Tuesday, 2 March 2021

किताब - मुद्दत बाद कोई किताब पढ़ी - गुलजार पर लिखी किताब - बोसकियाना / हेमंत शर्मा

गुलज़ार पर ‘बोसकियाना’। पत्रकार यशवंत व्यास की यह किताब गुलज़ार के ज़रिए गुलज़ार की कहानी कहती है। २५ बरस में उनसे हुई अनगिनत भेंट मुलाक़ात से यह किताब बनी है। किताब पढ़ने के बाद इसपर लिखने  से खुद को रोक न सका। और किताब पर लम्बी टिप्पणी लिख दी। इसे 'इण्डिया टूडे ' ने अपने ताज़ा अंक में छापा है। 
पत्रकारिता में मेरा प्रवेश पुस्तक समीक्षा के ज़रिए ही हुआ था। ८२ -८३ में मैं आज अख़बार में पुस्तक समीक्षा ही लिखता था। पन्द्रह रोज में एक। और शायद दूसरी ही समीक्षा उस वक्त के बड़े समीक्षक डॉ बच्चन सिंह की किताब ‘हिन्दी आलोचना के बीज शब्द ‘ की की थी। कोई तीस बरस बाद फिर से समीक्षा लिखने की कोशिश की है। इससे लगता है दुनिया गोल है। जहॉं से चले थे वही पहुँच गए। फिर आप भी पढ़िए।  

कोई शिकवा तो नही। 

अगर हिन्दी सिनेमा की अष्टाध्यायी लिखी जाएगी तो उसका एक अध्याय होंगे गुलज़ार। बेमिसाल शख़्स, मशहूर शायर, फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और गीतकार। इन सबसे बढ़ कर एक संवेदनशील पिता।
 
गुलज़ार शब्दों की दुनिया के रहस्य हैं। इस रहस्यलोक को परत दर परत खोलने की कोशिश की है प्रयोगशील लेखक यशवन्त व्यास ने अपनी नई किताब ‘बोसकियाना’ में। यशवन्त व्यास सिनेमा में गुलज़ार तत्व के अन्वेषी रहे है। वे उस लय को पकड़ पाते है जिसमें गुलज़ार रचते और रहते हैं। गुलज़ार की रचना प्रक्रिया, उनकी पंसद-नापसंद, उनका रहन-सहन। वे इस दुनिया को कैसे देखते है और कैसे देखना चाहते है। इन सब  सवालों पर यह किताब लाईटहाउस जैसी है।
 
‘बोसकीयाना’ बेटी बोसकी के नाम पर गुलज़ार का घर है। जिसका अपना एक फलसफा है। यहॉं शब्द फूल की तरह खिलते है। वे एक दूसरे से अठखेलियां करते एक क़तार में इस तरह गुंथते है की गीत बन जाते हैं। इसी ‘बोसकीयाना’ में बीते पच्चीस बरस में यशवन्त व्यास और गुलज़ार की कई दौर की लम्बी  बतकही का नतीजा है यह किताब।
 
बचपन से गुलज़ार मुझे भी रिझाते रहे है। अपनी ओर खींचते रहे है। पर क्यों कह नहीं सकता। महसूस करने की बात है। उनके गीत, पटकथा और संवाद अपनी ओर खींचते है। शब्द जहां चुक जाते है गुलज़ार वहां भी संवाद करते हैं। उनकी फ़िल्म ‘कोशिश’ में गूंगे भी संवाद करते हैं। जीवन की जटिलताओं को सीधे सादे बिम्बो और विलक्षण उपमाओं के ज़रिए परोसने की कूवत गुलज़ार के अलावा और किसी में नहीं रही।हम गीतकार गुलज़ार को ज़्यादा जानते है। पर गुलज़ार ने तीस से ज़्यादा फ़िल्मों में संवाद और अट्ठाईस फ़िल्मों की पटकथा भी लिखी है। कोई बीस फ़िल्मों के निर्देशन के अलावा। 
 
गुलज़ार के भीतर क्या है? रूह में क्या दिखता है? ख्वाबों के रंग कैसे हैं? लफ्जों की बनावट कहां से आती है? ख्यालों के रोशनदान कैसे हैं....?  इसे लेकर उत्सुकताओं का एक पूरा लोक है। गुलज़ार के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा गया है। मगर गुलज़ार की नज़र से गुलज़ार को जानने समझने का सौभाग्य कम ही हासिल हुआ है। अगर हुआ भी है तो टुकड़ों टुकड़ों में। पहली बार पत्रकार यशवंत व्यास ने गुलज़ार के प्रशंसकों के लिए इस असाधारण सपने को किताब की शक्ल में ज़मीन पर उतारा है। उनकी किताब 'बोसकीयाना' गुलज़ार की नज़रों, बातो, मुलाक़ातों से गुलज़ार की खोज करती है। उन्हें ढू्ंढती है। साधती है। नापती है। भांपती है। यशवंत व्यास के लफ्जों में कहें तो इसे पढ़ते हुए आप गुलज़ार से नहाकर निकलते हैं।
 
हिन्दी में इतनी नयनाभिराम किताब कम छपती है। इसमें भी यशवन्त जी का कला मन रमा हैं। गुलज़ार थोड़ा मुश्किल आदमी है। उनसे लम्बी बात करना धैर्य के साथ एक जीनियस को साधना है। यशवन्त इस इम्तहान में पास रहे है। 
 
