Monday, 17 January 2022

असग़र वजाहत का लघु उपन्यास - चहार दर (11)

अगले दिन सायमा के वीज़ा कैंसिल कर दिए जाने की ख़बर सभी अख़बारों और चैनलों में आ गईं। इतना तो तय था कि भारत सरकार उसे ‘रावी विरसा फेस्टिवल’ में हिस्सा नहीं लेने देगी। बल्कि उसके न रहने से शायद ‘फेस्टिवल’ ही न हो सके। हर घंटे दिल की धड़कने तेज़ हो रही हैं और उसी तेज़ी से काम भी आगे बढ़ रहा है। भारत के बुद्धिजीवियों ने सरकार से अपील की है कि सायमा का वीज़ा कैंसिल न किया जाए। पाकिस्तान में इसे लेकर अख़बारों में एडीटोरियल लिखे जा रहे हैं...लेकिन सरकार का रुख कड़ा है।
...और फिर वही हुआ। रज़्ज़ाक साहब ने एस.एम.एस. किया ‘सायमा तुम्हारा वीज़ा कैंसिल हो गया है।’
कल फेस्टिवल है। कुछ दूर से आने वाले अमृतसर पहुँच गए हैं। ये ख़बर फैलते ही छात्रों में उत्तेजना बढ़ गई है। अब किसी भी वक़्त पुलिस एक्शन हो सकता है। सायमा के मना करने के बाद भी तीस-चालीस लड़के-लड़कियाँ उसके चारों तरफ घेरा डाले हैं। कुछ कमरे के अंदर, कोठी के बारामदे में और कुछ सड़क पर अपनी-अपनी गाड़ियों में। सब लड़ने-भिड़ने के मूड़ में हैं। सायमा डर रही है। वह बार-बार यही कहती है कि पुलिस अगर उसे गिरफ़्तार करने आए तो उसे रोका न जाए।
”क्यों सायमा?“ सुखाँ ने पूछा।
”पुलिस को रोक गया तो वालेंस होगा...गिरफ्तारियाँ होंगी और कल हमारा फेस्टिवल न हो पाएगा...समझी तू।“
”पर सायमा पुलिस तुझे हमारे सामने गिरफ़्तार करके ले जाए और हम...?“
”बच्चों वाली बात न कर जोत...और देख सबसे बता दे कि पुलिस से कोई पंगा नहीं लेगा।“ प्रो. रंधावा ने कहा।

रात में ठीक दो बजे प्रो. रंधावा की कोठी के सामने पुलिस की एक कार, दो जीपें और एक ट्रक आकर रुक गए। कार से एस.पी. सिटी निकला। उसके दो डी.वाई.एस.पी. हैं। तीनों अंदर आए। उसके बाद बीस कमांडों का एक दस्ता आया और पोज़ीशन लेकर खड़ा हो गया। वे सब हथियारों से पूरी तरह लैस हैं।
”मिस सायमा खान...आपकी गिरफ़्तारी का वारेंट है...“
”मुझे अपना सामान पैक करने के लिए आप दस मिनट देंगे?“
”ज़रूर।“
 एस.पी. ने घड़ी देखी और छड़ी हिलाने लगा। लड़कियों ने बाहर देखा...सामने और पीछे बड़ी तादाद में फोर्स लगी है।
”सर सुबह गिरफ़्तार कर लेना...रात के दो बजे...“ प्रो. रंधावा ने कहना चाहा।
”प्रोफे़सर साहब...हमें यही आर्डर है...तुसी जानते हो ये कार्रवाई ऊपर से हो रही है...।“
”ठीक है जी...अब मजबूरी है तो ठीक है।“ प्रो. रंधावा बोले। सायमा सामान पैक करने लगी।
सायमा सामान लेकर खड़ी हो गई।
”सायमा तू जा रही है।“ जोत सामने आकर खड़ा हो गया।
”मैं जा रही हूँ पर ख़ाली हाथ नहीं।“ सायमा बोली...उसने जोत को गले लगा लिया। फिर वह सबसे गले मिलने लगी।
प्रो. रंधावा के पैर छूने के लिए वह झुकी तो उसकी आँखों में आँसू थे।
प्रो. रंधावा ने उसके सिर पर हाथ रख दिया।
 
सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियाँ सायमा को लेकर सीधे एयरपोर्ट की तरफ निकल गई।
कमरे में मौत का सन्नाटा फैल गया। धीरे-धीरे सोनी ने ‘वे मैं भरी सुगन्धियाँ पौंढ़ सजना तेरे बुए...’ गुनगुनाना शुरू किया...सन्नाटा टूटने लगा...गीत खत्म होते-होते जिंदगी लौट आई।
लैपटाप तेज़ी से चलने लगे। सायमा की गिरफ़्तारी और डिपोर्ट किए जाने की ख़बर दुनिया में फैलती चली गई।
”तुसी एक लड़ाई जित रहे हो।“ प्रो. रंधावा बोेले।
प्रो. रंधावा के यह कहने के बावजूद सायमा के गिरफ़्तार कर लिए जाने का दुःख इनके दिलों में जमा बैठा रहा। आज रावी के किनारे ‘फेस्टिवल’ है और सायमा नहीं है...दूर से आने वाले तो अमृतसर पहुँचने ही वाले होंगे...उन्हें सायमा के गिरफ़्तार और डिपोर्ट होने का पता चलेगा तो क्या होगा?
”नइ जी नइ...अब ये कर जोत कि चार-पाँच मोटर साइकिल सवारों की ड्यूटी लगा के देखें, पुलिस ने शहर के बाहर कहाँ-कहाँ बैरीकेट लगा रखे हैं...“
”ठीक है जी अभी भेजते हैं...“ वह बोला।
”ओधर अजनाला की तरफ किसी को भेज दो...वो भी एक प्वांइट है जहाँ पुलिस हमें रोक सकदी है।“ प्रो. रंधावा ने बताया।
”हाँ ये भी करते हैं।“
”सर जी दूसरे शहरों से भी बन्दे आ रहे हैं।“ अल्का ने कहा।
”तुझे पता है कौन कहाँ से आ रहा है?“
”हाँ जी हर शहर की लिस्ट है...फोन नम्बर हैं।“
”तो ऐसा करो उनसे कहो अंबरसर न आएँ।“ प्रो. रंधावा ने सुझाव दिया।
”क्यों सर?“
”यहाँ आए तो फँस जाएंगे...देखो जो गुरदासपुर की तरफ से आ रहे हों उनसे कहो डेरा बाबा नानक होकर सीधे अजनाला की तरफ बढ़े...लुधियाना जालंधर से आने वाले भी यही रूट ले लें...लम्बा तो पड़ेगा पर पहुँच जाएंगे...“
”चंडीगढ़ वाले तो आ गए हैं।“
”कोई बात नहीं देखा जाएगा।“
मोबाइल फोन बनजे लगे। ई-मेल फिर सक्रिय हो गए। कंट्रोल रूम में समाचार आने लगे। घेराबंदी देखने के लिए बंदे चले गए। सुबह का चार बज रहा है। गायकों की टोलियाँ आ गई हैं। हरमिन्दर साहब में मत्था टेकने के बाद लंगर शकेंगे...फिर आगे बढ़ना है।
प्रो. रंधावा काग़ज़ पर नक़्शा बनाने लगे, ”देखो अम्बरसर से अजनाला वाली रोड पर तो जाना ही नहीं है। सीधे चुगानवान को बढ़ो...वहाँ से अजनाला का रास्ता पकड़ो...अजनाला में अगर चारों सड़कों पर बैरीकड लगा हो तो बताना...उधर कच्चे रास्ते भी हैं...पिंडों के लिए...मैं उधर रह चुका हूँ।“
