कभी कभी व्हाट्सअप से भी रोचक ज्ञान बरस जाता है। उसी में से एक यह भी है। पहले इसे पढें,
" संजय ठकराल, यूरो एक्जिम बैंक के सीईओ।अर्थ चक्र कैसै चलता है इसका विश्लेषण करते हुऐ अर्थशास्त्रीयों के बीच कहते हैं-
एक साईकिल चलाने वाला देश की अर्थव्यवस्था के लिये किस प्रकार घातक है।
न तो वह कार खरीदता है न ही कार के लिए लोन ही लेता है।
न ही वह इनस्योरैन्स लेता है।
न ही वह पैट्रोल खरीदता है।
न ही वह कार की सर्विस कराता है न ही मरम्मत।
न ही वह पार्किंग का उपयोग करता है।
न ही उसे मोटापा सताता है।
जी हाँ---स्वस्थ्य आदमी के कारण अर्थव्यवस्था नहीं चलती।न तो वह दवा खरीदेगा न ही हास्पिटल और डॉक्टर का मुँह देखेगा।
ऐसे लोग देश की जीडीपी में कोई योगदान नहीं करते।
जबकि एक मैकडोनाल्ड का रैस्त्रराँ कम से कम 30लोगों के लिये रोजगार सृजन करता है।10हृदय रोग विशेषज्ञ,10दाँतों के डॉक्टर,10वजन घटाने वाले विशेषज्ञ और इसके अलावा उस रैस्त्रराँ में काम करने वाले कर्मचारी।
क्या चुनेंगे आप एक साईकिल वाला या एक मैकडॉनल्ड्स। "
यह संदेश सच है या झूठ या मज़ाक़ यह तो इसका ओरिजिनेटर ही बता पायेगा, फिलहाल तो मैं इसे गोपाल राठी जी जिनको यह व्हाट्सएप संदेश मिला है, की टाइमलाइन से उठा रहा हूँ। पूंजीवादी तंत्र लाभ पर आधारित होता है। निवेश, लाभ, लाभांश, हानि, पुनर्निवेश आदि पूंजीवादी तँत्र की सारी चेतना ही लाभ पर केंद्रित होती है। लोककल्याणकारी सोच पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था में आ ही नहीं सकती है। दान और धर्मादा की बात जरूर वहां उठती है पर यह पूंजीवाद में सामंतवाद के जो अवशेष हैं, यह उसका परिणाम है।
व्हाट्सएप पर मिले इस संदेश के बाद आप पूर्व राष्ट्रपति और लंबे समय तक यूपीए के समय वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी की भी राय देश की वर्तमान अर्थव्यवस्था पर जानना ज़रूरी है। प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि
" आधुनिक भारत की नींव उन संस्थापकों ने रखी थी, जिनका योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में मज़बूत भरोसा था, जैसा आजकल नहीं है, जब योजना आयोग को खत्म कर दिया गया है। "
वे दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने आगे कहा,
"जो लोग 55 साल के कांग्रेस शासन की आलोचना करते हैं, वे यह बात नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि आज़ादी के वक्त भारत कहां था, और हम कितना आगे आ चुके हैं... हां, अन्य लोगों ने भी योगदान दिया, लेकिन आधुनिक भारत की नींव हमारे उन संस्थापकों ने रखी थी, जिन्हें योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में मज़बूती से भरोसा था, जबकि आज ऐसा नहीं है, जब योजना आयोग को ही खत्म कर दिया गया है..."
अक्सर यह कहा जाने वाला जुमला कि सत्तर सालों में हुआ क्या है पर उन्होंने कहा,
" जो 50-55 साल के कांग्रेस शासन की आलोचना करते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि हमने कहां से शुरू किया था, और कहां जाकर छोड़ा था... अगर भारत की अर्थव्यवस्था को 50 खरब अमेरिकी डॉलर तक ले जाना है, तो हमने 18 खरब डॉलर की मज़बूत नींव छोड़ी थी, जो लगभग शून्य से शुरू हुई थी..."
