Sunday 2 October 2016

कभी हम भी तुम भी थें आशना ! / विजय शंकर सिंह

जब इन चित्रों पर निगाह गयी तो मोमिन की यह पंक्ति याद आ गयी । राज ठाकरे का फतवा आया और सारे पाकिस्तानी कलाकार देश छोड़ कर चल दिये । गाँव गिराँव में भी जब पट्टीदारी या पड़ोसी में झगड़ा गहरा जाता है तो दोनों घरों के लोग अपने अपने बच्चों के आपस में मिलने और खेलने पर रोक लगा देते हैं । अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की व्यथा कथा भी ऐसी ही है । अच्छा ही है न कोई सम्बन्ध बढ़ेगा और न ही कोई बात होगी । डंडवारी ऊंची कर दी जायेगी और रात विरात लोग सजग रह कर पहरा देंगे । कुछ लठैत पाल लिये जाएंगे । बंदूकें साफ़ करा ली जाएंगी। कारतूस आदि खरीद लिए जाएंगे । मतलब साफ़ है कि अब कोई बात नहीं । तुम गुंडई और मार पीट से बाज़ नहीं आओगे और हम कब तक इसे सहन करें । आखिर सहने की भी हद होती है । आखिर सब्र टूटा और जो कुछ हुआ पूरे गांव घर को मालुम है । कुछ लोग जो मज़ा लेने वाले हैं वे तो मज़ा ही लेंगे । दरोगा जी से रब्त ज़ब्त भी ठीक है । और फिर हम तो ऊबे थे । पूरा गांव इसे जानता है । अब सब अपना अपना देखो । हमारे पास और भी काम है । यही नहीं कि बस तुम्हे ही अगोरते रहें । भारत पाक रिश्तों का एक यह एक नैनो रूप है ।

अब आइये इन चित्रों पर । 



1. पहला चित्र है जिसमे भारतीय पत्रकार वेद प्रताप वैदिक , जमात उद  दावा के सदर और कुख्यात आतंकी सरगना हाफिज सईद से मिलते हुए । 

वैदिक जी देश के हिंदी पत्रकारिता जगत में अत्यंत जाना पहचाना नाम है । वह विदेश मामलों के विशेषज्ञ और हिंदी में पीएचडी की थीसिस लिखने और डॉक्टरेट लेने वाले यह पहले व्यक्ति हैं । इंदिरा गांधी से ले कर नरेंद्र मोदी तक सभी प्रधानमंत्रियों से इनके निजी और आत्मीय सम्बन्ध रहे हैं । यह जब हाफ़िज़ सईद से मिले और यह खबर और चित्र जब बहुप्रचारित हुआ तो किसी ने भी इनकी देश भक्ति पर सवाल नहीं उठाया । किसी ने भी पाकिस्तान का टिकट नहीं भेजा । निंदा ज़रूर हुयी । कैफियत भी पूछी गयी । इन्होंने कहा भी कि एक पत्रकार होने के नाते वह हाफ़िज़ सईद से मिले थे । यह पत्रकारिता के प्रोफेशन का अंग है । चम्बल के बड़े बड़े डकैतों , जिनको पुलिस ढूंढ नहीं पाती थी, से भी पत्रकार मिलते रहे हैं और इन पर स्टोरी भी करते रहे  है । पर कभी उनको यह नहीं कहा गया कि वे दस्युओं से मिले हुए हैं । यह उनकी व्यावप्रतिबद्धता है। 


2. दूसरा चित्र है, जावेद मियांदाद का बाल ठाकरे से मिलते हुए । 

प्रथम दृष्टया यह आग और पेट्रोल को अगल बगल रखने जैसा दिखेगा । शिव सेना पाक क्रिकेट खिलाड़ियों का पहले भी विरोध करती रही है । मुम्बई में इन्होंने एक बार मैच के एक दिन पहले पिच ही खोद दी थी । मैच टल गया था । विरोध इनका स्थायी भाव हैं। कभी ठाकरे मद्रासियों का विरोध करते थे, कभी गुजरातियों का, कभी उत्तर भारतीयों का और मुसलमानों का तो करते ही रहते  हैं।  यहाँ तक कि हिन्दू पद पादशाही की ज्वाल ध्वजा फहराने वाले शिव सैनिक सूर्योपासना के महान पर्व छठ का भी विरोध करते रहते हैं । और जब कोई विरोध का मुद्दा नहीं मिलता है तो, आपस में पटका पटकी करने लगते हैं । तो यह जनाब मियांदाद, जिनकी क्रिकेट टीम शिवसेना के संविधान के अनुसार अवांछित घोषित है, वह क्यों बाला साहब के साथ मुस्कुरा के मिल रहे हैं । वह कौन सा ग़म छुपा रहे हैं। मियांदाद , जो दाऊद इब्राहिम के समधी भी बाद में बने । वह एक क्रिकेटर थे और इसी हैसियत से वह यहां दिख भी रहे हैं। जिनकी टीम को भारत में खेलने पर शिव सेना को बराबर आपत्ति रही हैं । वही दाऊद इब्राहिम जो मोस्ट वांटेड अपराधी है । डॉन है । और जिसे पकड़ना अभी तो फिलहाल नामुमकिन ही है । बाला साहब तो देश द्रोही नहीं हुए । वह देशद्रोही हैं भी नहीं।  उन्हें देश द्रोही कहेगा कौन । देशभक्त होने का प्रमाण पत्र जारी करने की फ्रेंचाइजी तो उनके भी पास है । यही बाला साहब हैं जिन्होंने देश की किसी अदालत का सम्मान तक नहीं किया, कानून तक नहीं माना, पर वे परम देश भक्त ही कहे जाएंगे ।