आठ बजे लाहौर से सायमा का ई-मेल आया, ”मैं लाहौर पहुँच गई हूँ। एयरपोर्ट पर रज़्ज़ाक साहब आए थे। ये तुम लोगों ने बहुत अच्छा किया कि मेरे गिरफ़्तार होने और डिपोर्ट किए जाने की इनफोरमेशन फ्लैश कर दी। लाहौर में...सब दोस्तों को मेल भी मिल गया है कि मेरे साथ क्या हुआ है। यहाँ तैयारी पूरी है। जगह अजनाला एरिया में ही हो सकती है। मैं लगातार कान्टैक्ट बनाए रखूँगी।“
”ओए बल्ले-बल्ले।“ सायमा का मेल पढ़कर ज़ोर का नार लगा था...यह मेल सायमा ने दो सो लोगों को फारवर्ड किया था।
दस बजते-बजते पोजीशन साफ़ हो गई। जिन लोगों को पुलिस की घेराबंदी देखने के लिए भेजा गया था उन्होंने एस.एम.एस. दे दिए। अजनाला में पहुँचने वाली चारों सड़कों पर पुलिस के बैरीकेट लगे हैं। फिर अजनाला से जाफर कोट वाली सड़क पर भी बड़ी तादाद में पुलिस है...यहाँ कुछ बी.एस.एफ. के जवान भी तैनात हैं...अब अजनाला जाना भी एजेंडा से कट गया है। सबको मैसेज भेजा गया कि अजनाला को ‘एवाइड’ करो और अजनाला शुरू होने से पहले ही पश्चिम की दिशा में जाने वाली पतली सड़कों पर मुड़ जाओ और फिर मैसेज का इंतज़ार करो।
”पर एक गल्ल है।“ प्रो. रंधावा ने कहा।
”क्या सर?“
”ये तो सब जानते हैं कि अम्बरसर में फेस्टिवल वाले जमा हो गए हैं...अब अजनाले वाली सड़क पर कोई न दिखाई दिया तो पुलिस को शक हो जाएगा?“
”हाँ ये तो है...पुलिस सोचेगी...पता नहीं कहाँ चले गए...तब अधर-उधर दौड़ेगी।“
”देखो पुलिस को इस धोखे में रखो कि उन्होंने ‘रावी फेस्टिवल’ वालों को रोक लिया है।“
”तुसी गे्रट हो रंधावा सर।“ नवजोत अचानक बोल उठा।
”तुसी अब मान रहे हो।“ प्रो. रंधावा ने कहकर ठहाका लगाया।
”तो सर क्या करें?“
”देखो जी...प्रदीप...नवीन और जोत...कम्पनी बाग़ में अपनी जो गाड़ियाँ हैं उनमें से कुछ ‘प्रापर’ रास्ते से अजनाला की तरफ़ बढे़ं...बैरीकेड पर रोका जाए तो रुक जाएँ...पुलिस से बहस करें कि हमें अजनाला जाने दो...“
”लो जी अभी बात करते हैं...“ मोबाइल बजने लगा।
”उन बन्दों से कहो...सड़क न छोडें़...चाहे जाम ही क्यों न हो जाए।“

