Thursday, 3 June 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 48.


“दक्षिण एशिया अब दुनिया की सबसे खतरनाक जगह बन गयी है”
- बिल क्लिंटन (भारत-पाक परमाणु बम परीक्षण पर)

परमाणु बम ही आधुनिक दुनिया में शांति-दूत बनता जा रहा है। यह अजीब विडंबना है। पूर्व भारतीय सेनाध्यक्ष शंकर राय चौधरी ने भारतीय संसद पर हमले के समय युद्ध न होने का कारण यह परमाणु बम ही बताया। 1971 युद्ध के पाँच दशक गुजर गए, एक से एक मिसाइल बन गए, संसद और मुंबई ताज जैसे खतरनाक हमले हुए, मगर कोई बड़ा युद्ध ही नहीं हुआ। क्यों? 

अटल बिहारी वाजपेयी ने जनवरी में जब चुनावी घोषणापत्र जारी किया था तो उसमें लिखा था कि हम परमाणु शक्ति का पुनराकलन करेंगें। यह बात तो दुनिया भी सोच रही थी कि भारत ने 1974 के बाद कोई परीक्षण क्यों नहीं किया। राजीव गांधी ने 1989 में परमाणु बम टीम बनायी, लेकिन उसके बाद उनकी सरकार ही गिर गयी, फिर मृत्यु हो गयी। वाजपेयी जब 1996 में मात्र तेरह दिन के लिए आए, उसमें भी एक परीक्षण की तैयारी कर ली थी, जो हो न सका। इसे राजनीतिक दाँव भी कहा जा सकता है, जो उनके दल को भारत में स्थापित कर देती। मगर मामला इतना सरल भी नहीं था।

1995 में परमाणु देशों ने नॉन-प्रॉलिफरेशन ट्रीटी (NPT) को अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया। इसका अर्थ यह था कि पाँच बड़ी शक्तियों के अलावा कोई परीक्षण नहीं कर सकता। तो भारत या पाकिस्तान परमाणु बम का क्या अचार डालते? उनके अरबों खर्च हो चुके थे, आपसी रंजिश चरम पर थी। परीक्षण तो जल्द से जल्द करना ही था। 

अमरीका ने भारत-पाक जैसे देशों पर CTBT हस्ताक्षर करने का दबाव डालना शुरू किया। इन दोनों ने भी लखनवी ‘पहले आप’ रुख अपनाया। पाकिस्तान ने शर्त रखी कि पहले भारत हस्ताक्षर करे। भारत अड़ गया कि वह पहले नहीं करेगा। 

वाजपेयी सरकार ने लौटते ही आनन-फानन परीक्षण कर लिया। यह बात कहीं लिखी नहीं गयी, न ही इसके प्रमाण हैं, मगर जिस फुर्ती से पाकिस्तान ने परीक्षण किया, मुझे लगता है दोनों देशों ने बात कर ली थी। यह भी मुमकिन है कि दोनों के गुप्तचरों से खबर मिली होगी। जो भी हो, इतिहास में पहली बार दो पड़ोसी देशों ने एक ही महीने में इतने परमाणु बम धमाके किए। वह भी बिना किसी युद्ध के। 

बल्कि युद्ध तो छोड़िए, नवाज़ शरीफ़ और अटल बिहारी वाजपेयी गर्मजोशी से मिलते हुए दोनों देशों के मध्य बस सेवा चालू कर रहे थे। ऐसा सौहार्दपूर्ण माहौल तो वर्षों से नहीं दिखा था। परमाणु बम तो वाकई जादू कर गया।

यह जरूर हुआ कि अमरीका ने दोनों देशों पर कुछ पाबंदियाँ लगा दी, लेकिन अब वे अमरीका को भी समझ चुके थे। चार दिन बैन लगाएँगे, पाँचवे दिन कहेंगे कि आगे से मत फोड़ना।

खैर, ऐसा भी नहीं कि भारत-पाक के गिले-शिकवे मिट गए। बल्कि अब तो वह होने वाला था, जो वर्षों से नहीं हुआ था। भारतीय सेना को कश्मीर के कारगिल जिले में कुछ गतिविधियों की खबर मिली। नवाज़ शरीफ़ ने एक नया जनरल नियुक्त किया था, जिनका नाम था परवेज़ मुशर्रफ़। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 47.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/06/47.html 
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