी किसी टीवी शो में हुआ है ?
यह हौलनाक कोरोना तो अब आया है। पर यह वादे तो, 2014 के हैं। सरकार के एक पूरे कार्यकाल ( 2014 - 19 ) में इन वादों पर कुछ हुआ भी हो तो खोजिए और बताइये । कुछ तो सरकार भी बता ही सकती है कि उसने इस संकल्पपत्र मे किये गए संकल्पों के संबंध में क्या क्या किया है। पर सरकार ने आज तक इनपर कुछ बताया हो, यह मुझे याद नहीं आ रहा है। न तो अपने किये वादी के संबंध में सरकार ने बताया और न ही टीवी चैनलों ने सरकार से ही कुछ पूछा, बल्कि वे, यह सब पूछने के बजाय रावण की गुफा, स्वर्ग की सीढ़ी और पाकिस्तान की खबरों में ही अधिक डूबे रहे। यहीं यह बात निकल कर आती है कि, ये टीवी चैनल खाते हमारा हैं और बातें पाकिस्तान की करते हैं !
खाने से मेरा तात्पर्य, हमारे ही करों के पैसे से विज्ञापन और हमारी ही टीआरपी के दम पर कॉरपोरेट से प्रचार पाना है। पर हमारी मूल समस्याओं और हमारे जीवन से जुड़े मुद्दों पर देश का गोदी मीडिया खामोश हो जाता है। हमारे ही पैसे से पाकिस्तान का बाजार भाव ये टीवी चैनल बताते हैं और पाकिस्तान की आईएसआई, जिसका एक बहुत पुराना एजेंडा है, भारत मे साम्प्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा दिया जाय, को पूरा करने का जाने या अनजाने यह सब एक माध्यम बन जाते हैं। याद कीजिए देश की किस ज्वलंत समस्या पर गोदी मीडिया ने सवाल उठाया है और बहस की है। आप शायद ही गिन पाएंगे। और जो कुछ आप गिन भी पाएंगे वे वही होंगे जिनसे साम्प्रदायिकता का एजेंडा सधता हो या सामाजिक विद्वेष फैलता हो। बल्कि जनता अपने अधिकारों और समस्याओं के लिए अगर खड़ी भी हुयी तो उस जागरूकता को हतोत्साहित करने का ही काम इस इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने किया है।
लेकिन तमाम अंधकार के बीच प्रकाश की एक रेख तो होती ही है। ऐसे ही एक आलोक रेख की तरह सोशल मीडिया सामने आया । जब परंपरागत मिडिया रेंगने लगा तो हर आदमी पत्रकार बन गया और दूर दराज से आती हुई खबरें सबकी हथेली में पड़े मोबाइल पर आने लगी। आज स्थिति यह है कि परंपरागत मीडिया अपनी प्रासंगिकता खो रहा है। अखबार ज़रूर अपनी आदत बनाये हुए हैं, पर नेट पर वे भी सुलभ हैं तो कागज़ों के अखबार भी दुबले होने लगे हैं। यह एक नया वर्ल्ड आर्डर है।
पर 2014 के बाद एक और नयी प्रवित्ति विकसित हुयी है कि, सरकार के खिलाफ बोलना, सरकार से सवाल पूछना, सरकार को याद दिलाना, सरकार के कृत्यों के सम्बंध में प्रमाण मांगना यह सब हेय, पाप और देशद्रोह समझा जाने लगा है। इस संस्कृति ने एक ऐसे समाज का विकास किया जो स्वभावतः चाटुकार और मानसिक रूप से दास बनने लगा। सत्ता को तो ऐसा ही समाज रास आता है। सत्ता को नचिकेता, कभी पसंद नहीं आता है। सत्ता को प्रखर, विवेक, संदेह करने और प्रमाण मांगने वाला समाज भी रास नहीं आता है। उसे भेड़ में परिवर्तित आज्ञापालक समाज ही रास आता है।
और ऐसा तब होता है जब जनता यह भूल बैठती है कि आखिर उसने किसी को चुना क्यों है ? किस उम्मीद पर चुना है ? किन वादों पर सत्ता सौंपी है ? उन उम्मीदों का क्या हुआ ? उन वादों का क्या हुआ ? और अगर कुछ हुआ नहीं तो फिर हुआ क्यों नही ? इसके लिये जिम्मेदार कौन है ? और जो जिम्मेदार है उसे क्यों नहीं दण्डित किया गया ? यह सारे सवाल लोकतंत्र को जीवित रखते हैं और सत्ता को असहज। प्रश्न का अंकुश ही सत्ता के मदांध गजराज को नियंत्रित रख सकता है।
विवेकवान, जाग्रत, अपने अधिकारों के लिये सजग और सतर्क रहने वाली जनता से अधिकार सम्पन्न सत्ता भी असहज रहती है। वह डरती रहती है। हम सरकार को कुछ उद्देश्यों के लिये उनके द्वारा किये गए वायदों को पूरा करने के लिये चुनते हैं न कि राज करने के लिये अवतार की अवधारणा करते हैं। सरकार हमारे लिये और हमारे दम पर है न कि हम सरकार की मर्ज़ी पर निर्भर है। संकल्पपत्र 2014 पढिये और इस लॉक डाउन के एकांत में सोचिए कि हमने सरकार से उसके वादों और नीतियों के बारे में क्यों सवाल उठाना छोड़ दिया। और हमारी इस चुप्पी का परिणाम अंततः भोगना किसे है।
( विजय शंकर सिंह )
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