यहूदियों पर ठीकरा फोड़ना उन्नीसवीं सदी से एक पैटर्न के रूप में दिखता है। भले ही उनकी प्रत्यक्ष भूमिका न रही हो। मसलन ज़ार अलेक्सांद्र द्वितीय की हत्या में कई षडयंत्रकारी शामिल थे, जिसमें सिर्फ़ एक यहूदी था। लेकिन, इल्जाम लगा कि यही यहूदी सारे फ़साद की जड़ है। उसके बाद जो मॉब-लिंचिग शुरू हुई, वह ‘पोग्रोम’ कहलाया। इससे यह भी सिद्ध होता है कि क्रांतिकारियों ने रूसी समाज को बहुत अधिक नहीं बदला था। वे अब भी ज़ार की हत्या के लिए पूरे यहूदी समाज को मारने-काटने पर उतारू थे। यानी ऐसे कई लोग थे जो ज़ारशाही के समर्थक थे।
अलेक्सांद्र तृतीय साढ़े छह फुट लंबे, तगड़े ज़ार थे, जो रूस को पुन: महान बनाने के संकल्प लेकर आए थे। यह ‘लेट्स मेक रशिया ग्रेट अगेन’ एक ऐसा नारा था, जिसे हमने समकालीन राजनीति में बार-बार सुना है। ख़ास कर दक्षिणपंथी या राष्ट्रवादी नेता इसका खूब इस्तेमाल करते हैं। ज़ार ने कहा कि रूस को तीन चीजों की सख़्त जरूरत है- तानाशाही, ऑर्थोडॉक्स चर्च और राष्ट्रवाद। वह उदारवादी समाज-सुधार को ढकोसला मानते थे, और पूँजीवाद के समर्थक थे।
उन्होंने इसके लिए मीडिया का सहयोग लिया। मिखाइल कातकोव नामक एक राष्ट्रवादी पत्रकार ज्वलंत लेख लिखने लगे, जिसका थीम यही रहता कि ज़ारशाही के विरोधी देशद्रोही हैं। उनके अखबार के खरीददार गाँवों में खूब थे, जहाँ परंपरावादी मानसिकता थी, और शहर के पाश्चात्यीकरण को वे पसंद नहीं करते थे।
ज़ार ने एक और काम यह किया कि एक ‘सीक्रेट सर्विस’ बनायी, जिसका नाम था- ‘ओख्राना’। इसका काम था राजनैतिक विद्रोहियों को पकड़ना। इसे भविष्य की केजीबी का प्रोटोटाइप कहा जा सकता है। हालाँकि रूसी गुप्तचर पहले भी रहे थे, लेकिन उनका काम विदेश में जासूसी थी। अपने ही देश की जासूसी नयी चीज थी।
इनको गिरफ़्तार कर रखने के लिए उन्होंने दो कारागार बनवाए। एक मॉस्को का लेफोर्टोवो जेल बना, जो भविष्य में अधिक बदनाम हुआ। इसी तरह शिशेलबर्ग द्वीप पर स्थित एक किले को यातना-शिविर में तब्दील किया गया। यह काला पानी की सजा की तरह था।
क्रांतिकारी संगठन ‘पीपल्स विल’ अब भी मौजूद था, बम बना रहा था, लेकिन उनका जन-समर्थन घटता जा रहा था। वे देशद्रोही की तरह देखे जाने लगे थे। उन्हीं दिनों रूस में पहले मार्क्सवादी आये, जिन्हें रूसी मार्क्सवाद का पितामह कहा जाता है। उनका नाम था जॉर्जी प्लेखानोव। वह पहले एक भड़काऊ भाषण देने के कारण देश से निकाल दिए गए थे, लेकिन स्विट्ज़रलैंड से वह क्रांतिकारी गतिविधियाँ कर रहे थे।
1887 में सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय के कुछ विद्यार्थियों को पकड़ा गया। उन पर आरोप था कि वे बम बना कर ज़ार की हत्या की साजिश कर रहे थे। उनमें से चार लड़कों को शीशेलबर्ग द्वीप के जेल ले जाया गया। वहाँ उन्हें एक पेड़ से लटका कर फाँसी दे दी गयी। उनमें से एक जीव-विज्ञान का विद्यार्थी था अलेक्सांद्र उल्यानोव, जिसे उसका छोटा भाई अक्सर चिढ़ाता रहता था कि तुम कीड़े-मकोड़े की पढ़ाई कर क्या क्रांति करोगे? जब अलेक्सांद्र को फाँसी दी जा रही थी, उसका छोटा भाई व्लादीमीर उल्यानोव अपनी ज्यामिति की परीक्षा दे रहा था।
अब दुनिया व्लादिमीर को उसके अधिक लोकप्रिय नाम से पहचानती है- लेनिन!
(क्रमश:)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास - दो (7)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/7_22.html
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