AVAM, नामक एक एन जी ओ ने आ आ पा पर फ़र्ज़ी कंपनियों से चन्दा लेने का आरोप लगाया है. इसे लेकर आरोप औ सफाई दोनों ही टी वी चैनलों पर पेश किये जा रहे हैं. राजनीतिक दलों को चन्दा शुरू से ही आरोपों का एक मुख्य विंदू रहा है. पहले यह आरोप कांग्रेस पर लगता रहा है, क्यों कि लंबे समय तक कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी रही है. यही आरोप सपा और बसपा पर लगा. भाजपा पर भी अज्ञात श्रोतों से चन्दा लेने का आरोप है. अब यह आरोप राजनीति में शुचिता का दावा करने वाली पार्टी आ आ पा पर लगा है. यह अगर चुनाव का मौसम न होता और इतना निकट चुनाव भी नहीं होता तो ऐसे आरोपों को कोई गंभीरता से भी नहीं लेता. लेकिन जब चुनाव अति निकट हो तो ऐसे आरोप पर बावेला भी कम नहीं मचता है. आरोप सच हैं या गलत, यह तो आवाम नामक संस्था जिसने यह खुलासा किया है वह जाने या आ आ पा के करता धर्ता. पर इन आरोपों ने एक बात साफ़ कर दी है कि राजनीतिक दलों को धन जुटाने की कार्यवाही को भी नियामितित करना होगा.
पिछले दो साल पहले मुख्य सूचना आयुक्त ने राजनीतिक दलों को , मिलने वाले चंदे का विवरण आर टी आई के द्वारा देने का नियम लागू किया था. लेकिन शुचिता और साफगोई का लबादा ओढ़े सारे राजनीतिक दल जो एक दूसरे की बखिया उधेड़ने पर अक्सर आमादा और तत्पर रहते हैं इस एक मुद्दे पर एक मत हैं. भाजपा ने, जिसे सरकार में आने के बाद और भी ज़िम्मेदार दिखना होगा ने आर टी आई के अंतर्गत सूचना देने के प्राविधान के प्रति अपनी उदासीनता ही दिखाई है. अब जब चुनाव बिलकुल निकट है तो उसने यह मुद्दा एक रणनीति के तहत लपक लिया है. भाजपा द्वारा यह मुद्दा उठाने पर या इसे लपल लेने पर कोई भी असामान्यता नहीं है, चुनाव प्रचार के दौरान विरोधियों के खिलाफ मुद्दे की तलाश तो होती ही रहती है. यह एक रणनीति है. आखिर विरोधी विरोध में ही तो कहेंगे, न कि समर्थन में.
इस खुलासे के बाद निम्न कार्यवाही सरकार द्वारा की जानी चाहिए...
1. आ आ पा के खिलाफ जो भी तथ्य या आरोप उक्त एन जी ओ ने लगाए हैं से इन आरोपों की विस्तृत रिपोर्ट लेनी चाहिए.
2. आय कर या डी आर आई जो भी सरकार उचित समझे के अधीन एक जांच दल गठित कर के इसकी छान बीन की जानी चाहिए.
3. जो कंपनियां फ़र्ज़ी पायी जाय उनके खिलाफ क़ानून के प्राविधान के अनुसार कार्यवाही की जाय.
4. सारे राजनीतिक दलों को आर टी आई के दायरे में लाने के लिए एक विधेयक सरकार को संसद में लाना चाहिए. ताकि भविष्य में ऐसी गड़बड़ी न हो सके.
5.चुनाव आयोग और मुख्य सूचना आयुक्त को इस सम्बन्ध में कार्यवाही के लिए वैधानिक शक्ति दी जानी चाहिए.
6. चुनाव सुधारों पर अक्सर चर्चा होती हैं. एक सर्वादलीय कमेटी बना कर जिसमें विधि विशेषज्ञों को भी रखा जाय , द्वारा इसे भी वैधानिक स्वरुप दिया जाना चाहिए.
केवल आरोप लगाना, और उस पर सफाई सुनना एक खूबसूरत मनोरंजन है अगर उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है तो. क़ानून सर्वोपरि है. यह मात्र एक सुभाषित ही न रहे, बल्कि वास्तविक रूप में भी रहे, यही देश के लिए शुभ है.
मीरा सान्याल एक प्रतिष्ठित बैंकर रही हैं. वह बैंकिंग के नियम कानूनों से भली भाति परिचित भी हैं. उन्होंने इस बारे में जो ट्वीट किया है, उसे मैं यहां साझा कर रहा हूँ.
इनका तर्क है कि,
- हर कंपनी रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज में पंजीकृत होती है. जिसे एक तय नियमों के अनुसार ही पंजीकृत किया जाता है.
- जो धन राशि चंदे के रूप में देना बताया जाता है, वह राशि चेक से ली गयी है. चेक का भुगतान बैंक के खाते से हुआ है.
- खाता खोले जाने की एक निर्धारित प्रक्रिया है, जिसमें अपने ग्राहक को जानिये या know your customer KYC के सारे माप दंड पूरे करने पड़ते हैं. बैंकों का यह दायित्व होता है.
- कम्पनीज का खोलने के लिहे कंपनियों के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स का प्रस्ताव बैंक में जाता है. बैंक उनकी माली हालत, बैलेंस शीट , PAN नम्बर आदि औपचारिकताओं की पूर्ति कर के ही खोलता है.
- PAN नम्बर आय कर विभाग देता है. यह भी एक निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही है.
इसी परकार के अन्य कारण निम्न अंश में। गिनाये गए हैं, ..