उन्होंने कहा कि
" भारत को भविष्य में 50 खरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बना पाने की नींव पिछली सरकारों ने रखी थी, जिनमें जवाहरलाल नेहरू, डॉ मनमोहन सिंह और पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकारें भी शामिल थीं। "
बजट पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि,
" वित्तमंत्री ने बजट पेश करते हुए कहा था कि वर्ष 2024 तक भारत की अर्थव्यवस्था 50 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगी... लेकिन यह दर्जा आसमान से उतरकर नहीं आएगा... इसके लिए मज़बूत नींव मौजूद है, और उस नींव को अंग्रेज़ों ने नहीं, आज़ादी के बाद हिन्दुस्तानियों ने ही बनाया था। भारत ने तेज़ी से तरक्की की, क्योंकि जवाहरलाल नेहरू तथा अन्य ने आईआईटी, ििसरई
इसरो, आईआईएम, बैंकिंग नेटवर्क आदि की स्थापना की... इसे डॉ मनमोहन सिंह और नरसिम्हा राव द्वारा अर्थव्यवस्था का उदारीकरण करने से भी मदद मिली, जिससे भारत की आर्थिक संभावनाएं बेहद बढ़ गईं... उसी बुनियाद पर वित्तमंत्री आज यह दावा कर सकते हैं कि भारत 50 खरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा."
निश्चित रूप से प्रणव मुखर्जी कांग्रेसी सरकारों में महत्वपूर्ण नीति निर्माता रहे हैं तो वे अपने दल का पक्ष रखेंगे पर एक बाद निर्विवाद है कि 2014 में जो आर्थिक स्थिति देश की थी, उसकीं तुलना में आज स्थिति बिगड़ी है। चाहे, जीडीपी के आंकड़े हो, या औद्योगिक सूचकांक या राजकोषीय घाटा या व्यापार घाटा, या अन्य कोई आर्थिक सूचकांक सबमे गिरावट दर्ज की जा रही है। आज सरकार के पास धन की कमी है। धन की कमी के कारण ही सरकार कभी आरबीआई तो कभी सेबी तो कभी विदेशों से धन माँगने की जुगत में हैं। सरकारी कम्पनिवां जानबूझकर हानि में लायीं गयी ताकि वह चहेते पूंजीपतियों को बेची जाँय। यह उदारीकरण नहीं है यह देश का बिक्रीकरण है। यह पूंजीवादी विकास के मॉडल का सबसे विद्रूप और घिनौना चेहरा है जो असमानता का एक ,ज़बरदस्त अंतर बनाएगा जिसका असर देश के सामाजिक तानेबाने पर भी पड़ेगा।
विकास के पूंजीवादी मॉडल का एक रूप यह भी है कि, बड़ी बड़ी सड़कें, जहाज के उतरने के एयरपोर्ट, अट्टालिकाएं, पांच और सात सितारे होटल, सड़क पर सरकती हुयी लंबी लंबी सुतवां गाड़ियां निश्चय ही विकास के पैमाने हैं। ग्लेज़ी पेपर पर हवाई जहाज में सीट के आगे रखी खूबसूरत अप्सराओं जैसे मॉडलों की देहयष्टि से सजी पत्रिकाएं बरबस लुभा जाती हैं। यह सब विकास का एक पैमाना है। हम यह विकास भी चाहते हैं।
पर इस पैमाने में दूर और गांवों में रहने वाली जनता जिनकी एक दिन की आय पांच सितारा होटल के बिसलेरी की बोतल या एक कप कॉफी से भी कम है तो यह उंस पूंजीवादी विकास के मॉडल का दूसरा और कुरूप चेहरा है। विकास का अर्थ एक ऐसी दौड़ नहीं कि जहां चंद लोग तेजी से आगे बढ़ जाँय और पूरी अवाम घिसटते हुये सरकती रहे। फर्क उन्नीस बीस का हो तो इतनी गैर बराबरी का तर्क समझा जा सकता है, पर जब फर्क दस और सौ का हो जाय तो वह गैर बराबरी एक अपराध है।
© विजय शंकर सिंह
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