Tuesday, 18 August 2015

पाक प्रायोजित आतंकवाद - एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन - 7 - पश्चिमी मोर्चे पर लोंगोवाल की लड़ाई / विजय शंकर सिंह



16 दिसंबर 71 को पाक सेना के घुटने टेकने के बाद , यह युद्ध औपचारिक रूप से समाप्त हो गया था. युद्ध का मुख्य केंद्र पूर्वी भाग था, इस लिए सबकी निगाहें बांग्ल देश की और ही लगीं रहीं. पाकिस्तान को यह अनुमान हो चला था, वह पूर्वी बंगाल में बहुत कुछ सफलता नहीं हासिल कर पायेगा. दर असल उसकी रणनीति क सारा दारोमदार अमेरिकी  और चीनी सहायता पर निर्भर था. लेकिन रूस के खुल कर भारत के साथ आ जाने के कारण , चीन तो शांत बैठ गया और अमेरिका पाकिस्तान  को केवल संसाधन ही उपलब्ध कराता रहा।  1971 मे पाक के राष्ट्रपति याहिया खान मंजे हुए सैनिक तो थे पर वह राजनीतिज्ञ नहीं थे. वह युद्ध की योजना बना सकते थे पर राजनीति और कूटनीति के कुटिल मुस्कान के साथ अपना हित नहीं साध सकते थे। 

भारतीय सेना का ध्यान सबसे अधिक पूर्वी मोर्चे पर था। पाकिस्तान सेना ने जो बर्बरता , बांग्ला देश में फ़ैलायी थी , उस के कारण पूर्वी मोर्चे पर स्थिति बहुत ही विफोटक थी। पर पाकिस्तान चाहता था कि वह पश्चिमी मोर्चे पर दबाव बढ़ा कर भारत का अधिक से अधिक भूभाग अपने कब्ज़े में कर ले , ताकि युद्धोपरांत होने वाली शान्ति वार्ता में पूर्वी मोर्चे पर होने वाले नुकसान के एवज़ में सौदेबाज़ी कर सके।  मुक्ति बाहिनी का जैसे जैसे प्रभाव बांगला देश में बढ़  रहा था , वैसे वैसे पाकिस्तान समझ गया था कि अब युद्ध अवश्यम्भावी है। याह्या खान ने अयूब खान की पुरानी नीति पर काम करना शुरू किया वह नीति थी , भारत को पूर्वी पाकिस्तान में ही उलझा  कर  हरा दिया जाय। 



इसी नीति  पर चल कर पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 71 को भारत पर आक्रमण कर दिया। पश्चिमी मोर्चे पर जो सबसे बड़ी और उल्लेखनीय लड़ाई हुयी थी, वह लड़ाई थी लोंगोवाल की लड़ाई। यह लड़ाई 4 दिसंबर से 7 दिसंबर तक लड़ी गयी थी। लोंगोवाल , राजस्थान  के रेगिस्तानी इलाक़े में पड़ता है। 4  दिसंबर को पंजाब रेजिमेंट के 23 वीं वाहिनी की A कंपनी उस मोर्चे पर थी। युद्ध की शुरुआत ही हुयी थी। उस के कंपनी कमांडर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी थे। मेजर चांदपुरी ने अपने सारे सैनिकों को किसी भी आसन्न स्थिति से निपटने के लिए सतर्क कर दिया था। उन्होंने एक रक्षात्मक घेरा बना लिया था। संयोग से उनकी मदद के लिए वही पास ही वायु सेना का भी एक स्क्वैड्रन था। 