" The supposed ‘funding scam’ of the Aam Aadmi Party stands resolved. It was an episode which had absolutely zero substance but was still broadcast in primetime by all major news channels. Either the people who head the editorials of these enterprises have no knowledge of India’s banking and financial system or, as alleged for a long time, they are complete sellouts and are ready to showcase anything in exchange for money.
Let’s find out why AAP has done nothing wrong (by nothing I mean zilch) with respect to this entire controversy:
1) Due diligence is limited in scope
As pointed out by ex-RBS India chief Meera Sanyal, the party has limited scope and power while investigating or vetting any donation made by any person/individual. The party can check for the following credentials of any company/individual.
Official registration (done by the Ministry of Corporate Affairs under the Companies Act)
PAN/TIN number, obtained through the Income Tax department
Banking credentials (which are automatically ascertained as all payments are done by cheques, netbanking etc
The party, through its Parliamentary Affairs Committee, made sure all the aforementioned credentials were verified and checked before the cheques for processed for clearing.
2) AAP trusted the financial structure and laws
Every organisation, agency, department issuing documents, licences, registrations to companies or individual, has its own system of verification and checks which are done with utmost diligence as follows:
RoC (Registrar of Companies) verifies all documents, addresses, phone numbers, financial credentials of companies being registered under the Companies Act. Moreover, this entire registration process is carried out by licensed and authorised CA firms.
Income Tax/Sales Tax departments undertakes its own verification process before issuing PAN cards, TIN numbers etc.
Public/ private banks and financial institutions have their own independent system of verification, only after which they allow their customers (companies, individuals) to open bank accounts and do financial transactions. All these norms (KYC- Know Your Customer norms et al) are prescribed under various acts governed by the Reserve Bank of India.
If anybody is at fault for the existence of such shell companies (as reported yesterday), it is these very institutions which have failed to adhere to their verification laws and processes.
Why did the RoC and DoIT issue licenses and registrations to these companies if their addresses were forged?
Why did the banks related with these companies allow such dubious organisations to undertake financial transactions. Did they not follow the KYC norms and check for all credentials before opening financial accounts?
The Aam Aadmi Party didn’t have the power to obtain addresses, names of directors, phone numbers of these companies as this information is protected under banking privacy and secrecy laws. They completed all checks within their scope and power and trusted the competent authorities to have done their job priorly. Even if you don’t agree with the above points, is it practically possible for any party to verify, in-depth, each one of 35,000 donations made in a very short span of time?
My questions to the media and several misinformed ‘bhakts’ and AAP detractors, who have ran circles around this issue with unbelievable imbecility and ignorance.
Do you think AAP would’ve bothered to convert their black money into white and then have the naivety to put it up on their website? Couldn’t they have just used up the black money (in cash) directly to fund their campaign? Do you think everybody is as stupid as you?
Do you think if AAP had done anything wrong with respect to these transactions, they would’ve uploaded it on the internet for the world to see? Would an ATM robber upload the CCTV footage of his robbery on Youtube? The very fact that all these details were taken from the AAP website proves that AAP’s political funding is transparent and clean to the core.
Do you even know what ‘Hawala’ means? Have you ever heard of hawala payments being made by cheque? Stop taking the Indian public for a ride.
I believe the media has some very educated, intellectual people on board in their economic, financial, and related teams who would know how weak the entire case was from the very beginning. Infact, a close relative of mine, who has 30+ years of experience in the financial sector, and is a staunch AAP critic and BJP follower, had slammed the media on hearing this episode. He straight away knew that AAP was not at fault and he even went to the extent of calling the media a sellout after seeing every news channel run the same news for the entire day without even checking the veracity and credibility of the claims.
Indian commoners are very gullible and can easily be influenced by even the slightest of murmurs. It only takes a spark to spread a fire in this nation. You can’t blame the people for attacking the AAP, after what was shown on the television yesterday. But after seeing the entire coverage, I can confidently say that media structure in India has collapsed beyond comprehension. Is this the sort of responsibility and accountability claimed by the fourth pillar of democracy? Is there no moral credibility left in this generation’s news enterprises? Is everything a question of money? Or are you willing to put journalistic ethics on the line for the sake of TRPs and Twitter trends?
It’s my heartfelt appeal to all informed and aware citizens of this country to not rely on the media for all your facts and information. You have the power of the internet at your disposable, use it wisely and responsibly. Be your own media. "
The author can be followed on Twitter @QSportsLunati.
उपरोक्त अंग्रेज़ी के अंश मीरा सान्याल के ट्वीट से लिए गए है. लेकिन इन आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच राजनीतिक दलों को फंडिंग का मामला हमेशा विवादों में रहा है. चुनाव सुधार की बहुत सी बातें उठी. लेकिन चुनाव आयोग की सक्रियता मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन के समय में शुरू हुयी. जब उन्होंने चुनाव में एक सक्रिय और सर्तक रेफरी की भूमिका गढी और पहली बार लगा कि, आम चुनाव संचालित करने वाली यह संवैधानिक संस्था, नख दन्त विहीन नहीं है. शेषन के निर्देशों को, शासनादेश के तर्ज़ पर शेषनादेश कहा जाता था तभी से खर्चे की समय सीमा का उल्लंघन न हो इस लिए आई आर एस अधिकारियों को विशेष रूप से आब्जर्वर बना कर भेजा गया. इसके परिणाम भी अच्छे निकले. जो तमाशा चुनाव में होता था, जो आडम्बर और चकाचौंध फैला था, वह नियंत्रित होने लगा. लेकिन इन सब के लिए केवल आयोग ही धन्यवाद और प्रशंसा का पात्र है. संसद और जन प्रतिनिधि नहीं.
( विजय शंकर सिंह )
06 फरवरी 2015.
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