3. तीसरा चित्र है नवाज़ साहब और zee ज़ी टीवी के मालिक सुभाष चंद्रा और सुधीर चौधरी का । 

सुभाष चोपड़ा व्यवसायी हैं । zee उनकी कंपनी है । सुधीर चौधरी ज़रूर एक पत्रकार हैं । राष्ट्र के प्रति समर्पित व्यक्तित्व है इनका । यह और बात है कि सुप्रीम कोर्ट इनकी आवाज़ सुनने के लिए कभी इतना बेताब था कि उसने आवाज़ न सुनाने पर इन्हें  जेल भेजने का फरमान जारी करने की धमकी दे दी । एक 100 करोड़ की उगाही की धमकी का मामला था । कोई ख़ास बात नहीं थी। उस मामले में कोई उल्लेखनीय प्रगति अभी नहीं हुयी है, पर उस मामले की विवेचना जारी है । बाद समाप्त तफ्तीश , तो सामने आएगा उस से अवगत कराया जाएगा । फिलहाल तो इनको सुनते रहिये और कदम कदम बढ़ाते रहिये । ना जाने किस मोड़ पर देशभक्त मिल जाए !

यह तीनों चित्र में तीन विधा के लोग हैं । एक में एक आतंकी सरगना , देश के प्रसिद्ध पत्रकार से गुफ्तगू कर रहा है , दूसरे में एक हिंदुत्व का पुरोधा, और शिवसेना प्रमुख एक क्रिकेटर से मिल रहा है । तीसरे में एक प्रधानमंत्री , एक न्यूज़ चैनेल के मालिक और टीवी एंकर के साथ फ़ोटो सेशन में है । इनमे जो भारतीय सज्जन हैं वे सभी भाजपा के समर्थक या सहयोगी है । पर किसी ने भी इन्हें देश द्रोही नहीं कहा और न ही कहने का साहस किया । ये देशद्रोह कर भी नहीं रहे हैं । तब वह मानसिकता भी संभवतः नहीं जनमी थी कि लोग बात बात पर किसी न किसी को देशद्रोही कहने लगें । कल्पना कीजिए अगर इन सज्जनों के स्थान पर कोई ऐसा व्यक्ति होता जो भाजपा या आरएसएस की विचारधारा के विपरीत सोच वाला होता तो, उसे किन किन विशेषणों और अपशब्दों से नवाज़ा जाता , यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है । आप आसानी से अनुमान लगा सकते हैं ।

यह फ़ोटो इस लिए है कि टेररारिस्ट और अन्य में फ़र्क़ है । वैदिक जी एक आतंकी से मिल कर , ठाकरे एक पाकिस्तानी क्रिकेटर से मिल कर, और सुभाष चंद्रा और सुधीर चौधरी एक दुश्मन देश के प्रधानमंत्री के साथ फ़ोटो खिंचा कर देशद्रोही नहीं कहलाये और सलमान खान सिर्फ यह कहने पर कि फवाद खान एक आर्टिस्ट है टेररिस्ट नहीं , उन्हें कुछ लोग देशद्रोही कहने लगे ? इस पोस्ट का उद्देश्य केवल यह है कि देशभक्ति केवल एक व्यक्ति, दल, और विचारधारा के प्रति समर्पण ही नहीं है । देशभक्ति सरकार की दासता भी नही है । देशभक्ति फ़र्ज़ी फोटोशॉप कर के अफवाह फैलाना भी नहीं है । देश भक्ति देश के नागरिक के जो कर्तव्य और दायित्व हैं उसका पालन करना है । संविधान ने जो अधिकार हमे दिए हैं उनके लिए सजग रहना है । देश को जोड़े रखना देश भक्ति है, उसे तोड़ने का उपक्रम करना देशभक्ति नहीं है ।

( विजय शंकर सिंह )

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