Saturday, 28 December 2019

साम्प्रदायिक सौहार्द आज की सबसे बड़ी जरूरत है / विजय शंकर सिंह

साम्प्रदायिक सौहार्द, यह शब्द, सबसे अधिक संघ भाजपा को कचोटता है। आज से ही नहीं बल्कि 1937 से ही कचोटता रहता है। आज समाज मे जितना ही साम्प्रदायिक सौहार्द बना रहेगा, संघ भाजपा उतनी ही असहज होती रहेगी। उसे गंगा जमुनी तहजीब, साझी विरासत, साझी संस्कृति, विविधता में एकता, बहुलतावाद, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, वैष्णव जन जो तेने कहिये, धर्मनिरपेक्षता आदि आदि मोहक शब्दों से थोड़ी दिक्कत होने लगती है। वे बेचैन होने लगते है। उसे अकबर से दिक्कत है, औरंगजेब से बल्कि उतनी नहीं है क्योंकि औरंगजेब की राजनीति भाजपा, संघ के लिये आधार और तर्क तैयार करती है।  हिंदू मुस्लिम वैमनस्यता और धार्मिक कट्टरता से ही इनकी विभाजनकारी विचारधारा को बल मिलता है। सावरकर को जिन्ना और अंग्रेजों से उतना बैर नहीं था जितना गांधी से। यही इनकी यूएसपी है। यही इनका आधार है। 

2014 में भाजपा सरकार यूपीए 2 के भ्रष्टाचार और अन्ना हजारे के एन्टी करप्शन मूवमेंट से उत्पन्न व्यापक जन समर्थन के बल पर आयी थी। तब का भाजपा का संकल्पपत्र आर्थिक वादों और सामाजिक समरसता के आश्वासनों से भरा पड़ा था। सबका साथ, सबका विकास इनका प्रिय बोधवाक्य था। अब उसमे एक शब्द और जुड़ गया, सबका विश्वास। पर अपने ही संकल्पपत्र 2014 में दिए गए वादों पर देश को आर्थिक गति देने के लिये, सरकार ने कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया। बल्कि कुछ ऐसे मूर्खतापूर्ण आर्थिक निर्णय सरकार द्वारा लिए गए जिससे आर्थिक स्थिति बिगड़ती ही चली  गयी और अब हालत यह हो गयी है कि देश एक गंभीर आर्थिक मंदी के दौर में पहुंच गया है। अब इस संकट से उबरने के लिये न तो सरकार में प्रतिभा है, न इच्छाशक्ति, न कौशल और न ही कोई दृष्टि। अब सरकार और सत्तारूढ़ दल सामाजिक उन्माद के अपने पुराने और आजमाए हुये मुद्दों पर लौट आये है। 

बीफ और गौरक्षा के अनावश्यक मुद्दे पर, गौगुंडो द्वारा की जाने वाली मॉब  लिंचिंग, उसका सरकार के मंत्रियों द्वारा खुलकर महिमामंडन,  लव जिहाद और घर वापसी के तमाशों, से लेकर आज तक इनकी एक मात्र कोशिश यही रही है कि हर अवसर पर हिंदू मुस्लिम साम्प्रदायिक उन्माद फैले और उसी विवाद के पंक में इनका कमल खिलता रहे । आप 2014 के बाद के सरकार के चहेते टीवी चैनलों द्वारा प्रसारित किए गए कार्यक्रमों को देखिए। रोज़ ऐसे ही कार्यक्रम प्रसारित किए गए और भी किये जा रहे हैं, जिससे लोगों के जेहन में हिंदू मुसलमान से ही जुड़े मुद्दे बने रहें और जनमानस के दिल दिमाग की ट्यूनिंग इसी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर बढती रहे। राजकृपा से अभिशिक्त गोदी मीडिया के चैनलों ने रोजी, रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य के मुद्दे पर कोई भी कार्यक्रम चलाया हो, यह याद नहीं आ रहा है। क्योंकि ऐसे मुद्दे सरकार को असहज करते हैं। और सरकार को असहज होते भला कैसे देख सकते हैं ये दुंदुभिवादक ! 

लेकिन देश का साम्प्रदायिक माहौल लाख कोशिशों के बावजूद भी ऐसा अब तक नहीं हो सका जिससे बड़े और स्वयंस्फूर्त दंगे भड़क सकें जैसा कि अतीत में कई बार भड़क चुके हैं । सीएए में मुस्लिम को अन्य धर्मों से अलग रखना इनका मास्टरस्ट्रोक था, ताकि यह खुद को हिंदू हित समर्थक दिखा सकें और इस मुद्दे पर फिर एक साम्प्रदायिक विभाजन की नींव रख सकें। नागरिकता संशोधन कानून लाने और उस कानून में मुस्लिम को अलग रखने का उद्देश्य ही केवल यही था कि इसका विरोध मुसलमानों द्वारा हो और इसी बहाने फिर दंगे फैल जांय। सरकार को यह आभास नहीं था कि धर्म की दीवार तोड़ कर पूरे देश मे एक साथ लोग, इस कानून और एनआरसी के खिलाफ खड़े हो जाएंगे। असम और नॉर्थ ईस्ट जो घुसपैठिया समस्या से सबसे अधिक पीड़ित है, इस कानून के खिलाफ समवेत रूप से बिना किसी साम्प्रदायिक मतभेद के उबल बड़ा। क्योंकि घुसपैठ की समस्या के खिलाफ उठा  यह आंदोलन असम और नॉर्थ ईस्ट में, अपने जन्म के ही समय से किसी भी दशा में साम्प्रदायिक है ही नहीं। आज भी वह आंदोलन असमिया पहचान, अस्मिता और भाषा को लेकर है, न कि हिंदू मुस्लिम धर्म आधारित घुसपैठियों को लेकर। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की हरकतें भाजपा द्वारा अब भी जारी हैं। 

