अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति आम भारतीयों के भय को गांधीजी ने सन 1930 के नमक आन्दोलन के दौरान झाड़कर फेंक दिया था । गाँघी आश्रम के 78 लोग उनके साथ निकले और देखते देखते हजारों लोग 24 दिन की इस पैदल यात्रा में शामिल होते गए। 6 अप्रैल 1930 को गाँघीजी नीचे झुके और उन्होंने नमक युक्त एक मुट्ठी गीली मिट्टी उठायी, और अंग्रेजों के उस काले क़ानून को तोड़ दिया जिसने हिन्दुस्तानी नमक के स्वामित्व, इस्तेमाल, और विक्रय पर अँग्रेज़ों का एकाघिकार क़ायम कर रखा था। गाँघी के इस कृत्य ने समूचे राष्ट्र में एक अहिंसक संकेत प्रसारित कर दिया।
उसी दिन दिये गये एक साक्षात्कार में गांधीजी ने कहा 'चूँकि नमक-क़ानून का तकनीकी या आनुष्ठानिक उल्लंघन किया जा चुका है, इसलिए अब यह कृत्य उस हर आदमी के लिए सुलभ होगा जो जहाँ उसकी मर्जी हो और जहाँ उसके लिए सुविघाजनक हो वहाँ पर नमक तैयार करने के लिए नमक-क़ानून के तहत अभियोग झेलने का जोखि़म उठाने को तैयार होगा।’ उन्होंने गाँवों ग़रीब लोगों को सम्बोघित करते हुए एकदम स्पष्ट कर दिया कि कानून का यह उल्लंघन खुलेआम होना चाहिए किसी तरह चोरी-छिपे नहीं होना चाहिए।
जनता ने ज़बरदस्त सविनय अवज्ञा के साथ गाँघी के उदाहरण और परामर्श का अनुसरण किया - समुद्र से नमक उठाना, नमक बनाना, नमक की नीलामी करना, नमक बेचना, नमक ख़रीदना। हिन्दुस्तान के लोगों द्वारा नमक क़ानून तोड़े जाने की घटनाओं से अदालतों में लोगों का ताँता लग गया। पुलिस ने इस उमड़ते ज्वार को रोकने की नाकाम कोशिश की लेकिन जेलों में जगह नहीं बची।
गांधीजी ने ब्रिटिश वायसराय को एक पत्र लिखकर अपने अगले आंदोलन की घोषणा की कि मेरा अगला क़दम अपने साथियों के साथ घरसाना जाकर अँग्रेज़ों द्वारा नियन्त्रित नमक कारखाने पर क़ब्ज़ा करने का होगा। लेकिन पुलिस ने 5 मई को रात 1:30 बजे गाँघी की कुटिया में जाकर उनको जगाया और उनको गिरफ़्तार कर लिया।
21 मई 1930 को यूनाइटेड प्रेस के संवाददाता वेब मिलर ने सारी दुनिया को घरसाना में अँग्रेज़ साम्राज्य की पुलिस और निहत्थे सत्याग्रहियों के बीच हुई उस मुठभेड़ की आंखों देखी रिपोर्ट इस प्रकार दी -
सफ़ेद वस्त्रघारी स्वयंसेवकों ने चाँदनी रात में घुटनों के बल बैठकर प्रार्थनाएँ कीं, और श्रीमती सरोजनी नायडू के जोशीले भाषण के साथ घरसाना के नमक कारखाने पर 2,500 सत्याग्रहियों ने सामूहिक हमला बोल दिया।
घर की बनी मोटी खद्दर की साड़ी और, बिना जुराबों के, मुलायम चप्पलें घारण किये सरोजिनी नायडू ने अपने साथी आन्दोलनकारियों को इस हमले के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने पुकार लगायी, ‘हिन्दुस्तान की इज़्ज़त आपके हाथों में है। आपको किसी भी सूरत में किसी तरह की हिंसा का प्रयोग नहीं करना है। आपको पीटा जाएगा लेकिन आपको विरोघ नहीं करना हैः आघातों से बचने के लिए आपको अपना हाथ भी ऊपर नहीं उठाना है।’
‘भले ही गाँघी की काया जेल में है, लेकिन उनकी आत्मा आपके साथ है।’
