अल्बर्ट आइंस्टीन से एक बार एक पत्रकार ने पूछा कि
" तीसरा विश्वयुद्ध, अगर हुआ तो वह किन हथियारों से लड़ा जाएगा ? "
आइंस्टीन ने मुस्कुराते हुये कहा,
" तीसरा विश्वयुद्ध किन हथियारों से लड़ा जाएगा, यह तो मैं नहीं बता पाऊंगा, पर अगर उसके बाद लोग बचे और किन्ही कारणों से चौथा विश्वयुद्ध होगा तो, वह ईंट और पत्थरों से लड़ा जाएगा । "
अल्बर्ट आइंस्टीन एक वैज्ञानिक ही नहीं थे, बल्कि एक मानवतावादी भी थे। उनके कहने का आशय यह था कि तीसरा युद्ध अगर उनके समय मे ही उपलब्ध हथियारों से लड़ा गया तो विश्व का विनाश निश्चित है। जन,धन, वनस्पति सबका विनाश होगा। यह महाविनाश होगा। युद्ध सीमा पर ही नहीं, आकाश पाताल सर्वत्र लड़ा जाएगा। युद्ध मे परमाणु बमों, या हो सकता है इससे भी घातक बम आज कहीं न कहीं किसी देश के शस्त्रागार में रखे हों, का प्रयोग होगा तो महाविनाश के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचेगा।
6 अगस्त 1945 में पहला परमाणु बम जापान के हिरोशिमा पर यूएस ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान फेंका था। फिर नागासाकी पर। दोनों ही शहर तुरन्त बरबाद हो गए और आज तक, उस हृदयविदारक घटना के 75 साल बाद भी, उन परमाणु बमों से उत्पन्न घातक विकिरण समाप्त नहीं हुआ है। वे बम 20 टीएनटी ( ट्राई नाइट्रो टॉलवीं ) की क्षमता के थे। अब तो बम संसार मे हैं वह इनसे कई गुना मारक क्षमता के हैं। वह परमाणु बमों का एक प्रकार से प्रयोग था। यूएस ने शायद जापान को गिनी पिग समझ रखा था। हो सकता है, यूएस को भी इतने बड़े पैमाने के विनाश का अंदाज़ा न रहा हो। क्योंकि वह संसार का पहला परमाणु बम परीक्षण था। यह अंतिम भी हो, यही कामना है। पर जब दुनिया ने विनाश का यह भयावह मंजर देखा तो दुनिया का परमाणु बमों के प्रति नज़रिया भी बदला। कई कानून बने।
ज़ी न्यूज़ के सुधीर चौधरी ने कल अपने चैनल पर एक कार्यक्रम किया क़ि, परमाणु बम के हमले से कैसे बचें। उनका यह कार्यक्रम बचकाना था। बजाय इसके कि परमाणु हमले में कैसे बचें यह बताने के उन्हें यह बताना चाहिये कि भारत पाक के बीच पनप रहा यह तनाव कैसे कम हो। उनका यह उपाय ऐसे ही है, जैसे वे मलेरिया और डेंगू फैलाने वाले मच्छरों से बचने का उपाय सुझा रहे हों। ऐसा भी नहीं कि जी न्यूज को परमाणु विभीषिका का अंदाज़ा नहीं है। पर जब सोच डॉन क्विकजोट की तरह, असल जन समस्याओं से ध्यान हटा कर काल्पनिक शत्रु गढ़, उससे उलझने और लड़ने की हो जाती है तो और कोई चारा ही नहीं शेष रहता है ।
इसी कार्यक्रम में, सुधीर चौधरी यह मशविरा दे रहे हैं कि जब तक मदद न पहुंचे बाहर न निकले। लेकिन मदद करने बाहर से आएगा कौन, यह सुधीर नहीं बता रहे हैं। मिनटों में हिरोशिमा और नागासाकी आग के जलते गोले में बदल गया था। न कोई बचने वाला था और न कोई बचाने वाला। आज भी उस महाविनाश के अवशेष वहां पर हैं।
ज़ी न्यूज़, घटती जीडीपी, बढ़ती बेरोज़गारी, बिगड़ती अर्थव्यवस्था, टूटता बैंकिंग सेक्टर, महीने भर से अनायास थोपे गये कारावास का दंड भोग रहा कश्मीर की आम जनता, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन, ( एनआरसी ) के कुछ निर्णयों से धीरे धीरे ज्वलनविन्दु की ओर बढ़ता आसाम और नॉर्थ ईस्ट के अन्य राज्य, आदि बड़ी समस्याएं नहीं देख पाता है। वह अंधा नहीं है। वह देखता है यह सब। पर वह इन पर चर्चा नहीं कर सकता। यह उसकी मजबूरी है। यह वह भी जानता है और हम आप भी। तब वह कुछ काल्पनिक शत्रु गढ़कर उसी में उलझता है पर हम आप तो न उलझें। परमाणु बम से बचने का एक ही उपाय है, इस की नौबत ही न आने दे। दुनियाभर के परमाणु सम्पन्न देश इस महाविनाश से अनभिज्ञ नहीं हैं।
© विजय शंकर सिंह
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