Monday, 16 September 2019

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता - देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता है / विजय शंकर सिंह

साहित्य कभी पुराना नहीं होता है। विशेषकर कुछ साहित्य। आज हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्मदिन है। आज उनकी एक बेहद प्रासंगिक कविता पढिये। कश्मीर हमारे घर का एक कमरा है। वह बेहद खूबसूरत और आरामदेह कमरा है। पर वहां आग लगी है। और हम देश के एक अभिन्न अंग को पंगु किये दूसरे कमरों में आराम से बैठे हैं। चालीस दिन का कर्फ्यू, उस राज्य में जिसे हम दुनियाभर में चिल्ला चिल्ला कर अभिन्न अंग कहते नहीं थकते हैं, लगा है, यह शायद सत्तर साल में पहलीं बार हुआ होगा।
सर्वेश्वर जी की यह कविता पढें,

देश काग़ज़ पर बना नक्शा नहीं होता.

यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो ?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो ?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है ।

देश काग़ज़ पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियाँ, पर्वत, शहर, गाँव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें ।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है ।

इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
काग़ज़ पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और ज़मीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।
जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अन्धा है
जो शासन
चल रहा हो बन्दूक की नली से
हत्यारों का धन्धा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है ।

याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन ।
ऐसा ख़ून बहकर
धरती में जज़्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है ।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे ख़ून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो –
तुम्हें यहाँ साँस लेने तक का नहीं है अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।

आख़ि‍री बात
बिल्कुल साफ़
किसी हत्यारे को
कभी मत करो माफ़
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार ,
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना मूलतः कवि एवं साहित्यकार थे। 15 सितंबर 1927 को बस्ती में उनका जन्म हुुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने बीए और सन 1949 में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की और इलाहाबाद के एकाउंटेंट जनरल कार्यालय में उन्होंने नौकरी शुरू की। यहां वह 1955 तक कार्यरत रहे। तत्पश्चात आल इंडिया रेडियो के सहायक संपादक (हिंदी समाचार विभाग) पद पर उनकी नियुक्ति हो गई। इस पद पर वे दिल्ली में वे 1960 तक रहे। सन 1960 के बाद वे दिल्ली से लखनऊ आ गए। 1964 में लखनऊ रेडियो की नौकरी के बाद वे कुछ समय भोपाल एवं रेडियो में भी कार्यरत रहे। सन 1964 में जब दिनमान पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ तो वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' के आग्रह पर वे पद से त्यागपत्र देकर दिल्ली आ गए और दिनमान से जुड़ गए। 1982 में प्रमुख बाल पत्रिका पराग के सम्पादक बने। नवंबर 1982 में पराग का संपादन संभालने के बाद वे मृत्युपर्यन्त उससे जुड़े रहे। उनका निधन 23 सितंबर 1983 को नई दिल्ली में हो गया।

© विजय शंकर सिंह

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