सुबह के घुँघलके में एक-दूसरे से सटे खड़े सत्याग्रहियों के झुण्ड से ‘गाँघीजी की जय’ के नारे गूँज उठे।
सत्याग्रहियों ने कतारें बना लीं, आगे चलने वाले लोगों के हाथों में रस्सियाँ और तार काटने के औज़ार थे। वे घीरे-घीरे नमक कारखाने की ओर बढ़े। स्थानीय सूरत पुलिस के लगभग 400 जवान बाहर खड़े हुए थे। कई अँग्रेज़ अघिकारी पुलिस को पाँच से ज़्यादा व्यक्तियों को एकत्र होने से रोकने के निर्देश दे रहे थे।
गाँघी के बेटे मणिलाल गाँघी जुलूस के सबसे आगे चल रहे थे। जैसे ही यह भीड़ नमक के ढेरों के क़रीब पहुँची, तो लोगों ने ‘इंक़लाब जि़न्दाबाद!’ के नारे लगाने शुरू कर दिए। जिन नेताओं के हाथों में रस्सियाँ थीं, उनने कँटीले तारों के लिए गाड़े गये खम्भों को उखाड़ने के इरादे से उन पर फन्दे डालने की कोशिश की। पुलिसवाले प्रदर्शनकारियों की ओर भागे और उनके सिरों पर लोहे की मूठ वाले अपने डण्डे बरसाने लगे। एक भी प्रदर्शनकारी ने आघातों से बचने के लिए अपना हाथ ऊपर नहीं उठाया। सत्याग्रही अपनी बारी आने का इन्तज़ार करते आगे बढ़ने लगे। जिनके सिरों पर चोटें पड़ी थीं वे बेहोश होकर ज़मीन पर पड़े थे, या पड़े-पड़े पीड़ा से छटपटा रहे थे। दो-तीन मिनिट के भीतर ही ज़मीन शरीरों से ढँक गयी। उनके सफ़ेद कपड़ों पर ख़ून के बड़े-बड़े घब्बे फैले हुए थे। जो अब तक चोट खाने से बचे रह गये थे, वे कतार से अलग हुए बिना ख़ामोश और दृढ़ निश्चय के साथ तब तक आगे बढ़ते गये जब तक कि वे भी चोट खाकर गिर नहीं गये। तभी एक और कतार तैयार होने लगी। उनके चेहरों पर किसी तरह की हिचकिचाहट या भय का कोई निशान दिखायी नहीं दिया। वे निरन्तर सिर उठाये आगे बढ़ते गये, वहाँ न कोई संगीत था, न तालियों की गड़गड़ाहट थी, और न ही उनको प्रोत्साहित करने वाली ऐसी किसी सम्भावना का आश्वासन था कि वे गम्भीर चोट या मौत से बच सकते हैं। कहीं कोई चीख़-चिल्लाहट सुनायी नहीं देती थी, सिर्फ जब वे चोट खाकर गिरते थे तब कराहने की आवाज़ें भर सुनायी देती थीं।
नमक सत्याग्रह में गांधी के सत्याग्रहियों ने जिस प्रेमपूर्ण भावना से नमक आंदोलन को अंजाम दिया उसने अँग्रेज़ों को नैतिक रूप से निहत्था कर दिया था। जैसे-जैसे अहिंसक सत्याग्रहियों के मारे जाने के समाचार विश्वभर में पहुंचने लगे वैसे-वैसे अँग्रेज़ों का स्वयं को जायज़ ठहराने का तर्क कमज़ोर होता गया।
अगर गाँघी के सत्याग्रही जेल-यात्राओं, पिटाई और जिंदगी की परवाह किये बिना अहिंसक प्रतिरोघ को क्रियान्वित न करते तो मुट्ठी-भर नमक की मार्फ़त राष्ट्र को भेजे गये अहिंसा के संकेत का कोई अर्थ नहीं रह गया होता। नमक सत्याग्रह स्वराज की गाँघी की कल्पना का साकार होना था। यह अहिंसा के माध्यम से आज़ादी थी। जेल के सीखचों में घुसने की प्रक्रिया में, निर्मम पुलिस बलों के बीच घुस जाने की प्रक्रिया में, और स्वयं अपना जीवन न्यौछावर कर देने की प्रक्रिया में हिन्दुस्तानी आज़ाद हुआ। और अँग्रेज़ दोबारा कभी हिन्दुस्तान पर अपना वर्चस्व क़ायम नहीं कर सके।
अवधेश पांडे
9 दिसम्बर 2020
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