जब भूमिपूजन हो ही गया, तो नये संसद भवन को बनने से रोक कौन पायेगा? कालांतर में कहने के लिए रह जाएगा कि देश की आला अदालत ने इसे संज्ञान में लिया था। सेंट्रल विस्टा पर सुनवाई के वास्ते 10 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में है। जमीन के इस्तेमाल में बदलाव पर आपत्ति है। पेड़ न काटे जाएं, धूल-मिट्टी का प्रदूषण न हो ऐसे सवाल हैं। पुरानी संसद की एक ईंट भी न निकले, ऐसे सरोकार भी हैं। सेंट्रल विस्टा कमेटी ने जिस फुर्ती से एनओसी जारी की है, क्या डीडीए ने लैंड यूज के कागजों में झोलपट्टी की है? शहरी विकास मंत्रालय की कैसी भूमिका रही? ऐसे तमाम सवाल सुप्रीम कोर्ट में उठाये गये हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन डिजाइन इंडिया (आईयूडीआई), द इंडियन सोसाइटी ऑफ लैंडस्केप आर्किटेक्ट, द इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज ने केंद्र सरकार से भवन निर्माण पर प्रश्न पूछा था। जवाब में उन्हें बोला गया, 'आइए पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के जरिये बता देते हैं।'
सरकार का तर्क है कि 1927 में बने संसद भवन में जगह की कमी है। पुराना भवन भूकंपरोघी नहीं है, आधुनिक अग्निरोधक सुरक्षा से भी लैस नहीं है। अंग्रेजों द्वारा निर्मित पुरानी संसद 17 हजार वर्ग मीटर में है। यहां जगह के टोटे पड़ जाते हैं। पुराने वाले से लगभग चार गुना बड़ा 64 हजार 500 वर्गमीटर में हम वृहदाकार संसद भवन का निर्माण करेंगे। नया संसद भवन आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक होगा। लोकसभा भूतल में होगा जिसमें 888 सदस्य आराम से बैठ सकेंगे। राज्यसभा में 384 सदस्य विराज सकेंगे। संयुक्त बैठक में 1272 सदस्यों के बैठनेे की व्यवस्था होगी। संसद भवन में सभी सभासदों के अपने डिजीटल इंटरफेस कार्यालय होंगे।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में नया केंद्रीय सचिवालय बनेगा, मेट्रो से जुड़े कोई दस मंत्रालयों के कार्यालय यहां होंगे, जिसे 2024 तक पूरा होना है। सीपीडब्ल्यूडी की देखरेख में कस्तूरबा गांधी मार्ग पर जी-8 कही जाने वाली तीन नौ मं•िाली इमारत और अफ्रीका एवेन्यू पर जी-7 के नाम से चार आठ मंजिली इमारतों को बनना है। इनमें 14 हजार सरकारी कर्मचारियों को अत्याधुनिक व्यवस्था में काम करने के अवसर मिलेंगे।
2022 में आजादी के 75वें साल के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नये संसद भवन में सत्र को संबोधित करेंगे, ऐसा लक्ष्य निर्धारित किया गया है। लोकतंत्र के त्रिभुजाकार मंदिर के निर्माण पर 971 करोड़ की लागत आएगी। 20 प्रतिशत बिजली की खपत कम होगी। इसके सालाना ख़र्च में एक हजार करोड़ की बचत का दावा भी किया जा रहा है। भला बताइये, इतने फायदे वाली परियोजना का कौन बागड़ बिल्ला विरोध करेगा? लोकतंत्र के नये मंदिर के निर्माता रतन टाटा से न्यूज एजेंसी वाले ने पूछा तो उन्होंने तफसील बताने से इंकार किया। बस इतना बोले कि इसकी सफलता की शुभकामना व्यक्त करता हूं। मुझे भूमिपूजन में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, प्रोजेक्ट का मुझे नहीं पता।
