Friday, 31 March 2023

गुजरात हाईकोर्ट ने पीएम की डिग्री दिखाने के सीईसी के आदेश को रद्द कर दिया / विजय शंकर सिंह

गुजरात उच्च न्यायालय ने आज केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 2016 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें गुजरात विश्वविद्यालय को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को, नरेंद्र दामोदर मोदी के नाम पर डिग्री के बारे में जानकारी" प्रदान करने का निर्देश दिया गया था।

इसके साथ, न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की पीठ ने सीआईसी के आदेश को चुनौती देने वाली गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा दायर अपील को इस आधार पर स्वीकार कर लिया कि उसे बिना नोटिस दिए पारित कर दिया गया था। उल्लेखनीय है कि संबंधित पक्षों को विस्तार से सुनने के बाद नौ फरवरी को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।

खंडपीठ ने ₹25,000=का जुर्माना भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर लगाया है उन्हे यह रकम, 4 सप्ताह के भीतर गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा करना होगा।  कोर्ट ने फैसले पर स्टे देने से भी इनकार कर दिया।

० मामला संक्षेप में

यह गुजरात विश्वविद्यालय का मामला था कि डॉ. श्रीधर आचार्युलु (तत्कालीन केंद्रीय सूचना आयुक्त) ने "प्रधानमंत्री की योग्यता के संबंध में उनके सामने कोई कार्यवाही लंबित किए बिना विवाद का स्वत: निर्णय लिया।" 
केजरीवाल के चुनावी फोटो पहचान पत्र के संबंध में एक आवेदन पर विचार करते हुए आयोग द्वारा उक्त आदेश, स्वत: संज्ञान लेकर पारित किया गया था।

अनिवार्य रूप से, आवेदन के लंबित रहने के दौरान, केजरीवाल ने आयोग को लिखा, और पारदर्शी नहीं होने की आलोचना की।  उन्होंने आगे कहा कि, 
"वह आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए तैयार हैं, लेकिन फिर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भी पीएम की शैक्षणिक योग्यता के संबंध में किसी भी भ्रम से बचने के लिए अपनी डिग्री के विवरण का खुलासा करने के लिए कहा जाना चाहिए।"

इसके अनुसरण में, केजरीवाल की प्रतिक्रिया को "एक नागरिक के रूप में आरटीआई के तहत आवेदन" के रूप में मानते हुए, आईसी ने पीआईओ को प्रधान मंत्री कार्यालय को दिल्ली विश्वविद्यालय से मोदी की बीए डिग्री और गुजरात विश्वविद्यालय की एमए डिग्री की "विशिष्ट संख्या और वर्ष" प्रदान करने का निर्देश दिया। 

गुजरात विश्वविद्यालय को निर्देश दिया गया कि, वह केजरीवाल को डिग्री प्रदान करें। मुख्य सूचना आयुक्त के इसी आदेश के खिलाफ गुजरात विश्वविद्यालय ने उच्च न्यायालय में अपनी अपील दायर की थी।

विश्वविद्यालय के तर्क का मुख्य मुद्दा यह था कि विश्वविद्यालय एक प्रत्ययी क्षमता (जिम्मेदारी) के अंतर्गत, प्रधानमंत्री की डिग्री का रख रखाव कर रहा है और सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(ई) के अनुसार, प्रत्ययी क्षमता में रखी गई जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता है।  "जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि व्यापक जनहित में इस तरह की जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए।"

मामले की सुनवाई के दौरान, गुजरात विश्वविद्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि, 
"आरटीआई अधिनियम का "बचाव स्कोर करने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है और विरोधियों पर बचकाना प्रहार किया जा रहा है"।  यह भी प्रस्तुत किया गया था कि विश्वविद्यालय ने पहले ही प्रमाण पत्र को सार्वजनिक डोमेन में डाल दिया था, हालांकि, इस मामले पर सिद्धांत रूप में विश्वविद्यालय द्वारा तर्क दिया जा रहा था कि क्या किसी की जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए आरटीआई अधिनियम को बाहरी उद्देश्यों के लिए लागू किया जाना चाहिए।"

"आप एक अजनबी हैं, हालांकि उच्च पदस्थ हैं (अरविंद केजरीवाल की ओर इशारा करते हुए) ... वह जिज्ञासा से कह सकते हैं कि मैं अपनी डिग्री दूंगा लेकिन आप (पीएम) भी अपनी डिग्री दिखाते हैं ... यह बहुत बचकाना है ... बस  किसी की गैर-जिम्मेदार बचकानी जिज्ञासा को जनहित नहीं कहा जा सकता है।" 
एसजी मेहता ने गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया।
 
आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (जे) का उल्लेख करते हुए, एसजी मेहता ने तर्क दिया कि "ऐसी जानकारी जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित है, जिसके प्रकटीकरण का किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है, का खुलासा नहीं किया जा सकता है, जब तक कि कोई ओवरराइडिंग न हो। या कोई सार्वजनिक हित न हो।"

"डिग्री पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में है ... धारा 8 (1) (जे) आरटीआई अधिनियम की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या यह है कि निजी प्रकृति की जानकारी मांगते समय, प्रकटीकरण किया जा सकता है यदि यह सार्वजनिक गतिविधि से संबंधित है ... क्या  मैंने नाश्ते के लिए खाया यह कोई सार्वजनिक गतिविधि नहीं है...आप कह सकते हैं कि सार्वजनिक गतिविधियों में कितना खर्च किया गया...यदि मैं एक सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में कार्य कर रहा हूं, तो मेरी सार्वजनिक गतिविधि के संबंध में कुछ भी पूछा जा सकता है...  कोई और (तीसरा व्यक्ति) आरटीआई अधिनियम के तहत चुनाव आयोग को प्रदान किए गए आपराधिक पूर्ववृत्त का विवरण नहीं मांग सकता है ... हमने (गुजरात विश्वविद्यालय) ने डिग्री को सार्वजनिक डोमेन में डाल दिया है ... सवाल यह है कि क्या विश्वविद्यालयों को खुलासा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है  विशेष रूप से तब जब कोई सार्वजनिक गतिविधि शामिल नहीं है?" 
एसजी मेहता ने आगे तर्क दिया।
 
विचाराधीन सीआईसी के आदेश को पढ़ते हुए, एसजी मेहता ने तर्क दिया कि किसी कार्यालय का धारक एक अनपढ़ व्यक्ति है या डॉक्टरेट है, यह सार्वजनिक गतिविधि का विषय नहीं हो सकता है।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की बीए की डिग्री से संबंधित मामला भी दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष 2017 से लंबित है (सुनवाई की अगली तारीख 3 मई है)।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि 2017 में दिल्ली विश्वविद्यालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के एक आदेश को चुनौती दी थी जिसमें विश्वविद्यालय को 1978 में बीए कार्यक्रम पास करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने का निर्देश दिया गया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी कहा गया था।  परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है।

 24 जनवरी 2017 को सुनवाई की पहली तारीख को न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी।

(विजय शंकर सिंह)


Thursday, 30 March 2023

राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता को रद्द करने में, निर्धारित नियमों का उल्लंघन किया गया है / विजय शंकर सिंह

24 मार्च को लोकसभा सचिवालय ने इस फैसले को आधार बनाकर राहुल की संसद सदस्यता रद्द कर दी। लोकसभा सचिवालय की इस कार्रवाई पर सवाल उठे। कांग्रेस की लीगल टीम इसके खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी में है। इस मुद्दे पर 'भास्कर' अखबार ने, लोकसभा के2004 से 14 तक महासचिव रहे पीडीटी आचार्य से बात की। पीडीटी आचार्य ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। लोकसभा का सचिवालय, लोकसभा के स्पीकर के आधीन होता है और सरकार से उसका कोई संबंध नहीं होता है। 

आचार्य ने मुख्य रूप से तीन बिंदुओं पर अपनी बात कही,
० सजा जब सेशन कोर्ट ने स्थगित है तो फिर सदस्यता रद्द करने का निर्णय अपरिपक्व और जल्दबाजी भरा है। 
० धारा 8(3), जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, में सदस्यता खत्म करने का प्राविधान है पर उस अधिनियम के अंतर्गत यह सदस्यता स्वतः खत्म नहीं होगी, उसकी एक प्रक्रिया है जिसका पालन नहीं किया गया है। 
० राष्ट्रपति की अनुमति अनिवार्य है। स्पीकर इसके लिए अधिकृत नहीं है। वह  सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश कर सकता है।  

इस पर पीडीपी आचार्य, का यह इन्टरव्यू पढ़ें, 
० सवाल: राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने के फैसले के बारे में नियम क्या कहते हैं? जिस जल्दबाजी में लोकसभा सचिवालय ने नोटिस जारी किया, क्या ये सही था?

पीडीटी आचार्य: किसी संसद सदस्य की सदस्यता जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951 के सेक्शन 8(3) के तहत रद्द की जाती है। इस नियम के तहत जब सदस्य को किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है और उसे 2 साल या उससे ज्यादा सजा मिलती है, तो उसकी सदस्यता रद्द की जाती है।

नियम के तहत, जिस दिन सदस्य को दोषी ठहराया गया है, उसी दिन से सदस्यता रद्द की जा सकती है। राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी इसी सेक्शन के तहत रद्द की गई है, लेकिन इसे ठीक से समझना होगा।

सजा पाए सांसद के लिए सेक्शन 8(3) में लिखा है- 'He/She shall be disqualified' यानी ‘अयोग्य करार दिया जाएगा।’ ये नहीं है कि ‘He/She shall stand disqualified’, जिसका मतलब होता कि जैसे ही जज ने दोष साबित होने के फैसले पर दस्तखत किए, उसी वक्त से संसद सदस्य अयोग्य घोषित हो गया।

‘He shall be disqualified’ का मतलब हुआ कि कोर्ट के फैसले से किसी की संसद सदस्यता नहीं जाएगी, कोई अथॉरिटी उसे अयोग्य घोषित करेगी। सांसद के अयोग्य होने का आदेश कोर्ट में दोष साबित होने की तारीख से ही लागू माना जाएगा।

० सवाल: राहुल गांधी की सजा जज ने ही 30 दिन के लिए सस्पेंड रखी है। उन्हें हाईकोर्ट में अपील का वक्त दिया गया था, ऐसे में सदस्यता रद्द करने की जल्दबाजी क्या सही है?

पीडीटी आचार्य: ये फैसला मुझे भी सही नहीं लगा। दोष साबित होने से ही संसद सदस्य को अयोग्य नहीं ठहराया जाता है। दोषसिद्धि के साथ 2 साल या उससे ज्यादा सजा हो, तभी सदस्यता जाती है। जज ने सजा को 30 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया, तो अयोग्य करार दिए जाने का कोई मतलब ही नहीं था। कानून के नजरिए से इस फैसले में खामियां दिखाई देती हैं।

० सवाल: सांसद की संसद सदस्यता रद्द करने में राष्ट्रपति की क्या भूमिका होती है, क्या राहुल गांधी के मामले में इसका पालन किया गया?

पीडीटी आचार्य: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951 के सेक्शन 8 (3) में लिखा है कि ‘He shall be disqualified’ इसका अर्थ हुआ कि कोई अथॉरिटी ही सदस्य को अयोग्य ठहराएगी। ये अथॉरिटी कौन है, ये समझने के लिए हमें संविधान के आर्टिकल-103 को देखना होगा।

आर्टिकल-103 के मुताबिक, जब भी किसी संसद सदस्य की सदस्यता पर सवाल उठता है तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और राष्ट्रपति ही इस पर फैसला करेंगे। राष्ट्रपति भी फैसला लेने से पहले चुनाव आयोग से पूछेंगे और चुनाव आयोग की राय पर राष्ट्रपति फैसला करेंगे।

इसका मतलब है कि जब कोई विवाद की स्थिति होगी, तब राष्ट्रपति इसमें दखल देंगे। आर्टिकल-102 में बताया गया है कि किन-किन आधारों पर किसी सांसद की संसद सदस्यता जा सकती है, इसमें बताया गया है कि जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत, जिस भी सदस्य की सदस्यता रद्द की जाएगी, उस पर राष्ट्रपति ही फैसला लेंगे।

० सवाल: लोकसभा सचिवालय का राष्ट्रपति की सलाह न लेना, क्या इस पूरी प्रोसेस पर सवाल खड़ा करता है, क्या ये गलती जानबूझकर की गई लगती है?