याह्या खान का विचार था कि भारत से पाकिस्तान का यह युद्ध लम्बी अवधि  तक नहीं चल पायेगा। इसका कारण अंतर्राष्ट्रीय दबाव था। अब चूंकि पूर्वी पाकिस्तान को बचाये रखना  कठिन हो गया था , इसलिए वह जल्दी से पहले हमला कर के पश्चिमी सेकटर का अधिक से अधिक भूभाग अपने कब्ज़े में कर लेना चाहते थे। इसी रणनीति पर जनरल टिक्का खान ने अपनी पश्चिम सेकटर में आक्रमण की योजना बनायी थी । योजना यह थी कि 3 दिसंबर की रात में पाक वायु सेना अचानक हमला कर दे और उसी के कवरिंग फायर की आड़ में राजस्थान सीमा में अधिक से अधिक दूर तक घुस जाया जाय। राजस्थान ही क्यों चुना गया ? इसका भी एक कारण था। पाकिस्तान के साथ पश्चिमी सेक्टर में लगने वाले राज्य कश्मीर और पंजाब में बहुत अधिक सतर्कता रहती है। आबादी और नगर भी पंजाब और कश्मीर के सीमा से लगे भारतीय भूभाग में अधिक  हैं। इसके विपरीत राजस्थान सीमा पर इतनी सेना भी नहीं रहती है। रेगिस्तानी इलाक़ा होने के कारण आबादी का घनत्व बहुत ही कम है।  नागरिक आबादी कम होने से नागरिक प्रतिरोध भी कम होने की सम्भावना थी। साथ ही नागरिक आबादी का नुकसान भी कम ही होता। 

सबसे बड़ा कारण था , लोंगोवाल के ठीक पाक सीमा पार पर, सीमा से सटा हुआ एक पाकिस्तानी शहर, रहीम यार खान। यह शहर पंजाब और सिंध को जोड़ने वाली रेलवे लाइन और राजमार्ग पर पड़ता है। अगर इस रेल और सड़क मार्ग को कब्ज़े में ले लिया जाय तो पंजाब का सम्बन्ध सिंध से बाधित हो जाएगा और कोई भी आपूर्ति कराची से उत्तरी पाकिस्तान के मोर्चे  पर भेजना कठिन हो जाता। भारतीय सेना का भी ध्यान इस मोर्चे पर बहुत अधिक नहीं था। आज भी जितनी घुसपैठ होती है वह कश्मीर और पंजाब से ही होती है। राजस्थान की सीमा अपेक्षाकृत शांत रहती है। भारत ने भी पाक आक्रमण की स्थिति में "सरकारी ताला" और "शकरगढ़" सेक्टर में हमला कर घुसने की योजना बनायी थी। भारत के लिए कश्मीर महत्वपूर्ण था क्यों कि पाकिस्तान का दबाव भी वहाँ बहुत था। पाकिस्तान ने पंजाब सेक्टर में जो स्थान हमले के लिए चुना था वह किशनगढ़ क्षेत्र में था। पंजाब के बारे में पाक सेना को जानकारी और अभिसूचनाएं भी बहुत थीं। पाक सेना की खुफिया शाखा ने पंजाब सेक्टर में अपने श्रोतों का बहुत ही सघन जाल फैला रहा था। लोंगोवाल मूलतः एक बी एस एफ पोस्ट थी। वहाँ घुसपैठ की घटनाएं भी कम ही होतीं थीं। इस लिए भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट की केवल एक कंपनी वहाँ थी। पाकिस्तान की नज़र में आक्रमण कर के अधिक से अधिक भारतीय भूभाग कब्ज़े में लेने के लिए यह सबसे उपयुक्त मोर्चा था।  



