Wednesday, 30 October 2019

पटेल और नेहरू के आपसी संबंध, आइये दिग्गजों की बात करें / विजय शंकर सिंह


आज 31 अक्टूबर को सरदार बल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन भी है। सरदार पटेल पर बहुत कुछ लिखा गया है और यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा। मस्तिष्क के खोजीपन का कोई अंत नहीं है। पर राजमोहन गांधी द्वारा लिखी गयी पटेल की जीवनी, पटेल अ लाइफ उनके जीवन पर लिखी गयी सबसे प्रमाणिक पुस्तकों में से एक है। यह लेख, उसी पुस्तक के एक अंश जो नेहरू और पटेल के बीच हुये पत्राचार से सम्बंधित उस पुस्तक में है पर आधारित है। 

कुछ मित्रों के लिये नेहरू और पटेल का विवाद बहुत मौज़ू विषय है। उन मित्रों को न पटेल से प्रेम है और न नेहरू से कोई अनुराग, बल्कि वे इस वैचारिक मतभेद के माध्यम से यह दिखाना चाहते हैं कि पटेल को नेहरू पसंद नहीं करते थे और नेहरू की ज़िद से कुछ जटिल समस्याएं पैदा हुई।

30 जनवरी 1948 को शाम महात्मा गांधी की हत्या हो चुकी थी। देश के लिये यह बेहद संकट और दुख की घड़ी थी। गांधी जी की हत्या के पहले भी प्रयत्न हो चुके थे। पटेल गृह मंत्री थे। गांधी जी की सुरक्षा को लेकर उनपर बहुत आक्षेप लगे। उनके इस्तीफे की भी मांग हुयी। महात्मा गांधी की हत्या हो गयी तो सरदार सबके निशाने पर आ गए क्योंकि वे देश के गृह मंत्री थे। सरदार गांधी के निकटतम शिष्यों में से एक थे। सरदार नाम ही उन्हें गांधी ने बारडोली के प्रख्यात किसान सत्याग्रह के बाद दिया था। 

गांधी जी की 30 जनवरी को हत्या हुयी और 3 फरवरी को दिल्ली के स्टेट्समैन अंग्रेजी दैनिक में एक खबर प्रकाशित हुआ। खबर  में लिखा था, 
" सरदार पटेल को उनके अधीनस्थ सुरक्षा विभाग की विफलता के लिये त्यागपत्र दे देना चाहिये। जब गांधी जी पर बम फेंका गया था, तभी से गांधी जी के खिलाफ लोगों में असंतोष पनप रहा था, और इसकी चेतावनी सुरक्षा विभाग को दी जा चुकी थी। "

उसी दिन जयप्रकाश नारायण और उनके समाजवादी मित्रो ने गृह मंत्री सरदार पटेल से इस्तीफा मांगा और एक नए गृहमंत्री के नियुक्ति की मांग की। जयप्रकाश नारायण जो समाजवादी आंदोलन और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के एक वरिष्ठ नेता थे ने कहा, कि 
" अब एक नए गृहमंत्री की ज़रूरत है जो घृणा के इस वातावरण को नियंत्रित कर सके। 74 साल का एक व्यक्ति जिसके पास तमाम विभाग हैं, वह उन विभागों को कैसे सँभाल सकता है जबकि 30 वर्ष के एक युवा के भी बस में नहीं है कि वह इतने सारे विभागों को संभाल सके। "
यह निशाना सरदार पटेल पर था। 

पटेल इस आलोचना और तीखी प्रतिक्रिया पर स्तब्ध रह गए। यही बात मृदुला साराभाई ने भी एक निजी बातचीत में कहीं कही थी, जो पटेल की जानकारी में आयी। पटेल स्वयं गांधी हत्या के शोक से मर्माहत थे ऊपर से उनके कार्यप्रणाली और दक्षता को लेकर की जा रही यह सब टीका टिप्पणी उन्हें विचलित कर रही थी। सरदार एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। स्तब्ध और व्यथित सरदार पटेल ने तुरन्त अपना इस्तीफा लिख दिया और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को उस इस्तीफे में यह याद दिलाया कि उनका एक इस्तीफा देने संबंधी पत्र, पहले से ही, उनके (जवाहरलाल नेहरू) की मेज पर पड़ा है। दरअसल पटेल इन सारी आलोचनाओं के पहले ही, गांधी हत्या के बाद दूसरे ही दिन, अपना त्यागपत्र देने की पेशकश, जवाहरलाल नेहरू से कर चुके थे। 

