Friday, 14 February 2020

कानून का दोहरा मापदंड, कानून लागू करने वाली एजेंसियों को विवादित बनाता है / विजय शंकर सिंह

गोरखपुर के डॉ कफील खान को सरकार ने एएमयू में भाषण देने के लिये रासुका एनएसए के अंतर्गत निरुद्ध कर दिया है। जहां तक इस कानून के बारे में मैं जानता हूँ, यह कानून उन व्यक्तियों पर लगता है जो लोकव्यवस्था के लिए खतरा बन जाते हैं। अब सरकार ने लोकव्यवस्था के भंग होने के लिये क्या आधार दिए हैं यह तो जब विस्तार से सामने आए तो कुछ टिप्पणी की जाय। डॉ कफील को अपना पक्ष रखने के लिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक अवसर मिलेगा। 

डॉ कफ़ील खान तब चर्चा में आये जब 2016 में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में लग्भग 40 बच्चे घातक इंसेफेलाइटिस से बीमार होकर मर गए। कहा जाता है कि इलाज के लिये ऑक्सिजन सिलेंडर की कमी थी। डॉ कफ़ील पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने मेडिकल कॉलेज के ऑक्सिजन सिलेंडर को अपने निजी क्लिनिक पर उपयोग किया। ऑक्सिजन सिलेंडर की आपूर्ति में भ्रष्टाचार के अतिरिक्त उन पर निजी प्रैक्टिस करने का भी आरोप लगाया गया। डॉ खान को जेल में भी बंद रहना पड़ा और वे बाद में जमानत पर छूटे। सरकार ने उनकी विभागीय जांच कराई जिसमे उनके ऊपर कोई आरोप प्रमाणित नहीं हुआ। डॉ कफ़ील का केस सरकारी प्रतिशोध का एक उदाहरण बन कर रह गया है। अब कफ़ील पर एएमयू अलीगढ़ में नागरिकता संशोधन विधेयक 2020 के खिलाफ बोलने पर गिरफ्तार किया गया, पर जैसे ही जमानत पर उन्हें छोड़ने का आदेश अदालत ने दिया, सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत निरुध्द कर दिया। इस कानून में किसी को भी एक साल तक निरुध्द रखा जा सकता है। 

बात जब कानून के सेलेक्टिव कार्यवाही की चल रही है तो यह भी खबर पढ़ लें कि गांर्गी कॉलेज में जय श्रीराम के नाम पर नारा लगाते हुए गुंडों में से कुछ को पकड़ा गया और आज 10 10 हजार रुपये की जमानत पर दिल्ली की साकेत कोर्ट ने उन्हें छोड़ दिया। 

उधर यूपी के ग़ाज़ीपुर में कुछ पदयात्री पकड़े गए हैं जिन्हें वहां के एसडीएम ने छोड़ने के लिये ढाई ढाई लाख की जमानत और दो दो सभ्रांत लोगों की जमानत मांगी है। यह नए युवा चौरीचौरा से बनारस एक पद यात्रा पर जा रहे थे। 11 लोगों की टीम जिसमे सभी युवा और निहत्थे हैं, सरकार के लिये खतरा बन जा रहे हैं। ग़ाज़ीपुर के इस मामले को सोशल मीडिया पर बहुत ही पुरजोर तरीके से उठाया जा रहा है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर कोई प्रतिबंध नहीं है, यह बात कल गृहमंत्री ने भी कही है। पर यह पदयात्रा तो शांतिपूर्ण ही हो रही थी। 

गाज़ीपुर जेल मैैं बंद इन सभी सत्याग्रहियों 13 फरवरी से जेल में भूख हड़ताल शुरू किया है. अब उन्होंने भारतवासियों के नाम एक खुला पत्र लिखा है। पत्र इस प्रकार है। 
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प्रिय देशवासियों, 

आज जब यह पत्र आपको लिख रहे हैं तब हम 9 सत्याग्रही गाज़ीपुर जिला जेल के बैरक संख्या 10 व एक महिला साथी जो पेशे से पत्रकार हैं महिला बैरक में बंद हैं. यह बिना जाने की हमारा गुनाह क्या है और जिला प्रशासन हमें कब तक बंद रखेगा हम सभी सत्याग्रहियों ने अनशन पर जाने का फैसला किया है जहाँ हमने दिनांक 13 फरवरी से अन्न त्याग कर दिया है.

