कर्णाटक में लोकतंत्र बच गया। उसे बचाने के लिये चार्टर्ड हवाई जहाज और मुम्बई के पांच सितारा रिसॉर्ट की व्यवस्था जिसने की है अगर वह न होता तो लोकतंत्र बचता कैसे। उसने यह भ्रम तोड़ कर इस सिद्धांत का खंडन कर दिया कि लोक से लोकतंत्र संचालित होता है, और यह सिद्धांत प्रतिपादित हुआ कि लोक रहे या न रहे धन का लोकतंत्र में रहना सबसे आवश्यक है। सर्वे गुणा कंचनामाश्रयन्ति !! हैरानी की यह बात रही कि कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष पर यह अर्थपाश मंत्र क्यों नहीं चला !
येदुरप्पा जी को ज्योतिष पर बहुत भरोसा है। उन्होंने शपथ के पूर्व अपने नाम की हिज्जे बदल दिया है। ज्योतिष पर मेरा भरोसा सेलेक्टिव रहा है। जब से रिटायर हुआ हूँ, ज्योतिषियो से बात नहीं करता। कारण नौकरी रही नहीं, तो तबादला और सरकार का डर भी नहीं रहा। नौकरी में जैसे ही सरकार बदलती रही मैं अपने ज्योतिषी मित्र से संपर्क करता था और वे इतना अच्छा बताते थे कि आराम से सो जाता था। सुबह जो वे बताते थे उसका उल्टा फलित होता था और सुबह की चाय के साथ तबादले का कागज नमूदार हो जाता था।
पर येदुरप्पा सर भाग्यवान हैं। कहां किसी को एक बार भी शपथ लेने का अवसर नहीं मिलता वहीं इन्होंने चौथी बार शपथ ले ली है। उनके पंडित जी ठीक हैं। हमारे वाले तो काशी के हैं तो वे खुद को ही त्रिशूल पर स्थापित बताते हैं। जब उनकी बात सही होती तो कहते " हम त पहिलही कहत रहली इहे होई । तोहि ना मानत रहला । " और जब उनकी बात सही नहीं होती तो कहते कि " कहले रहली पूजा करे के तब त मज़ाक़ बनउला, अब हम का करीं ।" अब मैं क्या कहता !
कर्नाटक के लोगो को बीएस येदुरप्पा के रुप मे एक ईमानदार मुख्यमंत्री मिला। एक दम संत, पूजा पाठी, नासिका सुर से कफमताल करते हुए, अनुभवी और निर्विकार। अगर बाबा रामदेव को वे कुछ भूमि दान कर दें तो रामदेव तत्काल कर्णाट ऋषि की उपाधि ले खुद ही बेंगलुरू पहुंच जाएंगे। अब कर्नाटक के लोक को बधाई क्या दूँ। लोक तो जहाज और रिसॉर्ट में समाहित हो गया है। जहाज और रिसॉर्ट का इंतज़ाम कर, बेहद मुश्किल वक़्त में डिजिटल पेमेंट करके लोकतंत्र बचाने वाले उस अदृश्य शक्ति का नमन और नए मुख्यमंत्री येदुरप्पा जी को बधाई और शुभकामनाएं !
© विजय शंकर सिंह
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