डॉ सुब्रमण्यम स्वामी आजकल भाजपा में हैं और राज्यसभा से सांसद हैं। वे एक अर्थशास्त्री भी हैं। उनकी शिक्षा, दिल्ली विश्वविद्यालय और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी यूएसए से हुयी है। बेबाक और बेभाव बोलने के लिए वे प्रसिद्ध है। इसी कारण अक्सर चर्चा में बने रहते हैं और समय समय पर अपने दोस्त और दुश्मन बनाते बिगाड़ते रहते हैं। उनके बयानों को लोग गंभीरता से कम लेते हैं, पर यह उनके बयान की गुणवत्ता और तथ्यता के कारण नहीं बल्कि असहज करने वाले मारक अंदाज़ के कारण।
1975 के इमरजेंसी के दिनों में वे में तब चर्चा में आये जब, उस समय दिल्ली पुलिस और इंटेलिजेंस की स्पेशल ब्रांच उनकी तलाश कर रही थी, और वह राज्यसभा में चुपके से आये, भाषण दिया और फिर वहां से गायब हो गये। 25 और 26 जून की रात को इंदिरा गांधी ने देश मे आपातकाल की घोषणा की थी। तब उन्हें शायद ही इस बात का अंदाज़ा रहा हो कि जो वे करने जा रही हैं, वह इतिहास में सदैव उन्हें निंदा और आलोचना का पात्र बनाएगा। पर अतिशय लोकप्रिय और एकाधिकार वाली सत्ता इतनी दूर तक कम ही देख पाती है। सत्ता की जगर मगर भरी चकाचौंध, उस चुंधियाती रोशनी से पार कुछ देखने भी कहां देती है ! उस समय सभी बड़े नेता गिरफ्तार थे। कार्यकर्ता भी बहुत बड़ी संख्या में गिरफ्तार हो गए थे। नागरिक आज़ादी प्रतिबंधित हो गयी थी, लेकिन ट्रेनें समय से चलने लगीं थीं ! जो कुछ बचे खुचे नेता थे वे भूमिगत हो गए थे। सुब्रमण्यम स्वामी तब अपनी इस एडवेंचर भरी फरारी से बेहद चर्चा में आ गए थे। उनके सामने आने और फिर गायब हो जाने की यह बात तब काफी अखबारों में छपी थी।
उस समय वे भारतीय जनसंघ के एमपी थे। बाद में जब जनता पार्टी बनी और टूटी तो वे चंद्रशेखर जी के साथ रहे। फिर एक समय वे कांग्रेस में सोनिया गांधी के नजदीकी लोगों में से थे। कभी वे तमिलनाडु की कद्दावर नेता जयललिता के साथ भी थे, बाद में उनके जानी दुश्मन बन गए। अब वे पिछले कई साल से अपनी एकल पार्टी जनता पार्टी का भाजपा में विलय कर के, भाजपा में बने हुये हैं और अक्सर अपने बेबाक बयानों के लिये चर्चा में रहते हैं। यह इंटरव्यू उनका तब का है जब वे कांग्रेस के साथ थे। यह इंटरव्यू विनोद दुआ द्वारा लिया गया है। यह खबर जिस मीडिया लिंक द्वारा हाल ही में प्रसारित हुयी है को भी नीचे मैंने दे दिया है। इस इंटरव्यू में उन्होंने बीजेपी के राष्ट्रवाद पर जो कहा है, यह उन्ही के शब्दों में पढें,
“The problem with BJP's definition of nationalism is that it is totally negative. It is defined in terms of how much the Muslims lose. All their programs if you highlight they are all oriented towards that. Take for example Article 370, now there is a similar article 371, but they will they never talk about that, that deals with North East. Which says the same thing. Same thing with Ram Mandir, they don't talk about Kailash Manasarovar, which is even move pavitra for us. So their whole program is not in terms of any constructive program, but in terms of how the muslims can be brought down. That is the main objection to their definition of Nationalism.”