पाकिस्तान की योजना थी कि वह श्री गंगानगर जिले की सीमा पर हमला करे। उसी के पास सीमा पर उसका आर्मर्ड डिवीज़न था। क्यों कि उस के सामने  सबसे बड़ी चुनौती , रहीम यार खान शहर से गुजरने वाली, उत्तर दक्षिण के रेल और सड़क संपर्क मार्ग  को बचाना था। इस प्रकार वायु सेना सहित हमला करने की योजना बनाई गयी। इस हमले में दो पैदल ब्रिगेड और दो आर्मर्ड रेजीमेंट्स लगाई गयीं। इन  ब्रिगेड्स को मिला कर  एक अस्थायी डिवीज़न 18 , गठित की गयी। लोंगोवाल पर हमला कर उसे कब्ज़े  लेने का जिम्मा इसी 18 डिवीजन को  दिया गया। लोंगोवाल के बाद रामगढ़ और फिर अग्रिम योजना उनकी इन को जीतने के बाद जैसलमेर पर कब्ज़े की थी। लेकिन लोंगोवाल पर कब्ज़ा  करना और इसी क्रम में रामगढ़ जीतते हुए जैसलमेर तक पहुंचने की योजना में  एक बहुत बड़ी खामी  थी। क्यों कि  यह पूरा इलाक़ा रेतीला है और कोई भी टैंक या आर्मर्ड वाहन उस पर आसानी से गुज़र नहीं  सकता है। यह क्षेत्र , निर्जन क्षेत्र तो है पर सुगम बिलकुल भी नहीं। आक्रमण करने की योजना भी रात में ही बनी थी। पाक सेना ने केवल एक विंदु पर ध्यान दिया था , कि जैसलमेर तक कोई बड़ी आबादी नहीं है अतः प्रतिरोध नहीं होगा। लेकिन उन्होंने ज़मीनी सच का अध्ययन नहीं किया था। परिणतः 71 के युद्ध में यह पाकिस्तान के सेना की कब्रगाह बन गया। नर्म रेत के मैदानों में उनके भारी वाहन और टैंक धसने  लगे और आगे नहीं बढ़ पाये। 



जैसा कि पहले आप पढ़ चुके हैं यहाँ मेजर के एस चांदपुरी के नेतृत्व में 23 वीं बटालियन , पंजाब रेजिमेंट की एक कंपनी थी। इस  कंपनी का मुख्यालय , लोंगोवाल के पास रेत के एक बड़े और ऊंचे टीले पर बनाया गया था , जिसके चारों और रेत का मैदान था। आसानी से वहाँ नहीं पहुंचा जा सकता था। इसके अतिरिक्त उस के चारों तरफ कंटीले तारों का घेरा भी था। इसके अतिरिक्त पूरी बटालियन वहाँ से उत्तर पूर्व में 17 किलोमीटर दूर, साधेवाला में  थी। चांदपुरी के पास एम एम जी , और एल 16 . 81 एम एम मोर्टार  एक गन माउंटेड जीप थी।   इसके अतिरिक्त उनके पास 4 ऊंटों का बी एस एफ का एक दस्ता भी था। लोंगोवाल मोर्चे पर कोई आर्मर्ड दस्ता , टैंक या आर्मर्ड वाहन नहीं  था। लेकिन ज़रुरत पड़ने पर उन्हें 170 फील्ड रेजिमेंट ( वीर राजपूत ) और 168 फील्ड रेजिमेंट की सहायता  जो आर्मर्ड थीं से दी जा सकती थी। जैसे ही 3 दिसंबर की  रात , पाक वायु सेना ने भारत पर हमला कर के युद्ध की शुरूआत  की , वैसे ही मेजर चांदपुरी ने लेफ्टिनेंट धरम वीर के नेतृत्व में 20 जवानों की एक टुकड़ी , सीमा स्तम्भ संख्या ( Boundry Piller ) 638 , अंतराष्ट्रीय सीमा पर भेज दिया।   