पीडीटी आचार्य: साफ है कि फैसला लेने में गड़बड़ी हुई है। लोकसभा सचिवालय ने राष्ट्रपति के पास सुझाव के लिए ये केस भेजा ही नहीं। इस मामले में लोकसभा सचिवालय डिसीजन अथॉरिटी नहीं है।

सचिवालय को राष्ट्रपति को केस के बारे में बताना चाहिए था कि राहुल गांधी मानहानि के केस में दोषी पाए गए हैं और उन्हें दो साल की सजा हुई है, क्या ऐसे मामले में राहुल गांधी की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए या नहीं? इसके बाद राष्ट्रपति का फैसला आने के बाद ही लोकसभा सचिवालय नोटिस जारी कर सकता था। पूरे केस में लोकसभा सचिवालय ने ही फैसला ले लिया है, ये उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

० सवाल: आप खुद लोकसभा महासचिव रहे हैं, क्या ये राजनीतिक दबाव के तहत लिया गया फैसला दिखता है?

पीडीटी आचार्य: इस बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। मैंने अपने कार्यकाल में भी सारे नियमों का अच्छी तरह से पालन किया है।

० सवाल: क्या इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में केस टिक पाएगा?

पीडीटी आचार्य: इसे बिल्कुल कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। लोकसभा सचिवालय का फैसला संविधान के मुताबिक नहीं है।

० सवाल: NCP सांसद मोहम्मद फैजल की सजा पर केरल हाई कोर्ट ने रोक लगा दी, उनकी सदस्यता बहाल हो गई, क्या राहुल गांधी की सदस्यता भी बहाल हो सकती है?

पीडीटी आचार्य: हाईकोर्ट ने जो स्टे दिया है, उसके बाद अपने आप उनकी सदस्यता बहाल हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ये केस अजीब सा लगता है। सजा सस्पेंड होने के बाद ये न होना अजीब है।

० सवाल: राहुल गांधी को अगर बड़ी अदालत से राहत मिल जाती है, तो कितने दिन में सदस्यता बहाल हो सकेगी?

पीडीटी आचार्य: ऊपरी अदालत से राहुल गांधी को जैसे ही राहत मिलती है, उसके साथ ही लोकसभा में उनकी सदस्यता बहाल हो जाएगी। मान लीजिए अगर ऊपरी अदालत ने CJM के फैसले को पलट दिया, तो अपने आप ही लोकसभा सचिवालय नोटिफिकेशन जारी करेगा और राहुल की सदस्यता बहाल हो जाएगी।

० सवाल: सांसदों की सदस्यता निलंबन का कोई मामला आपके कार्यकाल में भी सामने आया था?

पीडीटी आचार्य: मैंने अपने कार्यकाल में इस तरह का कोई केस नहीं देखा। ये अपने आप में अनोखा है। कई सदस्यों को तो सदस्यता से कई बार बर्खास्त किया गया है। किसी सांसद की सदस्यता चली गई और कोर्ट ने स्टे दिया है, ऐसे में सदस्यता बहाल न हुई हो, ऐसा कोई केस याद नहीं आ रहा।

० सवाल: लोकसभा सचिवालय के कामकाज करने के तरीके में राजनीतिक दबाव कितना होता है?

पीडीटी आचार्य: लोकसभा सचिवालय को संविधान के आर्टिकल-98 के तहत बनाया गया है। ये पूरी तरह स्वायत्त संस्था है और ये सरकार के तहत नहीं आता। लोकसभा सचिवालय की बागडोर लोकसभा अध्यक्ष के हाथ में होती है।

राज्यसभा के लिए उप-राष्ट्रपति सर्वेसर्वा होते हैं। सरकार से इन सचिवालय का सीधे तौर पर कोई लेना देना नहीं है। कानून के मुताबिक, लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय निष्पक्ष तरीके से काम करता है और इनकी छवि भी अब तक निष्पक्ष ही रही है।

० सवाल: क्या राहुल गांधी के मामले से संसद सचिवालय की निष्पक्षता पर चोट लगी है?

पीडीटी आचार्य: मैं चोट शब्द का इस्तेमाल तो नहीं करूंगा, लेकिन इस तरह से सदस्यता रद्द करने की प्रक्रिया को लेकर कई अहम सवाल खड़े हुए हैं। हमें सिस्टम के अंदर इनका जवाब ढूंढना पड़ेगा।

(विजय शंकर सिंह)

Wednesday, 15 March 2023

अडानी समूह की प्रमुख निवेशक कंपनी एलारा, अडानी की डिफेंस फर्म में, अडानी के साथ, उनकी सह-मालिक है / विजय शंकर सिंह

अडानी समूह के घोटाले के केंद्र में एक नाम सामने आ रहा है, विनोद अडानी का। विनोद अडानी, गौतम अडानी का सगा बड़ा भाई है। उसी की कंपनी है, एलारा जिसका प्रमुखता से अडानी समूह में धन लगा है। लेकिन जैसा कि गौतम अडानी कहते है, वह सिर्फ एक निवेशक ही नहीं है, बल्कि वह गौतम अडानी के साथ उसका भी मालिकाना हक है। आज द इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख के अनुसार, "जांचे गए रिकॉर्ड से पता चलता है कि, अडानी समूह के साथ, यह एक रक्षा कंपनी, बेंगलुरु स्थित अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (एडीटीपीएल) में एक प्रमोटर इकाई है।" इंडियन एक्सप्रेस में यह खुलासा, संदीप सिंह, रितु सरीन, अमृता नायक दत्ता द्वारा लिखित लेख में किया गया है। लिंक कमेंट बॉक्स में है। 
 
अडानी समूह पर अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर, हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा स्टॉक हेरफेर और धोखाधड़ी का आरोप, 24 जनवरी को लगाया गया था। हिंडनबर्ग के 88 सवालों में बहुत से सवाल, गौतम अडानी के बड़े भाई, विनोद अडानी, जो इस पूरे रिसर्च रिपोर्ट में एक रहस्यमय किरदार के रूप में उभरते है, से संबंधित हैं। और यह सारे सवाल आज तक अनुत्तरित हैं। 

एक्सप्रेस के लेख के अनुसार, एलारा इंडिया ऑपर्च्युनिटीज फंड (एलारा आईओएफ), एलारा कैपिटल द्वारा प्रबंधित एक उद्यम पूंजी कोष है, जो मॉरीशस में पंजीकृत शीर्ष चार संस्थाओं में से एक है। यह कैपिटल फंड, अडानी समूह की कंपनियों का मुख्य रूप से शेयर धारक है। हालांकि, पिछले तीन वर्षों में, एलारा ने, अपने हिस्से को काफी कम किया है, पर उसके बाद भी, तीन अडानी कंपनियों में इसकी होल्डिंग दिसंबर 2022 में 9,000 करोड़ रुपये या इसके कुल कोष का 96 प्रतिशत से अधिक बचा हुआ है।

लेकिन एलारा सिर्फ एक अन्य निवेशक ही नहीं है।  द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा जांचे गए रिकॉर्ड से पता चलता है कि अडानी समूह के साथ, यह एक रक्षा कंपनी, बेंगलुरु स्थित अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (एडीटीपीएल) में एक प्रमोटर इकाई भी  है।

(विजय शंकर सिंह)

Sunday, 12 March 2023

2001 में बोस्टन हवाई अड्डे पर गिरफ्तार राहुल गांधी की नकली अखबार क्लिपिंग एक बार फिर वायरल की जा रही है / विजय शंकर सिंह

राहुल गांधी के बारे में बीजेपी आईटी सेल लम्बे समय से झूठ का एक ऐसा मायाजाल बुनती आ रही है, जिससे राहुल के बारे में, सोशल मीडिया से लेकर अन्य मीडिया चैनलों, अखबारों तक में सर्वथा अप्रमाणित और गढ़ी हुई खबरें, प्रसारित की जाती रही हैं। यह सिलसिला अभी थमा नहीं है, लेकिन, Pratik Sinha की ऑल्ट न्यूज, Alt News जैसे कुछ अन्य फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट्स ने, जब उन दुष्प्रचारो और झूठ की पड़ताल सामने लानी शुरू की तो, झुठबोलवा गिरोह द्वारा फैलाई गई धुंध छंटनी शुरू हुई।

जब आईटी सेल का झूठ, जिसे बीजेपी के बड़े बड़े नेता, मंत्रीगण भी शेयर करते रहे, जब उनका पर्दाफाश होना शुरू हुआ तो, इन्ही बड़े बड़े नेताओं और मंत्रियों में से कुछ ने अपने वे ट्वीट जो उन्होंने बीजेपी आईटी सेल के ट्वीट के आधार पर ट्वीट किए थे, या रिट्वीट किए थे को डिलीट भी करना शुरू कर दिया। सच का पता उनमें से बहुतों को है पर वे उस सच को जानते हुए भी आईटी सेल के दुष्प्रचार के वाहक बनते रहते हैं।

ऐसा ही एक दुष्प्रचार है कि, साल 2001 में राहुल गांधी, अमेरिका के बॉस्टन हवाई अड्डे पर ड्रग के साथ पकड़े गए थे और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के हस्तक्षेप के बाद छोड़ा गया था। इस घटना के समर्थन में,2001 की एक कथित अखबार की क्लिपिंग जिसका शीर्षक 'इंडियन पॉलिटिशियन अरेस्टेड' है, सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित की जाती है। 

पर यह घटना हुई नहीं है। फासिस्ट गोइबेलिज्म की तर्ज पर इसे फैलाया गया और खूब प्रसारित किया गया। ऑल्ट न्यूज ने इसका फैक्ट चेक किया और यह प्रमाणित किया कि, उक्त अखबार की कटिंग झूठी है और यह सारा प्रोपेगेंडा, बीजेपी आईटी सेल के दिमाग की उपज था। 

ऑल्ट न्यूज के अनुसार, उक्त क्लिपिंग के अनुसार, एक भारतीय राजनेता को बोस्टन हवाई अड्डे पर ड्रग्स रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।  30 सितंबर, 2001 की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राजनेता एक पूर्व प्रधान मंत्री का बेटा था। इसमें निहित है कि गिरफ्तार राजनेता कांग्रेस नेता राहुल गांधी थे।

ट्विटर यूजर संजय फडणवीस ने इस क्लिपिंग को शेयर करते हुए 28 फरवरी, 2023 को लिखा “कौन है ये?”.

ट्विटर यूजर ध्रुवन पटेल ने एक पूरी पोस्ट लिखकर बताया कि कैसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दखल के बाद राहुल गांधी को रिहा किया गया।  अखबार की यह क्लिपिंग ट्विटर पर व्यापक रूप से प्रसारित हो रही है।

2019 से वायरल

2019 में आरबीआई के निदेशक एस गुरुमूर्ति ने अखबार की इस क्लिपिंग को ट्वीट किया था।  उन्होंने लिखा, 'कृपया इस खबर को पढ़ें।  यह पूर्व प्रधानमंत्री का बेटा कौन है?”  बाद में गुरुमूर्ति ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया लेकिन इसका आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है।

जब कुछ यूजर्स ने बताया कि क्लिपिंग बनाई गई थी, तो गुरुमूर्ति ने इसे हटा लिया और ट्वीट किया कि क्लिपिंग को "डिलीट करना उचित" था क्योंकि कुछ यूजर्स ने रिपोर्ट की सत्यता पर संदेह व्यक्त किया था।  हालांकि, उन्होंने ट्विटर पर इसे पोस्ट करने के एक घंटे के भीतर अपनी सफाई हटा दी।

फैक्ट चेक

गुरुमूर्ति द्वारा ट्वीट की गई कथित अखबार की क्लिपिंग वेबसाइट fodey.com पर बनाई गई थी, जो एक कहानी लिखने, इसे एक शीर्षक देने, अखबार का नाम देने और तारीख बदलने का विकल्प देती है।

ऑल्ट न्यूज़ के लिंक मे, दिए गए वीडियो में दिखाया गया है कि, वेबसाइट पर अखबार की कतरन कैसे तैयार की जा सकती है।

सोशल मीडिया पर पहले भी ऐसी बनावटी अखबारों की कतरनें प्रसारित की जा चुकी हैं।  राहुल गांधी, अमित शाह, अरविंद केजरीवाल, सोनिया गांधी और योगी आदिथनाथ सहित अन्य लोगों को इसी तरह निशाना बनाया गया है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि क्लिपिंग में यह भी कहा गया है कि एएफपी के अनुसार, गांधी को भारतीय राजदूत के हस्तक्षेप के बाद रिहा किया गया था।  ऑल्ट न्यूज़ की तरह, AFP ने भी पिछले दिनों इस दावे की तथ्य-जांच की और निष्कर्ष निकाला। ऑल्ट न्यूज़ में पूजा चौधरी के फैक्ट चेक का लिंक प्रस्तुत है। उसे आप पढ़ सकते हैं।

Fake newspaper clipping of Rahul Gandhi arrested at Boston Airport in 2001 viral yet again -  
https://www.altnews.in/rbi-director-gurumurthy-tweets-manufactured-newspaper-clipping-deletes-later/

(विजय शंकर सिंह)

Tuesday, 7 March 2023

राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी / होली निरंकुशता के विरुद्ध लोक का जयजयकार है.

