मेरी रुचि फिनीशियनों के विषय में आपकी जानकारी बढ़ाने में नहीं है। मेरी अपनी जानकारी ही बहुत गड़बड़ है। पहले उनके बारे में जो कुछ जानता था उसका रूप अलग था; आज की जानकारियों का रूप बदल गया है, पर कोई किसी का खंडन नहीं करता। यह दूसरी बात है कि जानकारी में वृद्धि के बाद भी हम यह नहीं जान पाते कि वे कौन थे ? कहाँ से लेवाँ (Levant) - लेबनान, सीरिया, फिलिस्तीन, इज्राइल की भूमध्य तटीय पट्टी में पहुँचे और उस पर अधिकार जमा बैठे थे? इस पूरी पट्टी की एक देश के रूप में पहचान न थी, न वे इन्हें फिनीशिया कहते थे। इतना पता हैं कि यह नाम ग्रीक भाषा के Φοινίκη, Phoiníkē फोईनिके से निकला है, जिसका अर्थ अरुणाभ चटक बैगनी रंग (Purple) है [1]। इस रंग को वे एक खास किस्म के घोंघे से रिसने वाले द्रव से तैयार करते थे, जो फीका नहीं पड़ता था, इसलिए यह अनमोल था और मिस्र तथा मेसेपोतामिया के राजसी पोशाक के लिए पसंद किए जाने के कारण यह सोने से भी मंहगा होता था। एक अन्य अनुमान के अनुसार रँगाई के चलते उनका रंग भी ललौंहा बैगनी हो जाता था इसलिए इनको यह संज्ञा यूनानियों ने दी थी। पर यह अकेली अटकलबाजी नहीं है। एक दूसरी के अनुसार वे साइप्रस के पेड़ की पूजा करते थे, जहाँ भी बस्ती बसाते पहले साइप्रस का पेड़ लगाते थे इसलिए इनको यह नाम मिला। अब यहाँ ग्रीक में फोईनिके की अर्थ प्रक्रिया बदल जाती है। वे किसी अन्य चीज को फिनीक कहते हैं और उनकी सबसे प्रसिद्ध देन चटक लाल रंग से इसको जोड़ कर ग्रीक में उस रंग के लिए एक नया शब्द जुड़ जाता है और फिर उसी को उनकी संज्ञा का मूल मान लिया जाता है।
आज से 50 साल पहले मेरी दिलचस्पी इन लोगों के प्रति तब बढ़ी थी, जब कुछ विद्वानों को यह कहते सुना था कि ऋग्वेद में पणि शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए हुआ है, जिन्हें आज हम फीनीशियन के नाम से जानते हैं। ऐसे लोगों में नामी लोग शामिल थे। यह वह दौर था जब यह माना जाता था कि पहले भारत के साथ यूरोग के व्यापार पर फिनिशियनों का एकाधिकार था जो उनके बाद रोमनों के हाथ में और फिर अरबों के हाथ में चला गया जिनको पुर्तगिलियों और फिर दूसरे यूरोपीय देशों ने अधिकार कर लिया। भारत का नौवहन भारत से होरमुज तक जाता था। इससे आगे नहीं। ऐसी स्थिति में कुछ लोगों को जो वैदिक नौवहन क्षमता की सही जानकारी नहीं रखते थे, पणियों और फिनीशियनों के साम्य से वैदिक समाज की सागरिक शक्ति, उनकी समृद्धि और उनके साथ वैरभाव के समाधान के रूप में यह सूझता रहा हो तो हैरानी की बात नहीं। हम केवल यह कह सकते हैं कि हम यह दावे के साथ नहीं कह सकते कि हमें फिनीशियन शब्द की व्युत्पत्ति पता है।
हमारी पुरानी जानकारी के अनुसार, हेरोडोटस का यह मानना था कि ये लोग 2500 ई.पू. में पूर्व से, संभवतः बहरीन के तट से, लंबे समय तक चलते रहने वाले भूकंपों से घबरा कर भूमध्य सागर क्षेत्र में पहुँचे थे। उनके भड़काऊ लाल रंग का हवाला उसमें भी था। वे समुद्र के सम्राट थे यह भाव भी उसमें था। जो हैरान करने वाली बातें उस जानकारी में थीं वे यह कि वे अपने खेत बोने के बाद व्यापारिक यात्रा पर निकलते थे जो दो साल तक की भी लंबी हो सकती थी। ये अफ्रीका का चक्कर लगा कर भारत तक पहुँचते थे। इनके जहाज सबसे उन्नत थे और वे व्यापार के साथ गुलामों का भी व्यापार करते थे। इनके जहाजों को देखने के लिए उत्सुकतावश जो लोग पहुँचते थे, उनको उनकी सवारी का आनंद लेने के लिए प्रोत्साहित करते थे और फिर ले कर चंपत हो जाते थे और उनको गुलाम के रूप में बेच दिया करते थे। उनकी एक दूसरी कुरीति अपने देवी देवताओं को नरवलि देने की थी।
आजकल कई स्रोताे को छानने के बाद पता चला कि पुरानी सूचनाओं के आधार का खंडन किए बिना उनको सामी सिद्ध करने के प्रयत्न में उनकी पूर्वी गतिविधियों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जब कि उनका पूरा परिचय दोनों की सहायता के बिना संभव नहीं।
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[1] वास्तव में पर्पल कोई एक रंग नहीं है। इसका प्रयोग पीताभ से लेकर नीलाभ तक के कई रंगों के लिए होता है। मेसोपोतामियाई राजसी वस्त्र के अवशेष का रंग केसरी प्रतीत होता है।
भगवान सिंह
( Bhagwan Singh )
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