सामाजिक वर्ग विभाजन शायद दुनिया के हर एक सभ्यता और संस्कृति में देखने को मिल जाता है। इसके बारे में आप विस्तार से मेरी पिछली पोस्ट में पढ़ चुके है। और ये वर्ग विभाजन जिस तरीके से वर्गीकृत किया है उसकी आपको कई काल्पनिक कहानियां आपको अलग अलग धर्मग्रंथों में मिल जायेगी। इनमें से एक है स्लेव वर्ग जो कि इतिहास में स्लेव ट्रेडिंग के रूप में देखने को मिलता है। गुलाम या दास वर्ग का उल्लेख कहने को कई जगह मिल जाएगा लेकिन मैं बात कर रहा हूँ उन अफ्रीकी मूल के निवासियो की जिन्हें मानव समाज में जानवरो से भी तुच्छ समझा जाता है। जी हाँ हमारे पैतृक होमोसेपियंस की धरती के मानव की जिन्हें शायद इंसान ही नहीं समझा गया। जिनको बस एक वस्तु की तरह यूज किया गया। छोटी सी गलती की सजा भी चमड़ी उधेड़ कर ली जाती थी। गुलामी की वो गाथा जो उन्हें जीवन पर्यंत मिलने वाली थी जिससे निकलने का एकमात्र रास्ता मृत्यु ही था। उनके संघर्ष की कहानी आपको अंदर तक झकझोर देगी।
सबसे पहले जानते है स्लेव यानी दास या गुलाम के बारे में। स्लेव तीन प्रकार के होते है। पहले वो जब दो सेनाये आपस में लड़ती है तो जो सेना विजित होती है वो दूसरी सेना को बंदी बना लेती है। इस स्थिति में हारी हुई सेना को स्लेव बना लिया जाता है। दूसरे वो जो किसी के ऋणी होते थे...उधार लेने वाला व्यक्ति अगर ऋण चुका नही पाता था तब वो देनदार द्वारा गुलाम बना लिया जाता है यह क्रम ऋणी तक सीमित नही होता था ये उसके बेटे...बेटे के बेटे तक जाता था। तीसरे गुलाम वो होते थे जो किसी ट्राइब के मुखिया को या तो उपहार स्वरूप दे दिए जाते या मुखिया द्वारा जबरन छीन लिए जाते थे।
यूँ तो दासो का व्यापार की प्रक्रिया सदियो से चली आ रही है। अफ्रीका में बाहरी लोगों के आने से पहले भी वहां दासप्रथा चल रही थी। मध्य पूर्व अफ्रीका में याओ, मकुआ और मरावा जैसे समुदाय आपस में लड़ते रहते थे। लड़ाई में जीतने वाला समुदाय हारने वाले समुदाय के लोगों को अपना गुलाम बना लेता था। इन गुलामों का व्यापार भी किया जाता था। इस्लाम के उदय के साथ ही 11 वी शताब्दी से ही अरबो ने दासो का व्यापार करना शुरू कर दिया था। अरब मुस्लिमों ने अफ्रीका में चली आ रही दास प्रथा को आगे बढ़ाया वो अपनी जरूरत के मुताबिक अफ्रीकी गुलामों की खरोद फरोख्त किया करते थे। पूर्वी अफ्रीका से अरब लोग अफ्रीकियों को मध्य पूर्व के देशों में बेच देते थे। इनकी बोली लगती थी और इनका मालिक इनकी तय कीमत चुकाकर दास बने अफ्रीकी को कई तरह के कामो में लगाया जाता था। कई बार अरब लोग तो यूरोपीय गोरे लोगो को भी दास बनाकर मध्य पूर्व देश में बेच देते थे लेकिन बाद में यूरोप में पुनर्जागरण आने के बाद ये क्रम रूक गया। मुहम्मद गोरी ने तो अपनी सत्ता भी अपने बेहतरीन गुलामो यल्दौज, कुबाचा और ऐबक को ही सौंप दी थी जो बाद में गुलाम वंश के नाम से भी जाना जाती है। इसमे भी इल्तुतमिश, बलबन और रजिया सुल्तान का प्रेमी याक़ूत भी एक गुलाम ही था। यह एक पहलू है जो शायद आपको थोड़ी उम्मीद देता है लेकिन इसका दूसरा पहलू बहुत ही भयावह है। दासो का व्यापार द्वारा बेचा जाना और उनको मजदूर बनाने से पहले नामर्द बना देना, अमानवीय व्यवहार करना अरब और यूरोपीय के लोगो के लिए आम था। चार में से तीन गुलाम तो बाजार में बेचे जाने से पहले ही मर जाया करते थे। इसकी वजह अकसर भूख, बीमारी और लंबी यात्रा करने की वजह से हुई थकावट हुआ करती थी।
