यह भी पहली बार ही हुआ है कि बजट लाल कपड़े में लिपटा है। लाल और चटख रंग स्वभावतः खींचता बहुत है। पहले बजट के दिन वित्तमंत्री के हांथो में एक ब्रीफकेस लटकता रहता था, और मुस्कुराते हुये वित्तमंत्री संसद में तशरीफ़ ले जाने के लिये तत्पर रहते थे। इस बार लाल कपडे के ऊपर दमकता हुआ हमारा राजचिह्न है और मुस्कुराती हुयी वित्तमंत्री जी, कुछ उम्मीद बंधाती दिख रही हैं। कल जीन्यूज ने उन्हें लक्ष्मी के रूप में चित्रित किया था अब देखते हैं, कितनी कृपा करती हैं लक्ष्मी हम सब पर।
भारत में बजट पेश होने का इतिहास 150 साल से अधिक पुराना है। इतने बर्षो में बजट पेश किए जाने के समय से लेकर तौर तरीकों में बड़े स्तर पर बदलाव हुआ कई नई परंपराएं अस्तित्व में आई और कई कीर्तिमान भी स्थापित हुए। 7 अप्रैल 1860 को देश का पहला बजट ब्रिटिश सरकार के वित्त मंत्री जेम्स विल्सन ने पेश किया था।
जबकि स्वतंत्रता के बाद देश का पहला बजट पहले वित्त मंत्री आर० के० षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया इसमेँ 15 अगस्त 1947 से लेकर 31 मार्च 1948 के दौरान साढ़े सात महीनो को शामिल किया गया।
बजट शब्द का भी एक इतिहास है। बजट शब्द का आर्थिक लेखेजोखे से कोई सम्बंध नहीं है। जैसे आज लाल कपड़े में लपेट कर बजट भाषण लोकसभा में ले जाया जा रहा है, वैसे ही फ्रेंच क्रांति के बाद फ्रांस की नेशनल असेंबली में जो आय व्यय का लेखाजोखा पेश किया गया था वह चमड़े के एक थैले में रख कर असेंबली में लाया गया था। बजट लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है चमड़े का थैला। अब कागजों का पुलिंदा तो किसी न किसी थैले में ही रखकर लाया जाएगा, तो पहला बजट फ्रांस में उसी चमड़े के थैले में रखकर लाया गया जिसे लैटिन भाषा मे बजट कहते हैं। तभी से यह शब्द आयव्यय के लेखेजोखे के लिये रूढ़ हो गया।
लाल शब्द क्रांति का द्योतक है। बदलाव का द्योतक है। अब इस रंग की फाइल में लिपटा हुआ, बजट देश की अर्थव्यवस्था को कितना बदलता है, किस ओर बदलता है, समाज के हित मे यह बदलाव होता है या समाज उस बदलाव से व्यथित होता है यह तो बजट की समीक्षा करने वाले अर्थशास्त्री जाने। पर आशा यही करनी चाहिये कि यह बदलाव बेहतर होगा।
एक मित्र ने लाल कपड़े में बजट की एक व्याख्या यह भी है। उनके अनुसार, " लाल कपड़े में लिपटे बजट के पेपर्स गांव के उंस साहूकार की खाता बही की याद दिलाता है जिसके चंगुल में फंसा हुआ किसान कभी बाहर नहीं निकल सका और पुश्त दर पुश्त उसके यहां बेगार करने को मजबूर रहा।"
लाल शब्द यथास्थितिवादी भी है। सरकारी तँत्र के लिये एक शब्द बहुत प्रचलित है, लालफीताशाही। यह शब्द भी फाइलों के ऊपर लगे लाल फीते जिससे फाइलें बांधी जाती हैं ताकि उनमे रखे कागज़ कहीं इधर उधर न हो जांय से निकला है। अक्सर सरकार में जब कोई फाइल बहुत उलझी हो तो उस पर निर्णय लेने में अफसर कतराता है। वह फाइल खोलता है, थोड़े पन्ने पलटता है और फिर उसे लालफीता से कस कर बांध देता है। इसी अनिर्णय की स्थिति को लालफीताशाही शब्द से सम्बोधित किया जाता है। अनिर्णय की यह स्थिति कभी कभी सरकार के हित मे होती है और कभी कभी आलस्य और प्रमाद भी इसका कारण होता है।
अब बजट पेश हो रहा है। लाल फाइल खुल चुकी है। यह लाल किताब नुमा फाइल देश के अर्थतंत्र को कोई नयी दिशा देती है या नहीं यह तो जब समीक्षाएं आएंगी तभी पता चलेगा। बदलाव हो और हम सब जनसमृद्धि की ओर बढ़े, यही शुभकामना है।
© विजय शंकर सिंह
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