चिन्मयानंद का मामला सीबीआई को सौंपा जाना चाहिये। और यह देर सबेर होगा। लेकिन जब होगा तब तक यूपी पुलिस और सरकार की पर्याप्त छीछालेदर हो चुकी होगी। जो त्रुटि और ज़िद कुलदीप सेंगर के मामले में सरकार द्वारा की गयी, वही त्रुटि और ज़िद चिन्मयानंद के मामले में की जा रही है । जब किसी अपराध की विवेचना के मामले में सरकार, सत्तारूढ़ दल पर सन्देह उठने लगता है तो लोगों की निगाह उस मुक़दमे की विवेचना के हर पहलू पर अहर्निश गड़ी रहती है।
जनता का यह भाव आज से नहीं बल्कि बहुत पहले से है। जनता का बहुसंख्यक वर्ग यह मान कर चलता है कि ऐसे हाई प्रोफाइल मामले में पुलिस मुल्ज़िम को बचाएगी ही। यह हमारी पुलिस और जांच एजेंसी पर साख के संकट के कारण है। लोग यह पहले से ही मान बैठते हैं कि इस मामले में मुल्ज़िम का कुछ नहीं बिगड़ेगा और जांच एजेंसी के निष्कर्षों को, मुल्ज़िम के रसूख और उसके राजनीतिक समीकरण के अनुसार लोग देखते के आदी हैं।
चिन्मयानंद के मामले में भी पहले मुक़दमा वापस लेने की बात करना, फिर एफआईआर दर्ज न करना, फिर एफआईआर दर्ज अगर दिल्ली में हो गयी है तो उसकी विवेचना में हीला हवाली करना। अब जब सोशल मीडिया पर पीड़िता का बयान कि वह आत्महत्या कर लेगी और इलाहाबाद हाईकोर्ट में 23 तारीख को जांच के अब तक के निष्कर्षों को सौंपने की डेडलाइन नज़दीक आयी तो चिन्मयानंद को गिरफ्तार कर लेना और उन्हें कस्टोडियल रिमांड पर भी नहीं लेना, इन सब पर जनचर्चा जारी है ।
इस मामले में पुलिस की यह सारी जांच कार्यवाही अगर विधिसम्मत हो तो भी लोग यही मान कर चल रहे हैं कि अगर सोशल मीडिया का दबाव और अदालत की हनक नहीं होती तो न तो यह गिरफ्तारी होती और न ही पुलिस कोई काम करती। साख का यह संकट पुलिस के लिये एक चुनौती भी है और हमारी उपलब्धियों के लिये के लिये निराशाजनक।
जब कुछ ब्लैक नहीं था तो ब्लैकमेल किस बात का ? चिन्मयानन्द मामले में यह तर्क दिया जा रहा है, मालिश कराना और वह भी किसी लड़की के हांथो, अपराध नहीं है । समाज के इस बदलाव और स्वीकार्य भाव का स्वागत है । फिर तो स्पा सेंटर पर छापे मारना बंद कर देना चाहिये। अगर यह अपराध नहीं है तो चिन्मयानन्द शर्मिंदा किस बात से हैं ?
धारा 376 आइपीसी, बलात्कार के अपराध के मामले में किसी भी पीड़िता का बयान सबसे महत्वपूर्ण होता है। आज जब पीड़िता पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह ब्लैकमेल कर रही है तो यह बयान और क्रॉस केस चिन्मयानन्द के विरुद्ध ही जायेगा।
अगर यह ब्लैकमेल था, तो जैसे ही इस एक्सटॉर्शन यानी जबरन उगाही की धमकी मिली तभी चिन्मयानन्द ने मुकदमा दर्ज क्यों नहीं करा दिया गया ?
कितनी भी कोशिश चिन्मयानन्द कर लें, अगर पीड़िता अपने बयान पर अडिग रही तो वह भी आसाराम की गति को प्राप्त होंगे। मालिश कराना, एक बंद कमरे में और वह भी एक लड़की से, सन्यास धर्म के अनुकूल है या नही यह तो धर्मवेत्ता जानें और बतायें, पर यह कृत्य, परिस्थितियों के अनुरूप, अपराध के मोटिव को बहुत साफ करता है।
अब उस कमरे में जहां मालिश चल रही थी, वहां बलात्कार हुआ या नहीं यह केवल पीड़िता ही बता सकती है,और उसी की बात मानी जायेगी। पीड़िता ने 164 सीआरपीसी के अंतर्गत बलात्कार का आरोप चिन्मयानन्द पर लगा दिया है।
कानूनी स्थिति यह है कि बलात्कार की धारा, 376 आइपीसी के अंतर्गत दर्ज मामलों में अदालतें, मुख्यतः, पीड़िता के बयान और परिस्थितियों को ध्यान मे रख कर ही, फैसला देती हैं। मालिश के वीडियो और चिन्मयानन्द की स्वीकृति ने परिस्थितियों को और पीड़िता के 164 सीआरपीसी के अंतर्गत दिये गए बयान ने बलात्कार के आरोप को काफी हद तक स्पष्ट कर दिया है।
© विजय शंकर सिंह
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