‘ बोसकीयाना’ को गुलज़ार ने तामीर किया है मगर इस घर ने भी गुलज़ार को तामीर किया है। यशवंत की किताब इस महान निर्माण की अलग अलग दुर्लभ सतहों से रूबरू कराती है। उनके करीब ले जाती है। गुलज़ार ने फिल्मों को बहुत कुछ दिया। और फिल्मों ने गुलज़ार को इसका प्रतिदान भी लौटाया। मगर उनकी जिंदगी में कितना कुछ है जो फिल्मों के रुपहले पर्दे के बाहर का है। जो दिखता नहीं पर नींव की तरह काम करता है। गुलज़ार की नींव! जी यशवंत की ये किताब पाठकों को उस नींव के भी दर्शन कराती है।
 
गुलज़ार की शुरुआती जिंदगी संघर्षों और उलझनों के गर्भ से निकली थी। इन्हीं संघर्षों की उष्मा ने उनके भीतर के कलमकार को संजीवनी दी। उसे सांचे में ढ़ाला। यशवंत की ‘बोसकीयाना’ एक अदभुत यात्रा की तरह है। इस यात्रा में उनके जीवन संघर्ष की मिसालें, फिल्म जगत का संधि-स्थल, उनके नाते-रिश्ते-यार-एहबाब और यहां तक उनकी खलिशें भी शामिल हैं। इस किताब में गुलज़ार के बरसते 'मौसम' भी हैं तो उनके हिस्से की 'आंधियां' भी शामिल हैं। कई ऐसे प्रश्नों के जवाब भी मिलते हैं, जिन्हें उनका दर्शक-पाठक एक उम्र से कलेजे पर ढोता आया है। मसलन मौसम फिल्म के प्लॉट में इस दृश्य के मायने क्या हैं? आंधी में उस प्याले के गिरने की झंकार क्या कहती है? गुलज़ार ने क्या सोचकर ऐसा दृश्य क्रिएट किए? गुलज़ार की फिल्मों की स्त्रियां लीक से हटकर क्यों पाई जाती हैं? गुलज़ार आखिर मैच्योर प्रेम पर क्यूं फोकस करते हैं? ये सारे वे सवाल हैं जो अब तक केवल सवाल की शक्ल में ही अटके हुए थे। बोसकीयाना इन तमाम सवालों का बेहद ही सुलझा हुआ और मासूम जवाब पेश करती है, वो भी गुलज़ार के लफ्जों में।
 
सोशल मीडिया पर इन दिनों गुलज़ार की धूम है। जो उन्होंने नहीं भी लिखा है, वह उनके नाम चस्पां है। यशवन्त कहते है यह "एन बीज़ी" नॉट बाय गुलजार साहित्य है। इन दिनों व्हाट्स एप पर नब्बे प्रतिशत गुलज़ार शायरी ‘नॉट बाय गुलज़ार’ है। दरअसल होता यह है कि जब भी सूरज हल्ला करे। चॉंद चमकदार पत्तों पर उतरे। रोशनी में ख़ुशबू आने लगे। खामोशी बहने लगे। तो अठारह से अस्सी तक के चाहने वाले ने यह मान लिया कि ये गुलज़ार ने ही लिखा होगा। पर गुलज़ार का साहित्य प्रकृतिवादी भावुकता का उथला संसार नहीं हैं। उसमें ज़िन्दगी की धड़कन है।   
 
संजीव कुमार से लेकर बिमल राय के अंतिम दिनों तक गुलज़ार का जु़ड़ाव, उनके भीतर की कलात्मकता, उनकी सोच, झुकाव, टूटन, अलगाव सब यहां पाए जाते हैं। इस किताब में दिमाग में सालो साल से गुलज़ार को लेकर उठते सवालों के गठ्ठर हैं जिनका जबाब लेने में यशवन्त ने कोई कोताही नहीं की है। किताब में भूमिका ज़रूर बदल गयी है। व्यास की भूमिका में गुलज़ार है। और यशवन्त, व्यास होते हुए भी गणेश की भूमिका में है। लेखकीय कर्म का निर्वाह करने में।
 
यशवंत की इस कोशिश में गुलज़ार के जीवन के निजी पड़ावों से लेकर सार्वजनिक द्वीपों तक तमाम अलग अलग पहलुओं पर बेहद रोचक विमर्श शामिल है। गुलज़ार को जानने वाले उनके बारे में क्या सोचते हैं? बोस्की के होने के उनकी जिंदगी में क्या मायने हैं? बोसकी और राखी उनकी जिंदगी की दो सबसे इम्पोर्टेंन्ट स्त्रियां क्यूं हैं? उनके भीतर की ‘इमेजरी’ का दरवाज़ा कहां से खुलता है? ये सारी की सारी सतहें बेलौस और बिंदास अंदाज में इस किताब के पन्नों पर तैरती हैं। कोई परछाई है जो आवाज़ देती है। रुह का साज़ देती है। गुलज़ार इस किताब के कवर पर हैं। वे इस किताब के हर्फ हर्फ में हैं। अगर आप उनसे रोज़ मिलना चाहते हैं तो आपको एक रोज़ इस किताब से मिलना ही होगा।

हेमन्त शर्मा
( Hemant Sharma )

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