होली पर्व है , होली उत्सव है ।  जीवन में मांगलिकभाव की नयी चेतना लेकर एक क्रम के बाद दूसरा क्रम आता है , इसलिये ये त्यौहार  पर्व कहे जाते हैं ।पर्व  जिन्दगी की एकरसता  और  अकेलेपन का अतिक्रम करता है ।पर्व  में सभी सम्मिलित  होते हैं ।    मूल रूप से पर्व  बांस या ईख की गांठ का नाम है । सन्धिस्थान भी पर्व कहलाता है, उँगली में जिसे पोरुआ[पर्व का अपभ्रंश ] कहते हैं ।संधिस्थान के विभाजन से महाभारत में भी  अठारह पर्व हैं।  गुजराती की कहावत  है -बारो मासे तेरो पर्व पार्वण  । पर्व  आमोद प्रमोद है , पर्व उत्सव नृत्य गीत  है ,
 
पर्व के साथ  विश्वास जुड़े हुए हैं । पर्व के साथ   मनोरथ  जुड़े हुए हैं ।  पर्व के साथ   ऐतिहासिक  पौराणिक संदर्भ  जुड़े हुए हैं ।  पर्व में लोकजीवन की परंपरा है , पर्व में  जातीय अस्मिता है ।  पर्व में इतिहास है । पर्व में जीवन दर्शन है । पर्व में अनुष्ठान हैं । पर्व में समष्टिचेतना है , समष्टि-भाव है ।समष्टिजीवन   के एक बिन्दु पर आ कर पर्व और मेले  एकाकार हो गये हैं , इतने अभिन्न कि उनको अलग नहीं किया जा सकता ।जीवन में दुखों का कितना भार है  !अकेले अकेले न उठाया जा सकेगा !लोकमन ने समष्टिभाव को जगाया , और पर्वों का उत्सव-समारोह बना लिया !जीवन में समष्टि का भाव आया , मैं अकेला नहीं हूँ !सब जी रहे हैं , सब के साथ मैं जी रहा हूँ ! पर्व में सभ्यता और संस्कृति की विकास यात्रा है । प्रत्येक पर्व के साथ कुछ कथाएं हैं , कुछ गीत हैं , गाथाएं हैं ।  प्रत्येक पर्व का कोई न कोई देवता है । प्रत्येक पर्व से  सामाजिक सरोकार मंगलभाव  और  पुण्य की अवधारणा जुड़ी हुई है । वीरों का गौरव गान जुड़ा  हुआ  है। प्रत्येक पर्व से   उपासनाओं का इतिहास जुड़ा हुआ है ।  उत्सव का भाव जुड़ा  है , उत्सव शब्द का अर्थ है आनन्द की छलकन ।  मन आनन्द से भर जाय और छलकने लगे ।होली के पास वह आनन्द भाव है,जिसमें मन का साधारणीकरण हो जाता है ,चित्त द्रवीभूत हो जाता है।  होली अर्थात्‌ सुख की अदम्य खोज ,प्रणय और सौन्दर्य की अतृप्त प्यास ! मन की उद्दाम तरंग!

हां,यह सच है कि जिस दिन से ब्रज में फागुन आया है,उस दिन से गांव के गांव पागल हो गये हैं!बौरा गये हैं!कैसे कहूं, कि यह टेसू के फूलों का उत्पात है या आम पर आये बौरों की शैतानी है!यह भ्रमरों की गुंजार का नशा है या फागुन की बयार का?ब्रज के वे लोग टोल के टोल नाचते हैं ,गाते हैं,झांझ-मजीरा बजाते हैं,गुलाल के बादल उडाते हैं और केसरिया- रंग बरसा देते हैं।कोलाहल करते हैं,हंसते हैं और हंसते ही चले जाते हैं।ब्रज में आज कोई श्रोता नहीं है,सभी तो गबैया बन गये हैं।कोई दर्शक नहीं है, सभी तो दृश्य बन गये हैं-

सब नाचहिं गावहिं सबै,
सबै उडावत छार। 
सठ पंडित बेस्या बधू 
सबै भये इकसार। 
अहो हरि होरी है!

होली यौवन के उन्माद का त्योहार है। परंतु यह द्वारिका के यदुवंशियों का सर्वनाशी उन्माद नहीं है, जिसमें वे अपने बल, श्रेष्ठता और सुंदरता के अहंकार में व्यष्टि को ही अंतिम समझने लगे थे। होली का उन्माद समष्टि का उन्माद है, जिसमें हास, परिहास बिखर पड़ता है। ऐसा जो समेटे न सिमटे। गरीब को अपनी गरीबी याद है न अमीर को अपनी अमीरी। पंडित को अपनी पंडिताई की सुधि है न ठाकुर को अपनी ठकुराइत की। कलुआ ने उल्फत की दाढ़ी हिला दी और मुहल्ले का जमादार जमींदार का गाल नोचकर भाग गया। अब तक जमींदार देखे, तब तक हंसी फूट पड़ी, होली है , होली है। सबै भये इकसार, अहो हरि होरी है। नाती कहे होरी है, बाबा कहे होरी है। बूढी कहे होरी है और 
बारी कहे होरी है। देवर कहे होरी है और 
भाभी कहे होरी है। चारों ओर एक ही   गूँज - होली है होली है ! द्यौरानी ने तानभरी - ससुर देवरिया सौ लागै और जिठानी ने ढोलक बजायी-मस्त महीना फागुन कौ जी ,कोई जीवै सो खेलै होरी फाग ,भला जी कोई जीवै सो खेलै होरी फाग।

० ऋतूत्सव

मूल रूप से   होली एक ऋतूत्सव है , इसमें कोई संदेह नहीं! संसार के विभिन्न देशों के ऋतूत्सवों को लेकर मानवशास्त्रियों ने अध्ययन किये हैं ! वसन्त के त्यौहार विभिन्न देशों में आनन्द-भाव से मनाये जाते हैं !प्रकृति में परिवर्तन हुआ तो मनुष्य के मन में भी परिवर्तन हुआ ! प्रकृति में उल्लास बिखरा तो मनुष्य के मन में भी उल्लास बिखरा !यह प्रकृति और मन के गहरे संबंध का रहस्य है ! होली के साथ वसन्त का वैभव जुड़ा हुआ है ! वसन्त ऋतु को लेकर जो साहित्य रचा गया है , उसे होली से अलग नहीं किया जा सकता ! वास्तव में तो वह होली की पृष्ठभूमि है !

औरें भाँति बिहग समाजमें अवाज होत, 
ऐसे ऋतुराज के न आज दिन द्वै गये। 
औरें रस औरें रीति ,औरें राग औरें रंग ,
औरें तन औरें मन औरें बन ह्वै गये।"  
 
वसन्त को काम का सखा कहा गया है ! यह प्रकृति और मन के गहरे संबंध का रहस्य है ! होली एक दिन का त्यौहार नहीं है ! यह तो त्यौहारों का त्यौहार है ! माघ शुक्लपक्ष की  पंचमी [वसन्तपंचमी ] से लेकर के चैत्र महीने की रंगपंचमी तक चलने वाला उत्सव ! गाँवों में होलीदंड  [ एरंड ] की स्थापना वसन्तपंचमी के दिन ही हो जाती है !
 
वैदिक-परंपरा में होली नवान्न शस्येष्टि यज्ञ अथवा नवान्न यज्ञोत्सव  है। देव जब कृषि करने लगे तो दो ही फसलें मुख्य थीं, १. धान तथा २. यव (जौ). धान की फसल तैयार होने पर दीपावली तथा जौ की फसल तैयार होने पर होली मनाई जाती थी, इसीलिये दीपावली पर लक्ष्मी पूजा धान की खीलों से होती है, खील और बताशों का आदान प्रदान होता है तथा  होली की अग्नि में जौ की बालें भूनकर वितरित की जाती हैं।

तान्त्रिक-परंपरा  में होली  दारुणरात्रि  के रूप में उपासना का पर्व है । तान्त्रिक-परंपरा में उपासना की चार रात्रियों का उल्लेख हुआ है -

प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रय विभाविनी !
कालरात्रि: महारात्रि: मोहरात्रिश्च दारुणा ! 
कालरात्रि शिवरात्रि , मोहरात्रि शरदपूर्णिमा की रास की रात्रि   ,  महारात्रि दीपावली और दारुणरात्रि होली की रात ! 
 
महामहोपाध्याय गिरिधरशर्मा जी ने उल्लेख किया है कि मीमांसा के भाष्यकार शबरस्वामी ने सदाचार के प्रसंग में होली के उदाहरण दिये हैं !
शैवागम से संबंधित एक ग्रन्थ " वर्षक्रियाकौमुदी " में मदनमहोत्सव के अन्तर्गत प्रात:काल से एक प्रहर तक संगीत और वाद्य के साथ शृंगारिक अपशब्दों को बोलते हुए कीच उछालने का उल्लेख हुआ है । हर्षदेव की रत्नावलि में उल्लेख है कि इस उत्सव में चित्र बना कर कामदेव की पूजा होती थी ।  "रत्नावलि "में विदूषक कहता है कि कामिनियाँ रंग डाल रही हैं और पुरुष नाच रहे हैं , जब राजा प्रमदवन में कामदेव की पूजा के लिए जाता है तो विदूषक फिर कहता है कि देखो , एक उत्सव में से दूसरा उत्सव निकल रहा है ! सद्य: सान्द्र विमर्द कर्दम कृत: क्रीडे क्षणं प्रांगणे ! दशकुमार चरित में कलिंगराज कर्दम के  तेरह दिन तक चलने वाले वसन्तोत्सव का उल्लेख है ! 

भविष्यपुराण में कामदेव और रति की मूर्तियां बनवा कर पूजने का विधान है । कामसूत्र ने इसे "सुवसन्तक-उत्सव" बताया है ,जिसमें युवतियां कानों में आम्रमंजरी लगा कर वसन्त का स्वागत करती थीं तथा "सींग की पिचकारी "से किंशुक-जल छिडका जाता था । बौद्धसाहित्य की "कृपण-कोसीय जातककथा" में राजगृह का एक भिक्षु होली के दिन पूआ खा रहा था , तब कोटिपति सेठ के मन में भी पूआ खाने की लालसा उत्पन्न होने का उल्लेख है !

० होलिका दहन

हिरण्यकशिपु  कहता था कि ईश्वर मैं ही हूँ , मेरे अतिरिक्त कोई भी ईश्वर नहीं है ! होलिका दैत्यराज हिरण्यकशिपु की बहिन थी । प्रह्लाद की भुआ ।  देवता के वरदान के रूप में उसके पास एक ऐसी चद्दर थी , जिस पर अग्नि का प्रभाव नहीं होता था । दैत्यराज हिरण्यकशिपु का आदेश था इसलिये वह विवश थी । प्रह्लाद को दंडित करने के लिये उसे गोद में लेकर वह अग्नि में बैठ गयी ,  किन्तु कुछ ऐसा हुआ कि चद्दर तो प्रह्लाद पर आगयी और होलिका जल गयी । शायद यह होलिका का आत्मबलिदान था । राजा बलि परम उदार और दानी था , होलिका के प्रति उसका पूज्य- भाव कहिये ,  उसने होलिका के पूजा-पर्व को त्यौहार का रूप दिया ।  बात तो उस मिथ्यादंभ  और अभिमान की थी ,इस प्रकार से   होली निरंकुशता   के विरुद्ध  लोक का जयजयकार है !