( भाजपा के राष्ट्रवाद की परिभाषा के साथ समस्या यह है कि यह नकारात्मक है। यह इसके अनुसार परिभाषित होता है कि मुसलमान कितना पीड़ित होता है। उनके सारे कार्यक्रम इसी विंदु को लेकर रचे जाते हैं। जैसे उदाहरण के लिये आप अनुच्छेद 370 का उल्लेख करें, बिलकुल इसी तर्ज पर नॉर्थ ईस्ट में अनुच्छेद 371 का प्राविधान है, पर यह कभी भी उसकी बात नहीं करेंगे, जबकि यह भी उसी प्रकार का है। बिलकुल यही बात राम मंदिर के साथ भी है। वे कभी भी कैलास मानसरोवर की बात नहीं करेंगे जबकि वह हमारे लिये वह उससे अधिक पवित्र है। आतः उनका सारा कार्यक्रम रचनात्मक नहीं है बल्कि इस उद्देश्य पर आधारित रहता है कि कैसे मुदलमसनो को नीचा दिखाया जाय। राष्ट्रवाद की उनकी परिभाषा के साथ यह सबसे बड़ी आपत्ति है । )
क्या सच मे राजनीति, अवसरवाद, स्वार्थ, पाखंड, और मिथ्या आदर्शवाद का कॉकटेल है ? यह कितने चेहरे रखती है यह तो राजनेता ही बता सकते हैं। यह अनन्त सम्भावनाओ से भरी हुयी है। यह किस प्रकार कितने रूप में कलाबाजी दिखाती है यह डॉ स्वामी के इस वक्तव्य से समझा जा सकता है। आज भले ही इस वक्तव्य को वह दुहरा न पावें यह अलग बात है। वह एक वकील हैं। कभी वादी तो कभी बचाव पक्ष दोनों के ही पक्ष में अपने तर्क को वे सबलता से रख सकने में समर्थ हैं।
भाजपा जिस राष्ट्रवाद की बात करती है, वह हमारे स्वाधीनता संग्राम के राष्ट्रवाद, जो लोकमान्य तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी, रबीन्द्रनाथ टैगोर, अरविंदो घोष, भगत सिंह, जवाहरलाल नेहरू, बल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सुभाष बाबू, आदि के राष्ट्रवाद की अवधारणा से बिल्कुल उलट और अलग है । स्वाधीनता संग्राम का राष्ट्रवाद बहुलतावाद का राष्ट्रवाद है, सामाजिक समरसता का राष्ट्रवाद है, और अनेकता में एकता का राष्ट्रवाद है। ,
भाजपा जिस राष्ट्रवाद की बात करती है वह हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मुस्लिम लीग, और वीडी सावरकर तथा एमए जिन्ना के राष्ट्रवाद के सिद्धांत, धर्म ही राष्ट्र है पर आधारित है । धर्म को ही केंद्र में रख कर सब कुछ देखता सुनता और गुनता रहा है। यह भंजक राष्ट्रवाद है। यह वहीं बंटवारे के सिद्धांत वाला द्विराष्ट्रवाद है जो 1937 से 1947 के कालखंड में गढ़ा गया था। यह भारत की अवधारणा के विपरीत खड़ा किया गया, और इससे देश का अंततः बंटवारा हुआ । लाखों लोग जलावतन हुये। हजारों लोग मारे गये। उस उन्माद और पागलपन को आज भी भारत और पाकिस्तान के लोग भोग रहे हैं। आज डॉ सुब्रमण्यम स्वामी कुछ और भले कहें पर वे यह बात शायद नहीं दुहरा पाएं।
डॉ सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा विनोद दुआ को दिये गए इंटरव्यू का लिंक नीचे दिया जा रहा है।
http://www.jantakareporter.com/entertainment/extraordinary-old-video-interview-of-subramanian-swamy-exposing-bjps-hypocrisy-on-article-370-and-ram-mandir/264848/
© विजय शंकर सिंह
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