सामान्य अर्थ में गिरफ्तारी की शक्ति,हमेशा किसी को पुलिस हिरासत में लेने से जुड़ी रही है। हालाँकि एक मजिस्ट्रेट और एक आम व्यक्ति भी कुछ मामलों में किसी की गिरफ्तारी करने में सक्षम हैं। आपराधिक कानूनों में गिरफ्तारी एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जिसका उद्देश्य अदालत के सामने एक अपराधी को पेश करना और उसे कानून की पकड़ से भागने से रोकना है। गिरफ्तारी का मतलब किसी ऐसे व्यक्ति को पकड़ना है, जिसने अपराध किया है या उसके द्वारा अपराध किये जाने की संभावना है। गिरफ्तारी के जरिये, इस आशंका को खत्म किया जाता है कि अभियुक्त बाद में कोई अन्य अपराध कारित कर सकता है।
आपराधिक कानून में, निवारक गिरफ्तारी (Preventive Arrest), अपराध के कमीशन से पहले की जाती है (पुलिस हिरासत में लेकर) जब यह प्रतीत हो कि वह व्यक्ति कोई अपराध करने जा रहा है या संज्ञेय अपराध करने की परिकल्पना कर रहा है। Cr.P.C. के तहत (पुलिस को मिली) गिरफ्तारी की शक्ति वैध एवं संवैधानिक है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी उचित कारण के गिरफ्तार किया जाएगा। जैसा कि जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1994 AIR 1349 के मामले में यह कहा गया है, किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का औचित्यपूर्ण कारण मौजूद होना चाहिए।
पुलिस का कर्त्तव्य
जैसा कि दिल्ली न्यायिक सेवा संघ बनाम गुजरात राज्य और अन्य 1991 AIR 2176 के मामले में कहा गया है, पुलिस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य अपराधियों को पकड़ना, अपराधों का अन्वेषण करना और अदालतों के सामने अपराधियों पर मुकदमा चलाना और साथ ही नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा के लिए कानून और व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए अपराध के कमीशन को रोकना है। कानून यह उम्मीद करता है कि पुलिस निष्पक्ष होकर अपराधी के साथ बर्ताव करेगी।
मौजूदा कानूनी स्थिति यह है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 151 के तहत केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया व्यक्ति, ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसके खिलाफ एक संज्ञेय या गैर-जमानती अपराध बनता हो या कथित तौर पर उसके खिलाफ ऐसा आरोप हो, और इसलिए ऐसे व्यक्ति को न्यायिक हिरासत में नहीं भेजा जा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 धारा 151 के अंतर्गत पुलिस की शक्तियां
किसी संज्ञेय अपराध के कमीशन को रोकने के लिए गिरफ्तारी की आवश्यकता अमूमन महसूस होती ही है। जहाँ दंड संहिता के अंतर्गत किसी अपराध के हो जाने के बाद क्या कदम उठाये जाने चाहिए, इसकी बात होती है वहीँ इसके अंतर्गत इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए भी कुछ प्रावधान मौजूद हैं। भारत में इससे सम्बंधित कानून की सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली दो धाराएँ, 107 और 151 हैं। मौजूदा लेख में हम धारा 151 के अंतर्गत पुलिस की शक्तियों के बारे में बात करेंगे।
धारा 151, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 क्या कहती है:-
धारा 151 (1) कोई पुलिस अधिकारी जिसे किसी संज्ञेय अपराध करने की परिकल्पना का पता है, ऐसी परिकल्पना करने वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेशों के बिना और वारंट के बिना उस दशा में गिरफ्तार कर सकता है जिसमें ऐसे अधिकारी को प्रतीत होता है कि उस अपराध का किया जाना अन्यथा नहीं रोका जा सकता।