होलिकादहन की रात्रि  में महाराष्ट्र में कोली स्त्रियाँ होलिकादहन की रात्रि को चट्टे बजाकर नाचते हुए गाती हैं-

हॉलु बाय हॉलु बाय तुझी पूजा कराशी करूँ,
तुझे पुंजेला काय काय आणु
आई न कोंकण दे राला फिरीन नारली बनाला,
नारली में नारल आनीन हॉलु बाय तुझे पुंजेला
आईन श्रीवर्धन शहराला फिरीन सोपारी बनाला ,
श्रीवर्धन ची सोपारी आनीन हॉलु बाय तुझे पुंजेला
जाईन बसई शहराला फिरीन केलिया बनाला,
बसई ची केली आनीन हॉलु वाय तुझे पुंजेला
ए होली माता। 

तुम्हारी पूजा किस तरह करूं और तुम्हारी पूजा में क्या-क्या अर्पित करूं। मैं कोंकण और सह्याद्रि जाऊंगी और नारियल के वनों में घूमूंगी और ए होली माता, मैं तुम्हारी पूजा के लिए नारियल लाऊंगी। मैं श्रीवर्धन नगर जाऊंगी और सुपारी के वनों में घूमूंगी। ए होली माता, तुम्हारी पूजा के लिए श्रीवर्धन की सुपारी लाऊंगी। मैं बसई जाऊंगी और केले के वन में घूमूंगी। ए होली माता, तुम्हारे लिए बसई के केले लाऊंगी और तुम्हारी पूजा करूंगी।होली का जैसे -जैसे  जनपदों में विकास हुआ , वैसे वैसे उसके साथ नये नये प्रसंग जुड़्ते चले गये ! 

जैसे राजस्थान में इलोजी की कथा है , जो होली का प्रेमी अथवा मँगेतर था !जब मैं लोकवार्ता का संग्रह-सर्वेक्षण करने निकला तो समामई की अम्माजी से घरगुली की कहानी पूछी , उसका विधिविधान पूछा तो अम्माजी ने घरगुली का गीत गा कर सुना दिया, - राजा बलि के द्वार मची रे होरी ! राजा बलि के ! अब तक तो मैं सोच रहा था , ब्रज की होली का संबंध तो राधा-कृष्ण से है ! अब समझ नहीं आ रहा था कि >> ये राजा बलि होली में कहाँ से आ गये ? लोकस्मृति के सूत्र इसी प्रकार से उलझे हुए होते हैं । स्वयं राजा बलि की ऐतिहासिकता लोकस्मृति के इन सूत्रों में उलझी हुई है ।इतिहास का सत्य अपनी जगह पर है , जहाँ तक उसकी नजर जा सकती है ,वह उसको देखता-परखता भी है किन्तु जीवन का विस्तार इतिहास के उस पार भी है ।

हालाँकि भागवत के सातवें स्कन्ध  में  प्रह्लाद की कथा है ,  हिरण्यकशिपु की निरंकुशता और अहंकार का  बहुत  विस्तार है  ,   किन्तु वहाँ  शंबरासुर का उल्लेख तो है किन्तु होलिका का नाम तक नहीं है ! दसवें अध्याय के अन्त में त्रिपुर-दहन का उल्लेख अवश्य है ! ध्यान रखने की बात है कि  तमिलनाडु में होलिका दहन को कामदहन की पुराण-कथा से जोडा जाता है !  बंगाल में भी  होलिका दहन में एक पुतला जलाया जाता है और श्रीकृष्ण की प्रतिमा के साथ उसकी परिक्रमा की जाती है !  यह पुतला प्राकृत-काम है , जबकि कृष्ण अप्राकृत-काम हैं -साक्षान्मन्मथमन्मथ: ! कामदेव के मन को भी मथने वाले मदनमोहन ! इसलिए आगे चल कर होली अथवा मदनोत्सव के समस्त केलिगीतों के नायक कृष्ण बन गये ! 
 
० मदनोत्सव 
 
वसन्त को काम का सखा कहा गया है ! जब तक यक्षों का प्रभुत्व रहा तब तक काम की पूजा का बहुत अधिक प्रभाव था ! शिव के तीसरे नेत्र से काम के दहन की कहानी के बहुत गहरे अर्थ हैं ! काम के शरीर का जलना और बाद में गौरा के द्वारा उसे अनंग या अशरीरी के रूप में जीवन प्रदान करना ! यह बात काम के इन्द्रिय से अतीन्द्रिय  हो जाने की बात है ! काम तो मदन है , मद !  काम का अशरीरी हो जाना ! पशुस्तर की वासना का जलना !  हालाँकि इतिहास के अध्येता इस कथा की व्याख्या इस प्रकार से भी करते हैं कि शैवों ने यक्षों के मुक्त यौन-संबंधों की परंपरा को समाप्त कर दिया ! आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने  संस्कृतसाहित्य को आधार बना कर अपने उपन्यास > बाणभट्ट की आत्मकथा में मदनोत्सव का वर्णन किया है !" भारत में नाना संस्कृतियों का संगम" शीर्षक निबन्ध में आचार्य क्षितिमोहनसेन ने लिखा है कि -"होलिकादाह के लिये आग अनेक स्थानों पर अन्त्यज [महारों ] के घर से लायी जाती है।" उस जमाने में स्पर्शास्पर्श का   रिवाज प्रचलित था  किन्तु होली पर शास्त्र ने श्वपचस्पर्श का विधान किया है ! इतना ही नहीं , होलिका दहन के लिए जो अंगार आयेगा , वह डोम के यहाँ से लाया जायेगा ! 

० गालियां 

होली- दहन के बाद  उन्माद जैसे रंग में अररर अररर कह कर गाली गायी जाती हैं !सूरदास ने अपने होली-पदों में गालियों का बार-बार उल्लेख किया है -

केकी कोक कपोत और खग करत कुलाहल  भारी !
मानहु  लै लै नाँउ परसपर देत दिबावत गारी !
झूमि झूमि झूमक सब गावत बोलत मधुरी बानी !
देत परसपर गारि मुदित मन तरुनी बाल सयानी ! 
अथवा
छाँडि सकुच सब देत परसपर अपनी भाई गारि !
ग्वारि मदमाती हो !

लोकगीतों में भी नैनन में मोय गारी दई का उल्लेख है !रसखान तो कहते हैं कि  कहि रसखान एक गारी पै सौ आदर बलिहारी !
एक विचित्र लोकविश्वास के अनुसार अश्लील और पशुवृत्ति से संबंधित गालियां सुनाने से " ढुंढा राक्षसी "नष्ट हो जाती है। पता नहीं, लोकविश्वास का यह सूत्र इतिहास के गर्भ में समायी किसी प्राचीन आदिम- संस्कृति का अवशेष है अथवा आदिम वासनाओं के विरेचन का माध्यम है।

होली के उत्सव में यक्ष, राक्षस , पिशाच , देव ,  दैत्य , वैदिक -तान्त्रिक  , आर्य-अनार्य ,वैष्णव, शैव , शाक्त , हिन्दू-मुस्लिम और सिख  , उत्तर-दक्षिण की सभी संस्कृतियों का अन्तर्भाव  या समन्वय है !  यक्षों की कामपूजा है , दैत्यसंस्कृति की होलिका है ,    धूलिवन्दन के समय पिशाच-नृत्य का उल्लेख है , शैवों का मदनदहन है ,  वैदिकों का नवसस्येष्टि-यज्ञ   है ! आगम-परंपरा की दारुण-रात्रि है !

प्राय : सभी कृष्णभक्त-कवियों ने होली के पद लिखे हैं , धमार लिखे हैं । अकेले सूरदास ने ही वसन्तलीला के सौ से अधिक पद लिखे हैं ,जिनसे तत्कालीन ब्रज और गोपों में होली की परंपराओं की विस्तृत जानकारी मिल जाती है ।  कितने प्रकार के गीत गाये जाते थे , कितने प्रकार के वाद्य थे । उद्दाम नृत्य होते थे ।झूम-झूम झूमक सब गावत ।झूमक लोकगीतों की एक  शैली थी ! देति परस्पर गारि मुदित मन ! आम्रमंजरी हाथ में ले कर चांचर खेलते थे,

सूरदास सब चांचर खेलें अपने-अपने टोलें ।
बाजत ताल मृदंग झांझ ढप । 

उन्मुक्त हास-परिहास होता था,

कोउ न रहत घर घूंघटबारी । 
जोबन भार भरीं ।

सूरदासजी  जिनमें  गोपसंस्कृति में रगीपगी होली का सजीव-चित्रण  है।  उन्हॊ ने फाग को सब सुखों का सार बतलाया है।उन्होंने लिखा है कि फाग में हृदय का गुप्त अनुराग प्रकट हो जाता है।सूरदास ने फागुन की पन्द्रह तिथियों का वर्णन किया है,जिसमें सम्राट कामदेव का शासन है,लोकवेद की मर्यादा को टांग दिया है,हरिहोरी है की टेक साथ-साथ चल रही है,

नृपति कहै सोइ कीजिये क्यों राखिये विवेक ।
अहो हरि होरी है!

चतुर्भुजदास ने तो हो-हो-हो-हो को होली का मन्त्र कह दिया है ।होली के वर्णन में सूरदास ने लिखा है कि कुल की मर्यादा खूँटी पर टाँग दी गयी है !
पद्माकर ने होली का वर्णन इस प्रकार से किया है -
फाग के भीर अभीरन तें गहि ,गोबिंदै लै गई भीतर गोरी ।
भायी करी मन की पदमाकर ,ऊपर नाय अबीर की झोरी ।
छीन पितंबर कंबर तें सु बिदा दई मीड कपोलन रोरी ।
नैन नचाय कही मुसकाय , लला फिर आइयो खेलन होरी । 
 
मुगलों के दरबार से लेकर वाजिद अली शाह तक की होलियाँ हैं ! अब्दुल हलीम शरर  ने लिखा है कि नवाब के यहाँ लोग जोगिया वस्त्र पहन कर होली देखने जाते थे ! शाह तोराब अली [काकोरबी ] जो कलन्दर  सूफी थे , उन्होंने  कृष्ण के प्रेम में अनेक रचनाएं लिखी थीं -

इनकी होरी का रंग न पूछो धूम मची है बिंदरावन माँ !
श्यामबिहारी चित्र खेलारी खेल रहा होरी सखियन माँ !
रंग से भीँज गयी सब धरती , बिचलत पाँव चलत कुंजन माँ !
अंग निहारत ताक के मारत दाग लगावत उजले बसन माँ !

