Sunday, 8 September 2019

नया सड़क क़ानून और ट्रैफिक पुलिस की जनशक्ति / विजय शंकर सिंह

ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट, बीपीआरडी, BPRD की एक रिपोर्ट के अनुसार,
" पूरे देश मे कुल ट्रैफिक पुलिस के जवानों की जनशक्ति 72,000 से थोड़ी अधिक है जबकि सड़क पर चलने वाले कुल वाहनो की संख्या लगभग 20 करोड़ है। "
यह रिपोर्ट 2017 की संस्थान के अध्ययन में दी गयी है। लेकिन अभी भी अगर यह दो वर्ष उसमे जोड़ लें तो, यह संख्या बहुत अधिक नहीं बढ़ी होगी। वाहन और यातायात पुलिस के संख्यागत अनुपात को देखते हुये यह स्पष्ट है कि ट्रैफिक पुलिस की संख्या वाहनों के अनुपात में बहुत कम है। अगर इसका अनुपात जनसंख्या से जोड़ा जाएगा तो, संख्या और भी कम होगी।

पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक, यानी 8,500 यातायात पुलिस के जवान हैं कर्नाटक में, 6,000 और दिल्ली में यह संख्या 6,600 है। यह सारी जनशक्ति केवल बड़े और मझोले शहर में ही दिखेगी, जबकि कस्बों, और छोटे शहरों में यातायात पुलिस की उपस्थिति बहुत ही कम होती है। जवानों की कमी के कारण ही यातायात प्रबंधन के लिये इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की सहायता ली जाती है।

अब यह कहा जा रहा है कि बढ़े जुर्माने से लोग अनुशासित होंगे और सड़क दुर्घटनाओं में कमी आएगी। लेकिन यह आकलन उतना सही नहीं है जितना कि दावा किया जा रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक लेख में कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज के सड़क सुरक्षा प्रकोष्ठ के प्रमुख रमाशंकर पांडेय के हवाले से बताया है कि 55 % सड़क दुर्घटनायें ग्रामीण क्षेत्रों में होती है जो यातायात प्रबंधन के क्षेत्र में आते ही नहीं है।

बीपीआरडी ने राजधानी दिल्ली को उसकी महत्ता, सामान्य यातायात प्रबंधन के अतिरिक्त देशी, विदेशी  विशिष्ट महानुभावों के आवागमन तथा वहां की लगभग 85 लाख गाड़ियों की संख्या को देखते हुये, यातायात प्रबंधन हेतु  कुल 15,345 पुलिसजन की आवश्यकता का आकलन किया है, जबकि आज दिल्ली की ट्रैफिक पुलिस जनशक्ति इस संख्या के आधे से भी कम है।

किसी भी सरकार ने पुलिस की इस मूल समस्या का, उसकी नफरी या जनशक्ति जो आबादी, अपराध, बढ़ते नगर विकास और व्यापारिक और व्यावसायिक गतिविधियों के दृष्टिकोण से, अध्य्यन नहीँ किया है और न ही उसे हल करने में किसी को रुचि है।

© विजय शंकर सिंह

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