गंज अनेकार्थ शब्द है। यह शब्द पुरानी फ़ारसी भाषा मेदियन में व्युत्पन्न माना जाता है। इस शब्द का मुख्य प्रयोग राजकोष (खजाने) को रखने के स्थान के लिए हुआ है। इस शब्द की व्युत्पत्ति इससे भी प्राचीन होनी चाहिए, क्योंकि इसकी व्युत्पत्ति से उस काल की झलक दिखाई देती है जब गायें सबसे बड़ी सम्पदा होती थीं क्योंकि फ़ारसी और संस्कृत दोनों ही भाषाओं में यह गायों को रखने के स्थान के अर्थ में प्रयुक्त है। गायों को रखने के स्थान को संस्कृत भाषा में गोष्ठी भी कहते हैं। प्राचीन काल में इनके रखवाले प्रायः वहीं रह कर भोजन तथा वार्तालाप करते और अपना समय साथ बिताते, जिससे कालान्तर में गोष्ठी शब्द इस प्रकार की गतिविधियों के लिए रूढ हो गया है। संस्कृत भाषा में यह शब्द एक हजार वर्ष पुराना तो है ही। इस आधार पर हिन्दी भाषा में स्थान नामों के साथ लगने वाला गंज संस्कृत भाषा के गञ्ज से तत्सम रूप में लिया गया है।
कल्पद्रुम के अनुसार :
गञ्जः, पुं, (गजि भावे + घञ् ।) अवज्ञा । भाण्डागारम् । खनिः । इति हेमचन्द्रः ॥ गोष्ठागारम् । इति हारावली ॥ गोयालिघर इति भाषा ॥ भाण्डागारम् । दति मेदिनी ॥
गजि = ध्वनि, शोर, गर्जना, उन्मत्त होना, नशे अथवा भ्रान्ति का भाव।
अतः इस शब्द का प्रयोग उन स्थानों के बोध के लिए होता है जो शोर वाले होते हैं। यथा बर्तन-भाण्डे रखने का कक्ष, गोष्ठी-स्थल (मूल रूप से गौशाला किन्तु समयांतर में सार्वजनिक मिलन स्थल), हाट का स्थान, पामरगृह (जहाँ दुष्कृत्य करने वाले रहते हों), मदिरालय आदि।
यह भण्डार तथा खजाने के स्थान के अर्थ में भी प्रयोग किया जाता है, यथा :
तथा च मुष्यमाणेऽपि रात्रिष्वचलितार्गले ।
निर्मूषके राजगञ्जे दिनानि कतिचिद्भयात् ।।
— कथासरित्सागरः/लम्बकः ७/तरङ्गः ९ (७.९.३०)
गंज (گنج) शब्द फ़ारसी भाषा में भी है, तथा इसका अर्थ खजाने, भण्डार कक्ष अथवा अनाज रखने का स्थान है। खजांची को फ़ारसी में गंजूर (گنجور) भी कहते हैं। इस शब्द की व्युत्पत्ति पुरानी मेदियन भाषा से मानी जाती है तथा उससे यह शब्द संस्कृत भाषा में आया यह मानते हैं। पुरानी मेदियन भाषा से यह शब्द पार्थियन के 𐫃𐫗𐫉 (गंज़) तथा 𐫃𐫉𐫗 (गज़्न) के रूप में बदल गया। खजाने के अर्थ में प्रयुक्त इस शब्द का प्रसार अनेक भाषाओं में हुआ है। यथा :
आर्मेनियन : գանձ — गंज
जॉर्जियाई : განძი — गंजी
हिब्रू : גְּנָזִים — गंजिम
मानिकाएन : 𐫃𐫗𐫉 — गंज
कूर्दी : گەنج — खेंच
ताजिक : ганҷ — गंज
ग्रीक : γάζα — गाजा
लैटिन : gaza — गाज़ा
अक्कादी : 𒋡𒀭𒍝 — कांज
आरामी : 𐡂𐡍𐡆𐡀 — गंजा
सीरियाक : ܓܙܐ — गज्जा, ܓܢܙܐ गंजाम
अरबी : كَنْز — कंज़
पुर्तगाली, स्पेनिश : alcanzia — अल्कंज़िआ
हंगारियन : kincs — किंज़
इससे यह प्रतीत होता है कि यह शब्द पहले मेद (अथवा माद) साम्राज्य के प्रसार के साथ तथा उसके उपरान्त प्राचीन व्यापारिक मार्ग के साथ मध्य एशिया से भारत तथा पश्चिमी एशिया में प्रसारित हुआ है। कथासरित्सागर ११वीं शताब्दी में लिखा गया है तथा इससे पूर्व यह शब्द संस्कृत विहङ्गम में नहीं मिलता है। कथासरित्सागर को पैशाची भाषा में गुणाढ्य द्वारा रचित बृहत्कथा से प्रेरित माना जाता है।
मेद साम्राज्य (ईसा-पूर्व आठवीं से छठी शताब्दी) का विस्तार प्राचीन भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों से मध्य तुर्की तक था। इसके उपरान्त आखमेनी साम्राज्य ने ईरानी नियन्त्रण को सम्पूर्ण मिश्र तथा यूनान के सीमान्त तक पहुँचाया। पैशाची प्राकृत भारत के इसी सीमान्त की भाषा थी। गज़नी नाम का स्थान इसी गंज के वर्णव्यत्यय (metathesis) से बनने के प्रमाण मेदियन भाषा में मिलते हैं।
आभार सहित-
https://qr.ae/pGx8M3
( विजय शंकर सिंह )
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