धारा 151 (2) उपधारा (1) के अधीन गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के समय से चैबीस घंटे की अवधि के अधिक के लिए अभिरक्षा में उस दशा में सिवाय निरूद्ध नहीं रखा जाएगा जिसमें उसका और आगे निरूद्ध रखा जाना इस संहिता के या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि के किन्हीं अन्य उपबंधों के अधीन अपेक्षित प्राधिकृत है।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 151, यह स्पष्ट करती है आखिर वो क्या शर्तें हैं जिनके तहत एक पुलिस अधिकारी, किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है। गौरतलब है कि वह इस धारा के अंतर्गत गिरफ्तारी केवल तभी कर सकता है जब उसे किसी संज्ञेय अपराध करने की परिकल्पना का पता चलता है। ऐसी शक्ति के प्रयोग के लिए एक और शर्त यह है कि गिरफ्तारी केवल तभी की जानी चाहिए जब संबंधित पुलिस अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि अपराध का किया जाना (कमीशन) अन्यथा रोका नहीं जा सकता है अर्थात बिना व्यक्ति को गिरफ्तार किये, अपराध का कारित होना रोका नहीं जा सकेगा।
इसलिए, यह धारा मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और बिना वारंट के गिरफ्तारी करने की शक्ति के उपयोग करने की आवश्यकताओं को स्पष्ट रूप से बताती है। यदि इन शर्तों को पूरा नहीं किया जाता है और एक व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के तहत गिरफ्तार किया जाता है, तो गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी को संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 में निहित मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए कानून के तहत कार्यवाही का सामना कर पड़ सकता है - राजेंदर सिंह पठानिया बनाम स्टेट ऑफ़ NCT Delhi एवं अन्य (2011) 13 SCC 329।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 151 (2), संविधान की धारा 22 (1) के अनुसार प्रावधान कायम करती है, यह धारा कहती है कि धारा 151 (1) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखा जाना चाहिए।
नहीं होना चाहिए शक्ति का दुरुपयोग
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 स्वयं उन परिस्थितियों के लिए प्रावधान करती है, जिसमें उस धारा के तहत गिरफ्तारी की जा सकती है और उस अवधि के लिए एक सीमा भी रखी गयी है (24 घंटे) जिसके लिए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है। प्रावधान में ही दिशानिर्देश भी मौजूद हैं। जोगिंदर कुमार के मामले में और डी. के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [1997] 1 SCC 416 के मामले में यह भी कहा गया है कि धारा 151 के अंतर्गत शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है और दुरुपयोग के मामले में, संबंधित प्राधिकारी को पर्याप्त रूप से दंडित किया जाएगा।
धारा 151 और ज़रूरी सावधानी
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 151, पुलिस की निवारक शक्ति (Preventive Power) है, जिसके अंतर्गत संज्ञेय अपराधों के कमीशन को रोकने के लिए गिरफ्तारी, संज्ञेय अपराध को होने से रोकती है और पक्षों को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रावधान करती है। इस धारा के तहत प्रदत्त शक्ति, पुलिस व्यवस्था के लिए एक निवारणात्मक उपाय है, जिसे समाज में विधि व्यवस्था को बनाए रखने के लिए प्रदान किया गया है।
किसी भी मामले में कोई गिरफ्तारी तब तक नहीं की जा सकती, जब तक पुलिस अधिकारी के लिए ऐसा करना कानूनन उचित नहीं है। गिरफ्तारी करने की शक्ति का मौजूद होना एक बात है और इसके अभ्यास का औचित्य अलग बात है। पुलिस अधिकारी को ऐसा करने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने के अलावा, गिरफ्तारी का औचित्य साबित करने में सक्षम होना चाहिए। किसी व्यक्ति की पुलिस लॉक-अप में गिरफ्तारी और नज़रबंदी किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को नुकसान पहुंचा सकती है।
अंत में, एक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के हित में और शायद अपने हित में एक पुलिस अधिकारी के लिए यह विवेकपूर्ण होगा कि प्रारंभिक जाँच के बाद, किसी उचित संतुष्टि के बिना कोई गिरफ़्तारी न की जाए।
( साभार स्पर्श उपाध्याय )
( विजय शंकर सिंह )
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