Friday, 30 July 2021

अशोक पांडेय - अद्भुत जिजीविषा के प्रतीक मानुएल अल्बा ओलीवारेस.

आठ भाई-बहनों में उसका नम्बर तीसरा था. बचपन के शुरू से उसकी आंखों को मायोपिया का रोग लग गया. 1986 के मार्च-अप्रैल की बात है. वह 11 साल का था जब एक स्कूल पिकनिक में स्विमिंग पूल में तैरते हुए उसकी आँखों में क्लोरीन का पानी घुस गया और आंखों की हालत अचानक बिगड़ना शुरू हुई. एक के बाद एक सर्जरी करनी पड़ीं. इलाज के खर्च के लिए पिता को अपनी जायदाद तक बेचनी पड़ी लेकिन कुछ बना नहीं और उसी साल गर्मियों का अंत आते न आते वह पूरी तरह अंधा हो गया.

फुटबॉल के दीवाने, कोलम्बिया के एक छोटे से नगर में रहने वाले इस लड़के मानुएल अल्बा ओलीवारेस की इस त्रासद कथा में इकलौती चमकदार चीज यह थी कि वह उस साल मेक्सिको में हुए फुटबॉल वर्ल्ड कप के सारे मैच रेडियो पर सुन पाया. उरुग्वे के मशहूर कमेंटेटर-पत्रकार विक्टर मोरालेस की लरजती आवाज़ में इंग्लैण्ड-अर्जेंटीना के उस क्वार्टर फाइनल की वह कमेंट्री की याद उसे हमेशा रह जानी थी जब मारादोना ने गोल ऑफ द सेंचुरी किया था – 

“गेंद मारादोना के पास है, दो खिलाड़ी उसे मार्क किये हुए हैं. दाईं तरफ से मारादोना ने गेंद अपने कब्जे में ले ली है. विश्व फुटबॉल का यह जीनियस अब तीसरे खिलाड़ी को पार कर बुरुचागा को पास देने वाला है. मारादोना! हमेशा मारादोना! जीनियस! जीनियस! टा...टा...टा...टा...टा...टा ... गोल! गोssssssssल! हे ईश्वर, मैं रोना चाहता हूँ. फुटबॉल जिंदाबाद! गोssssssssल! दिएगो! दिएगो मारादोना! माफ़ करें ... मैं इस गोल के लिए रो रहा हूं. तुम कौन से ग्रह से आये हो आये हो मारादोना जो इतने सारे अंग्रेज खिलाड़ियों को सड़क पर छोड़ आए? दिएगो! दिएगो मारादोना! दिएगो आर्मान्दो मारादोना! शुक्रिया भगवान फुटबॉल के लिए! शुक्रिया दिएगो मारादोना और इन आंसुओं के लिए! अर्जेन्टीना 2-इंग्लैण्ड 1.”

इसके तीन माह बाद उसके पिता कहीं से अपने बीमार बेटे के लिए दिएगो मारादोना के उस जादुई गोल का वीडियो कैसेट लेकर आए. छह खिलाड़ियों को अकेले छका कर किया गया मारादोना का वह असंभव गोल तीन चार बार रिवाइंड करके देखा जा चुका था जब मानुएल की आंखों में भयंकर दर्द उठा. डाक्टर के पास ले जा कर भी कोई फायदा न हुआ. टीवी पर देखे गए मारादोना के गोल ऑफ द सेंचुरी के विजुअल्स उसके द्वारा इस संसार में देखी गई अंतिम छवियां बन कर रह गए. उसके बाद उसके सामने सब कुछ काला पड़ चुका था.

शुरू के कुछ हफ्ते सदमे और असहायता के थे. फिर मानुएल के दोस्तों ने प्रस्ताव दिया कि वे एक फुटबॉल टीम बनाएंगे जिसका कप्तान मानुएल होगा. पहले की तरह उसे गोलकीपर का काम दिया गया. तीन साल बाद इन लड़कों ने मानुएल के नाम पर अपना फुटबॉल क्लब बनाया – एल नासियोनाल दे मानुआलीतो. 

अपनी स्मृति में मानुएल ने मारादोना के उस गोल को लाखों बार जिया है और जब वे उनके उस गोल की कमेंट्री सुनाते हैं तो एक बार को विक्टर मोरालेस भी उन्नीस लगने लगते हैं. विख्यात लातिन लेखक एदुआर्दो गालेआनो ने उनकी दास्तान को अपनी कल्ट किताब ‘चिल्ड्रेन ऑफ़ डेज़’ में जगह दी और दुनिया भर के बड़े अखबारों ने उनके इन्टरव्यू किये.

1989 में एल नासियोनाल दे मानुआलीतो की स्थापना से लेकर आज तक मानुएल अल्बा ओलीवारेस अपने क्लब के कोच और मैनेजर हैं और रेडियो पर कमेंट्री करते हैं. 

फुटबॉल और मारादोना की बातों से समय बचता है तो वे कोर्ट-कचहरी में न्यायाधीशों के आगे बहस किया करते हैं. अपने शहर के अच्छे वकीलों में उनकी गिनती है. उनका अपना म्यूजिक बैंड भी है जिसमें वे खुद कई तरह के साज बजा लेते हैं.

मानुएल की दास्तान निराशा, बीमारी और मृत्यु के ऊपर जिजीविषा और मित्रता की विजय की दास्तान है.

अशोक पांडेय
© Ashok pandey
#vss

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