Saturday, 15 January 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - दो (7)

ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्से मैकडोनाल्ड हिंदू, मुसलमान और सिखों की तरह दलितों के लिए भी अलग निर्वाचन-क्षेत्र के पक्ष में थे। भीमराव अम्बेडकर ने बाद में कहा कि नेपल्स से उन्होंने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी, और उनके कहने पर ही ऐसा किया गया। अम्बेडकर इकलौते ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें तीनों गोलमेज़ सम्मेलनों में बुलाया गया और उन्होंने भाग लिया। 

गांधी दूसरे गोलमेज़ सम्मेलन में शामिल हुए और इस दलित इलेक्टॉरेट का विरोध किया। उन्होंने यह भी प्रण लिया कि वह अपना जीवन दलितों के अधिकार पर लगा देंगे, लेकिन हिंदुओं से अलग नहीं होने देंगे। वह अब तक शूद्रों को अंत्यज या पंचमा लिखता थे, लेकिन 1931 से नरसी मेहता (पंद्रहवीं सदी के कवि) द्वारा प्रयुक्त शब्द ‘हरिजन’ प्रयोग करने लगे।

खैर, गांधी की बात अनसुनी कर ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने 16 अगस्त, 1932 को दलितों के लिए 71 आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की घोषणा कर दी। उन क्षेत्रों में सिर्फ़ दलित ही मत डालते और दलित ही चुने जाते। ऐसा प्रावधान मुसलमानों, एंग्लो-इंडियन और सिखों के लिए भी था।

9 सितंबर को गांधी ने प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड को चिट्ठी भेजी,

“आपके निर्णय ने मुझे आमरण अनशन के लिए मजबूर किया है। आप दलितों (depressed class) को हिन्दुओं से अलग कर एक ऐसा जहर बो रहे हैं, जो हिंदुओं का अंत कर देगा। आपके इस निर्णय से दलितों का कोई भला नहीं होगा। मुझे दलितों के अधिक प्रतिनिधित्व से कोई समस्या नहीं, बल्कि प्रसन्नता है। मुझे समस्या उन्हें हिंदुओं से अलग रखने से है। क्या आपको नहीं लगता कि उन्हें अलग गिन कर आप उन समाज सुधारकों के प्रयासों को खत्म कर रहे हैं, जो दलितों को ऊपर उठाने के लिए किए जा रहे हैं?”

दो दिन बाद यह चिट्ठी सार्वजनिक कर दी गयी कि गांधी आमरण अनशन पर बैठने वाले हैं। गांधी अब 63 वर्ष के हो चुके थे, और अब वह शक्ति नहीं थी जितनी दस वर्ष पहले थी जब उन्होंने तीन हफ्ते का अनशन किया था। उस समय तो लग रहा था कि अगर अनशन पर बैठे, तो तीन-चार दिन में उनकी हालत गंभीर हो जाएगी। 

उस समय वह यरवदा जेल में थे, और वहाँ से कहीं भी ले जाए जाने से उन्होंने मना कर दिया। वहीं एक आम के पेड़ के नीचे उनकी खाट लगायी गयी। साथ में कुछ कुर्सियाँ, किताबों की मेज, उनके लिखने के लिए अलग मेज, और एक स्टूल पर पानी, सोडा, नमक आदि रख दिए गए। यह उनका अनशन-किट लगभग पहले से तैयार ही रहता था।

वल्लभभाई पटेल उनके साथ ही थे। उन्होंने पूछा, “आप व्रत पर क्यों बैठ रहे हैं? दलित इलेक्टॉरेट से आखिर क्या हो जाएगा?”

गांधी ने कहा, “हिंदू पहले विभाजित होंगे, फिर आपस में लड़ कर खून बहाएँगे।”

उन्होंने बीस सितंबर की सुबह की तारीख तय की थी, और उसके ठीक एक दिन पूर्व बंबई में अंबेडकर के साथ कांग्रेस नेताओं की मीटिंग चल रही थी। अम्बेडकर टस-से-मस होने को तैयार नहीं थे। उन्हें पेरियार का एक टेलीग्राम मिला था, जो पत्रिका ‘कुडी आरसू’ में छपा,

“दलितों को अगर आम चुनाव में प्रतिनिधित्व की बात हो, तो यह निरर्थक है। उस परिस्थिति में सवर्णों के हाथ में ही वोट होंगे, और वह किसी कठपुतली दलित को नेता बना देंगे। दलितों का चुनाव दलितों द्वारा ही होना चाहिए।

अगर गांधी की जान बचाने के लिए निर्णय वापस लिया जाता है, तो यह ग़लत होगा। एक व्यक्ति की जान के लिए हम सात करोड़ जानें कुर्बान नहीं कर सकते।”

व्रत के पहले दिन बंबई से तमाम कांग्रेसी नेता गांधी से मिलने आये और अम्बेडकर से समझौते की बातें कही। अम्बेडकर ने इस सुझाव पर विचार किया था कि दो चरणों में चुनाव हों, पहले चरण में दलितों द्वारा दलित नेता का पैनल चुना जाए। दूसरे चरण में आम चुनाव द्वारा उस पैनल में से एक चुना जाए। गांधी ने कहा कि तकनीकी बातें तो उन्हें लिख कर दे दी जाए, वह पढ़ लेंगे, लेकिन वह एक बार अम्बेडकर से मिलना चाहते हैं।

अम्बेडकर के आने से ठीक पहले गांधी से मिलने दो लोग आए। एक थे तमिल दलित नेता एम. सी. राजा, जो गोलमेज़ सम्मेलन में अम्बेडकर के साथ थे। उन्होंने हिंदू महासभा के अध्यक्ष बालकृष्ण मूंजे के साथ एक समझौता किया था, जिसमें दलितों को हिंदू क्षेत्रों में अधिक सीटें देने की बात थी। (बालकृष्ण मुंजे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक हेडगेवार और महासभा के अगले अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर के राजनैतिक गुरु-तुल्य थे)

राजा ने यह ‘राजा-मुंजे पैक्ट’ गांधी को दिखाया।

दूसरे व्यक्ति थे बालू पलवणकर, जो हिंदुओं की क्रिकेट टीम के खिलाड़ी थे, और चमार जाति से थे। उन्होंने गांधी को कहा, “आपका जीवन हम दलितों के लिए किसी भी संविधान से बड़ी सुरक्षा है।” (बाद में इन्हीं बालू पलवणकर को गांधी ने अम्बेडकर के ख़िलाफ़ चुनाव में खड़ा किया, और उन्होंने ठीक-ठाक टक्कर दी। उनके भाई विट्ठल हिंदू टीम के कप्तान भी बने।)

इन दोनों दलित प्रतिनिधियों के साथ गांधी की बात-चीत नेट-प्रैक्टिस जैसी थी। उसके बाद जब अम्बेडकर आए, तो असल मैच शुरु हुआ। 

अंबेडकर ने बैठते ही पहला वाक्य कहा, “आप यह अन्याय कर रहे हैं”

गांधी ने मुस्कुरा कर कहा, “यह अन्याय करना मेरे ही हिस्से आता है। मैं अपनी आदत से विवश हूँ।”
(क्रमश:)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास - दो (6)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/01/6_14.html 
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