4 दिसंबर की रात को लेफ्टिनेंट वीर सिंह जो सीमा पर गश्त में थे , तो उनको भारी संख्या में टैंक और अन्य भारी वाहनों के बढ़ने की आवाज़ पाकिस्तान की तरफ से सुनायी। भारतीय वायु सेना  के विमान जो आकाश में  रेकी  पर थे , ने भी इसकी पुष्टि कि , भारी संख्या में पाक का  दस्ता, भारतीय   सीमा की और आ रहा है। यह पूरा दस्ता 20 किलोमीटर  क्षेत्र में फ़ैल कर बढ़ता चला आ रहा था। यह सूचना मेजर  आत्मा सिंह ने लोंगोवाल पोस्ट पर दी। आत्मा सिंह पाक सेना की गतिविधियों पर नज़र रखे हुए थे। इस सूचना पर मेजर चांदपुरी ने , लेफ्टिनेंट वीर सिंह को ,  सेना की गतिविधियों पर नज़र रखने की हिदायत दे कर , बटालियन हेड क्वार्टर को अतिरिक्त  आर्मर्ड वाहन तथा और साज़ ओ  भेजने के लिए कहा।  समय बहुत कम था , इस लिए बटालियन हेड क्वार्टर ने उनसे , या तो हमले का प्रतिरोध  , अतिरिक्त  बल पहुँचने तक , करने या वापस पीछे  राम गढ़ तक हटने के लिए कहा। लेकिन चांदपुरी के पास कोई वाहन नहीं था , अतः पीछे हटना सम्भव नहीं था। क्यों कि पैदल वापस होने में  खतरा था। अतः चांदपुरी ने रुक  मुक़ाबला करने का निश्चय  किया। पाकिस्तानी सेना ने आधी रात को 12 . 30 पर हमला कर दिया। पहले ही हमले में पाक सेना के गोलीबारी में बी एस एफ 10 ऊंटों में से 5 ऊँट जो सीमा गश्त के लिए सीमा पर ही थे , मारे गए।  उधर पाक टैंक  तेज़ी से बढे चले थे और उनको उड़ाने और रोकने के लिए माइंस बिछाने का भी समय  भारतीय सेना के पास नहीं था , अतः उन्हें और नज़दीक  आने  दिया गया । जब वे 15 से तीस मीटर नज़दीक आ गए तो उस पर मोर्टार और गन से फायर किया गया  जिस से सीधे निशाने पर आये 2 टैंक क्षतिग्रस्त हो गए पर एक भारतीय सैनिक जो जीप  था , वह भी शहीद हो गया। लोंगोवाल पोस्ट ऊंचाई पर थी , और टैंक नीचे थे। इस लिए इस भौगोलिक स्थिति का लाभ भारतीय सेना को बहुत मिला। पहले हमले के बाद , फिर तेज़ी से हमला किया गया तो , पाकिस्तान के 12 टैंक या तो नष्ट  या क्षतिग्रस्त  हो गए। इस नुकसान के बाद , पाक सेना का बढ़ना अचानक रुक गया। इस हमले में पाक सेना के सुरक्षित तेल भांडार जो वह , जैसलमेर पहुँचने की उम्मीद में ले कर आये थे , में आग लग गयी , जिस से वहाँ इतना प्रकाश हो गया कि , चांदपुरी के जवानों को उस प्रकाश में व्यवस्थित होने और संगठित होने का अवसर मिल गया। पाक सेना को अंदेशा था कि आगे जगह जगह माइन्स लगी हुयी होंगी। लेकिन आग और उस से उठते धुएं के गुबार ने 2 घंटे के लिए , एंटी माइंस डिटेक्शन टीम को भी रोक दिया। नष्ट हुए टैंक और उनका सुरक्षित ईंधन जलता रहा। दो घंटे बाद जब धुंआ कम हुआ तो पाक टैंक आगे बढे। पाकिस्तानी  सैपर्स ने माइंस की खोज का काम शुरू किया। सुबह होने के ठीक पहले पाक सेना ने टैंकों के साथ चौकी के दूसरे तरफ से हमला किया तो वहाँ के नरम रेत में उनकी गति भी कम हो गयी और वह धंसने लगे। इस दौरान मेजर चांदपुरी , ने रुक रुक कर फायरिंग जारी रखी। हालांकि , पाक सेना की जन शक्ति , भारतीय सेना की जन शक्ति से बहुत अधिक थी और साधन भी उनके पास भारत की तुलना में अधिक थे। पर उस खुले और रेतीले मैदान और चांदनी रात में वह आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। पूरी भारतीय टुकड़ी ने रक्षात्मक मोर्चा ही बनाये रखा ,उनका उद्देश्य , पाक सेना को सुबह होने तक किसी भी तरह रोके रखना था। इस से पाक सेना के कमांडर भी  हतोत्साहित  हो रहे थे।  सुबह हो गयी , पर  तब तक  पाक सेना, लोंगोवाल पोस्ट पर कब्ज़ा नहीं कर सकी।



