इवान ‘द टेरिबल’ यूँ ही टेरिबल नहीं बन गए। उनको गद्दी तब मिली, जब उनकी उम्र सिर्फ़ चार वर्ष थी और पिता का देहांत हो गया। इतने बड़े देश को यह अबोध बालक क्या संभाल पाता? उनकी माँ ने पाँच साल संभाला, फिर उनकी भी मृत्यु हो गयी। बालक इवान ने संभवत: कुछ कुलीन मंत्रियों को उन्हें जहर देते देखा था। वह उसी वक्त उनसे चिढ़ गये। यह चिढ़ अधिक बढ़ गयी, जब उन्हें कई बार भोजन नहीं दिया जाता और छड़ी से पिटाई की जाती। वह खून का घूँट पीकर अपने वयस्क होने और औपचारिक ताजपोशी का इंतजार करने लगे। आखिर 1547 में चर्च ने उन्हें ज़ार की उपाधि दी।
असल खेल अब शुरू हुआ। बदला, कूटनीति, नरसंहार, और साम्राज्य विस्तार।
पहले तो उन्होंने अपनी सेना लेकर दक्षिण तक मंगोलों को हराते हुए रूस का विस्तार किया। वोल्गा नदी अब पूरी तरह रूस के कब्जे में थी। हालाँकि उन्होंने दक्षिण के मुसलमानों को उनके धर्म पालन के लिए स्वतंत्र रखा, और उनको सेना में शामिल किया।
उस समय इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ ने जब इवान के चर्चे सुने तो उनसे व्यापार संबंध के लिए तोहफ़े भेजे। इवान ने उत्साहित होकर उन्हें सीधा लिख दिया, “सुना है आप कुंवारी हैं? क्या महारानी मुझसे विवाह करेंगी?”
महारानी ने लिखा, “ज़ार! मुझ पर तो राज-काज की ज़िम्मेदारी है, आप कहें तो आपके लिए एक शाही परिवार की अंग्रेज़ स्त्री से रिश्ता ढूँढ सकती हूँ”
बाद में इवान ने लिखा, “न आप मेरी भाषा समझती हैं, न मैं आपकी”
इवान को अपने राज्य के अधिकांश कुलीनों से नफ़रत तो थी ही, वह सिर्फ़ अपने आध्यात्मिक धर्मगुरु सिलवेस्तर पर विश्वास करते। धर्मगुरुओं के शासन में हस्तक्षेप की यह शुरुआत थी।
एक दिन अचानक इवान राज-पाट छोड़ कर अलेक्सांड्रोवो नामक स्थान पर एकांतवास में चले गए। वहाँ से जनता के नाम चिट्ठी लिखी, “मुझे जनता पर पूरा भरोसा है, लेकिन इन कुलीनों पर रत्ती भर भरोसा नहीं। मैं अपना राज त्यागता हूँ। मुझे माफ़ करिए।”
जनता इस संदेश से कुलीनों पर भड़क गयी। राजा को कोप-भवन से मनाने लोग पहुँचे। राजा इवान ने वापस लौट कर देश के प्रशासन को दो भाग में बाँट दिया। मॉस्को और आस-पास का हिस्सा उन्होंने अपने पास रखा, जहाँ उनकी अपनी अलग सेना थी। शेष हिस्सा बोयर (कुलीन वर्ग) के हाथ छोड़ दिया।
उसके बाद राजा इवान ने एक-एक कुलीन को किसी न किसी अभियोग में फँसा कर सजा देनी शुरू की। जब चर्च ने इसका विरोध किया, तो उनके मुख्य पादरी फ़िलिप को ही मरवा दिया गया। इस तरह सिर्फ़ एक वर्ष में कुलीन परिवारों के दो हज़ार लोगों को मौत के घाट उतारा गया। एक दिन तो गुस्से में अपने पुत्र और उत्तराधिकारी राजकुमार को ही मार दिया।
लेकिन, राजा इवान को इन हत्याओं का ग्लानि-बोध होने लगा। उन्होंने उन लोगों की एक लंबी सूची बनायी, जिनकी उन्होंने हत्या करवाई। अपने प्रायश्चित के लिए उन्होंने उनके नाम पर ईसाई मठों में धन दान किया।
एक दिन क्रेमलिन में बैठ कर राजा इवान अपना प्रिय खेल ‘शतरंज’ खेल रहे थे, और वहीं हाथ में एक मोहरा लिए वह बिसात पर गिर गए। राजा इवान मर चुके थे। उसके साथ ही रूसी राजवंश के बाकी मोहरे भी एक-एक कर गिरने लगे।
ज़ाऱशाही इतिहास का पहला अस्थिर समय शुरू हुआ, जो तीस वर्षों तक चला। यह समय कहलाया- ‘टाइम ऑफ ट्रबल्स’ (विपत्ति-काल)!
(क्रमश:)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास (7)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/7.html
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