अनेक मुस्लिम कवि और गायकों की होली रचनाएं शास्त्रीय-संगीत के रागों में निबद्ध हैं । सूफी-संत बुल्ले-शाह की होली रचना है,

होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह 
नाम नबी की रतन चढी, बूँद पडी इल्लल्लाह !
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह ,
नाम नबी की रतन चढी, 
बूँद पडी इल्लल्लाह,
रंग-रंगीली उही खिलावे, 
जो सखी होवे फ़ना-फी-अल्लाह ,
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह ।
फ़ज अज्कुरनी होरी बताऊँ , 
वाश्करुली पीया को रिझाऊं,
ऐसे पिया के मैं बल जाऊं, 
कैसा पिया सुब्हान-अल्लाह ,
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह।सिबगतुल्लाह की भर पिचकारी, 
अल्लाहुस-समद पिया मुंह पर मारी ,
नूर नबी [स] डा हक से जारी, 
नूर मोहम्मद सल्लल्लाह ,
बुला शाह दी धूम मची है, ला-इलाहा-इल्लल्लाह ,
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह।

अनेक मुस्लिम कवि और गायकों की होली रचनाएं शास्त्रीय-संगीत के रागों में निबद्ध हैं ।मुस्लिम कवयित्री ताजबीबी ने होली की धमार लिखी थी -  बहुरि , ढप बाजन लागे हेली ! रसखान ने तो होली का बड़ा जीवन्त वर्णन किया है ! जहांगीर के हरम में होली मनायी जाती थी , लन्दन के संग्रहालय में "जहांगीर-अलबम" में अबलहसन के द्वारा बनाया गया होली का चित्र है । इस चित्र में बादशाह और बेगम भी हैं ।

पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक चांचर गीत है -

पियरी सोहै पियरी सोहै ,
अरी पियरी सोहै, 
देख जरे नयना पियरी सोहै ,
अपने बलमवा से मुखवा न खोले ली ,
भला आनक बलम भरि-भरि बयना ,
भरि-भरि बयना ,पियरी सोहै

अरी, तेरी पीले वस्त्रों को देखकर मेरे नयनों में तृषा जग जाती है। आंखें जलने लगती हैं। अपने बालम से तू इतनी लाज करती है कि मुख ही नहीं खोलती। परंतु दूसरे के प्रिय से खुल कर बोलती है। उद्दाम रस से उच्छल नायिका दूसरी ओर से उत्तर देती है-

अरे अपना बलमवा से हरी हरी चुरिय़ां हो ,
हरी हरी चुरिय़ां ,
अरे आनक बलम भरि भरि कंगना भरि भरि कंगना ,
पियरी सोहै। 

अरे अपने बालम से तो मुझे हरी हरी चूडिय़ां ही मिलती है परंतु आनक- बलम तो मुझे भर बांह कंगन पहना जाता है।

० रसिया 

आज जब देश के सुदूरवर्ती अंचलों में लोकमन आनन्द -उल्लास से उमँग रहा है !  सारे भेदभाव जैसे समष्टि-उल्लास के आगे पराजित हो गये हैं !  नाना प्रकार के गीत , नाना प्रकार के नृत्य  नाना प्रकार के रंग !  रंग क्या ,उल्लास की अभिव्यक्ति  कहें !रसिया, फाग, धमार, कबीर, चैता, चहक, तान और चांचर।धरती से आकाश तक का अंतराल आनंद, उल्लास और कोलाहल से भर गया। कहीं ढपयायी होली, कहीं रजपूती होली। कहीं पतोला की होली तो कहीं सुखैया की होली। कहीं चांचर और कहीं धपंग। कहीं झुमका और कहीं वसंता। होरी आई रे वसंता ढप लै लै। जितने सुर उतनी तान। जितने गाम उतनी होली। होली के इतने रंग, इन्हें कौन गिन सकेगा।इनमें एक ब्रज का रसिया भी है ! यों तो रसिया रस और रसिक शब्द का ही विस्तार है । रसिया, ब्रज लोक- संगीत की एक परंपरा ही है । यों इसका एक रूप फूलडोल की गायकी में भी है ,जिसे रसियाई कहा जाता है ।  रसियाई और रसिया में अन्तर है । रसिया लोक का अपना गीत है , किसी दूसरे को सुनाने की उसे जरूरत ही क्या है ?  लेकिन जिसको सुनना ही हो उसे तो ढप बजाने वालों की भीड़ में सौ सौ धक्के खाने ही पड़ेंगे ।  अब रसिया की कुछ पंक्तियाँ गुगुनाने के लिये प्रस्तुत हैं -

होरी खेली न जाय । 
खेली न जाय होरी खेली न जाय।
नैंनन में मोय गारी दई पिचकारी दई ,
होरी खेली न जाय ।
क्यों रे लंगर लंगराई मोते कीनी,
केसर कीच कपोल दीनी ।
लै गुलाल ठाडौ मुसकाय..... 
लै गुलाल ठाडौ मुसकाय , 
होरी खेली न जाय ।
औचक कुचन कुमकुमा मारैं,
रंगसुरंग सीस पै डारे । 
अंग लिपट हँसि  हा हा खाय......
हँसि  हा हा खाय.......... 
होरी खेली न जाय ।
मनुआँ बड़ौ गरीब गुजरिया लै गई बातन में 
रूप सिखर गोरी चढ़ी ,रवि ते तेज अनूप ।
नैन बटोही थकि रहे ,लखि बदरौटी धूप ।
छिपे पलकन के पातन में । 
मनुआँ बड़ौ गरीब गुजरिया लै गई बातन में !
मन में घर करि गई गुजरिया गुन गरबीली सी 
ऐसी पैनी धार की काजर रेख लगाय 
आँजत अँगुरी ना चिरी कट्यौ करेजा जाय ।
न निकरै नोंक नुकीली सी !
०पा लागों कर जोरी श्याम मोसों खेलौ न होरी ।गैया चरावन हौं निकसी हों सास-ननद की चोरी ।श्याम मोसों खेलौ न होरी ।
सिगरी चुंदरिया न रंग में भिगोवौ , इतनी बात सुनों मोरी ।श्याम मोसों खेलौ न होरी ।
रे मत मारै !मत मारै दृगन की चोट रसिया होरी में मेरें लग जायगी !
नैना खेलें नैन खिलावें नैना डारैं रंग ।
नैना मारैं प्रेमप्रीत की पिचकारी पचरंग ।
भिंजोय दें बरजोरी !रे मत मारै !
काजर कौ कांटौ लगौ , बेंदी की लग गयी फांस ।
रसिया के नैना लगे कसि कें बारौ मास ।
मत मारै दृगन की चोट रसिया होरी में मेरें लग जायगी !

० देवर का नायकत्व

किसी प्राचीन -संस्कृति का एक सूत्र होली पर देवर के नायकत्व का है। दाऊजी का हुरंगा हो, नंदगांव बरसाने की लठमार होली हो, अथवा जाव बठैन की सर्वत्र लोकगीतों में देवर का नायकत्व प्रतिष्ठित है।

भमर कारे रे भमर कारे छिटकाय आई केस भमर कारे
कौन पै पहरीं तैनें हरी हरी चुरियां कौन पै नैन करे कारे
देवर पै पहरीं मैंने हरी हरी चुरियां यार पै नैन करे कारे
छिटकाय आई केस भमर कारे।
अथवा
मृगनैनी तेरी यार नवल रसिया।

होली का यह उल्लास भिन्न भिन्न  जगहों पर भिन्नभिन्न प्रकार से  अभिव्यक्त होता है ! जहां देखो वहीं ढोल और ढप बज रहे हैं!धरती से आसमान तक उल्लास!कहीं ढपियायी होली ,तो कहीं रजपूती होली!कहीं पतोला की होली तो कहीं सुखैया की होली ।कहीं चांचर, तो कहीं धपंग! कहीं झुमका तो कहीं बसन्ता!ब्रज को ही लें तो बरसाने की लठामार होली , दाऊजी का हुरंगा ! फालैन की होली ,  जाव बठैन की होली ! ग्राउस ने जाटों का उल्लेख किया है !राजस्थान की होली ! 

० बनारस की होली

दिगंबर खेले मसाने में होरी
खेलैं मसाने में होरी 
दिगंबर खेले मसाने में होरी ,
भूत पिशाच बटोरी ,दिगंबर, 
खेले मसाने में होरी.चिता, 
भस्म भर झोरी,दिगंबर,
खेले मसाने में होरी.
गोप न गोपी श्याम न राधा, 
ना कोई रोक ना, कौनाऊ बाधा,
ना साजन ना गोरी, 
दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
नाचत गावत डमरूधारी, 
छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी,पीतैं प्रेत-धकोरी ,
दिगंबर खेले मसाने में होरी.
भूतनाथ की मंगल- होरी, 
देखि सिहाएं बिरिज की गोरी ,
धन-धन नाथ अघोरी ,
दिगंबर खेलैं मसाने में होरी.

० अवध की होली

अवध माँ होली खेलैं रघुवीरा...
ओ केकरे हाथ ढोलक भल सोहै, 
केकरे हाथे मंजीरा।
राम के हाथ ढोलक भल सोहै, 
लछिमन हाथे मंजीरा।
ए केकरे हाथ कनक पिचकारी, 
ए केकरे हाथे अबीरा।
ए भरत के हाथ कनक पिचकारी 
शत्रुघन हाथे अबीरा।

होली की मनोभूमि राग की मनोभूमि है , वह मनोभूमि जिससे कलाओं का उद्भव होता है !लाल-पीला-हरा-नारंगी-नीला और गुलाबी ।जैसे होली के रंग अनेक हैं ,वैसे ही होली के बोल भी अनेक हैं ।होली के संगीत का अध्ययन अनुसंधान का विषय बनाया जा सकता है !  होली के गीतों की कितनी विधाएं और शैलियाँ हैं >  ध्रुपद धमार रसिया चाँचर तान राग काफ़ी दीपचन्दी ताल ! धमार का तो अर्थ ही ऊधम है ! धमगज्जर या हुड़दंग !होली के अवसर पर कितने वाद्य बजाये जाते हैं ? ढप , ढोलक . मजीरे , नगाड़े , बैन , मुंहचंग , किन्नर , महुआ , हुड़का ।गोप-ग्वालों के मृदंग-पखावज और ढप हों अथवा विंध्याचल के जंगलों में अपने आदिम-विश्वासों और अनेक अभावों के बीच जीने वाले मुसकराते-गाते भील-भीलनियों के धिन्न-धिन्न करते हुए मादल और ढोल हों ,प्रत्येक ताल और लय में वही शाश्वत तरंग है । होली पर कितने  प्रकार के नृत्य  होते हैं ? थावल- चौंडनी हो ,शेखावाटी का गींदड या भीलवाडा का गेर हो !ब्रज का चरकुला हो । करमा नाच , लहराओबा नृत्य , वसन्त की मदमाती बयार में चांदनी के दूध में नहाये युवा-हृदय की सौन्दर्यचेतना उमंगती है , तो पैर अपने-आप थिरकने लगते हैं । असम के बिहू का प्रणय-उन्माद से तरंगित गीत है >> नाचने की लालसा है , नाचती ही रहूं , मगन रहूं , ओ साथी ! बिहू नाचते -नाचते मुझे भगा कर मत ले जाना ! 

भविष्यपुराण और भविष्योत्तर-पुराण में होली का वर्णन है ! पिशाच-नृत्य की बात आयी है , होली की भस्म , धूलि और कुंकुम को लेकर पिशाच जैसा नृत्य हो रहा है ! 

फागुन, होरी के खिलैया यार, 
जाय मत रे! 

होली के पास वह आनन्द भाव है,  जिसमें मन का साधारणीकरण हो जाता है ,  चित्त द्रवीभूत हो जाता है।  सुख की अदम्य खोज ,प्रणय और सौन्दर्य की अतृप्त प्यास !  मन की उद्दाम तरंग!  जब होली के दिन बीतने को होते हैं तब रसिक-मन की प्यास बुझती नहीं,  वह कहता है > फागुन, होरी के खिलैया यार, जाय मत रे!

राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी
© Rajendra Ranjan Chaturvedi

लेखक एक प्रसिद्ध साहित्यकार है। आप सबको होली की अनंत शुभकामनाएं। 

Monday, 6 March 2023

नेहा सिंह राठौर को दी गई धारा 160 सीआरपीसी के नोटिस की कानूनी स्थिति / विजय शंकर सिंह

कुछ हफ्ते पहले लोकगायिका नेहा सिंह राठौर को, उत्तर प्रदेश की कानपुर देहात की थाना अकबरपुर पुलिस ने उनके एक गीत पर, जो 'यूपी में का बा' पर धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत एक नोटिस जारी करके नेहा से, कुछ स्पष्टीकरण मांगे थे। वह नोटिस अखबारों में और सोशल मीडिया में वायरल हुई। नेहा से मीडिया ने, कई सवाल पूछे, पर मीडिया के किसी पत्रकार ने पुलिस से यह सवाल नहीं पूछा और न ही इसकी पड़ताल ही की, कि, आखिर, धारा 160 सीआरपीसी या क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (दंड प्रक्रिया संहिता) के अंतर्गत यह नोटिस जारी करने वाली पुलिस को, इस मामले में, उपरोक्त प्राविधान के अंतर्गत, नोटिस जारी करने का कोई कानूनी अधिकार है भी या यह भी कोई दफा सरपट जैसी चीज है? 