सबको याद होगा, कुछ दिनों पहले तक मीडिया में यह चर्चा का विषय था कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर दो हजार करोड़ से अधिक का ख़र्च होना है। तो फिर यह दो हजार करोड़ से 971 करोड़ पर कैसे आ गया? इस कलाकारी ने आलोचकों के मुंह पर ताला लगा दिया है। कल तक जो लोग गिरती अर्थव्यवस्था वाले कालखंड में कंगाली में आटा गीला करने वाली मोदी सरकार पर सवाल उठा रहे थे, वो भी हैरान हैं कि यह तो एक हजार करोड़ भी नहीं हुआ। सरकार इतने सस्ते में ऐसा चमत्कार कैसे करने वाली है? कहीं ऐसा तो नहीं सारी परियोजनाओं का बजट एकीकृत न करके उसे अलग-अलग दिखाया गया है? सेंट्रल विस्टा कमेटी (सीवीसी) का कोई पोर्टल नहीं दिखता। कहां है उसका कार्यालय? इंटरनेट पर ढूंढते रहिए। चार सदस्यीय सीवीसी के प्रमुख आनंद कुमार रोड इंजीनियरिंग के एक्सपर्ट बताये जाते हैं। इस परियोजना को एनओसी देने में उनकी जरूरत क्यों पड़ी? जवाब मिलना मुश्किल है।
एक बड़ा सवाल सेंट्रल विस्टा परियोजना को डिजाइन करने वाले वास्तुकार विमल पटेल को लेकर भी उठाया जा रहा है। सेंट्रल विस्टा परियोजना के वास्ते देश की पांच अन्य नामी गिरामी अधोसंरचना कंपनियों ने भी आवेदन कर रखा था। उनमें सीपी कुकरेजा, हफीज कॉन्ट्रेक्टर, सिक्का एसोसिएट्स, आर्कोप कंल्टेंट्स और आईएनआई स्टूडियो प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। मगर बाजी, अहमदाबाद स्थित एचपी डिजाइन के मालिक विमल पटेल के हाथ लगी। परिस्थितियां बता रही थीं, जैसे सब कुछ पूर्व नियोजित हो। बस प्रशासनिक औपचारिकताएं पूरी करने के वास्ते ऐसे नामी-गिरामी डिजाइन करने वाले आमंत्रित कर दिये गये। पीएम मोदी के लगभग जितने ड्रीम प्रोजेक्ट हैं, विमल पटेल के बिना पूरे नहीं दिखते। उनमें काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, मुंबई पोर्ट ट्रस्ट डेवलपमेंट, साबरमती रिवर फ्रंट, कांकरिया लेक वाटर फ्रंट, गुजरात विधानसभा सेंट्रल विस्ता को प्रमुख रूप से याद कर सकते हैं।
विमल पटेल के पिता हंसमुख पटेल अहमदाबाद के नामी-गिरामी वास्तुकार रहे हैं। चिमनभाई पटेल जब मुख्यमंत्री थे, गुजरात हाईकोर्ट का डिजाइन हंसमुख भाई ने ही किया था। 20 जनवरी 2011 को 'सेंट्रल विस्ता गांधीनगर' के डिजाइन को हासिल करने के बाद से विमल पटेल को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीब आने का अवसर मिला था। बताते हैं कि पूर्व राज्यसभा सांसद सुरेंद्र पटेल के माध्यम से विमल पटेल नरेंद्र मोदी के निकट पहुंचे। बीजेपी नेता सुरेंद्र पटेल किसी जमाने में अहमदाबाद डेवलपमेंट अथॉरिटी के चेयरमैन भी रह चुके थे।
क़िस्सा कोताह यह है कि दिल्ली में भी गांधीनगर जैसा सेंट्रल विस्ता बने ऐसी परिकल्पना के आधार पर एक आलेख आर्किटेक्ट विमल पटेल ने 2016 में इंडियन एक्सप्रेस में लिखा था। उस आलेख का केंद्रीय बिंदु यह था कि दिल्ली में जो औपनिवेशिक विरासत है, उसे बदलना होगा। तो क्या यह सबकुछ एक योजनाबद्ध तरीके से पहले से तय था? कई बार तो लगता है गोया, देश में भवन निर्माण के वास्ते सारे प्रतिभावान वास्तुकार गुजरात में ही बैठे हैं। अयोध्या में राम मंदिर को डिजाइन करने वाले को ही ले लीजिए। आर्किटेक्ट चंद्रकांत सोमपुरा अहमदाबाद के ही तो हैं।
एक बात अवश्य हैरान करती है, वह यह कि यदि राष्ट्रपति भवन भूकंपरोधी नहीं है, फिर देश के प्रथम नागरिक के जान की चिंता क्यों नहीं की जा रही? फरवरी 2001 में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन महानिदेशक एन कृष्णमूर्ति ने स्वीकार किया था कि नार्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, संसद भवन, राष्ट्रपति भवन जैसी राष्ट्रीय महत्व की इमारतें भूकंपरोधी नहीं हैं। उन्हें आधुनिक तकनीक के जरिये दुरूस्त करने की आवश्यकता है। रायसीना पहाड़ी पर बना राष्ट्रपति भवन भारतीय स्थापत्य कला व वैभव का प्रतीक अवश्य है, मगर भारत मौसम विज्ञान विभाग ने भी उन दिनों उस स्थल के प्रकंपित रहने से आगाह किया था। राष्ट्रपति भवन के गुंबद में दरार पर बाकायदा रिपोर्ट भी आ चुकी है।