 सुबह होते ही भारतीय वायु सेना ने उड़ान  भरी और मोर्चा संभाल लिया। उनके एच एफ -24 मारुत विमान  पर रात में देखने वाला उपकरण नहीं था। इस लिए रात  बीतने का बेसब्री से इंतज़ार किया गया।  जैसे जैसे सूर्य  निकलता गया भारतीय  वायु सेना का का प्रहार बढ़ता गया। पाक वायु सेना इस मोर्चे पर थी भी नहीं , कि वह  इस हवाई हमले का प्रतिरोध कर सके। पाक ने  जितनी बड़ी सेना भेजी थी , उस के अनुसार वह जैसलमेर तक आसानी से पहुँच सकते थे। पर उन्हें ज़मीनी स्थिति का अंदाज़ा नहीं  था। और उन्होंने इस सेक्टर को आसान सेक्टर समझ कर भारत को ऊंघते हुए पकड़ना चाहा था , पर यह उनके लिए बहुत ही आत्मघाती सिद्ध हुआ। वायु सेना की यह बड़ी कामयाबी थी। उन्होंने इसे turkey shoot का नाम दिया था। कुल 22 पाक टैंक, वायु सेना ने नष्ट कर दिया और 12 टैंक ज़मीन पर थल सेना ने बर्बाद कर दिए। इसके अतिरिक्त 100 भारी वाहन  और भारी संख्या  गोला बारूद भी पाकिस्तान का नष्ट कर  दिया गया।

लोंगोवाल की लड़ाई में , पाकिस्तानी सेना का  बहुत नुकसान हुआ, जब कि भारत की कोई विशेष क्षति नहीं  हुयी। भारतीय सेना  सुरक्षित  आड वाली पोस्ट पर थी ,  उन्होंने बड़ी सी सैन्य कुशलता  साथ ,  पाक का सामना किया था , और पाकिस्तानी सैनिक खुले मैदान  जिसके चारो ओर रेतीला  मरू था , के कारण  वे ज़मीनी हमले में लक्ष्य बने और  हवाई हमले में तो तहस नहस ही हो  गए। भारत  के  दो जवान शहीद हुए जब कि पाक के 200 सैनिक मारे  गए। 34 टैंक और 500 छोटे बड़े वाहन या तो नष्ट हो गए या निष्क्रिय हो गए। पाकिस्तान ने   जांच के लिए जो न्यायिक आयोग गठित किया था ने , पाक सेना की 18 वीं डिवीज़न के कमांडर , मेजर जनरल मुस्तफा को युद्ध में लापरवाही बरतने का दोषी पाया था। और उन पर मुक़दमा चला था। वह सेना से हटा दिए गए।

भारतीय सेना को  एक गौरव गौरव पूर्ण विजय तो अवश्य प्राप्त हुयी , पर यह  एक प्रकार से  अभिसूचना तंत्र की विफलता भी थी। इतनी बड़ी संख्या में पाक सेना कैसे सीमा पर एकत्र हो गयी , और उसकी कोई अग्रिम अभिसूचना भी  नहीं मिल पायी। लोंगोवाल चौकी पर भी , पर्याप्त  संख्या में ऐसे संकट से निपटने के लिए आवश्यक गोला बारूद नहीं था। अंत में इस लड़ाई में केवल बचाव ही किया गया। उन्हें ( पाक सेना को )  इस लिए उनकी सीमा  जा कर इस लिए  खदेड़ा नहीं जा सका क्यों कि,  सुबह तक अतिरिक्त सैन्य बल नहीं भेजा जा सका था। हालांकि वायु सेना ने अत्यंत प्रभावी हमला किया जिस से उनके इतने टैंक नष्ट हो गए। द्वितीय विश्व युद्ध  के बाद , एक   मोर्चे पर ,किसी भी सेना की इतनी महती क्षति हुयी हो , यह पहला उदाहरण है।