सरदार पटेल ने अपने इस त्यागपत्र में स्टेट्समैन के 3 फरवरी 1948 की खबर का उल्लेख करते हुये लिखा कि, 
" स्टेट्समैन के संवाददाता ने एक संवैधानिक दायित्व की बात की है, और मैं समझता हूँ, उसने एक सही विंदु उठाया है। यह मेरे त्यागपत्र देने का एक अतिरिक्त कारण है । " 
सरदार ने अखबार में छपी एक खबर को भी कितना महत्व दिया, इससे तब के मीडिया की स्वतंत्रता और एक अत्यंत वरिष्ठ राजनेता के उदात्त और लोकतांत्रिक चरित्र को समझा जा सकता है। आज के वक़्त में यह उदाहरण शायद ही मिले। अपने त्यागपत्र में सरदार आगे लिखते हैं, 
" में इस गंभीर संकट ( महात्मा गांधी की हत्या ) की घड़ी में, आप को असहज नहीं करना चाहता हूं। लेकिन जब जनता की यही मांग ( पटेल का त्यागपत्र ) है, जो एक चुनौती भी है, और यह औचित्यपूर्ण भी,  मैं आप से अनुरोध करूँगा कि आप मेरी सहायता ( त्यागपत्र स्वीकार कर ) कीजिये। " 
सरदार पटेल का यह त्यागपत्र, सरदार पटेल करेस्पांडेंस वॉल्यूम 2, पृष्ठ संख्या 279 पर है । 
सरदार पटेल यहां जनमत और प्रेस की आलोचना के कारण चाहते थे कि नेहरू उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लें। सरदार का यह दूसरा त्यागपत्र था। उनका पहला इस्तीफा जवाहरलाल नेहरू के पास पहले से ही पड़ा था, जो उन्होंने 31 जनवरी को ही दे दिया था। लेकिन जिसे नेहरू ने स्वीकार नहीं किया था। 

अजब स्थिति थी। नेहरू की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। पटेल को यह भी पता नहीं चल पा रहा था कि उन्हें आगे गृहमंत्री के रूप में काम करना भी है या नहीं। गांधी हत्या एक बड़ी घटना थी। सब स्तब्ध थे। शिशु भारत अभी जन्मा ही था। गांधी के शव के सामने दोनो ही एक दूसरे से गले लग कर शोकाकुल थे। दोनो ने ही मृत्यु के बाद राष्ट्र को सम्मिलित रूप से संबोधित भी किया। पहले नेहरू बोले फिर पटेल ने अपने उद्गार व्यक्त किये। पर इस्तीफे पर न सरदार पटेल ने कुछ पूछा और न नेहरू ने कुछ कहा। सस्पेंस दोनो के ही बीच था। बाहर अभी कुछ पता नहीं था। 

जयप्रकाश नारायण जिन्होंने स्टेट्समैन अखबार की खबर के बाद इस्तीफे के बारे में अपनी राय दी थी, जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है,  उस समय जवाहरलाल नेहरू के ही यहां रहते थे और मृदुला साराभाई भी नेहरू जी के करीब थीँ। पटेल को यह अनुमान था कि हो न हो नेहरू के ही मन की बात कि पटेल को इस्तीफा दे देना चाहिए, जयप्रकाश नारायण ने स्टेट्समैन के द्वारा कही हो। 

लेकिन पटेल का यह त्यागपत्र जो उनके सचिव विद्या शंकर के पास था, जिसे उन्हें नेहरू को भेजना था, के संदर्भ में मणिबेन ( सरदार पटेल की पुत्री ) विद्या शंकर के पास गयीं और उस त्यागपत्र को नेहरू के पास, भेजने के लिये मना किया, और कहा कि, 
" नियति ने जो कुछ भी किया है ( यानी गांधी जी की हत्या ) उसके लिये गृह मंत्रालय को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। यह पत्र अगर सरदार पटेल के दुश्मनों के हाँथ पड़ गया तो, आज जो दोनों की ( नेहरू और पटेल ) का साझा नेतृत्व देश को मिल रहा है, उसमे व्यवधान पड़ जायेगा, जो इस संकट की घड़ी में देश के लिये बहुत बुरा होगा।'
सरदार ने जब मणिबेन की बात सुनी तो उन्होंने अपने सचिव को वह पत्र भेजने के लिये अधिक जोर नहीं दिया। 

आखिर मणिबेन की ही बात सच निकली। सरदार पटेल और उनके सचिव विद्या शंकर, नेहरू के बारे में विपरीत अनुमान लगा रहे थे। 
आखिर कार 3 फरवरी 1948 को ही जिस दिन स्टेट्समैन में पटेल को इस्तीफा दे देना चाहिए, वाला पत्र छपा था, उसी शाम को नेहरू ने पटेल को एक पत्र लिखा। यह पत्र, सरदार पटेल करेस्पांडेंस वॉल्यूम 2 के पृष्ठ संख्या 204 और 205 पर छपा है। 