अमित शाह ने संसद में एनआरसी के मुद्दे पर अपनी क्रोनोलॉजी सदन के पटल पर रखते हुए साफ साफ झूठ बोला, कि पहले सीएए आएगा और फिर पूरे देश मे एनआरसी लागू होगी। विदेशी घुसपैठिया और दीमक का जिक्र तो उनके हर चुनावी भाषण में झारखंड में था। हालांकि, प्रधानमंत्री जी ने भी, अमित शाह की सदन में रखी गयी क्रोनोलॉजी पर रामलीला मैदान दिल्ली में दिए गए अपने एक भाषण में, साफ साफ कह दिया कि ' पूरे देश मे एनआरसी लागू होने के मुद्दे पर तो कभी चर्चा ही नहीं हुयी थी। ' अब भला प्रधानमंत्री तो झूठ बोलने से रहे, तो यह झूठ तो अमित शाह ने ही बोला होगा फिर । खुल कर, कमर पर हाँथ रख के क्रोनोलॉजी समझाई थी अमित शाह ने । यह हम सबने टीवी पर लाइव  देखा और सुना है। अमित शाह का यह बयान सदन को गुमराह करना है । सदन में झूठ बोलना है। बिना कैबिनेट में चर्चा और मंजूरी के सदन में वह कह देना, जो सरकार ने सोचा ही नहीं है, न केवल कैबिनेट के सामूहिक दायित्वों, बिजनेस रूल्स का उल्लंघन है बल्कि संसद के भी विशेषाधिकार का हनन है। सरकार ने राष्ट्रपति को भी उनके अभिभाषण के माध्यम से इस झूठ में लपेट लिया। राष्ट्रपति ने भी अपने अभिभाषण में एनआरसी लागू करने की बात कही थी। राष्ट्रपति का अभिभाषण, सरकार द्वारा लिखा और अनुमोदित दस्तावेज होता है जिसे राष्ट्रपति दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में केवल पढ़ते हैं। वे अगर वैचारिक रूप से उक्त अभिभाषण से सहमत न हों तब भी उन्हें वह पढ़ना ही है। यह उनकी संवैधानिक बाध्यता है। क्योंकि, यह अभिभाषण भी कैबिनेट द्वारा मंजूर किया जाता है। अब सच क्या है और झूठ क्या है यह आप अनुमान लगाते रहिये। 

बार बार बात, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक या हिंदू उत्पीड़न की बात कही जा रही है। यह बात सच भी है कि अफगानिस्तान पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक या हिंदू उत्पीड़न हुआ है, यह अब भी हो रहा है, और आगे भी नहीं होगा इसकी कोई गारंटी भी नहीं हैं। 
पर क्या कभी इस मुद्दे पर भाजपा सरकार ने पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से अपना विरोध दर्ज कराया और कभी अंतरराष्ट्रीय पटल पर इस मुद्दे को उठाया ?
लाहौर बस यात्रा, मुशर्रफ बाजपेयी आगरा वार्ता, नरेंद मोदी और नवाज़ शरीफ़ के बीच हुई अनेक औपचारिक, अनौपचारिक मुलाकातों, बातों के बीच यह मुद्दा क्यों नहीं उठाया गया ? 
सरकार और सत्तारूढ़ दल का उद्देश्य इस समस्या का समाधान करना है ही नहीं, बल्कि उसकी आड़ में देश मे साम्प्रदायिक उन्माद की आग जलाए रखना है। 

आज जो भी इस तरह के अनावश्यक फैसले सरकार कर रही है उसका एक मात्र उद्देश्य देश को आपस मे लड़ा कर उलझा देना है, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करते रहना है, हर बात को सांप्रदायिक चश्मे से देखना है, ताकि गर्त में जाती हुयी अर्थव्यवस्था से लोगों का ध्यान भटकता रहे। अभी और शिगूफे आएंगे। क्योंकि संघ और भाजपा की कोई भी स्पष्ट आर्थिक नीति नहीं है और कभी रही भी नहीं है। आज की सबसे बड़ी जरूरत है कि, हम सामाजिक सौहार्द बनाये रखें । इससे ये और भी अधिक असहज होते जाएंगे। इन्हें कभी यह सिखाया ही नहीं जाता है कि समाज मे कैसे सभी धर्मों, जातियों में सामाजिक समरसता को बना कर रखा जाय। क्योंकि इनकी नींव ही यूरोपीय घृणावाद से विकसित हुयी है। साम्प्रदायिक एकता भाजपा और संघ के सारे दांव विफल कर देगी। 

© विजय शंकर सिंह 

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