ग्यारह बजे सायमा का मेल आया, ‘हम लोग चल चुके हैं...डब्ल्यू- डब्ल्यू-डब्ल्यू गूगल अर्थडाॅट काॅम खोलकर इंडिया पाकिस्तान पंजाब बार्डर पर जूम करो...बलहरवाल पिंड के वेस्ट में रावी एक ‘कर्व’ लेती हुई वेस्ट को मुड़ जाती है...वहाँ बार्डर रावी के ऊपर है...हम लोग यहीं पर आ रहे हैं...यहाँ रावी का पाट भी बहुत चैड़ा नहीं है...‘होपफुली’ हम लोग एक-दूसरे को देख भी सकेंगे...गुडलक।’ सायमा ने ये मेल सिर्फ जोत को भेजा था।...
”अब इस मेल को इसी तरह फारवर्ड न करो,“ नवीन ने कहा।
”हाँ सबको मेल करो कि जाफरकोट और सारंगदेव की तरफ आगे बढ़ो।“
मैसेल फ्लैश हो गया।
जो लोग मेन रोड पर पुलिस को ‘डिच’ करने भेजे गए हैं उनके मैसेज लगातार आ रहे हैं। मैसेज यही है कि सड़कें ब्लाक हो गई हैं। सारा ट्रैफिक  रुका पड़ा है। कई-कई किलोमीटर को लाइनें लगी हैं...पीछे पुलिस के ट्रक भी फँसे पड़े हैं...इन सड़कों से कोई आ-जा नहीं सकता।“
इन लोगों को मैसेज दिया गया कि शाम तक यही करते रहो...यू आर कोआपरेटिंग ए लाट इन द ‘रावी विरसा’ फेस्टिबल।
चुगानवान में सायमा को मैसेज मिला, ”मैसेज सेव कर लो...आगे शायद ‘जैमर’ लगा होगा। अभी मैं गूगल लाइब पर तुमसे लोगों की पोज़ीशन देख रही 
हूँ..बिल्कुल ठीक है...बढ़ते रहो...हम भी बढ़ रहे हैं...प्वाइंट एक्स वही है...जहाँ हमें मिलना है...गुडलक...“
सायमा को रिप्लाई चली गई। दूसरी गाड़ियों से लगातार मैसेज आ रहे हैं...प्रो. रंधावा के साथ पूरी कंट्रोल टीम एक जिप्सी में आगे बढ़ रही है। अब तक कोई प्राब्लम नहीं आई है।
तीन बजते-बजते इधर से फेस्टिबल के लोग प्वाइंट एक्स पहुँच गए। प्लान के हिसाब से सफेद पतंगें उड़ा दी गईं। यह कोड था अपने प्वाइंट एक्स तक पहुँच जाने का। जवाब में थोड़ी देर बाद उधर से भी सफेद पतंगें आसमान में दिखाई देने लगीं।
अब दोनों तरफ से संगीत शुरू हो गया।
उधर से गीत शुरू हुआ-
     लंघ आजा पत्तणा झणां दा
     सिर सदका तेरे ना दा,
     ओ यार
     लंघ आजा...
लाउडस्पीकरों की आवाजें़ एक-दूसरे से मिलने लगीं। वही गीत जो इधर गाए जा रहे हैं उधर भी गाए जा रहे हैं। इधर जो गीत ने धुन पकड़ी-
     रावी हिल्ले जुल्ले
     झणां हिल्ले जुल्ले
     न्याणिए जिंदे नी लै बुल्ले
     नेरियाँ रातां लिशकश तारे
     उट्ठो नी भाबियों
     कंत जगाओ।
     वेखो नी किड्डा दिन चढ़या
अब इधर-उधर के लोग एक-दूसरे को देख सकते हैं। उधर से आवाज़ आती है-
     नी साड्डे वीर जगाओ,
     लखत हजारा जागदा
     लाहौर शहर सुत्ता
     जाग पई जाग पाई
     गली लाहौर दी
     अम्बसर वी जाग रेया
लाउडस्पीकर पर जोत की आवाज़ आती है, ”आई लव यू सायमा।“ 
उधर से लाउडस्पीकर पर सायमा की आवाज़ आती है, ”आई लव यू टू जोत।“
”वी लव यू ब्वायज़।“
”वी लव यू गल्र्स।“
फिर संगीत की तेज़ आवाज़...इधर भांगड़ा शुरू हो गया...उधर भी भांगड़ा चालू हो गया...
सफेद पतंगों के साथ सफे़द कबूतर उड़ाए गए। नीले आकाश में सफे़द कबूतर एक साथ उड़ रहे हैं...
”काश हम कबूतर होते।“ उधर से आवाज़ आती है।
”हम कबूतर ही हैं...और क्या हैं?“ इधर से आवाज़ जाती है।
लाउडस्पीकर पर सायमा की आवाज़ आती है। रेंजर हमारी तरफ़ बढ़ रही 
हैं...
”तितलियाँ उड़ाओ।“ उधर से लाउडस्पीकर पर सायमा की आवाज़ आती है। कार्डबोर्ड के बड़े-बड़े डिब्बों के ढक्कन खोल दिए जाते हैं। उधर से भी सैकड़ों की तादाद में तितलियाँ नीचे आसमान और रावी के नीले के बीच उड़ रही हैं...इंद्रधनुष जैसा बन जाता है...
”पी.ए.सी. नजदीक आ गई है..हमें हटना पडे़गा...“ जोत कहता है।
”ठीक है हट जाओ...“ सायमा बोली, ”और देखो...दोनों देशों में कितनी एकता है...दोनों की बार्डर सिक्यूरिटी फोर्सेज़ मिलकर हमें मार रही हैं...“
 