नेहरू अपने पत्र में लिखते हैं ,
" बापू की मृत्यु के साथ साथ सब कुछ बदल गया और हमे एक बदली हुयी और कठिन दुनिया का सामना करना है। मैं अपने और आप के बारे में लगातार उठ रही फुसफुसाहटों और अफवाहों से अत्यधिक पीड़ा महसूस कर रहा हूँ, जो हमारे आप के बीच के मतभेदों को अनावश्यक रूप से बहुत बढा चढा कर पेश की जा रही हैं। हमें आपस मे मिलकर, इस शरारत को यही समाप्त करना होगा। 

एक चौथाई सदी से भी अधिक समय से हम एक दूसरे के साथ बहुत आत्मीयता से साथ साथ रहे हैं और हमने साथ साथ मिलकर कई तूफान झेले हैं और कठिनाइयों का सामना किया है। मैं पूरी निष्ठा से यह बात कह सकता हूँ कि इस दौर में आप के प्रति मेरे मन में, जो प्रेम और सम्मान बढ़ा है उसे कोई भी बात ( अफवाह या दुष्प्रचार ) किसी भी दशा में कम नहीं कर सकता है। 

बहरहाल, बापू की मृत्यु के बाद उपजे इस संकट का सामना, या यूं कहें कि इस संकट से आप भी रूबरू हैं, अतः हम दोनों को एक दोस्त और एक सहयोगी की तरह इस मुसीबत की घड़ी में मिलकर इस मुश्किल वक़्त का सामना करना है। यह न केवल लोगों को दिखाने के लिये, बल्कि एक दूसरे के प्रति सम्पूर्ण वफादारी और परस्पर विश्वास के साथ हमे आगे काम करना होगा। अपनी तरफ से मैं आप को आश्वस्त कर दूं, कि आप मुझसे इन सब ( वफादारी और परस्पर विश्वास ) की उम्मीद कर सकते हैं। 

मैंने सोचा था, आप से इन विषयों ( मतभेद और त्यागपूर्ण मांगने की अफवाहों और स्टेट्समैन में छपी 3 फरवरी की खबर पर ) आप से लंबी बात करूं, पर वर्तमान परिस्थितियों ( गांधी हत्या के बाद उत्पन्न संकट ) के कारण समय का इतना अभाव है कि यह हो नहीं सका। बहरहाल, मैं आप से बात करने तक का इंतजार नहीं करना चाहता  हूँ, इसलिए यह पत्र अपने स्नेह और मित्रता के साथ आप को अपनी बात कहते हुये भेज रहा हूँ। " 

जवाहरलाल नेहरू के इस सुदर और आत्मीयता से भरे पत्र का उत्तर सरदार पटेल ने जो दिया उसे आप यहां पढ़ें। सरदार पटेल का यह उत्तर भी, सरदार पटेल के सेलेक्टेड करेस्पांडेंस वॉल्यूम 2 के पृष्ठ 205 और 206 पर दिया गया है। 

पटेल ने नेहरू के पत्र के जवाब में यह लिखा, 
" मैं अंदर तक आप की यह आत्मीयता महसूस कर रहा हूँ, और सच मे आप के पत्र में जो स्नेह और गर्माहट है, उससे मैं अभिभूत हूँ। आपने जो भावनाएं खुल कर व्यक्त की हैं उनका मैं तहे दिल से समर्थन करता हूं। हम दोनों लम्बे समय तक एक साझे उद्देश्य के लिये एक दूसरे के साथी रहे हैं। हमारे देश का हित, और हम दोनों का परस्पर प्रेम और सम्मान, जो अपने विचार वैभिन्यता के बावजूद बराबर रहा है, इन सब मतभेदों के ऊपर और अलग है जिनका उल्लेख आपने किया है। वही परस्पर प्रेम और सम्मान हमें एकजुट रखे हुये हैं। 

सौभाग्य से मुझे बापू से उनकी मृत्यु के पूर्व एक घण्टे तक बात करने का अंतिम अवसर मिला है । उनकी राय भी यही थी कि हम दोनों एक साथ एकजुट होकर रहें। मैं आप को आश्वस्त करता हूं कि मैं पूरी दृढ़ता और इसी भावना के साथ ( जो आपने अपने पत्र में व्यक्त किया है ) अपने दायित्वों ( गृहमंत्री ) का निर्वहन करूँगा। "

इसके ठीक एक दिन पहले संविधान सभा में कांग्रेस पार्टी को सम्बोधित करते हुये सरदार पटेल ने जवाहरलाल नेहरू को मेरे नेता कह कर संबोधित किया था। 

आज सरदार बल्लभभाई पटेल के जन्मदिन पर उनके चरित्र के इस महान पक्ष को हमारी नयी पीढ़ी के पाठकों को जानना चाहिये ताकि वे दुष्प्रचार के प्रदूषण से बच सकें । सरदार पटेल को उनके जन्मदिन पर उनका विनम्र स्मरण। 

© विजय शंकर सिंह 

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