नोटिस जिस लोकगीत पर जारी की गई है, उसके कारण क्या है यह तो नोटिस जारी करने वाले अधिकारी ही बता सकते हैं, मैं उस पर कोई टिप्पणी नहीं करने जा रहा हूं, बल्कि इस लेख में, धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत समन करने की, पुलिस को जो अधिकार और शक्तियां दी गई है, उनकी व्याख्या कर रहा हूं। 

सीआरपीसी में धारा 160 का प्राविधान, गवाहों को बुलाने के लिए लागू होता है जिसे सामान्य रूप से, सफ़ीना  कहते है। प्राविधान यह कहता है। 
"साक्षियों की हाजिरी की अपेक्षा करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति–

(1) कोई पुलिस अधिकारी, जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा है, अपने थाने की या किसी पास के थाने की सीमाओं के अन्दर विद्यमान किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसकी दी गई इत्तिला से या अन्यथा उस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित होना प्रतीत होता है, अपने समक्ष हाजिर होने की अपेक्षा लिखित आदेश द्वारा कर सकता है और वह व्यक्ति अपेक्षानुसार हाजिर होगा :
परन्तु किसी पुरुष से [जो पन्द्रह वर्ष से कम आयु का है या पैंसठ वर्ष से अधिक आयु का है, या किसी स्त्री से या शारीरिक या मानसिक रूप से निर्योग्य किसी व्यक्ति से] ऐसे स्थान से, जिसमें ऐसा पुरुष या स्त्री निवास करती है, भिन्न किसी स्थान पर हाजिर होने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।

(2) अपने निवास स्थान से भिन्न किसी स्थान पर उपधारा (1) के अधीन हाजिर होने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के उचित खर्चों का पुलिस अधिकारी द्वारा संदाय कराने के लिए राज्य सरकार इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा उपबन्ध कर सकती है।
यानी, सरकार, समन किए जाने पर आने जाने का व्यय भी देगी।

अब इसे विस्तार से देखते हैं ~ 
धारा 160(1) के अनुसार, एक जांच अधिकारी, किसी भी व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए इस कानून के अंतर्गत नोटिस भेज सकता है,  यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं तो, 
 
1. व्यक्ति की उपस्थिति की आवश्यकता वाला आदेश, लिखित में होना चाहिए।
2. व्यक्ति वह है, जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होता है; 
 3. आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत जारी होने वाले सम्मन में जांच अधिकारी का नाम, शीर्षक और पता के साथ-साथ प्राथमिकी और अपराध की जानकारी शामिल होनी चाहिए।
4. जांच के लिए बुलाया गया व्यक्ति जांच करने वाले पुलिस अधिकारी के थाने की सीमा के भीतर है या आसपास के किसी पुलिस थाने की सीमा के भीतर है।
5. पुलिस अधिकारी को नियमों के अनुसार इस व्यक्ति के उचित खर्च का भुगतान भी करना चाहिए जब वह अपने घर के अलावा किसी अन्य स्थान पर उपस्थित होता है।
 
हालांकि, 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति या 65 वर्ष से अधिक, एक महिला, या मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति को उस स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी, जहां वह रहता है। यानी उसे बुलाया नही जाएगा, वह जहां होगा, वही उसका बयान दर्ज किया जायेगा। इन श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों को, इस कानून के अंतर्गत नोटिस जारी कर के थाने पर नहीं बुलाया जा सकता है। 

इस धारा के संबंध में, सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णय भी हैं जिनका उल्लेख आवश्यक है। 

० चरण सिंह बनाम महाराष्ट्र राज्य, 24 मार्च 2021, क्रिमिनल अपील में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "इस प्रावधान का उद्देश्य धारा 160(1) के तहत पुलिस शक्तियों के दुरुपयोग की संभावना को रोकना है। इस विधायी निषेध के पीछे एक इरादा यह भी था, कि, किशोरों और महिलाओं को पुलिस की सोहबत से दूर रखा जाय। यह प्राविधान पुलिस की साख के बारे में भी एक दुखद हकीकत बयान करता है।" 

सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने इस मुअदमे की सुनवाई की है और कहा है कि, "प्राथमिकी (एफआईआर) से पहले के चरण में, खुली जांच के दौरान दिए गए बयानों को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत अंकित बयान नहीं माना जा सकता है और मुकदमे के दौरान अभियुक्तों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे मुकदमे के दौरान दर्ज नहीं किए गए थे।"
धारा 161 सीआरपीसी के अंतर्गत विवेचना के दौरान, पुलिस द्वारा बयान दर्ज किए जाने के अधिकार और शक्तियों का उल्लेख है। हालांकि इस धारा के अंतर्गत दर्ज किए गए बयान, अदालत में साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किए जाते हैं।  

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यह भी कहा है कि, "इस तरह की टिप्पणी को इकबालिया बयान के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है और अगर यह इकबालिया बयान कहा जा रहा है तो इसे, कानून के तहत, अवैध के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।" 
पीठ ने आगे कहा कि "बयान और जांच के दौरान प्राप्त सामग्री का उपयोग केवल किसी भी आवश्यकता को पूरा करने और यह निर्धारित करने के लिए किया जाना चाहिए कि, क्या कोई अपराध किया गया है।"

० ए.शंकर बनाम वी. कुमार और अन्य
 2022 की अवमानना ​​याचिका संख्या 818 में, मद्रास उच्च न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 91 और 160 के उल्लंघन में, एक पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को समन जारी करने के लिए पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाई थी। वकील, एक मुकदमे में सरकार के खिलाफ थे और इस धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत उन्हे बयान के लिए नोटिस भेजी गई। इस पर उक्त वकील मद्रास हाईकोर्ट चले गए। अदालत ने कहा, "आदेश लापरवाही से जारी किया गया है और इस प्रकार के सम्मन से, एक वकील की स्थिति खराब होती है।" 

याचिकाकर्ता के वकील को समन भेजने में पुलिस के रवैये और लापरवाही को कोर्ट ने गंभीरता से लिया।  याचिकाकर्ता ने अवमानना ​​​​याचिका इस आधार पर दायर की कि प्रतिवादी ने अदालत के फैसले की अवज्ञा की थी, जिसमें प्रतिवादी को याचिकाकर्ता के तर्कों पर विचार करने की आवश्यकता थी।  अदालत ने उपर्युक्त आदेश सबरी बनाम सहायक पुलिस आयुक्त, मदुरै शहर और अन्य (2018) में उल्लिखित नियमों के अनुसार जारी किया।

० जमशेद आदिल खान और अन्य।  v. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और अन्य (2022) और डब्ल्यू.पी.  (CRL।) 976/2022, सीआरएल।  एमए 8240/22 और सीआरएल.एमए 10543/22 के मुकदमों में भी अदालत ने 160 सीआरपीसी पर इसी तरह के मंतव्य दिए हैं।

० कुलविंदर सिंह कोहली बनाम दिल्ली के एनसीटी राज्य और अन्य, डब्ल्यूपी (सीआरएल) 611/2022 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि सीआरपीसी की धारा 160 के तहत, एक पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को उसके पुलिस स्टेशन की क्षेत्रीय सीमाओं के बाहर या उसके आस-पास के पुलिस स्टेशन की अधिक से अधिक क्षेत्रीय सीमाओं के बाहर स्थित किसी व्यक्ति को नहीं बुला सकता है। पुलिस अधिकारियों को इस प्रावधान के तहत गवाहों की उपस्थिति का अनुरोध करने की शक्ति दी गई है।  

सिंगल जज बेंच ने कहा कि यह "सीआरपीसी की धारा 160 की उप-धारा (1) के साथ पढ़ने से स्पष्ट है कि, एक जांच के प्रयोजनों के लिए, एक पुलिस अधिकारी अपनी सीमा के भीतर, के रहने वाले व्यक्ति की उपस्थिति का अनुरोध कर सकता है अथवा खुद के पुलिस स्टेशन या पड़ोसी पुलिस स्टेशन को भी बुला सकता है,न कि किसी ऐसे व्यक्ति को समन कर सकता है, जो निर्दिष्ट क्षेत्रीय सीमा के बाहर रहता है।”

दिल्ली उच्च न्यायालय ने तर्कसंगत अवलोकन किया कि "एक पुलिस अधिकारी जांच शुरू करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत समन या नोटिस जारी कर सकता है, लेकिन ऐसा करने से पहले प्राथमिकी दर्ज करना आवश्यक है।  कोर्ट ने कहा कि एफआईआर दर्ज किए बिना जांच शुरू नहीं मानी जा सकती है।"

इस प्रकार, सीआरपीसी के इस प्राविधान और तत्संबधित हाइकोर्ट और सुप्रीम कौन के फैसलों के आलोक में निम्न तथ्य स्पष्ट हैं ~ 
० धारा 160 सीआरपीसी की नोटिस, केवल अपने थाना क्षेत्र या पड़ोस के थाना क्षेत्र के अंतर्गत आवासित व्यक्ति को ही भेजी जा सकती है। 
० यह नोटिस एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद, दौरान रफ्तीश भेजी जा सकती है। 
० इस नोटिस पर बुलाए गए व्यक्ति के बयान को यदि एफआईआर दर्ज नहीं है तो, धारा 161 सीआरपीसी के अंतर्गत दर्ज बयान नहीं माना जा सकता है। 
० किसी महिला या 15 वर्ष के कम आयु के बच्चो को यह नोटिस नही भेजी जा सकती है। 

अब यदि नेहा सिंह राठौर को जारी नोटिस का अवलोकन करें तो, आप पाइएगा कि, यह नोटिस एक भी कानूनी प्राविधान को, जो धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत कानून की किताब में दिया गया है और जिसकी व्याख्या हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न फैसलों में की है, का पालन नहीं करती है। नेहा महिला है। वे नोटिस जारी करने वाले थाना या पड़ोसी थाने के क्षेत्र के अंतर्गत रहती भी नहीं है और उनके खिलाफ थाना अकबरपुर जिला कानपुर देहात ने कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं किया है। 

आज हम सूचना क्रांति के युग में है और सोशल मीडिया ने किसी भी गोपनीयता को अब बरकरार नही रखा। जिस दिन यह नोटिस नेहा सिंह राठौर को तामील कराई गई, उसी दिन से इस पर बहस और चर्चा शुरू हो गई। पर बहस का केंद्रबिंदु बना अभिव्यक्ति का अधिकार, एक कलाकार की अभिव्यक्ति के अधिकार का आधार, सरकार की आलोचना में किसी गीत या क्था कहानी व्यंग्य आदि लिखने का अधिकार। यह एक अलग विंदु है जो संविधान के मौलिक अधिकारों में आता है। पर क्या धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत जारी इस नोटिस को कानूनी प्राविधान जो उक्त धारा के अंतर्गत दिए गए हैं, के अनुसार कानूनी रूप से जारी किया गया है, इस पर कोई बहुत चर्चा नहीं हुई, जो आवश्यक थी। 

इस तरह की जारी नोटिसें, पुलिस और संबंधित अधिकारी के विधि ज्ञान और अध्ययन का मजाक तो उड़ाती ही है, पुलिस के बारे में यह धारणा कि अक्सर हम विधिसम्मत रूप से, कानूनी दायित्व का निर्वहन नहीं कर सकते, इसे भी पुष्ट करती है। 

(विजय शंकर सिंह)

Saturday, 4 March 2023

पेगासस उपकरण, देश में आया कैसे, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है / विजय शंकर सिंह

