Tuesday, 2 November 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - दो (18)


    ( चित्र: रासपूतिन स्त्री अनुयायियों के साथ )

विश्व-युद्ध और क्रांति की पृष्ठभूमि में रासपूतिन की टाइमिंग एक रहस्य है। जब से रासपूतिन से ज़ार की पहली मुलाक़ात हुई, ज़ार की उल्टी गिनती शुरू हो गयी। क्या यह एक संयोग था? क्या वह कोई प्लांट किए गए व्यक्ति थे? 

ज़ार निकोलस के प्रधानमंत्री स्तोलिपिन एक काबिल प्रधानमंत्री थे, और ऐसा माना जाता है कि उनमें वह कुव्वत थी कि ज़ारशाही बचा लेते और रूस में सुधार भी ले आते। भाग्य से उन पर ज़ार का पूरा भरोसा था, और उनके सुझाए सुधारों को शामिल किया जा रहा था। स्तोलिपिन ने गुप्तचरों के सहयोग से क्रांतिकारियों को भी लगभग निपटा दिया था। अधिकांश क्रांतिकारी प्रवास में थे, या साइबेरिया में। 

1906 में जब उन्होंने पद संभाला, उसी समय रासपूतिन की भी राजमहल में इंट्री हुई। युवराज की बीमारी (हीमोफिलिया) को अपनी जादुई ताक़तों से उड़न-छू करने के कारण ज़ारीना का उनमें अगाध विश्वास जन्म ले रहा था। वह उन्हें ईश्वर का दूत समझती थी, और रासपूतिन के जीवनीकार यह मानते हैं कि उनके मध्य शारीरिक नहीं, आध्यात्मिक प्रेम संबंध ही थे। अन्यथा रासपूतिन एक सेक्स-गुरु रूप में ख्यात थे, और पीटर्सबर्ग की संभ्रांत महिलाओं को संभोग से ईश्वर-प्राप्ति का रास्ता बताते। राजमहल की परिचारिकाओं के साथ भी उनके संबंध बनने लगे।

प्रधानमंत्री स्तोलिपिन को इस आगंतुक पर पहले दिन से शक था। क्रांति के दौर में ज़ार और ज़ारीना के इतने क़रीब कोई अजनबी अगर आ जाए, तो यह शक वाजिब था। आखिर रासपूतिन स्वयं को मूलत: एक किसान ही कहते थे। साइबेरिया के गाँव में उन्होंने एक बड़ा बंगला बनवा लिया था। 

स्तोलिपिन का शक उस दिन बढ़ गया, जब अगस्त, 1906 में उनके महल को बम से उड़ा दिया गया। प्रधानमंत्री स्वयं बच गए, लेकिन उनकी बेटी के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हुए। नेटफ्लिक्स फ़िल्म ‘द लास्ट ज़ार’ में यहाँ एक सनसनीख़ेज़ दृश्य दिखाया गया है कि ज़ार ने रासपूतिन को उनकी बेटी का इलाज करने भेजा, और रासपूतिन को अश्लील हरकतें देखते प्रधानमंत्री ने देख लिया। हालाँकि जीवनी में सिर्फ़ यह बताया गया कि ज़ार ने रासपूतिन से इलाज का सुझाव दिया था। स्तोलिपिन के मन में शंका यह थी कि यह आदमी ज़ार और प्रधानमंत्री के घर घुस कर करना क्या चाहता है? उन्होंने अपने गुप्तचरों को काम पर लगाया कि पता करो, यह रासपूतिन है कौन। 

1908 में एक क्रांतिकारी महिला ने दो बड़े अधिकारियों को बम से उड़ा दिया। जब उसे पकड़ा गया, तो उसने अपना नाम ऐना रासपूतिना बताया। इस नाम की रुस में एक ही स्त्री ज्ञात थी- रासपूतिन की माँ! 

