अमेरिका का संविधान अपने राष्ट्रपति को दुनियाभर में किसी भी देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री से कहीं अधिक अधिकार और शक्तियां देता है। चार साल के लिये और वह भी एक व्यक्ति केवल दो कार्यकाल यानी आठ साल के लिये ही राष्ट्रपति चुना जा सकता है। वहां विधायिका का चेक और बैलेंस कम ही होता है क्योंकि वहां के राष्ट्रपति को जनता सीधे चुनती है। वह यह दावा करता है कि वह जनता के प्रति उत्तरदायी है।
फिर भी वहां के राष्ट्रपति की वहां की जनता द्वारा खूब आलोचना होती है, मिमिक्री होती है, लिहाडी ली जाती है और प्रेस आंख में आंख डालकर सवाल पूछता है, जिम्मेदारी थोपता है और न कि, वहां, आम खाने के तऱीके कोई गैर पेशेवर पत्रकार बना एक्टर पूछता है और न ही कोई राजकृपा प्राप्त कवि उनका एनर्जी लेवल मापता है। जिस वादे पर और जिस काम के लिये वह चुना गया है सवाल उसके बारे में पूछा जाता है। उसे असहज सवालों का सामना करना पड़ता है और वह अक्सर असहज होता है। वह देश, समाज और धर्म का प्रतीक नहीं बना दिया जाता है। वह जनता द्वारा, जनता के लिये और जनता का ही राष्ट्रपति माना जाता है। यह लोकप्रिय परिभाषा एकअमेरिकी राष्ट्रपति रह चुके सज्जन अब्राहम लिंकन द्वारा ही दी गयी है।
राष्ट्रपति की आलोचना के सवाल पर अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने जो कहा है, उसे पढ़े,
" यह घोषणा करना कि, राष्ट्रपति की अलोचना बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए, या हम सही हों या गलत अपने राष्ट्रपति के साथ हैं, न केवल देशभक्ति के विरुद्ध है बल्कि नैतिक रूप से अमेरिकी जनता के प्रति द्रोह और घात है। "
“To announce that there must be no criticism of the President, or that we are to stand by the President, right or wrong, is not only unpatriotic and servile, but is morally treasonable to the American public.”
( Theodore Roosevelt )
हम एक ऐसे जी जहाँपनाह के मोड में खुद को बदल चुके हैं जो अपनी ही चुनी हुयी सरकार से अपने ही हित मे एक भी सवाल पूछने से कतराता है। यह चुप्पी न केवल असंवैधानिक है बल्कि लोकतांत्रिक परंपराओ के विरुद्ध भी है।
( विजय शंकर सिंह )
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