Saturday, 8 May 2021

नाजीवाद का अंत - वो भी क्या दिन थे साक़ी तेरे मस्तानों के.

समाजवाद ज़िंदाबाद! इंक़लाब ज़िंदाबाद! फ़ासीवाद- नाज़ीवाद मुर्दाबाद!

आज (8 मई 1945) यूरोप नाज़ीवाद पर जीत को याद कर रहा है. रूस और कुछ यूरोपीय देशों में यह दिन कल की तारीख़ में मनाया जाता है. इस तस्वीर के बारे में बात करने से पहले एक लेख का उल्लेख ज़रूरी है. पिछले साल एनयूरिन बीवन की तब लिखी गयी टिप्पणी को ट्रिब्यून ने फिर से छापा था. उस लेख से यह पता चलता है कि राजनीति, शासकीय नीति, नैतिकता और विचारधारा का आपसी संबंध कितना महत्वपूर्ण है. 

खदान मज़दूर के बेटे बीवन ख़ुद भी मज़दूर थे. उन्होंने मज़दूरों के लिए और एक बेहतर दुनिया की लड़ाई में भागीदारी की और विश्व युद्ध के बाद बनी क्लीमेंट एटली की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने. उन्हीं की अगुवाई में वहाँ राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा की बुनियाद रखी गयी. बीते सालभर से दुनिया के प्रमुख लोकतंत्रों में स्वास्थ्य सेवा को लेकर चिंता जतायी जा रही है. भारत में तो हम लोग भयावह दृश्य देख और भोग ही रहे हैं. बीवन के लेख को पढ़ा और गुना जाना चाहिए. 

अब इस शानदार तस्वीर के बारे में कुछ बात करें. यह तस्वीर 02 मई, 1945 को बर्लिन की संसद के ऊपर ली गयी थी, जब महान सोवियत सेना ने हिटलरी नाज़ीवाद को परास्त किया था. फ़ासीवाद पर विजय का दिन 8-9 मई को मनाया जाता है. 

इस तस्वीर को येवगेनी ख़ाल्देई ने खींचा था और कुछ संपादन के साथ इसका प्रकाशन 13 मई को ओगोनिओक में पहली बार हुआ था. ख़ाल्देई का जन्म एक यहूदी परिवार में उक्रेन में 23 मार्च, 1917 को और उनका देहांत 06 अक्टूबर, 1997 को मॉस्को में हुआ था. इस तस्वीर की अपनी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. दरअसल, यह तैयारी से ली गयी तस्वीर थी, जो 30 अप्रैल की रात की घटना का दोहराव था. उस रात भवन पर नाज़ीवादियों का दख़ल था. उनके घेरे को तोड़ते हुए चार सोवियत सैनिक छत पर जा पहुँचे और झंडा लगा दिया. 

झंडा फहरानेवाले सैनिक का नाम मिख़ाइल मिनिन था. इस तस्वीर में जो सैनिक हैं, उनके नाम हैं- अब्दुलहाकिम इस्लामोव, लियोनिद गोरीचेव और एलेक्सेई कोवाल्योव. चित्र में झंडा लगानेवाला सैनिक 18 वर्षीय एलेक्सेई है.

प्रकाश के रे 
(Prakash K Ray)
#vss

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