हम उस विषय पर नहीं आते कि अमेरिका में दो सौ साल पहले मात्र साढ़े सोलह एकड़ पर बनी संसद जगह के हिसाब से कम क्यों नहीं पड़ रही है? लगभग उतना ही पुराना ब्रिटिश संसद भवन पैलेस ऑफ वेस्टमिन्सटर आठ एकड़ में बना है। प्राचीन संसद भवन हम आइसलैंड, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, साउथ अफ्रीका, ट्यूनिशिया, अर्जेटीना, बहामास, बारबाडोस, बोलिविया, कनाडा, कोलंबिया, क्यूबा, पेरू, बेनेजुएला जैसे देशों में देख सकते हैं। जर्मनी, लिश्चेंटाइन, लिथुआनिया, बोस्निया हर्जेगोबिना, एंडोरा के नये संसद भवन अपवाद हो सकते हैं, मगर लगभग सारा यूरोप पुराने संसद भवनों में अपनी राजनीतिक विरासत को संजोये हुए है।
फिर पीएम मोदी का इरादा क्या है? केवल नया संसद भवन बनवाकर गौरवान्वित होना, या फिर पीएम मोदी संसद में सदस्य संख्या बढ़ाने की मंशा रखते हैं? केंद्रीय सवाल यही है। सवा 18 एकड़ में बना चीनी संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में 2980 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। 25 पद अभी ख़ाली है। इनके अलावा स्टैंडिंग कमेटी के 175 सदस्य भी उसी सदन में बैठते हैं। 1954 में इसी सदन में 1226 डेपुटिज (सांसद) बैठते थे। कालांतर में यह संख्या देश की आबादी के अनुरूप बढ़ती गई।
तो क्या पीएम मोदी एक पार्टी की तानाशाही वाली चीनी व्यवस्था चाहते हैं? 2980 की संख्या वाली चीनी संसद, 'नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी)' में 476 निर्दलीय सदस्य हैं और यूनाइटेड फ्रं ट कहे जाने वाले प्रतिपक्ष के 380 सभासद। चिउशान सोसाइटी, चाइना डेमोक्रेटिक लीग, चाइना नेशनल डेमोक्रेटिक कंस्ट्रक्शन एसोसिएशन, चाइनीज पीजेंट्स एंड वर्कर्स डेमोक्रेटिक पार्टी, रेवोल्यूशनरी कमेटी ऑफ द चाइनीज क्वोमिथांग, चाइना शी कोंग पार्टी, थाइवान डेमोक्रेटिक सेल्फ गवर्नमेंट लीग ये सभी पार्टियां चीनी संसद में विपक्ष का रोल अदा करती हैं। मगर, सर्वसत्तावादी शी चिनपिंग के आगे चीनी विपक्ष को बिना दांत का ही मानिये। इनकी आवाज चीनी संसद 'नेशनल पीपुल्स कांग्रेस' में कहीं गुम सी हो जाती है।
संसद में प्रतिनिधियों का बढ़ना समय की आवश्यकता समझिए। 1952 में देश का एक सांसद 4 लाख 32 हजार मतदाताओं की नुमाइंदगी करता था, आज तेलंगाना का मलकानगिरी संसदीय क्षेत्र उदाहरण है, जहां का सांसद लगभग 32 लाख मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। 59 हजार146 वर्ग किलोमीटर वाले लद्दाख से केवल एक सांसद चुना जाता है। ऐसे दृष्टांत सामने रखें तो बात समझ में आती है कि संसद में प्रतिनिधित्व देने के मामले में संतुलन का सर्वथा अभाव है।
16 दिसंबर 2019 को द्वितीय अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति व्याख्यान के अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि लोकसभा में सदस्य संख्या 543 से बढ़कर एक हजार होनी चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि पीएम मोदी दोनों सदनों में सदस्य संख्या बढ़ाने के प्रति गंभीर होने लगे हैं। सरकार ने नये संसद भवन में लोकसभा में सीट की व्यवस्था 888 और राज्यसभा में 384 किये जाने की घोषणा की है, यह मानीख़ेज संकेत हैं। मगर, ऐसे व्यापक बदलाव के वास्ते मोदी सरकार सर्वदलीय विमर्श क्यों नहीं करती? स्वयं पीएम मोदी ने भूमिपूजन के अवसर पर पारदर्शिता बरतने और संवाद करते रहने की बात की थी।"
पुष्प रंजन
( Pushp Ranjan )
No comments:
Post a Comment