जवाहलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में जो कुछ भी 4 जनवरी को सर्वर रूम में कुछ छात्रों द्वारा की गयी तोड़ फोड़ को लेकर आरोप लगाए जा रहे थे, वह झूठे पाए जा रहे हैं। जेएनयू प्रशासन के दावे ग़लत साबित होते दिख रहे हैं। जेएनयू प्रशासन ने ये दावा किया था कि रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया का विरोध कर रहे छात्रों ने सीसीटीवी (CCTV) कैमरे और बायोमैट्रिक सिस्टम (Biometric system) को तोड़ दिया था।
लेकिन सूचना का अधिकार के तहत दिए गए एक जवाब से पता चला है कि सेंटर फॉर इनफॉरमेशन सिस्टम के मेन सर्वर को 3 जनवरी को बंद कर दिया गया था। जब मुख्य सर्वर 3 जनवरी को ही बंद था तो यह आरोप कि 4 जनवरी को रजिस्ट्रेशन हो रहा था, जिसे रोकने के लिये तोड़ फोड़ हुयी थी ?
इसके पीछे बिजली आपूर्ति में बाधा को कारण बताया गया है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के अनुसार, एक आरटीआई (RTI) द्वारा पूछे गए प्रश्न के जवाब में कहा गया है कि,
“जेएनयू कैंपस के उत्तरी/मेन गेट पर मौजूद सीसीटीवी कैमरे में 5 जनवरी के दिन 3 बजे से लेकर 11 बजे रात तक ‘लगातार और संपूर्ण’ फुटेज उपलब्ध नहीं है.”
उल्लेखनीय है कि यही वह समय है जब जेएनयू में नकाबपोश गुंडों ने घुसकर छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और कर्मचारियों पर हिंसक हमला किया था. इन नकाबपोश गुंडों के हाथ में लाठी, हथौड़े और पत्थर थे। जब नकाबपोश गुंडे जेएनयू कैंपस में दाखिल हुए तो कैमरे बंद थे या उनके फूटेज उपलब्ध नहीं हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण सुबूत हैं। गुंडे दाखिल भी इसी समय हुये हैं। कुछ मोबाइल से खींचे गये वीडियो में वे नकाबपोश साफ दिख रहे हैं। उज़मे कुछ एबीवीपी के छात्र भी हैं। उनके हांथ में लाठी डंडे हैं। पर जेएनयू का अधिकृत सीसी टीवी कैमरा सिस्टम या तो बंद कर दिया गया है या जानबूझकर फूटेज न होने का उत्तर आरटीआई द्वारा दिया जा रहा है।
आरटीआई द्वारा मांगी गयी जानकारी जो मिली है वह इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार इस प्रकार है।
“जेएनयू का मेन सर्वर 3 जनवरी को बंद कर दिया गया था और अगले दिन बिजली आपूर्ति में हो रही बाधा के चलते ये ठप हो गया. किसी भी सीसीटीवी कैमरे को 30 दिसंबर 2019 से लेकर 8 जनवरी 2020 तक कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया गया.”
जेएनयू में हुई हिंसा के बाद व्यापक पैमाने पर सीसीटीवी फुटेज मुहैया कराने की मांग की जा रही थी, जिसके बाद यूनिवर्सिटी प्रशासन ने ये दावा किया था कि सीसीटीवी कैमरे के साथ विश्वविद्यालय के छात्रों ने तोड़-फोड़ की थी।
इसी आरटीआई के जवाब में यह तथ्य भी सामने आया है कि
" 4 जनवरी को दोपहर एक बजे 17 फाइबर ऑप्टिकल केबल को क्षति पहुंचाई गई थी । "
आगे इसी आरटीआई के उत्तर के अनुसार, “30 दिसंबर 2019 से लेकर 8 जनवरी 2020 के बीच एक भी बायोमैट्रिक सिस्टम को नहीं तोड़ा गया।.”
इससे पहले जेएनयू प्रशासन ने पुलिस को दी गयी एक एफ़आईआर, प्रथम सूचना में यह दावा किया था कि,
" 3 जनवरी को नकाबपोश छात्रों का एक समूह सीआईएस (CIS) में ज़बरन घुस आया और बिजली आपूर्ति को ठप कर दी। स्विच बंद कर दिया औऱ इस तरह सर्वर को पूरी तरह नाकाम कर दिया। "
आगे एफआईआर में जेएनयू प्रशासन ने कहा है, कि
" इसी के कारण सीसीटीवी सर्विलांस, बायोमैट्रिक एटेंडेंस और इंटरनेट सेवा पर असर पड़ा। "
आरटीआई के उत्तर में कुछ, और पुलिस को दी गयी एफआईआर में कुछ औऱ तथ्य तथा आरोप जेएनयू प्रशासन द्वारा 4 जनवरी की घटना के संबंध में लगाये जा रहे हैं।
जेएनयू के कुलपति जगदीश कुमार ने भी इसी तरह का दावा किया था. उन्होंने कहा था कि वो 5 जनवरी के दिन (हमले के दिन) का सीसीटीवी डेटा जुटाने की कोशिश में संघर्ष से जूझ रहे हैं क्योंकि कुछ घंटे पहले प्रदर्शनकारी छात्रों ने इसे डैमेज कर दिया था।
सौरव दास की अर्जी पर जेएनयू द्वारा दिए गए जवाब में और भी चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. प्वाइंट नंबर दो में कहा गया है कि सर्वर रूम में रखे गए सभी सर्वर रूम को सिर्फ रिबूट करके सुधार लिया गया. न तो इन्हें कोई नुकसान पहुंचा था और न ही इन्हें रिप्लेस ही किया गया. इसके अलावा RTI जवाब के प्वाइंट नंबर 4 और 10 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि न तो सीसीटीवी कैमरों और न ही डाटा सर्वर रूम में तोड़फोड़ की गई।
न्यूज़ 18 के अनुसार, आरटीआई कार्यकर्ता सौरव दास ने बताया कि उन्होंने 8 जनवरी को अर्जी देकर जवाब मांगा था।. दास ने बताया कि उन्होंने जेएनयू छात्रों की जिंदगी और उनकी स्वतंत्रता के खतरे में होने का दावा किया था. बकौल दास, उन्हें 24 घंटे में ही आरटीआई अर्जी का जवाब दे दिया गया था. इसके मुताबिक, जेएनयू प्रशासन ने 3 और 4 जनवरी को हिंसा की घटनाएं होने की बात कही है. सौरव दास ने बताया कि दिल्ली पुलिस की FIR के मुताबिक, तोड़फोड़ की घटनाएं 1 जनवरी को हुई थीं।
( विजय शंकर सिंह )
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