Tuesday, 7 April 2015

एक कविता .... मुस्कुराना मेरी फितरत है ! / विजय शंकर सिंह



मुस्कुराना मेरी फितरत है ,
मुस्कुराना मेरी चाहत है ,
मुस्कुराना मेरी आदत है। 

संसार तो भ्रम है , दोस्तों ,
माया के वियाबान में 
एक नन्ही कली क्षितिज पर ,
मरू में सर उठाये दिखी जो ,

मुस्कराहट है वही मेरी ,
वही मेरी जिजीविषा है 

ढूंढना है हमें ,
आफतों के इस जंगल में 
एक दिया रोशनी का.
हांथों में लिए उस नन्ही लौ को ,
बढ़ चले जब हम सधे क़दमों से ,
लब पर तेरा नाम लिए ,
तो छिटक गयी चांदनी अँधेरे में  
और, फ़ैल गयी मुस्कराहट अधरों पर !! 

मुस्कुराना मेरी फितरत है ,
हंसना मेरी चाहत है ,
जिंदादिली मेरी आदत है  !!

-vss


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