15 वीं शताब्दी से लेकर 17 वीं शताब्दी में पुर्नजागरण औद्योगिक क्रांति और वैज्ञानिक विचारो से यूरोप में तेजी से कई परिवर्तन आये। कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज से ही एक नए युग का आरंभ जो गया था। इन यूरोपीय देशों नार्थ अमेरिका और साउथ अमेरिका को अपने अधीन और उसको कालोनी बनाने की एक प्रतियोगिता शुरू हो गयी थी। इस कड़ी में पुर्तगाली स्पेन फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश जो कि अब विश्व के अधिकतर देशो को अपनी कालोनी के रूप में स्थापित कर चुके थे या करने का सपना देख रहे थे। इन यूरोपीय देशों को संसाधनो की भरमार अमेरिकी महाद्वीप देशो में अपनी औपनिवेशिक कालोनी के रूप में मिली। इन संसाधनों के दोहन के लिए एक मजदूर वर्ग की जरूरत थी इसी के क्रम में अफ्रीकी मूल के लोगो को बड़ी संख्या में गुलामो की खरीद फरोख्त हुई। यूरोपीय देशों द्वारा बड़े स्तर पर अफ्रीकी मूल के लोगो को बेहद अमानवीय तरीके से अफ्रीका से जहाजो में ठूंस ठूंसकर अमेरिकी महाद्वीप में बेचा जाता था और उनसे काम लिया जाता था क्योंकि इन लोगो के श्रम की कोई कीमत अदा नही करनी होती थी और न ही इनकी कोई आवाज होती थी। अफ्रीकी मूल के लोग बस एक वस्तु के समान थे जो बस लेन देन के रूप में प्रयोग में लाये जा रहे थे। 1515 से लेकर 19वीं सदी के मध्य तक 1.25 करोड़ से ज्यादा अफ्रीकी लोगों की खरीद-फरोख्त हुई थी। इस दौरान अमरीकी देशों को जाते वक्त रास्ते में ही करीब 20 लाख पुरुष, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई। आज आप अमेरिकी महाद्वीप में जितने भी काले लोग देखते है वो सब गुलामो के रूप में अफ्रीकी महाद्वीप से ही आये है।
पूर्वी अफ्रीका में जहां जंजीबार गुलामों के व्यापार का मुख्य केंद्र अरबो के लिए था जो कि मध्य पूर्व में बेचे जाते थे वही अफ्रीकी पश्चिमी तट पर स्थित देश अंगोला, घाना, कांगो, सिएरा लिओन, सेनेगल जैसे देश यूरोपीय देशो के मुख्य केंद्र थे। जो कि अमेरिकी महाद्वीपीय देशो नार्थ अमेरिका और साउथ अमेरिका में बेचे जाते थे। इन दोनों महाद्वीप में नगदी फसलों का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है जिसके लिए सस्ते लेबर की जरूरत थी इस सबकी पूर्ति अफ्रीकी मूल के लोगो ने अपनी गुलामी देकर या जान देकर चुकाई। किसी को आवाज उठाने का...अपनी बात कहने का...विद्रोह करने का अधिकार नही था । सिर्फ एक ही विकल्प था गुलामी या फिर मौत...।
पुर्तगालियों ने जहाँ भर भरके ब्राजील में अफ्रीकी मूल को ले जाकर बसाया। इसके बाद स्पेन फ्रांस ब्रिटेन ने भर भर कर स्लेव ट्रेडिंग कर इनका दोहन किया। बाद में अरबो ने भी इनसे हाथ मिला लिया। अफ्रीका के काले लोगो की कोई सुनने वाला नही था। ब्राजील में नगदी फसलो का उत्पादन तेजी से हुआ। विश्व व्यापार में शुगर, कॉटन तम्बाकू की मांग तेजी से बढ़ रही थी जिसके लिए ज्यादा से ज्यादा मजदूरो की आवश्यकता थी इसके लिए स्लेव ट्रेड में भारी बढ़ोत्तरी हुई। जिसके फलस्वरूप स्लेवरी ने कास्ट और धर्म का रूप ले लिया। कास्ट और धर्म से तात्पर्य है कि एक वर्ग विभाजन बिल्कुल वैसा ही जैसा शूद्र का बेटा शुद्र ही बनेगा वैसे ही एक गुलाम का बेटा और उसका बेटा गुलाम ही रहेगा। अफ्रीकी मूल के लोगो ने अपनी सारी उम्मीद छोड़ दी थी उन्होंने मान लिया था कि हमारा एकमात्र धर्म ही गुलामी करना ही है। ऑस्कर विनिंग मूवी "10 इयर्स ऑफ स्लेव" इस घिनौनी प्रथा का बेहतरीन उदाहरण है। छोटी से छोटी गलती की भी सजा भी बेहद दर्दनाक होती थी। इनको प्राइस टैग लगा कर बेचा जाता था इनको नाम से नही बल्कि नंबर से पुकारा जाता था।
अंतत हर किसी ने अफ्रीकी मूल के लोगो की स्लेव ट्रेडिंग की यूरोपीय और अरब के लोग इनमे सबसे ऊपर थे शरिया कानून के आधार पर मुस्लिम को आप स्लेव नही बना सकते। इसलिए अरब देशो ने नॉन मुस्लिम लोगो को स्लेव बनाना शुरू कर दिया। वही यूरोपियन देशो ने इनको जमैका वेस्टइंडीज बारबाडोस, नेविस एंड एंटीगुआ, और कैरिबियाई देशो में स्लेव ट्रेडिंग कर अफ्रीकी मूल के लोगो को बसाया। इन देशों ने यह सब वहां के संसाधनों के दोहन के लिये किया। इस पोस्ट को यही विराम देते है । अफ्रीकी मूल के इन गुलामो के स्लेवरी से आजाद होने के संघर्ष के बारे में आप अगले अध्याय में जानेंगे।
धर्मेंद्र कुमार सिंह
( Dharmendra kumar singh )
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