कैंब्रिज में राहुल गांधी के पेगासस के बयान पर कि उनकी जासूसी की गई पर सरकार समर्थक मित्रो ने एतराज जताया है। उन्हे भी एतराज जताने का उतना ही हक है जितना राहुल गांधी को अपनी बात कहने का। पर सरकार समर्थक मित्रो की याददाश्त थोड़ी कमज़ोर होती है। जिस पेगासस पर राहुल के बयान के बाद वे इसे देश की इज्जत से जोड़ कर देख रहे है, उस पेगासस के भारत में आने और जासूसी की खबरों का खुलासा करने का शुरुआत ही विदेशी खोजी पत्रकारिता से हुई है। उसी खोजी पत्रकारिता ने यह रहस्य खोला था कि भारत में इजराइल की एनएसओ कंपनी ने पेगासस नामक एक ऐसा मालवेयर बेचा है, जिसका इस्तेमाल, बड़े राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों, जजों और तो और पूर्व सीजेआई और अब सदस्य राज्यसभा रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला अधिकारी तक की जासूसी के लिए किया गया। पर इन सबसे देश की इज्जत नहीं गई, पर इन्ही आरोपों को एक व्याख्यान में उल्लेख कर देने से, देश की इज्जत कैंब्रिज में नीलाम हो गई! मूर्खता और पाखंड की कोई सीमा नहीं होती है। 

मैं आप को थोड़ा पीछे ले जाना चाहता हूं। साल 2021 में, विदेशी अखबार द गार्डियन और वाशिंगटन पोस्ट सहित भारतीय वेबसाइट, द वायर और 16 अन्य मीडिया संगठनों द्वारा एक 'स्नूप लिस्ट' जारी की गयी, जिसमें बताया गया कई मानवाधिकार कार्यकर्ता, राजनेता, पत्रकार, न्यायाधीश और कई अन्य लोग इजरायली फर्म एनएसओ ग्रुप के पेगासस सॉफ्टवेयर के माध्यम से साइबर-निगरानी के टारगेट थे। द वायर ने इस जासूसी के संबंध में लगातार कई रिपोर्टें प्रकाशित की जिनसे यह ज्ञात होता है कि, "पेगासस सॉफ्टवेयर, केवल सरकारों को बेचा जाता है, और इसका मकसद आतंकी संगठनों के संजाल को तोड़ने और उनकी निगरानी के लिए किया जाता है। पेगासस स्पाइवेयर को एक हथियार का दर्जा प्राप्त है और वह सरकारों को, उनकी सुरक्षा के लिये जरूरी जासूसी हेतु ही बेचा जाता है।"
इन खुलासों से यह निष्कर्ष निकला रहा कि, सरकारों ने, इसका इस्तेमाल राजनीतिक रूप से असंतुष्टों  और पत्रकारों पर नजर रखने के लिए भी किया है। इसमे भी, विशेष रूप से, वे पत्रकार जो सरकार के खिलाफ खोजी पत्रकारिता करते हैं और जिनसे सरकार को अक्सर असहज होना पड़ता है।

अब कुछ देशों की खबरें देखें।
● फ़्रांस ने न्यूज़ वेबसाइट मीडियापार्ट की शिकायत के बाद पेगासस जासूसी की जाँच शुरू कर दिया है। यह जासूसी मोरक्को की सरकार ने कराई है।
● अमेरिका में बाइडेन प्रशासन ने पेगासस जासूसी की निंदा की है हालांकि उन्होंने अभी किसी जांच की घोषणा नहीं की है।
● व्हाट्सएप प्रमुख ने सरकारों व कंपनियों से आपराधिक कृत्य के लिए पेगासस निर्माता एनएसओ पर कार्रवाई की मांग की।
● आमेज़न ने एनएसओ से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर और अकाउंट बंद किया।
● मैक्सिको ने कहा है कि, एनएसओ से किये गए पिछली सरकार के कॉन्ट्रैक्ट रद्द होंगे।
● भारत में इस पर सरकार अभी भ्रम में है और आईटी मंत्री किसी भी प्रकार की जासूसी से इनकार कर रहे हैं और इसे विपक्ष की साज़िश बता रहे हैं ! हैरानी की बात यह भी है कि नए आईटी मंत्री, अश्विनी वैष्णव का नाम खुद ही जासूसी के टारगेट में हैं।

फ्रांसीसी अखबार ला मोंड ने, भारत को इस स्पाइवेयर के इजराइल से प्राप्त होने के बारे में, लिखा है कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब जुलाई 2017 में इजरायल गये थे, तब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति बेंजामिन नेतान्याहू से उनकी लंबी मुलाकात हुई थी। नेतन्याहू से हमारे प्रधानमंत्री जी के सम्बंध बहुत अच्छे रहे हैं। हालांकि नेतन्याहू बीच में हट गए थे, पर वे फिर गद्दीनशीन हो गए हैं। 2017 की प्रधानमंत्री जी की यात्रा के बाद ही, पेगासस स्पाईवेयर का भारत में इस्तेमाल शुरू हुआ, जो आतंकवाद और अपराध से लड़ने के लिए 70 लाख डॉलर में खरीदा गया था। हालांकि ल मांड की इस खबर की पुष्टि हमारी सरकार ने नही की है। और यही सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है भी, कि हमने उक्त स्पाइवेयर खरीदा भी है या नहीं। हालांकि इस विवाद पर, पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक प्रेस कांफ्रेंस में यह कहा था कि, दुनिया के 45 से ज़्यादा देशों में इसका इस्तेमाल होता है, फिर भारत पर ही निशाना क्यों ? पर खरीदने और न खरीदने के सवाल पर उन्होंने भी कुछ नहीं कहा था।

जैसे खुलासे रोज रोज हो रहा थे, उससे तो यही लगता है कि पेगासस स्पाइवेयर  का इस्तेमाल सिर्फ अपने ही लोगों की निगरानी पर नहीं, बल्कि चीन, नेपाल, पाकिस्तान, ब्रिटेन के उच्चायोगों और अमेरिका की सीडीसी के दो कर्मचारियों की जासूसी तक में किया गया है। द हिन्दू अखबार की तत्कालीन रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने कई राजनयिकों और विदेश के एनजीओ के कर्मचारियों की भी जासूसी की है। पर सरकार का अभी तक इस  खुलासे पर, कोई अधिकृत बयान नहीं आया है अतः जो कुछ भी कहा जा रहा है, वह अखबारों और वेबसाइट की खबरों के ही रूप में है।

तब डॉ सुब्रमण्यम स्वामी पूर्व बीजेपी सांसद ने एक ट्वीट कर के सरकार से पूछा था कि, "पेगासस एक व्यावसायिक कम्पनी है जो पेगासस स्पाइवेयर बना कर उसे सरकारों को बेचती है। इसकी कुछ शर्तें होती हैं और कुछ प्रतिबंध भी। जासूसी करने की यह तकनीक इतनी महंगी है कि इसे सरकारें ही खरीद सकती हैं। सरकार ने यदि यह स्पाइवेयर खरीदा है तो उसे इसका इस्तेमाल आतंकी संगठनों की गतिविधियों की निगरानी के लिये करना चाहिए था। पर इस खुलासे में निगरानी में रखे गए नाम, जो विपक्षी नेताओं, सुप्रीम कोर्ट के जजों, पत्रकारों, और अन्य लोगों के हैं उसे सरकार को स्पष्ट करना चाहिए।" उन्होंने सरकार से सीधे सवाल किया था कि, क्या उसने यह स्पाइवेयर एनएसओ से खरीदा है या नहीं ?

तभी यह सवाल उठा कि, अगर सरकार ने यह स्पाइवेयर नहीं खरीदा है और न ही उसने निगरानी की है तो, फिर इन लोगों की निगरानी किसने की है और किन उद्देश्य से की है, यह सवाल और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर किसी विदेशी एजेंसी ने यह निगरानी की है तो, यह मामला बेहद संवेदनशील और चिंतित करने वाला है। सरकार से यह सवाल पूछे जाने लगे, 
● उसने पेगासस स्पाइवेयर खरीदा या नहीं खरीदा।
● यदि खरीदा है तो क्या इस स्पाइवेयर से विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सुप्रीम कोर्ट के जजों और कर्मचारियों की निगरानी की गयी है ?
● यदि यह निगरानी की गयी है तो क्या सरकार के आईटी सर्विलांस नियमों के अंतर्गत की गयी है ?
● यदि निगरानी की गयी है तो क्या सरकार के पास उनके निगरानी के पर्याप्त काऱण थे ?
● यदि सरकार ने उनकी निगरानी नहीं की है तो फिर उनकी निगरानी किसने की है ?
● यदि यह खुलासे किसी षडयंत्र के अंतर्गत सरकार को अस्थिर करने के लिये, जैसा कि सरकार बार बार कह रही है, किये जा रहे हैं, तो सरकार को इसका मजबूती से प्रतिवाद करना चाहिए। सरकार की चुप्पी उसे और सन्देह के घेरे में लाएगी।

एनएसओं के ही अनुसार, "पेगासस स्पाइवेयर का लाइसेंस अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत मिलता है और इसका  इस्तेमाल आतंकवाद से लड़ने के लिये आतंकी संगठन की खुफिया जानकारियों पर नज़र रख कर उनका संजाल तोड़ने के लिये किया जाता है।"
पर जासूसी में जो नाम आये हैं, उससे तो यही लगता है कि, सरकार ने नियमों के विरुद्ध जाकर, पत्रकारो, विपक्ष के नेताओ और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ अपने निहित राजनीतिक उद्देश्यों के लिये उनकी जासूसी और निगरानी की है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की भी निगरानी की बात सामने आ रही है। नियम और शर्तों के उल्लंघन पर पेगासस की कंपनी एनएएसओ भारत सरकार से स्पाईवेयर का लाइसेंस रद्द भी कर सकती है। क्योंकि, राजनयिकों और उच्चायोगों की जासूसी अंतरराष्ट्रीय परम्पराओ का उल्लंघन है औऱ एक अपराध भी है । अब वैश्विक बिरादरी, इस खुलासे पर सरकारों के खिलाफ क्या कार्यवाही करती है, यह तो समय आने पर ही पता चलेगा।

हंगामा हुआ और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर हुई तो, पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज, जस्टिस रवींद्रन की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनाई और जांच भी हुई। सुप्रीम कोर्ट ने, अपने आदेश की शुरूआत बिहार के मोतिहारी में जन्मे अंग्रेज लेखक जॉर्ज ऑर्वेल के कथन ‘आप कोई राज रखना चाहते हैं तो उसे खुद से भी छिपाकर रखिए’ से की। केंद्र सरकार की दलील थी कि, यह सुरक्षा का मामला है और बहुत से दस्तावेज सरकार ने जांच के लिए उपलब्ध नहीं कराए। सुरक्षा कवच, देश की सुरक्षा में कितना कारगर होता है, यह तो अलग बात है, पर सरकार को भी एक आवरण दे ही जाता है, जिनके अंदर ऐसी बहुत सी चीजें, तथ्य आदि छुप जाते हैं, जिन्हे गोपनीय रखने की कोई जरूरत नहीं होती है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस नीयत को समझ लिया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "सरकार को मांगी गई जानकारी गुप्त रखे जाने का तर्क, साबित करना चाहिए कि इसके खुलासे से राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ेगा। उसे अदालत के सामने रखे जाने वाले पक्ष को भी सही ठहराना चाहिए। अगर केंद्र सरकार एक सीमित हलफनामा दाखिल करने के बजाय इस मामले में अपना रुख स्पष्ट कर देती तो यह एक अलग स्थिति होती।"
पीठ ने कहा कि, "आरोपों पर केंद्र ने कोई खंडन नहीं किया।" 
केंद्र सरकार ने कहा था कि, "वह यह सार्वजनिक नहीं कर सकती कि उसकी एजेंसियों ने इस्राइल के स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं, क्योंकि इस तरह का खुलासा राष्ट्रीय हित के खिलाफ होगा।"

पेगासस जासूसी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जस्टिस रवीन्द्रन कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, "29 उपकरणों में से 5 उपकरणों में मालवेयर पाए गए हैं। वे पेगासस के हैं, या किसी अन्य स्पाइवेयर के, यह भी स्पष्ट नहीं है। रिपोर्ट में जासूसी रोकने के उपाय भी सुझाए  गए हैं और निजता के हनन को रोकने की बात भी की गई है।" 
हालांकि, रक्षा मंत्रालय पहले ही इस बात से इनकार कर चुका है कि, रक्षा मंत्रालय और एनएसओ के बीच कोई सौदा हुआ है। न्यूयार्क टाइम्स की खबर के अनुसार, पेगासस रक्षा सौदे का हिस्सा था। सरकार के लाख ना नुकुर के बाद, एक साल पहले यह चर्चा विभिन्न स्रोतों से पुष्ट हो रही थी कि, भारत सरकार ने रक्षा उपकरणों के रूप में, पेगासस स्पाइवेयर की खरीद की थी और उसका उपयोग सुप्रीम कोर्ट के जजों, निर्वाचन आयुक्त सहित, विपक्ष के नेताओ और पत्रकारों सहित अनेक लोगों की जासूसी करने में प्रयोग किए जाने के आरोप लगे थे। 

आज तक इस सवाल का जवाब सरकार ने नही दिया कि, पेगासस भारत में आया है कि नही ?
यदि आया है तो उसे किसने खरीदा है?
क्या सरकार ने ? 
या सरकार के इशारे पर किसी चहेते पूंजीपति ने? 
नही आया है तो फिर पेगासस से जासूसी किए जाने के जो आरोप लगाए गए थे, उनका स्पष्ट खंडन क्यों नही किया गया ?

