Thursday, 26 March 2020

Ghalib - Kyon na firdaus mein dozakh / क्यों न फिरदौस में दोज़ख - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह


ग़ालिब - 114.
क्यों न फिरदौस में, दोज़ख को मिला लें यारब,
सैर के वास्ते थोड़ी सी फ़ज़ा और सही !!

Kyon na firdaus mein, dozakh ko milaa len, yaarab.
Sair ke waaste thodee see fazaa aur sahee !!
- Ghalib

क्यों न स्वर्ग में नर्क को भी मिला लिया जाय। ऐसा करने से घूमने फिरने के लिये थोड़ा और वातावरण मिल जाएगा।

ग़ालिब खुद को आधा मुसलमान कहते थे। जुए और एक झगड़े में जब उन्हें पुलिस पकड़ कर अंग्रेज़ हाकिम के पास ले गयी तो अंग्रेज़ मैजिस्ट्रेट ने उनसे उनका धर्म पूछा तो ग़ालिब ने कहा, हुज़ूर मैं आधा मुसलमान हूँ। अदालत हँसने लगी और फिर पूछा कि कैसे । तब ग़ालिब कहते हैं, शराब पीता हूँ, सुअर नहीं खाता । इस्लाम मे सूअर और शराब दोनो ही हराम है। इस तरह ग़ालिब खुद को आधा धार्मिक बताते हैं, सच तो यह है कि वे धर्म का उपहास उड़ाते हैं। 

उनका यह शेर भी स्वर्ग में अपार सुख, हूरों आदि और नर्क में यातनामय वातावरण की अवधारणा का उपहास ही है। स्वर्ग और नर्क ऐसी कल्पनाएं हैं जहां कोई आज तक गया नहीं, किसी ने देखा नहीं, उन सुखों और उन यातनाओं को किसी ने भोगा नहीं, फिर भी सबसे विशद वर्णन उन्ही का लोग करते हैं। यह वर्णन और यह अवधारणा सभी धर्मों में है। चाहे वे सेमेटिक या अब्राहमिक धर्म माने जाने वाले यहूदी, ईसाई और इस्लाम हों या सनातन धर्म। 

लेकिन यह अवधारणा दो प्राचीन भारतीय धर्मो जो तर्क और प्रमाण पर आधारित हैं जैसे जैन और बौद्ध धर्म मे नहीं मिलते हैं । यह दोनो ही धर्म संयम और करुणा पर आधारित है, तर्क पर टिके हैं , ईश्वर जैसी किसी संस्था के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते हैं। यह अलग बात है कि कालांतर में दोनों ही धर्मो के प्रवर्तक खुद ही ईश्वरीय शक्तियों से सम्पन्न मान लिये गए और जिन कर्मकांडो के विरोध में ये धर्म प्रारंभ हुए वैसे ही जटिल और अंधविश्वास भरे कर्मकांड इन धर्मों में भी आ गए। 

अब इसी से मिलता जुलता, कबीर का यह दोहा भी पढ़ें।

कौन स्वर्ग, कौन नरक, विचारा, संतन दोऊ रादे, 
हम काहू कि काण न कहते, अपने गुरु परसादे !!
( कबीर )

स्वर्ग क्या है और नर्क क्या है, संतो ने इन दोनों कल्पनाओं को ही रद्द और अमान्य घोषित कर दिया है। अपने गुरु की कृपा के कारण हम न स्वर्ग मानते हैं और न नर्क ।

सच तो यह है कि अच्छे कर्म करने से स्वर्ग और बुरे कर्म करने से नर्क मिलता है यह केवल जनता को इसी लोभ के बहाने अच्छे कर्म करने को प्रेरित और बुरे कर्म करने से रोकने की एक प्रवित्ति है। स्वर्ग हो, न हो, ईश्वर हो, न हो,इन सब विवादों में गए बगैर मनुर्भव यानी, मनुष्य बनें की बात की गयी है और तमाम पाखंड और ढोंग का विरोध किया गया है। 

( बिजय शंकर सिंह )


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