सुप्रीम कोर्ट की वेकेशन बेंच द्वारा महाराष्ट्र शिवसेना के बागी मंत्री एकनाथ शिंदे की याचिका पर तत्काल सुनवाई के निर्णय पर यह सवाल उठा था कि, क्या यह याचिका इतनी महत्वपूर्ण थी कि, इसपर तत्काल सुनवाई की जाय ? जबकि तत्काल सुनवाई के लिए जो गाइडलाइन सुप्रीम कोर्ट ने तय की थी, उनमें यह याचिका नहीं आती है। फिर भी अदालत ने इसकी तत्काल सुनवाई की और एकनाथ शिंदे को राहत देते हुए, उनकी बर्खास्तगी की नोटिस पर 12 जुलाई तक का समय दे दिया। अब यह मामला विचाराधीन न्यायालय है।
जब इस पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की गई तो, यह तर्क सामने आया कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी आधी रात को आतंकवादियों के लिए खुल चुकी है और यह कोई नई बात नहीं है। यह बात बिल्कुल सही है कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी आधी रात को खुल चुकी है, पर क्यों और किन मामलो के लिए आधी रात को अदालत बैठी है, इसपर चर्चा करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट न्याय का अंतिम आश्रय है और सुप्रीम कोर्ट के ही एक पूर्व सीजेआई जस्टिस वाय.के. सब्बरवाल ने भी एक बार कहा था, ' हमारा फैसला न्यायपूर्ण है या नहीं इस पर विवाद हो सकता है, पर हमारा फैसला अंतिम है, इस पर कोई विवाद नहीं है।' यह इसलिए कहा गया था कि फैसला कोई भी हो, उसकी आलोचना और प्रशंसा के विंदु हर फैसले में मिल जाते हैं। देश का शीर्ष न्यायालय होने के कारण, सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह फरियादी को कम से कम अपनी बात कहने का मौका तो दे। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि,
'यह सजायाफ्ता व्यक्ति की उम्मीद की तरह है कि, क्या पता वह फिर फीनिक्स की तरह जी उठे।'
अब तक, सुप्रीम कोर्ट आधी रात को कुल चार बार खुली और अदालत लगाई गई है तथा उसने बेहद अहम मुकदमों की सुनवाई की है। पांच साल पहले, बॉम्बे ब्लास्ट मामले में मेमन को फांसी दिए जाने से कुछ घंटे पहले जुलाई 2015 में सुप्रीम कोर्ट में इसी तरह की घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हुई थी जिसे मिड नाइट हियरिंग यानी आधी रात की सुनवाई कहते हैं। जो मामले सुने गए, वे हैं,
1. निर्भया रेप केस के चारों दोषियों को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी जानी थी। लेकिन इसे टालने के लिए दोषियों के वकील एपी सिंह की तरफ से हर तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे थे। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एपी सिंह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और रात को ढाई बजे इस मामले पर सुनवाई हुई। हालांकि, करीब दो घंटे तक चली हलचल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी याचिका को खारिज कर दिया और दोषियों को फांसी पर लटका दिया गया।
यह भी उल्लेखनीय है कि, निर्भया कांड की सुनवाई में, पहली बार सुप्रीम कोर्ट की एक महिला न्यायाधीश, न्यायमूर्ति आर भानुमति ने शीर्ष अदालत की पीठ का नेतृत्व किया, जिसने 20 मार्च की सुबह इस मामले की सुनवाई की। दोषी पवन गुप्ता की याचिका पर न्यायमूर्ति भानुमति का एक पंक्ति का, याचिका बर्खास्तगी आदेश, अंतिम आदेश बन गया।
निर्भया कांड तीसरा मौत की सजा का मामला था जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने हाल के दिनों में 'आधी रात की सुनवाई' के लिए अपने दरवाजे खोले। इससे पहले दो मौके निठारी हत्याकांड और याकूब मेमन मामले में थे।
2. 1993 के मुंबई सीरियल बम धमाके के दोषी याकूब मेमन की याचिका को जब राष्ट्रपति की ओर से खारिज कर दिया गया था, तब 30 जुलाई 2015 की आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुला। वकील प्रशांत भूषण सहित कई अन्य वकीलों की तरफ से देर रात को फांसी टालने के लिए अपील की गई थी। तब जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन जजों की एक बेंच ने रात के तीन बजे इस मामले को सुना था। 30 जुलाई 2015 की रात को 3.20 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई थी, जो कि सुबह 4.57 तक चली थी। हालांकि, फांसी टालने की इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था और बाद में याकूब मेमन को फांसी दे दी गई।
इस मामले पर रिपोर्टिंग करते हुए एक अखबार के लिखा था,
"एक थकी हुई बेंच, जो कोर्ट फोर में इकट्ठी हुई, ने मेमन के वकीलों द्वारा दी गई दलीलों को सुना और भारत के तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने एक घंटे से भी अधिक समय तक बचाव पक्ष का जवाब दिया। बेंच ने आखिरकार मेमन द्वारा की गई उस याचिका को खारिज कर दिया।"
मेमन मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में, ऐसे मौत की सजा के मामलों को "फीनिक्स जैसे अनंत चरित्र" के रूप में उल्लेख किया था, जो मध्यरात्रि सुनवाई का औचित्य साबित करता हैं। अदालत ने आश्चर्य जताया था कि,
"क्या यह सजायाफ्ता व्यक्ति की उस उम्मीद से उपजा है, जो उसे आधी रात को भी, शीर्ष अदालत के समक्ष खींच लाई है कि, वह अपने जीवन के अंतिम घंटों में भी, जीवित रहने की इच्छा के लिए संघर्षरत है, और यह उम्मीद करते हुए कि उसका मामला "फ़ीनिक्स पक्षी की तरह जी उठेगा" और यहां तक कि "संभवतः वह इस उम्मीद को बरकरार रखता है कि उसमे जीवन की अदम्य इच्छा है।"
3. हालाँकि, 2014 में, फांसी के एक अन्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने, मध्यरात्रि की सुनवाई में, सुरिंदर कोली जो, निठारी हत्याकांड का फांसी की सजा प्राप्त अपराधी था को, कुछ राहत दे दी थी। मेरठ में फांसी दिए जाने से ठीक दो घंटे पहले शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई थी। शीर्ष अदालत ने इसमें हस्तक्षेप किया और उसकी फांसी को स्थगित कर दिया था। हालांकि बाद में फांसी की सजा बहाल रही।
4. फांसी के मामले से इतर राजनीतिक मसले को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट आधी रात को खुली थी। 2018 में कर्नाटक में जब राज्यपाल की तरफ से आधी रात को बीजेपी को सरकार बनाने का अवसर मिला था, तब कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। और 17 मई 2018 को रात 2 बजे सुनवाई शुरू हुई और सुबह करीब 5 बजे तक चली थी। हालांकि, अदालत ने बीएस येदियुरप्पा की शपथ रोकने से इनकार किया था।
(विजय शंकर सिंह)
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