पाक सेना ने भी लोंगोवाल चौकी के रक्षात्मक क्षमता का मूल्यांकन सही नहीं किया था। दूसरे उन्होंने , यह हमला बिना पाक वायु सेना के सहायता और कवर के किया था। पाक वायु सेना के रक्षा कवर न देने के कारण भारतीय वायु सेना को , सुबह के हमले में कोई प्रतिरोध नहीं झेलना पड़ा। और वायु सेना ने निर्णायक हमला कर दो डिवीज़न पाक सेना के टैंक को नष्ट कर दिया। पाक सेना को उम्मीद भी नहीं थी कि भारतीय वायु सेना इतनी जोरदारी से हमला करेगी। हालांकि उन्होंने इसी कारण  कश्मीर और पंजाब के शहरों पर पहले ही सघन हवाई हमला  दिया था। कुछ सैन्य विशेषज्ञों की राय है कि शर्मन टैंक,  और टी -59 चीनी टैंक , रेतीली धरती पर पूरे गति के साथ नहीं चल पाये। कुछ के तो इंजन भी गर्म हो कर निष्क्रिय हो गए।  खुले में  होने के कारण  वे वायु सेना के लिए आसान लक्ष्य भी बन गए। लोंगोवाल पर अधिकार कर लेने के बाद , रामगढ़ और  फिर, जैसलमेर तक पहुँचने की पाक सेना की योजना अच्छी तो थी, पर  योजना पर अमल करते समय , ज़मीनी स्थिति और भारतीय सेना को कम कर के आंका गया था।

मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को अदम्य साहस और वीरता के लिए सेना का दूसरा सर्वोच्च वीरता सम्मान , महावीर चक्र प्रदान किया गया। ब्रिटिश समाचार माध्यमों ने इस युद्ध की भूरि भूरि सराहना की। सैन्य विशेषज्ञ जेम्स हंटर ने इस युद्ध की तुलना अपने लेख ' टेकिंग ऑन  द आर्मी ऑफ़ लोंगोवाला ' में ' थर्मोपायले के युद्ध ' से किया था। उन्होंने इस लड़ाई को 1971 के युद्ध की  निर्णायक जीत बताया था। युद्ध के समाप्ति के कुछ सप्ताह के बाद ब्रिटेन के चीफ ऑफ़ द इम्पीरियल जनरल स्टाफ , फील्ड मार्शल आर एम कार्वर ने लोंगोवाल के युद्ध क्षेत्र का निरीक्षण किया और मेजर चांदपुरी से इसका विवरण सुना। उन्होंने ब्रिटिश रक्षा एकेडमी के लिए इस युद्ध का अध्ययन भी किया। 

इस युद्ध पर फिल्मकार जे पी दत्ता ने  1997 में एक प्रसिद्द फिल्म , ' बॉर्डर ' बनायी।  मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की भूमिका , सन्नी देओल , विंग कमांडर एम एस बावा की भूमिका , जैकी श्रॉफ ने ,कैप्टेन भैरव सिंह राजपूत की भूमिका  शेट्टी ने , लेफ्टिनेंट धरम वीर की भूमिका अक्षय खन्ना ने , निभायी। पर इस फिल्म की आलोचना भी सेना ने की। क्यों कि इस फिल्म में ,लोंगोवाल पोस्ट पर  भारतीय सेना को अत्यंत विचलित स्थिति में दिखाया गया है। कुछ आलोचक इस युद्ध को भारतीय सेना की सैन्य कुशलता नहीं बल्कि पाक सेना की विफलता भी  मानते हैं.     
- vss
( आगे अभी और है ........ युद्ध के बाद ) 


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