नगाड़े की धमक के साथ ये आवाज़ चारों तरफ़ गूँज जाती है।
”गल्ल अली दी“
उधर से जवाब आता है
”आशकां वर्गी।“
इधर से फिर कहा जाता है
”गल्ल अली दी“
उधर से जवाब आता है।
”सदके जावां...गल्ल अली दी...“
बी.एस.एफ. की गाड़ियों में से जवान धड़ाधड़ कूदने लगते हैं। हवाई फायर की आवाजें उधर से भी आ रही हैं, इधर से भी। दोनों तरफ से लाउडस्पीकार बंद हो गए हैं...रेंजरों के पीछे से ‘फेस्टिवल’ वाले नारे लगाते हैं...धुआँ, आवाज़ें, चीखे़ं...दूर तक फैले खेतों में दौड़ते लड़के-लड़कियाँ और उनके पीछे बी.एस.एफ. के जवान या रेंजर...इधर से खदेड़ा जाता तो लड़के दूसरी तरफ़ जमा हो जाते हैं...और मज़ा ये कि अभी तक वे आ रहे हैं...नए आनेवालों में नया जोश...और नए नारे...और गीत।
”लंघ आजा पत्तणा झणां दो...“
रावी के पानी से गीत के बोल फूट रहे हैं...
”सिर सदका तेरे ना दा...ओ यार...“
ऊपर आसमान में पतंगें और तितलियाँ गले मिल रही हैं...नीचे रावी हँस रही हैं...खेत खिलखिला रहे हैं...पेड़ तालियाँ बजा रहे हैं...हवा, आवाज़ों की तेज़ी से इधर-उधर पहुँचा रही है...धुआँ...गोलियाँ...
”अलविदा यारो..“
”सदका यारो...“
आवाज़ का एक टुकड़ा आ जाता है।
 लंघ आ जा...
बांटने वाली रेखा रावी के बीच से निकलती है। 
पानी पर लिखी लिखाई।
पुलिस और रेंजर के साथ भागदौड़ पकड़ पकड़ और शोर-शराबे में कुछ रावी में उतर आए।
ऊपर आकाश में पतंगे आपस में मिल रही है...
कबूतर इधर से उधर आ जा रहे हैं....
 तितलियों ने रेनबो बना दी है....
 पानी में इधर और उधर से सीमा रेखा की तरफ नौजवान बढ़ रहे हैं...
 हवा में होने वाली फायरिंग जमीन पर हो रही है...
 गोलियां लग रही हैं..
 लेकिन  पानी पर खींची गई सीमा रेखा तक पहुंचने की कोशिश जारी है..
दोनों गुट कितने पास आ गए हैं के एक दूसरे को देख सकते हैं..
 सायमा सलवार कमीज में बहुत फुर्ती से तैर रही है...
जोत उसे देख रहा है...
 वह भी पानी पर बनी सीमा रेखा को तोड़ने आगे बढ़ रहा है....
 इधर और उधर के लाउडस्पीकर अब भी बहुत तेज संगीत बजा रहे हैं....
 गोलियों की आवाजें...
और संगीत...
गोलियों की आवाज...
 संगीत में दब रही हैं गोलियों की आवाज़ें....
किसी का ध्यान गोलियों पर नहीं है...
सीमा रेखा के पास सायमा... 
और जोत पहुंच जाते हैं...
देशों की सीमा ?
पानी पर लिखी लिखाई.....

"अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना 
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है।"
(समाप्त)

© असग़र वजाहत 

No comments:

Post a Comment