प्रधानमंत्री का शक बढ़ता जा रहा था, और उन्होंने रासपूतिन की पूरी फाइल तैयार कर ज़ार को दिखाया। उसमें लिखा था कि रासपूतिन शराबी, चोर और लड़कीबाज व्यक्ति है। वह ख्लिस्ती नामक ईसाई कल्ट से है, जहाँ स्त्रियाँ अपना स्तन काट कर ईश्वर को अर्पित करती हैं और संभोग से ही साधना होती है। 

यह सुन कर ज़ार ने कहा, “आपकी बातों पर मुझे भरोसा है। लेकिन, क्या मेरा कोई निजी जीवन नहीं? इसमें हस्तक्षेप क्यों किया जा रहा है?”

“क्षमा करें, लेकिन आपका निजी जीवन संभव ही नहीं। आप पूरे देश के प्रतिनिधि हैं, और आपका जीवन देश के हर नागरिक का आदर्श। आप ज़ार हैं!”

“मैं बस यह कहूँगा कि ज़ारीना जिस दौर से गुजर रही है, इस समय दस रासपूतिन भी आएँ तो मैं नहीं रोकूँगा”

दरअसल इस समय तक रूस को बताया ही नहीं गया था कि युवराज को हीमोफिलिया है। ऐसा बताते ही क्रांतिकारियों को ज़ार की कमजोरी का अहसास हो जाता। लेकिन, अब रासपूतिन पर रूस के धर्मगुरुओं की भी पैनी नज़र थी। आखिर रासपूतिन रूस के सबसे शक्तिशाली संत बनते जा रहे थे। 

1910 के मॉस्को गजट में एक खबर छपी- ‘आध्यात्मिक नौटंकीबाज़ रासपूतिन’। एक धर्मगुरु को ज़ारीना और रासपूतिन के मध्य लिखी चिट्ठियाँ मिल गयी थी। उन चिट्ठियों में ज़ारीना ने लिखा था कि वह उनकी प्रतीक्षा करती है, उनके आने के बाद उनका जीवन बदल गया। इसे प्रेम-पत्रों की तरह प्रचारित किया गया। प्रधानमंत्री ने रासपूतिन से तलब कर उन्हें राजमहल छोड़ देने कहा। रूस की महारानी का किसी ऐरे-गैरे संत से यूँ निकटता देश की छवि के लिए ठीक नहीं था।

रासपूतिन अपने गाँव तो लौटे, लेकिन कुछ ही महीनों बाद प्रधानमंत्री को एक हॉल में बम से उड़ा दिया गया। यह काम उनकी पुलिस के ही एक पूर्व गुप्तचर ने किया था। वह यहूदी धर्म का था, जिनके नरसंहार ज़ार निकोलस के समय चरम पर थे। मुमकिन है कि यह प्रतिशोध हो, लेकिन यह कयास भी लगते हैं कि उनको ज़ार द्वारा ही उड़वाया गया क्योंकि महारानी ऐसा चाहती थी। 

प्रधानमंत्री के खत्म होते ही रासपूतिन का कद बढ़ता चला गया। वह लेनिन के लिए भी एक ऐसे हथियार बने, जिसे दिखा कर जनता में ज़ार के लिए नफ़रत पैदा की जा सकती थी। एक अय्याश लफंगा संत, जो महारानी के बेडरूम तक पहुँच चुका है। ऐसी छवि का निर्माण क्रांति में बड़ी भूमिका निभाता है, जैसे फ़्रांसीसी क्रांति में रानी मारी अंत्वानेत की अय्याश छवि बनी और जनता भड़कती चली गयी। 

दूसरी तरफ़ 1912 से युद्ध की नेट-प्रैक्टिस शुरू हो गयी। जर्मनी, इंग्लैंड और रूस टकरा रहे थे यूरोप और मध्य-एशिया के जंक्शन पर। जहाँ दो नस्ल, दो संस्कृतियाँ, दो शक्तियाँ हमारे समय तक टकराती रही है। युद्ध शुरू हुआ बोस्निया-हर्ज़ेगोविना में! 
(क्रमश:) 

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास - दो (17)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/11/17.html 
#vss 

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