ज्ञात हो की हम सभी सत्याग्रही गांधी जी के प्रेम, सद्भावना, भाईचारा व सौहार्द के सन्देश को लेकर दिनांक 02 फरवरी को चौरी-चौरा (गोरखपुर) से राजघाट (दिल्ली) तक की “नागरिक सत्याग्रह पदयात्रा” पर निकले थे जहाँ हम गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, मऊ होते हुए लगभग 200 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर गाज़ीपुर पहुंचे थे जहाँ हमें बिरनो थाना क्षेत्र के अंतर्गत सुल्तानपुर चौराहे के पास भारी पुलिस बल के साथ जिले के अधिकारियों की मौजूदगी में गिरफ्तार कर लिया गया.

देश में CAA-NRC आंदोलन के पक्ष-विपक्ष के बीच उत्तर प्रदेश में 23 लोगों की मौत समेत देशभर में सैकड़ों लोग घायल हुए. ऐसे में बतौर नागरिक हमारा कर्तव्य है कि हम उन 23 परिवारों समेत देश भर के सभी प्रभावित परिवारों के साथ मजबूती से खड़े हों व देश व समाज में बढ़ रही आपसी नफरत, विभाजनकारी विचारधारा के प्रति उत्तर में गाँधी के अहिंसा, प्रेम, सौहार्द जैसे मूल्यों को समाज में स्थापित करने के साथ ही खुद के अंदर के डर व हिंसा को चुनौती देना है. हमारा साथ ही सरकार से यह सवाल भी है कि गाँधी के सन्देश को साथ लेकर चल रहे 10 निहत्थे युवाओं से किस प्रकार का खतरा है कि उन्हें यात्रा के बीच से उठाकर जेल में डाल दिया गया.

प्रियेश पांडेय
मनीष शर्मा
प्रदीपिका शारास्वत
मुरारी कुमार
अतुल यादव
रविंद्र कुमार रवि
शेष नारायण ओझा
अनंत शुक्ल
नीरज राय
राज अभिषेक सिंह
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जब कानून दो दृष्टिकोण से लागू किया जाएगा तो उस कानून की उपयोगिता और कानून को लागू करने वाली एजेंसी पर जनता का संदेह उठेगा ही। दिल्ली चुनाव में आपत्तिजनक भाषण देने वाले नेताओं पर चुनाव आयोग ने कोई भी मुक़दमा दर्ज नहीं किया। जब कि यह न केवल आचार संहिता का उल्लंघन है बल्कि धर्म के नाम पर वोट मांगने का अपराध भी है। 

जेएनयू नकाबपोश कांड पर पुलिस की कुलपति की अनुमति की आड़ में शातिर चुप्पी, जामिया यूनिवर्सिटी के भीतर लाइब्रेरी में घुस कर की गयी पुलिस कार्यवाही, गार्गी कॉलेज में उपद्रव के समय पुलिस की खामोशी और फिर देर से की गयी कार्यवाही और अब उन गुंडो का दस हजार की जमानत पर छूट जाना, जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों के संसद मार्च के समय छात्राओं तक को उनके साथ अभद्रता के साथ मारपीट करना, इम सबको अगर गौर से देखें तो  दिल्ली पुलिस की भूमिका, एक गैरपेशेवर पुलिस बल जैसी दिखती है।  कारण निश्चिंत ही गृह मंत्रालय का दबाव होगा, वरना दिल्ली पुलिस एक बेहतरीन पुलिस बल के रूप मे जानी जाती है। 

आज जो गृहमंत्री, अपने नेताओं के द्वारा किये गए बयानों पर पश्चाताप की मुद्रा में हैं, क्या पुलिस की प्रशासनिक विफलता के लिये अपने मंत्रालय की जिम्मेदारी लेंगे ?

( विजय शंकर सिंह )


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