सर्विलांस, निगरानी और खुफिया जानकारी जुटाना, यह सरकार के शासकीय नियमों के अंतर्गत आता है। सरकार फोन टेप करती हैं, उन्हें सुनती हैं, सर्विलांस पर भी रखती है, फिजिकली भी जासूसी कराती हैं, और यह सब सरकार के काम के अंग है जो उसकी जानकारी मे होते हैं और इनके नियम भी बने हैं। इसीलिए, ऐसी ही खुफिया सूचनाओं और काउंटर इंटेलिजेंस के लिये, इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, अभिसूचना विभाग जैसे खुफिया संगठन बनाये गए हैं और इनको इन सब कामो के लिये, अच्छा खासा बजट भी सीक्रेट मनी के नाम पर मिलता है। पर यह जासूसी, या अभिसूचना संकलन, किसी देशविरोधी या आपराधिक गतिविधियों की सूचना पर होती है और यह सरकार के ही बनाये नियमो के अंतर्गत होती है। राज्य हित के लिये की गयी निगरानी और सत्ता में बने रहने के लिये, किये गए निगरानी में अंतर है। इस अंतर के ही परिपेक्ष्य में सरकार को अपनी बात देश के सामने स्पष्टता से रखनी होगी।

पेगासस जासूसी यदि सरकार ने अपनी जानकारी में देशविरोधी गतिविधियों और आपराधिक कृत्यों के खुलासे के उद्देश्य से किया है तो, उसे यह बात सरकार को संसद में स्वीकार कर लेनी चाहिए। लेकिन, यदि यह जासूसी, खुद को सत्ता बनाये रखने, पत्रकारो, विपक्षी नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ब्लैकमेलिंग और उन्हें डराने के उद्देश्य से की गयी है तो यह एक अपराध है। सरकार को संयुक्त संसदीय समिति गठित कर के इस प्रकरण की जांच करा लेनी चाहिए। जांच से भागने पर कदाचार का सन्देह और अधिक मजबूत ही होगा। सच कहिए तो पेगासस मामले की जांच जितनी गंभीरता और गहराई से होनी चाहिए थी, उतनी संजीदा तरह से की ही नहीं गई। कारण, सरकार द्वारा दस्तावेजों का उपलब्ध न कराना भी था। राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है, और उसके लिए यदि ऐसे आधुनिक सर्विलांस उपकरण की जरूरत हो तो, उसे खरीदा भी जाना चाहिए। पर ऐसे संवेदनशील उपकरण का इस्तेमाल, अपने राजनीतिक विरोधियों, जजों, चुनाव आयुक्त, पत्रकारों आदि की निगरानी के लिए नहीं किया जाना चाहिए। 

(विजय शंकर सिंह)


Wednesday, 1 March 2023

न्यूज़ एंकर अमन चोपड़ा के शो पर 25,000 रुपए का जुर्माना / विजय शंकर सिंह

टीवी चैनलों के कुछ पत्रकार, जैसे अमन चोपड़ा, अमीश देवगन, सुधीर चौधरी आदि, जिस तरह की सम्रदायिक तनाव फैलाने और घृणावादी पत्रकारिता करते हैं, उसे देखते हुए, उनका नाम पुलिस थाने के गुंडा रजिस्टर के सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाले लोगों की सूची में दर्ज होन चाहिए और राज्य तथा भारत सरकार के इंटेलिजेंस विभागो को, उनके एंकरिंग की रिकॉर्डिंग, रिकॉर्ड के तौर पर रखनी चाहिए। पिछले कुछ सालों से इन टीवी ऐंकरों का एक ही उद्देश्य रहा है कि वे समाज में भेदभाव फैलाए, दंगाई मानसिकता का पोषण करें और देश को उसी मानसिक अनुकूलन की अवस्था में ले जाएं, जो सन 1937 से 1947 तक थी। इनका यह पोशीदा एजेंडा है जो अब अयां हो रहा है।

पर इनकी लाख चीखने चिल्लाने और इसी मानसिकता पर पैनलिस्ट चुनने, बहस कराने के बावजूद, ऐसा हो नही पाया। कुछ सांप्रदायिक तत्वों के गिरोहों के अतिरिक्त, लोग अब समझदार हो चले हैं, और इनकी चाल से सजग भी हैं। खुशी की बात है, मुकेश अंबानी के चैनल न्यूज18 द्वारा, लगातार दंगाई मानसिकता से भरी रिपोर्टिंग करने के बाद भी, समाज में अब भी सद्भाव काफी हद तक बना है। मुझे नहीं पता, मुकेश अंबानी को यह तथ्य पता भी है या नहीं, कि उनका चैनल, खबरों को प्रसारित करने की आड़ में, अवैज्ञानिकता, दंगा, और सामाजिक बिखराव से भरे प्रोग्राम लगातार दिखाता रहता है। न्यूज18 का यह एजेंडा, क्या उनका खुद का है कि, आपसी सद्भाव खत्म कर देश में एक तनाव भरा वातावरण बनाए रखा जाय, या यह सब किसी के इशारे पर किया जा रहा है, यह तो वही बता पाएंगे। पर जो कुछ भी हो रहा है वह संविधान की मंशा के विपरीत और देश के लिए घातक है।

इसी तरह के एक कार्यक्रम पर, संज्ञान लेते हुए, न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीडीएसए) ने, 27/02/23, सोमवार को गुजरात में मुस्लिम पुरुषों की सरेआम पिटाई की घटना पर 'देश नहीं झुकने देंगे' नाम से प्रसारित एक शो में सांप्रदायिक रंग जोड़ने के लिए न्यूज चैनल, न्यूज 18 इंडिया पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। यह मुकदमा, इंद्रजीत घोरपड़े और अन्य बनाम न्यूज 18 इंडिया के नाम से, एनबीडीएसए में दायर किया गया था। जिस दिन आप जागना शुरू कर देंगे, यह दंगाई चैनल या तो अपना स्वरूप बदल देंगे, या यह बुरी आदत और एजेंडा छोड़ देंगे।

एनबीडीएसए के अध्यक्ष, जस्टिस एके सीकरी ने, इस मामले मे, अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि, "जांच के घेरे में शो के बीच-बीच में एंकर अमन चोपड़ा के बयान भी आए, जिसमें कुछ बदमाशों की हरकतों के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया, बदनाम किया गया और उनकी आलोचना की गई।"
अमन चोपड़ा की यह हरकत नई नहीं है। यह बिना दंगाई सोच के एक प्रोग्राम तक नहीं कर सकता है। कुछ महीने पहले, पुलिस, इसी तरह के एक बयानबाजी के कारण, इसके पीछे पड़ी थी। तब यह घर से फरार था और अदालत से राहत मिलने के बाद ही सामने आया।

इसी अमन चोपड़ा के एक शो में दंगाई मानसिकता से, प्रसारित एक शो के खिलाफ, 6 अक्टूबर, 2022 को, किसी इंद्रजीत घोरपड़े द्वारा एक शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 4 अक्टूबर, 2022 को शो में, चैनल ने 'पुलिस की डांडिया' कहकर पुलिस हिंसा का जश्न मनाया। उनके अनुसार, चैनल, न्यूज18, न केवल हिंसा की निंदा करने में विफल रहा, बल्कि इसे महिमामंडित करने वाले दृश्यों को बार-बार प्रसारित करता रहा, और गलत तरीके से हिंसा के विषयों को गुजरात में गरबा कार्यक्रम में पथराव का दोषी भी घोषित कर दिया।

इंद्रजीत ने, अपनी शिकायत में, आगे आरोप लगाया था कि, "पथराव को 'जिहाद' से जोड़कर और युवा मुस्लिम पुरुषों के बारे में सामान्यीकृत नकारात्मक बयान देकर, उन पर अपराधों में शामिल होने या गरबा कार्यक्रमों में संदिग्ध व्यवहार का आरोप लगाकर, चैनल ने मुस्लिम समुदाय की छवि को धूमिल किया है।"
इसलिए, उन्होंने कहा कि "News18 द्वारा प्रसारित शो ने हिंसा, धार्मिक सद्भाव, सटीकता, तटस्थता और निष्पक्षता के चित्रण के आसपास NBDSA के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया।"

इस आरोप के, जवाब में, News18 ने कहा कि "शो एनबीडीएसए के दिशानिर्देशों और लागू कानूनों के अनुरूप था। इसने तर्क दिया कि यह शो गुजरात के खेड़ा जिले में गरबा के अवसर पर हुई पथराव और उसके बाद की पुलिस कार्रवाई की व्यापक रूप से रिपोर्ट की गई घटना पर आधारित था और इस बात से इनकार किया कि पुलिस हिंसा का जश्न मनाने के लिए 'डांडिया' वाक्यांश का इस्तेमाल किया गया था।"
इसके अलावा, चैनल ने इस बात से भी, इनकार किया कि "शो ने इस मुद्दे को एक सांप्रदायिक रंग दिया था, जिसमें कहा गया था कि इसने केवल इस मुद्दे की रिपोर्ट की थी और पुलिस की हिंसा सहित शो के पैनलिस्टों से राय मांगी थी।"

एनबीडीएसए ने, पूरी सुनवाई और पड़ताल के बाद, पाया कि इसी शो के संबंध में सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा इसी तरह की शिकायत दर्ज की गई थी। चूंकि मुद्दा एक ही था, इसने एक सामान्य आदेश पारित किया,
"यह नोट किया गया कि विचाराधीन प्रसारण गुजरात के खेड़ा जिले के एक वायरल वीडियो से निकला है, जिसमें एक गरबा कार्यक्रम में कथित रूप से पथराव करने के लिए कुछ लोगों को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाते हुए दिखाया गया है।"
शो में एंकर के बयानों को ध्यान में रखते हुए, एनबीडीएसए ने माना कि "कुछ बदमाशों के कार्यों के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय की निंदा करके, यह एंकर ही था जिसने इस घटना को सांप्रदायिक रंग दिया।"

एनबीडीएसए ने एंकर को ही दोषी पाया  अपराध की घटनाओं को, किस दृष्टिकोण से कोई प्रस्तुत करता है, इससे आप उसकी सोच का पता लगा सकते है। इसके अलावा एनबीडीएसए ने यह भी पाया कि, "प्रसारण के दौरान प्रसारित किए गए टिप्पणियों ने आलंकारिक प्रश्न उठाए और ब्रॉडकास्टर द्वारा बनाए गए कथन को पुष्ट किया कि मुस्लिम पुरुष केवल गुप्त उद्देश्यों के लिए गरबा कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।"
यह भी माना गया कि पुलिस द्वारा कथित बदमाशों की पिटाई के वीडियो को लूप पर रखने से यह आभास होता है कि पुलिस की कार्रवाई उचित थी।

तदनुसार, उल्लंघन की 'दोहराव प्रकृति' को ध्यान में रखते हुए, NBDSA ने News18 को चेतावनी जारी की और ₹25,000 का जुर्माना भी लगाया। इसके अलावा, इसने ब्रॉडकास्टर को प्रसारण के वीडियो को अपनी वेबसाइट के साथ-साथ अपने YouTube चैनल से हटाने का निर्देश दिया। एनबीडीएसए के इस फैसले का स्वागत है। इन दंगाई मानसिकता के कार्यक्रमों से दूरी बनाइए और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें।

(विजय शंकर सिंह)